दार्जिलिंग-कलिम्पोंग को छोड़िए और पूर्वी हिमालय की इन जुड़वां बहनों को अपनी ट्रेवल लिस्ट में रखिए

Tripoto
Photo of दार्जिलिंग-कलिम्पोंग को छोड़िए और पूर्वी हिमालय की इन जुड़वां बहनों को अपनी ट्रेवल लिस्ट में रखिए by Rishabh Dev

विकास और तकनीक इतनी तेज है कि हर रोज नई जगह पुरानी हो जाती है। तब भी हिमालय अपने गोद में ऐसी जगहें छिपाए हुए है जो लोगों की नजरों से अब भी दूर है। हिमालय की गोद में ऐसे ही दो खूबसूरत गाँव हैं, लावा और रिशोप। जब हर कोई फेमस जगहों पर जाने की सोचता है। तब बहुत कम लोग दार्जिलिंग, कलिम्पोंग और गुवाहटी की छोड़कर ऐसी जगहों पर जाते हैं जिनके बारे में बहुत कम लोगों को पता है। लावा और रिशोप का ऑफबीट सफर कई खूबसूरती घाटियों, अनजान पहाड़ी गाँवों, तीस्ता नदी, जंगलों और चाय बागानों की खूबसूरती को देखने का मौका देता है। यहाँ पहुँचकर आप और आपकी साँसें पहाड़ों की हो जाती है।

कैसे पहुँचें?

यहाँ जाने का सबसे अच्छा समय मार्च से मई और सितंबर से नवंबर तक है। लावा और रिशोप पहुँचने के लिए आपको न्यू जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन या बागडोगरा एयरपोर्ट पहुँचना होगा। वहाँ से टैक्सी बुक करके इन गाँवों तक पहुँच पाएँगे। कोशिश करें कि एयरपोर्ट या रेलवे स्टेशन सुबह या दोपहर तक पहुँच जाएँ ताकि अंधेरा होने से पहले आप लावा और रिशोप आराम से पहुँच जाएँ।

लावा और रिशोप के अनुभव

सुबह की चाय और ब्रेकफास्ट के बाद हम हिमालय की वादियों में रिशोप की ओर चल दिए। हमारी कार छोटे-छोटे झरने और संकरे रास्तों को पार करते हुए आगे बढ़ रही थी। हमने रास्ते में लेपचा समुदाय के पहाड़ी गाँव भी रास्ते में दिखे। यहाँ जिंदगी अचानक से धीमी लग रही थी। सुबह के वक्त सभी अपने काम में व्यस्त थे।

रास्ते में हनुमान जी का एक मंदिर मिला, हम वहीं रूक गए। मंदिर के चारों ओर केसरिया झंडे लगे हुए थे। ये मंदिर एक छोटी-सी चट्टान पर था। यहाँ पहाड़ खूबसूरत लग रहे थे, पास में तीस्ता नदी बह रही थी। मंदिर में पूजा करने के बाद मैं नदी किनारे चल दी। वहाँ कुछ देर बैठकर नदी में पैर को डाले रही। यहाँ सुकून का अनुभव हो रहा था। नदी की आवाज, मंदिरों की घंटियों की आवाज और पक्षियों का चहचहाना मेरे खूबसूरत अुनभवों में से एक था।

रिशोप

Photo of दार्जिलिंग-कलिम्पोंग को छोड़िए और पूर्वी हिमालय की इन जुड़वां बहनों को अपनी ट्रेवल लिस्ट में रखिए 1/11 by Rishabh Dev

रिशोप तक का सफर मेरे लिए बिल्कुल भी आसान नहीं था। हमें रास्तों में कई बार हादसों का सामना करना पड़ा। कई बार तो मैं कार को गलत रास्ते पर ले गई और कई जगह लैंड स्लाइड की वजह से रूकना पड़ा। इन सारे छोटी-बड़ी कठिनाइयों के बावजूद यहाँ की खूबसूरती ने मेरा मन मोह लिया। पहाड़ों में छिपे इन गाँवों में धान और मकई खेतों के बीच धुंध को देखना वाकई रोमांच कर देने वाला रहा।

