पश्चिमी भारत : महाराष्ट्र, नगरीय जीवन के ताने-बाने से दूर, बादलों के बीच में से झांकते हुए भीमाशंकर को तीर्थ का स्वर्ग कहा जाता है।
भीमशंकर भारत के पश्चिमी घाट बेल्ट के सह्याद्रिपर्वत पर पुणे से करीबन 120 किमी दूर, खेड़ तालुका के भोरगिरी नामक गांव में स्थित है।
भीमशंकर ज्योतिर्लिंग भीमा नदी का उद्गम स्थल है, जहाँ के शांत वातावरण में स्थित गुप्तभीमशंकर भीमा नदी का स्रोत है।
आसपास के घने जंगल, वनस्पतियों और जीवों की दुर्लभ प्रजातियों से भरापूरा यह स्थान सह्याद्रि पर्वतमाला के सबसे ऊपर स्थित है। स्थानीय नदियां और हिल स्टेशन इसके आसपास के क्षेत्र का एक अति रमणीय दृश्य प्रदान करते हैं।
अनछुए जंगलों के कभी ना खत्म होने वाले भाग, बिल्कुल बचपन में बनाए गए पहाड़ियों के चित्र जैसी हू ब हू पर्वतचोटियां और भीमा का भीषण जलप्रवाह मिलकर निश्चित रूप से इसे भगवान की सबसे सुंदर कृतियों में से एक बनाता है।
ऐसा लगता है मानो स्वयं भगवान शिव सहयाद्रि की शांत पर्वतमाला पर मौनव्रत रख साधना कर रहे हैं।
शांत हवा और केवल पक्षियों की कभी-कभार चहकती हुई आवाज ही शांति को बाधित करती है यहां। "भीमाशंकर को एक ट्रेकर की खुशी और एक ट्रैवलर का शोक माना जाता है।"
मंदिर निर्माण व इतिहास के नज़रिए से सरल संरचना वाले इस सुंदर मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी का है। यद्यपि यहां की संरचना काफी नई है पर, भीमाशंकर तीर्थ (और भीमराठी नदी) का उल्लेख हमें 13वीं शताब्दी ई.पू. के साहित्य में मिलता है। कहा जाता है कि संत ज्ञानेश्वर ने त्रयंबकेश्वर और भीमाशंकर के दर्शन किए थे। 18वीं शताब्दी में पेशवाओं के प्रसिद्ध नेता नाना_फड़नवीस द्वारा मंदिर का सभामंडप और शिखर बनवाकर इसे आधुनिक स्वरूप प्रदान किया था। महान मराठा शासक शिवाजी ने इस मंदिर की पूजा के लिए कई तरह की सुविधाएं मुहैय्या कराई थीं।
मंदिर के सामने रोमन शैली की एक घंटी है। इस घंटी में जीसस के साथ मदर मैरी की मूर्ति है। यह बड़ी घंटी चिमाजी अप्पा (बाजीराव पेशवा के भाई और नानासाहेब पेशवा के चाचा) द्वारा भेंट की गई थी। दरअसल 16 मई 1739 को, चिमाजी अप्पा ने पुर्तगालियों के खिलाफ युद्ध जीतने के बाद वसई किले से पांच बड़ी घंटियाँ एकत्र कीं थी। जिनमे से एक उन्होंने यहां भीमशंकर में और अन्य चार को कृष्णा नदी के तट पर स्थित एक शिवमंदिर बनशंकरमंदिर (पुणे), ओंकारेश्वरमंदिर (पुणे) और रामलिंगमंदिर (शिरूर) के सामने वाई के पास भेंट की थी।
नागर शैली की वास्तुकला से बना यह मंदिर एक प्राचीन और नई संरचना का सम्मिश्रण है। इस मंदिर की शिल्प और वास्तुकला से प्राचीन विश्वकर्मा वास्तुशिल्पियों के कौशल की श्रेष्ठता का स्तर का पता चलता है। वास्तुकला की इंडोआर्यन शैली का भी प्रभाव नई संरचना में देखने को मिलता है।
दैवीय जीवों के चित्रों की जटिल नक्काशी, मानव मूर्तियों के साथ प्रतिच्छेदन खंभे मंदिर के द्वार पर सुशोभित हैं। पौराणिक कथाओं के दृश्य आपको इन शानदार नक्काशियों में जीवंत पाते हैं। वैसे आपको बताते चलें कि बाकी सभी ज्योतिर्लिंगों में भीमशंकर ज्योतिर्लिंग समुद्रतल से सबसे कम ऊंचाई पर बना है।
भीमाशंकर करीब 130 वर्ग किमी का आरक्षित वन क्षेत्र है और 1985 में इसे वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया था। यह अभयारण्य विश्व प्रसिद्ध पश्चिमी घाट का एक हिस्सा है, इसलिए यह पुष्प और जीव विविधता में समृद्ध है। यहां आप कई तरह के सुंदर पक्षी, वन्यजीव एवं फूल, पौधे देख सकते हैं. एक दुर्लभ जानवर विशालकाय मालाबार गिलहरी जिसे स्थानीय भाषा में "शेकरु /शकरू" कहा जाता है, को गहरेे जंगल में देख सकते हैं। भोरगिरि किला भीमाशंकर के करीब है। यहां के सौंदर्य की बदौलत ही शिव में अटूट आस्था रखने वाले भक्त ही नहीं बल्कि विदेशी पर्यटक भी इधर खिंचे चले आते हैं.
मंदिर के चारों ओर का नजारा भी बेहद सुंदर है. यहां आपको हनुमान झील, गुप्त भीमशंकर (भीमा नदी का उद्गम स्थल) , नागफनी, बॉम्बे प्वाइंट, साक्षी विनायक जैसे स्थानों का दौरा करने का मौका मिल सकता है। पूरी दुनिया भर से लोग इस मंदिर को देखने और पूजा करने के लिए आते हैं।
भीमाशंकर मंदिर के पास देवी कमलजा मंदिर है। कमलजा मां को पार्वती जी का ही अवतार माना जाता है। इस मंदिर में भी श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है। वैसे आपको बता दें कि ये एक देवी है जो कालाम्ब नामक वृक्ष को समर्पित है। वह एक स्थानीय आदिवासी देवी हैं।
विशेष :
यहां आने वाले ज्यादातर श्रद्धालु कम से कम तीन दिन जरूर रुकते हैं। श्रद्धालुओं के लिए रुकने के लिए हर तरह की व्यवस्था है। भीमशंकर से कुछ ही दूरी पर शिनोली और घोड़गांव है जहां आपको हर तरह की आवश्यक सुविधा मिल ही जाती है। यदि आपको भीमशंकर मंदिर की यात्रा करनी है तो अगस्त और फरवरी महीने की बीच जाएं। वैसे आप ग्रीष्म ऋतु को छोड़कर किसी भी समय यहां आ-जा सकते हैं। वैसे जिन्हें ट्रैकिंग पसंद है उन्हें मानसून के दौरान बचने की सलाह दी जाती है। मॉनसून के दौरान वेस्टर्न घाट्स में काफी खतरा हो सकता है।
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पुणे और मुंबई
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