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आसमान से नीले और माणक जैसे हरे पानी में रंग बिरंगे जीव जन्तु व जलीय पौधों की विविधता, जलीय जंतुओं की ऐसी ऐसी प्रजातियाँ जो मुश्किल से ही देखने को मिलें, साथ ही पानी की सतह के नीचे पनपता जीवन | ये सभी चीज़ें किसी भी महासागर प्रेमी के लिए एक सुहाने सपने से कम नहीं हैं | जब शीशे जैसे साफ नीले पानी और प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण मूँगे की लाल चट्टानों का ज़िक्र होता है तो हम में से अधिकांश लोग विदेशी जगहों जैसे मालदीव या उत्तरी अमरीका के सामुद्री टापुओं के बारे माइयन सोचने लगते हैं | जबकि हमें ये पता होना चाहिए कि हमारे अपने देश भारत में भी ऐसे सुंदर प्राकृतिक संसाधनों की बहुतायत है | यहाँ तक कि युनेसको द्वारा प्रमाणित विश्व के 669 बायोस्फेयर रिज़र्व में से 18 तो भारत में ही हैं |
मगर आगे बात करने से पहले आइए जानें कि बायोस्फेयर रिज़र्व आख़िर होता क्या है ?
युनेसको द्वारा मान्यता प्राप्त बायोस्फेयर रिज़र्व जीव जंतुओं और पेड़ पौधों के प्राकृतिक आवास को कहते हैं | एक देश की सरकार उस देश में कुछ ऐसी जगहों का नामांकन करती हैं जहाँ पेड़ पौधों की विविधता और वन्यजीवों की भरमार हो | ऐसे स्थल जिनका संरक्षण और विकास पर्यावरण में संतुलन बनाए रखने की दृष्टि से महत्वपूर्ण हो | ये सुरक्षा और विकाश ना सिर्फ़ उस जगह के वन्यजीवों और पेड़ पौधों की प्रजातियों तक सीमित रहता है बल्कि वहाँ रहने वाली जनजातियों को भी संरक्षण और विकास के दायरे में शामिल किया जाता है | इनमे से कई रिज़र्वों में एक या एक से अधिक राष्ट्रीय उद्यान भी होते हैं | ऐसे क्षेत्रों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दी जाती है | भारत के जाने माने बायो स्फेयर रिज़र्वों में से कुछ के नाम इस प्रकार हैं - सहयाद्री पर्वत शृंखलाओं में 5520 वर्ग किलो मीटर में फैला नीलगिरि, पश्चिम बंगाल में 9630 वर्ग किलो मीटर में फैला सुंदरवन का पूरा इलाक़ा | लेकिन अगर क्षेत्रफल की दृष्टि से देखा जाए तो भारत का सबसे बड़ा बायो स्फेयर रिज़र्व है 10500 किलो मीटर के विशाल क्षेत्रफल में फैला मुन्नार की खाड़ी का बायोस्फेयर रिज़र्व |
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मुन्नार की खाड़ी का समुद्री राष्ट्रीय उद्यान
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ये कोरोमंडल तटीय क्षेत्र में फैला संरक्षित इलाक़ा है जिसके अंतर्गत करीब 21 द्वीप आते हैं |
साल 1986 में रामेश्वरम से तुतीकोरिन तक के पूरे क्षेत्र को समुद्री राष्ट्रीय उद्यान के रूप में घोषित किया गया था और साल 1989 में इसी क्षेत्र को युनेसको द्वारा बायोस्फेयर रिज़र्व का दर्जा दिया गया था | मुन्नार की खाड़ी भारत के दक्षिण-पूर्व के सिरे से शुरू होती है और श्रीलंका के पश्चिमी तट तक फैली हुई है। ये पूरा क्षेत्र 4 मुख्य समूहों से मिल कर बना है जिसमे तूतिकोरिन के चार द्वीप, किलाकाराई के सात द्वीप, वेंबार के तीन द्वीप और मण्डपम् के सात द्वीप सम्मिलित हैं |
पेड़ पौधे एवं पशु पक्षी
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वनस्पतियों और जलीय जीवों की 3,600 से अधिक प्रजातियों के आश्रय देने के कारण ये बायो स्फेयर रिज़र्व बहुत लोगों में लोकप्रिय है | इस खाड़ी में समुद्री घास, मूँगे की चट्टानों और मैंग्रोव की ऐसी विविधता है जो पुर बारात में शायद ही कहीं देखने को मिलें | यहाँ पाई जाने वाली मछलियों की प्रजातियों में सबसे मशहूर हैं - बोतल नोज़ डॉल्फिन, पर्ल ओएस्टर, एवं क्लाउन फिश |
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इस रिज़र्व में डुगोंग को भी देखा जा सकता है जो आज के समय में लगभग लुप्तप्राय प्रजाति है | पक्षी प्रेमियों को हताश होने की ज़रूरत नहीं है क्यूंकी इस बायो स्फेयर रिज़र्व में प्रवासी, निवासी और विदेशी पक्षियों की कई प्रजातियाँ देखी जा सकती हैं |
यहाँ जल्दी जाना क्यूँ ज़रूरी है