कई मुश्किलों के बावजूद स्थानीय लोगों की मदद से हम रिशोप तक पहुँच ही गए। रिशोप पहाड़ की चोटी पर बसा एक छोटा-सा गाँव है। इस गाँव से बर्फ से ढंके हिमालय का शानदार नजारा दिखाई देता है। इस खूबसूरत दृश्य को देखने के लिए व्यू प्वाइंट तक जाना होता है। जो गाँव से कुछ किलोमीटर आगे है। व्यू प्वाइंट के आसपास लेपचा समुदाय के गाँव हैं। यहाँ टूरिस्टों के लिए कई होटल, रेस्टोरेंट और लाॅ भी हैं। यहाँ की बाॅलकनी से हिमालय को देखना यादगार अनुभव है। यहाँ एक छोटा-सा कैफेटेरिया भी है जहाँ आप कुछ देर बैठ सकते है। यहाँ मैंने बैठकर आराम-से चाय का आनंद लिया। कुछ देर इधर-उधर भटकने के बाद अपनी अगली मंजिल की ओर बढ़ गई।

Photo of दार्जिलिंग-कलिम्पोंग को छोड़िए और पूर्वी हिमालय की इन जुड़वां बहनों को अपनी ट्रेवल लिस्ट में रखिए 2/11 by Rishabh Dev

रास्ते में मुझे स्थानीय आदिवासी लोगों को एक ग्रुप मिला। उनके कंधे पर सूखी लकड़ी के गठ्ठे थे। महिलाएँ और पुरूष आपस में स्थानीय भाषा में बात कर रहे थे। उसी समूह का एक बुजुर्ग उनसे पीछे रह गया था। शायद उम्र की वजह से वो उन लोगों से धीमा चल रहा था। सुस्ताने के लिए उसने ए लकड़ियाँ उतारीं और चट्टान पर बैठ गया। मैं हिमालय की अनछुई कहानियों के बारे में जानना चाहती थी लेकिन मुझे लग रहा था कि कहीं मेरे बात करने से उसका आराम खराब न हो जाए? जब उन्होंने मुझे पास आते हुए देखा तो एक प्यारी-सी मुस्कान से मेरा स्वागत किया। तब मैंने उनसे पूछा, कहाँ से लाते हो ये लकड़ियाँ? उन्होंने अपनी उंगली से इशारा करते हुए कहा, नीचे चीड़े के जंगलों के पास जाता हूँ बेटी, सिलीगुड़ी से हो क्या?

हमारी बातचीत काफी देर तक चली। मैंने उनको बताया कि मैं सिलीगुड़ी से नहीं, कोलकाता से हूँ। बात करते हुए पता चला कि उनका नाम बृजेश गुरुंग है और वो यहीं पास के एक गांव में रहता है। उनकी दो बेटी और एक बेटा है। बेटा गंगटोक के एक होटल में काम करता है और घर पैसे भेजता है। बड़ी बेटी की शादी पास के ही गाँव में हो गई है और छोटी ने दो साल पहले अपना स्कूल छोड़ दिया था। अब वो घर के काम और खेती में मदद करती है। ब्रजेश ने बताया कि उनकी पत्नी को कई दिनों तक बुखार रहा। स्थानीय डाॅक्टर की दवा का असर नहीं हुआ और दूसरे अस्पताल ले नहीं जा सके क्योंकि लैंड स्लाइड की वजह से रास्ता बंद था। एक बरसात भरी रात में उनकी पत्नी उन्हें छोड़कर चली गई। दुखी होकर उन्होंने कहा, चंदा ने पहाड़ों को छोड़ दिया।

Photo of दार्जिलिंग-कलिम्पोंग को छोड़िए और पूर्वी हिमालय की इन जुड़वां बहनों को अपनी ट्रेवल लिस्ट में रखिए 3/11 by Rishabh Dev

