भारत इतना बड़ा देश है कि अगर पूरी जिंदगी भी लगा दें फिर भी कोई न कोई जगह छूट ही जायेगी हमसे। चाहे कितनी भी कोशिश क्यों ना कर ले फिर भी हर गली, हर कूचा नही देख पाएंगे हम। आज मैं आपको भारत के कुछ अनदेखे और अनोखे हिस्सों से रूबरू कराऊंगी जिनकें बारे में शायद ही आपने सुना होगा और अगर सुना भी हो तो शायद ही देखा होगा। तो आइए जानते है।
दरीबा कलां
1650 ई. के इस बाजार से मुगल बादशाह शाहजहाँ और उनकी बेगम कीमती पत्थरों, रत्नों तथा सोने-चांदी के आभूषणों की खरीददारी किया करते थे। तभी से यह बाजार सोने-चांदी के आभूषणों के लिए मशहूर है। दिल्ली के चांदनी चौक में यह गली है जहाँ एशिया का सबसे बड़ा जेवरों का बाजार हैं। आज भी यह बाजार अपने नाम के अनुरूप खूबसूरत आभूषणों से जगमगाता नजर आता है। यहाँ के जेवरों की खूबसूरती की वजह से ही लोग दूर-दूर से खींचे चले आते हैं। चांदनी चौक स्थित शीशगंज गुरुद्वारे से ठीक पहले बाईं तरफ एक रास्ता जाता है, जो दरीबा कलां के नाम से जाना जाता है। इस बाजार का नाम पर्शियन के ‘दू-रे-बाहा’ से लिया गया है, जिसका मतलब होता है ‘ऐसा मोती जो अतुलनीय हो। मैं अपनी कहूं तो एक बार ज़रूर जाइए और फिर से पुरानी दिल्ली के ऐतिहासिक दिनों को जी कर देखिए।
खुजराहो को जाता रास्ता
वैसे तो झांसी से खुजराहों का फासला सिर्फ 176 किलोमीटर का हैं। लेकिन रास्ते में एक बड़ी ही खास जगह आती हैं। नौगांग! 178 वर्ष पहले देश की पहली स्मार्ट सिटी था नौगांग जिसकी परिकल्पना ब्रिटेन में की गई थी। ब्रिटिश शासन में यहाँ आर्मी का ट्रेनिंग कॉलेज हुआ करता था। जो 1924 में शुरू हुआ था और 1964 में पुणे में शिफ्ट हो गया। ब्रिटेन के इंजीनियरों ने भारत का सर्वे किया था। इसके बाद नौगांग को स्मार्ट सिटी के लिए चुना और ब्रिटेन में ही नक्शा तैयार किया गया। फिर नामी ठेकेदारों को नगर को स्मार्ट सिटी बनाने का ठेका दिया गया। जहाँ नगर अंग्रेजों के शासन काल में स्मार्ट सिटी हुआ करता था। यहाँ एक चर्च भी है जो 1869 में बनाया गया था। और आज भी वहाँ हर रविवार को पूजा अर्चना होती हैं। आजादी के बाद नौगांग को 15 अगस्त 1947 में विंध्य प्रदेश की राजधानी के रूप में नवाजा गया था। नौगांग एक सुंदर शहर बसाया गया था। जिसमें 192 चौराहे जो आपस में एक दूसरी सड़क को मिलाते हैं। इसे एक समय मिनी चंडीगढ़ के नाम से भी जाना जाता था। खुजराहों की सुंदरता का रस चखने से पहले एक दिन यहाँ भी बिताया जा सकता हैं।
कसारा घाट
मुंबई-नासिक के बीच यह घाट यूँ तो हिमालय की बराबरी नहीं कर सकते लेकिन बरसात के मौसम में इनकी ख़ूबसूरती किसी जन्नत से कम नहीं है। पहाड़ों को काट के बनाया गया रास्ता स्वर्ग की सीढ़ी की तरह लगता है और जब मानसून में बादल आपका चेहरा चूमने आते हैं तो लगता है कि जीवन बस यहीं बिता लिया जाए।
जीरो
अरुणाचल प्रदेश का यह छोटा सा गाँव वैसे तो वर्ल्ड हेरिटेज साइट की सूची में कई साल से है, लेकिन ख़ास बात यह है कि इस गाँव में पूरे अरुणाचल प्रदेश के सबसे ज़्यादा स्कूल हैं सांस्कृतिक धरोहर, प्राकृतिक सुंदरता और मशहूर संगीत उत्सव की वजह से ये दुनिया के दिल में अपनी जगह बना चुका है। जीरो का मौसम हल्का होता है जो पर्यटकों को पूरे साल इस स्थान पर जाने में सक्षम बनाता है। यह घाटी जीरो म्यूजिक फेस्टिवल के लिए भी लोकप्रिय है, जो हर साल सितंबर में इस शहर में होता है। त्योहार 2012 से शुरू हुआ और यह एक शौकीन चावला यात्री के नक्शे पर पहाड़ी शहर में प्रवेश करने में एक महान योगदान है। दुनिया के हर कोने से कई संगीत प्रेमी, शीर्ष राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगीत बैंड और लोक कलाकार अब इस त्योहार के दौरान यहाँ आते हैं।
लोनार क्रेटर
एक टूटे हुए तारे के जमीन पर गिरने से सुंदर-सी झील बन गयी। ये कोई परिकथा नहीं है बल्कि सच बात है। महाराष्ट्र के बुलढ़ाणा जिले में 'लोनार झील' झील उल्का पिंड की टक्कर से बनी है। खारे पानी की यह झील रहस्यों से भरी हैं। महाराष्ट्र के बुलदाना ज़िले में यह क्रेटर आज से करीब 50,000 साल पहले एक मेटियोराइट के धरती से टकरा जाने के बाद बना था। अब इस क्रेटर में नमकीन पानी का बड़ा सा तालाब है वैज्ञानिकों के मुताबिक पृथ्वी से टकराने के बाद उल्कापिंड तीन हिस्सों में टूट चुका था और उसने लोनार के अलावा अन्य दो जगहों पर भी झील बना दी। हालांकि अब अन्य दो झीलें पूरी तरह सूख चुकी है पर लोनार में आज भी पानी मौजूद है। सर्दियों में इसकी सैर पर आने की बात ही कुछ और है। प्रकृति की इस अनोखी रचना को एक बार तो देखना बनता ही है।
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