दुनिया की इकलौती ट्रेन जिसमें कर सकते हैं फ्री में सफर, जानें पूरी डिटेल

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क्या आप जानते हैं भारत में एक ट्रेन ऐसी भी है जिसमें आप फ्री में सफर कर सकते हैं? यदि आप इसके बारे में नहीं जानते हैं तो बता दें हिमाचल प्रदेश और पंजाब की सीमा पर एक ट्रेन चलती है जिसमें सफर करने के लिए यात्रियों को टिकट लेने की जरूरत नहीं है। ये ट्रेन खासतौर से भाखड़ा बांध के लिए चलती है। यदि आप डैम देखने जाना चाहते हैं तो आप इस ट्रेन यात्रा का मजा उठा सकते हैं।

ये ट्रेन खासतौर से भाखड़ा डैम की जानकारी देने के लिए चलाई जाती है। इस ट्रेन का उद्देश्य आगे आने वाली पीढ़ी को भाखड़ा डैम के बारे में जानकारी देना है, जिसे देश का सबसे बड़ा बांध होने का गौरव मिला हुआ है। इस ट्रेन का संचालन भाखड़ा ब्यास प्रबंध बोर्ड (BBMB) के द्वारा किया जाता है। केवल भाखड़ा डैम ही नहीं बल्कि इस ट्रेन के ट्रैक को बनाने में भी काफी मुश्किलों का सामना किया गया है। इस ट्रेन ट्रैक को पहाड़ियों को काटकर बनाया गया है जिससे बांध बनाने की सामग्री पहुँचाने में आसानी हो।

इस ट्रेन का नाम NLDM नंगल डैम है।

फ्री में कर सकते हैं सफर

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ये ट्रेन पिछले 73 सालों से निरंतर चलाई जा रही है। इस ट्रेन की शुरुआत 1949 में की गई थी और उस समय भाप से चलने वाले इंजन का इस्तेमाल किया जाता था। 1953 में इन इंजनों को बदलकर डीजल इंजन का प्रयोग किया जाने लगा जिन्हें खासतौर से अमेरिका से मंगवाया गया है। महत्वपूर्ण बात ये है कि इस ट्रेन में रोजाना 300 लोग सफर करते हैं जो आसपास के 25 गांवों से आते हैं। क्योंकि ट्रेन नंगल से भाखड़ा तक का सफर तय करने के लिए सबसे अच्छा साधन है इसलिए इन इलाकों में रहने वाले छात्रों को इससे काफी मदद मिलती है। इस ट्रेन में ना तो आपको कोई चाट-पकौड़ी बेचने वाला मिलेगा और ना ही कोई टीटीई। ये भारत की इकलौती ट्रेन है जिसमें आप बिना टिकट लिए फ्री में सफर कर सकते हैं।

निरंतर हो रहे घाटे के चलते, 2011 में इस ट्रेन की फ्री सर्विस को रोकने पर भी विचार किया जा रहा था लेकिन बाद में तय किया गया कि इस ट्रेन को चलाने का उद्देश्य आमदनी ना होकर संस्कृति और देश की विरासत को संजोना है।

लकड़ी से बने कोच

इस ट्रेन की सबसे खास बात है की इसमें लगाई जाने वाली सभी बोगियाँ लकड़ी से बनाई गई हैं। केवल यही नहीं बोगियों के अंदर यात्रियों के बैठने के लिए लकड़ी की बेंच भी है। ट्रेन के सबसे कोच कराची में बनाए गए हैं। इस ट्रेन में डीजल इंजन का इस्तेमाल किया जाता है। रोचक बात ये भी है कि एक बार इंजन शुरू करने के बाद, भकड़ा वापस आने के बाद ही बंद किया जाता है। बताया जाता है कि एक दिन में लगभग 50 लीटर डीजल की खपत होती है। ये ट्रेन ग्रामीण लोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण साधन के रूप में काम करती है। इस ट्रेन से भाखड़ा के आसपास गांव जैसे बरमला, ओलिंडा, नेहला, भाखड़ा, हंडोला, स्वामीपुर, खेड़ा बाग, कालाकुंड, नंगल, सलांगड़ी, लिदकोट, जगातखाना, परोईया, चुगाठी, तलवाड़ा, गोलथाई में रहने वाले लोगों के लिए आने जाने का एकमात्र जरिया है।

40 मिनट का होता है सफर

नंगल से भाखड़ा का 13 किलोमीटर लंबा सफर तय करने में ट्रेन को लगभग 40 मिनट का समय लगता है। ये ट्रेन सुबह 7 बजकर 5 मिनट पर नंगल से भाखड़ा के लिए चलती है और 8 बजकर 20 मिनट पर ये भाखड़ा से वापस नंगल की ओर निकल जाती है। इसी तरह से ये ट्रेन दोपहर में 3.05 पर नंगल से चलकर भाखड़ा पहुँचती है और 4.20 पर वापस नंगल के लिए चल देती है। नंगल से भाखड़ा बांध तक पहुँचने में ट्रेन को लगभग 40 मिनट लगते हैं। ट्रेन 40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है। शुरुआत में इस ट्रेन में 10 बोगियाँ लगाई जाती थीं। लेकिन अब इसमें केवल 3 बोगियाँ हैं जिनमें से एक बोगी महिलाओं के लिए और एक बोगी पर्यटकों के लिए आरक्षित रखी जाती है।

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