ये सुनकर मुझे बहुत बुरा लग रहा था। लगा कि मैंने इस बूढ़े आदमी के पुराने जख्म को फिर से कुरेद दिया है। मैंने टाॅपिक को बदलते हुए पूछा, इन लकड़ियों का क्या करते हैं आप? अपनी पुरानी यादों से बाहर आते हुए बोले, घर में रखता हूँ आग जलाने के लिए, खाना भी बनता है। कुछ बचता है तो बेच देता हूँ लेकिन ज्यादा कुछ नहीं मिलता। सूरज तेज होने लगा था, मुझे लगा कि उसे ज्यादा देर तक नहीं रोकना चाहिए। शायद उसने मेरी बात को भाँप लिया था तभी तो लकड़ी का गठ्ठर उठाया और बोला, अच्छा लगा। अब चलता हूँ बेटी घर में अकेली है। फिर कब आओगी? मैंने कुछ नहीं कहा, बस मुस्कुरा दी। शायद इस मुस्कान ने एक-दूसरे को बता दिया था कि अब हम फिर कभी नहीं मिलेंगे। बूढ़े होने के बावजूद उसे देखकर लगता है कि उसका जीवन में अभी भी खुशियों से भरा हुआ है।

चीड़ के जंगल

इस सफर को और खूबसूरत बनाने के लिए मैं लावा की ओर चल दी। लावा थोड़ी ऊँचाई पर स्थित एक गाँव है लेकिन मुझे रास्ते में फिर से रूकना पड़ा। इसकी वजह थकावट नहीं बल्कि देवदार और चीड़ के जंगल थे। ये जंगल इतना घना और खूबसूरत लग रहा था कि मैंने अपनी गाड़ी को वहीं रोक दिया। फिर मैं एक जादुई दुनिया के सफर के लिए निकल पड़ी। ये जंगल वैसा ही लग रहा था जैसा हम अक्सर मूवीज में देखा करते हैं। जैसे-जैसे मैं आगे बढ़ रही थी कुदरत अपनी छिपी हुई सुंदरता को दिखाते जा रहा था। पेड़ खंभे की तरह खड़े थे और लंबे इतने की आसमान को छू रहे थे। यहाँ सूरज की किरणें भी छन-छन कर आ रही थीं।

लावा

जब हम दोबारा अपने मंजिलों की ओर बढ़े तो आसमान में घने बादल छाने लगे। जो मौसम को ठंडा और सफर को खूबसूरत बना रहे थे। दोपहर के भोजन के लिए एक होटल में गए। जहाँ मैंने गर्म थुकपा लिया। ये दुकान ऐसी जगह थी जहाँ से घाटी भी दिखाई दे रही थी। थोड़ी ही देर में मौसम इतना ठंडा हो गया कि हम काँपने लगे। तब मैंने खुद को गर्म कपड़े न लाने के लिए कोसा।

Photo of दार्जिलिंग-कलिम्पोंग को छोड़िए और पूर्वी हिमालय की इन जुड़वां बहनों को अपनी ट्रेवल लिस्ट में रखिए 4/11 by Rishabh Dev

लंच करने के बाद मैं सामने वाली सड़क पर कुछ किलोमीटर आगे गई। जहाँ मुझे लावा काग्यू थेक्चन लिंग मठ मिला। ये यात्रा बेहद सरल और कुदरत के नजारों से भरी हुई थी। दोपहर के ढाई बज रहे थे और पूरी घाट धुंध से ढँकी हुई थी। ये छोटा-सा मठ देवदार और चीड़ के जंगलों के बीच स्थित है। इन घने बादलों ने हमरे सफर को अचानक से रोक दिया था।

Photo of दार्जिलिंग-कलिम्पोंग को छोड़िए और पूर्वी हिमालय की इन जुड़वां बहनों को अपनी ट्रेवल लिस्ट में रखिए 5/11 by Rishabh Dev
Photo of दार्जिलिंग-कलिम्पोंग को छोड़िए और पूर्वी हिमालय की इन जुड़वां बहनों को अपनी ट्रेवल लिस्ट में रखिए 6/11 by Rishabh Dev

पूरा इलाका बौद्ध मंत्रों से गूँज रहा था। पीछे की तरफ पहाड़ों के बीच एक छोटा गाॅर्डन था जो धुंध की वजह से साफ नहीं दिखाई दे रहा था लेकिन मैं कुछ देर उस बगीचे और मठ में घूमती रही।

Photo of दार्जिलिंग-कलिम्पोंग को छोड़िए और पूर्वी हिमालय की इन जुड़वां बहनों को अपनी ट्रेवल लिस्ट में रखिए 7/11 by Rishabh Dev