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अधिकांश प्राकृतिक संसाधनों की तरह यह विशाल बायो स्फेयर रिज़र्व भी व्यावसायीकरण का शिकार हो चुका है | यहाँ के आस पास की मानव जनसंख्या के बढ़ने और स्थानीय लोगों द्वारा मछली पकड़ने के ग़लत तरीकों के प्रयोग से इस जगह का समुद्री जीवन विलुप्त होने के ख़तरे से जूझ रहा है | मूँगे की चट्टानों का खनन रोकने और इनके संरक्षण के लिए स्थानीय सरकार ने धनराशि भी आवंटित की है | फिर भी समय की मार और अवैध गतिविधियों के चलते इस बायोस्फेयर रिज़र्व का पूरी तरह सर्वनाश हो जाए, इससे पहले ही आपको यहाँ की जलीय जीव विविधता का अपने प्राकृतिक परिवेश में विचरते देखने की खूबसूरती का अनुभव कर लेना चाहिए |
यहाँ के आस पास की देखने लायक जगहें
यहाँ की व्यापक जैव विविधता और सुंदरता को मद्देनज़र रखते हुए आप इस बायो स्फेयर को छोड़ कर कहीं और जाना ही नहीं चाहेंगे | लेकिन अगर फिर भी यहाँ के साथ साथ कुछ और भी देखने का मन बन बना रहे हैं तो इन घूमने योग्य ज़बरदस्त स्थानों को ध्यान में रख सकते हैं |
एडम ब्रिज:
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मुख्य रूप से राम सेतु के नाम से जाना जाने वाला एडम ब्रिज की भी एक कहानी है | हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री राम चंद्र की धर्म पत्नी सीता को दुष्ट रावण के चंगुल से छुड़ाने में मदद करने के लिए बंदरों की एक टोली ने ये पुल बनाया था| पुराने समय में बना पुल करीब 125000 साल से भी अधिक पहले बनाया गया था जो अब अस्तित्व में नहीं है | उस पुराने पुल की याद में यहाँ एक नया पुल बनाया गया है | पुल पर खड़े होकर देखने से मूँगे की चट्टानों व आस पास का अलौकिक दृश्य देखते ही बनता है |
रामेश्वरम:
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भारत के दक्षिणी छोर पर स्थित पनबम द्वीप पर बसे इस शहर का इतिहास और धार्मिक महत्व सदियों पुराना है | अगर यहाँ घूमने जाए तो रामेश्वरम मंदिर के साथ ही धनुषकोड़ी के खंडहर भी ज़रूर देखे | इस द्वीप के तटीय किनारे अपनी सुंदरता के लिए जग प्रसिद्ध हैं |
कैसे पहुँचा जाये:
वायुयान द्वारा: निकटतम हवाई अड्डा यहाँ से 150 किलो मीटर की दूरी पर मदुराई में स्थित है | वहाँ से आप टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या रिजर्व तक पहुंचने के लिए बस का साधन भी उपलब्ध है |
रेल द्वारा: निकटतम रेलवे स्टेशन यहाँ से 7 किलो मीटर की दूरी पर रामेश्वरम में स्थित है। यह स्टेशन भारत के सभी प्रमुख महानगरों से जुड़ा हुआ है।
सड़कमार्ग द्वारा: हवाई अड्डों और रेलवे स्टेशनों से नियमित रूप से सरकारी बसें चलती रहती हैं जो आपको सीधा रिज़र्व तक ही पहुँचा देंगी | मदुराई, रामेश्वरम् या रामनाथपुरम से बसें आपको आसानी से उपलब्ध हो जाएँगी |
यात्रा करने का सबसे अच्छा समय:
यह राष्ट्रीय उद्यान साल भर खुला रहता है | फिर भी इस रिजर्व में घूमने जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के महीनों के बीच है क्योंकि इन महीनों के दौरान मौसम सुहाना होता है, उद्यान एकदम हरा भरा और पशु पक्षियों से चहचाहाता रहता है | मौसम सॉफ होने की वजह से आप पुर उद्यान के नज़ारों का भली भाँति आनंद ले पाएँगे |
कहाँ रहें :
रिज़र्व के आस पास कोई रिहायशी जगह उपलब्ध नहीं है | लेकिन आपको रमेश्वरम और मण्डपम् में रुकने के बहुत सारे विकल्प मिल जाएँगे जिनकी दो लोगों के लिए एक रात की कीमत मात्र 1000 रुपये से शुरू हो जाती है | कुछ लोकप्रिय होटल देखने के लिए यहाँ क्लिक करें |
ध्यान देने योग्य बातें:
यहां समुद्री जीवन की विविधता का आनंद लेने का एक ही तरीका है और वो है काँच के तल वाली नाव किराए पर लेना | इस बायो स्फेयर रिज़र्व का पूर्ण रूप से भली भाँति आनंद लेने के लिए कम से कम 2 से 3 दिन रुकने का सुझाव दिया जाता है |
भारत के अन्य बायो स्फेयर रिज़र्व के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें |
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