कुछ भिक्षु दोपहर का आनंद लेने के लिए बाहर आए। कुछ लोग पीछे की तरफ फुटबॉल खेल रहे थे। मठ में काफी सफ गुजारने के बाद एक अध्यात्मिक ऊर्जा को महसूस कर रही थी। यहाँ मैंने शांति और सुकून का अनुभव किया। इन सबके बाद अब आखिर में पहाड़ों से नीचे उतरने का वक्त आ गया था।

Photo of दार्जिलिंग-कलिम्पोंग को छोड़िए और पूर्वी हिमालय की इन जुड़वां बहनों को अपनी ट्रेवल लिस्ट में रखिए 8/11 by Rishabh Dev
Photo of दार्जिलिंग-कलिम्पोंग को छोड़िए और पूर्वी हिमालय की इन जुड़वां बहनों को अपनी ट्रेवल लिस्ट में रखिए 9/11 by Rishabh Dev
Photo of दार्जिलिंग-कलिम्पोंग को छोड़िए और पूर्वी हिमालय की इन जुड़वां बहनों को अपनी ट्रेवल लिस्ट में रखिए 10/11 by Rishabh Dev
Photo of दार्जिलिंग-कलिम्पोंग को छोड़िए और पूर्वी हिमालय की इन जुड़वां बहनों को अपनी ट्रेवल लिस्ट में रखिए 11/11 by Rishabh Dev

जैसे-जैसे मैं नीचे उतरनी लगी। मेरी कार साँप जैसे आकार के रास्तों, अनजान गाँवों, नदियों आर चाय के बागानों से होकर गुजर रही थी। पहाड़ों में गाड़ी चलाते समय सबसे बड़ा चैलेंज होता है कि सही समय पर सही जगह तक पहुँचना। जो पहाड़ों में बहुत मुश्किल होता है। इसकी वजह यहाँ के रास्ते नहीं बल्कि यहाँ के नजारे हैं। यहाँ का हर मोड़ एक अलग और खूबसूरत दृश्य देता है जो हर किसी को रूकने के लिए मजबूर कर देता है। एक जगह मुझे चीड़ के जंगलों का खूबसूरत नजारा दिखाई दिया। जिसने हमने जल्दी ही पीछे छोड़ दिया।

अब तक मैं पहाड़ी की खूबसूरती और नजारों की आदी हो चुकी थी। मैं अंधेरे होने से पहले अपनी मंजिल तक पहुँचना चाहती थी इस वजह से कहीं रूकना नहीं चाहती थी। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि आप जैसा सोचते हैं वैसा नहीं होता है। हम चाय कर दुकान से गुजर रहे थे तभी मैंने वो दृश्य देखा जिसने मुझे रूकने पर मजबूर कर दिया। उस नजारे को देखकर मैं अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर पा रही थी।

दुर्भाग्य से, चाय एस्टेट का गेट बंद था लेकिन मैं किसी भी हालत में उस हरी-भरी दुनिया को देखना चाहती थी। मैंने उस गेट को पार किया और एक अलग दुनिया में एंट्री पा ली। यहाँ घुसते ही चाय की खूशबू ने हमारे ऊपर जादू कर दिया। ये वो जगह थी जहाँ प्रकृति सबके लिए बाहें फैलाए हुई थी। इस जगह के करिश्मे को देखकर मेरी यात्रा और भी यादगार हो गई।

जैसे-जैसे हम नीचे उतरते गए, घाटी में धुंध की चादर कम होती चली गई। सूरज क्षितिज के नीचे डूबने के लिए बस कुछ ही पल की दूरी थी। मैंने खिड़की से देखा कि हिमालय रोशनी से जगमगा रहा था। पहाड़ के गाँवों ने धुंध की चादर को खींच लिया और सपनों की दुनिया में कहीं गायब हो गए।

अगर आपने इन जगहों की यात्रा की है तो यहाँ क्लिक करें और उस अनुभव को Tripoto मुसाफिरों के साथ बाँटें।

रोज़ाना वॉट्सऐप पर यात्रा की प्रेरणा के लिए 9319591229 पर HI लिखकर भेजें या यहाँ क्लिक करें।

ये आर्टिकल अनुवादित है। ओरिजनल आर्टिकल पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

Further Reads