देवभूमि के इस मंदिर में पुजारी करते हैं आंखों पर पट्टी बांधकर पूजा, कहते हैं यहां विराजमान है मणि

Tripoto
12th May 2023
Photo of देवभूमि के इस मंदिर में पुजारी करते हैं आंखों पर पट्टी बांधकर पूजा, कहते हैं यहां विराजमान है मणि by Yadav Vishal
Day 1

आध्यात्मिक टूरिज्म के सार को एक सही मायने में खुद में समेटे हुए हैं उत्तराखण्ड। गौरवशाली उत्तराखंड एक शांतिपूर्ण राज्य है जिसको देवो की भूमि भी कहा जाता हैं। यह पहाड़ी राज्य कुछ सर्वोच्च देवी-देवताओं के निवास के लिए प्रसिद्ध है। पूरे क्षेत्र में कई प्राचीन मंदिर हैं जो हर किसी में गहरी आध्यात्मिकता की भावना पैदा करते हैं। पौराणिक महत्व के मंदिरों से लेकर ऐतिहासिक महत्व तक राज्य में आपको हर समय के मंदिर देखने को मिल जाएंगे। उत्तराखंड के हर हिस्से में एक ऐसा मंदिर हैं जो अपनी एक अलग विशेषताओ के लिए बेहद प्रसिद्ध हैं। उन में से ही एक हैं लाटू देवता। यहां की ऐसी मान्यता हैं कि मंदिर में पुजारी आंखों में पट्टी बांधकर कर पूजा करते हैं यहां किसी को बिना आखों में पर्दा लगाए घुसने की अनुमति नहीं हैं।

लाटू देवता

उत्तराखण्ड की अनन्य इष्ट देवी नंदा का धर्म भाई माने जाते हैं लाटू देवता। यह मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले के देवाल विकासखंड के वाण गांव में स्थित हैं। यह मंदिर समुन्द्र सतह से 8500 फीट की ऊँचाई पर स्थित विशाल देवदार वृक्ष के निचे एक छोटा मंदिर है। इस मंदिर में आपको नागराज विराजमान मिलेंगे जो अपनी अलग तरह के पूजा करने के लिए जाने जाते हैं। इस मंदिर की एक और खासियत हैं कि यह मंदिर साल में सिर्फ एक बार ही खुलता हैं। वैशाख पूर्णिमा के दिन यह मंदिर सुबह खुलता हैं और शाम को बंद भी हो जाता हैं। श्रद्धालु इस मंदिर के दर्शन बाहर से ही करते हैं बस पुजारी को आखों में पट्टी बांध के मंदिर के गर्भघर में घुसने की अनुमति हैं। ब्राह्मण यहां मुंह पर कपड़ा बांध कर पूजा अर्चना करते हैं।

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लाटू देवता मंदिर का इतिहास

एक कथा के अनुसार लाटू, नंदा के भाई और मार्गदर्शक थे और राक्षसों के साथ होने वाले युद्धों में लाटू ही उनका नेतृत्व करते थे। एक बार वह जब हिमालय की यात्रा पर निकले तो इसी यात्रा के क्रम में जब वह उत्तराखण्ड गढ़वाल के चमोली में स्थित वाण गांव पहुंचे तो वहां के निवासी बिष्ट जाति के लोगों ने उनके व्यवहार से खुश होकर उन्हें रुक जाने का आग्रह किया और उन्होंने गाँव के लोगों के इस निमंत्रण को स्वीकार कर लिया। इसी जगह पे कभी शौका समुदाय के लोगों ने भी निवास किया था। एक बार की बात हैं जब लाटू को प्यास लगा तो वहां उन्होंने एक वृद्धा इंसान से पानी की मांग की तो उस वृद्ध आदमी ने पास के झोपड़ी के अंदर घड़े से लाटू जी को पानी निकाल के पीने के लिए कह दिया। जब लाटू नींद के अंदर गया तो उसे दो घड़े दिखाई दिए। उन्होंने इनमें से एक घड़े का तरल पी लिए। इन घड़ों में से एक में पानी और एक में शराब रखी जाती थी। गलती से लाटू ने शराब वाले घड़े को पानी समझकर पी लिया जिससे अत्यधिक शराब पीने से उसकी मौत हो गई। मौत होने के पश्चताप बिष्ट लोगों ने उसका अंतिम संस्कार कर वहीं कर दिया। खामिलधार में उसकी याद में एक पाषाण लिंग की स्थापना भी कर दी गई। कुछ समय बाद एक गाय उसी पाषाण लिंग पर अपने गौमूत्र से स्नान करवाती और अपना सारा दूध वहीं पर दुहती थी। गाय के मालिक ने एक बार उस गाय का पीछा किया यह जानने के लिए की गाय का सारा दूध जाता कहा हैं। आशंकित होकर उसने लिंग पर वार किया और उसे दो भागों में विभाजित कर दिया। इसके बाद उस पूरे इलाके में महामारी फैल गई। कहा जाता है कि इसके बाद अल्मोड़ा निवासी किसी व्यक्ति के सपने में वान गांव गिरा पड़ा वह लिंग दिखाई दिया और सपने में ही उसे देवों ने उस स्थान पर मंदिर बनाने का भी आदेश दिया। वह जल्दी से वान गांव संदेश और दो नाम कि जगह पर उस खंडित लिंग की स्थापना कर एक मंदिर का निर्माण किया। इससे और गांवों के लोग सभी मुसीबतों से दूर हो गए। बस तब से लाटू देवता का महत्व इस इलाके के लिए बहुत अधिक हैं।

ब्राह्मण आंखों पर काली पट्टी बांध कर क्यों करते हैं पूजा?

उत्तराखण्ड की अनन्य इष्ट देवी नंदा का धर्म भाई लाटू देवता के मंदिर में ब्राह्मण आंखों पर काली पट्टी बांध कर करते हैं पूजा ऐसा इसलिए क्योंकि यह नागराज का मंदिर है। और यहां ऐसा माना जाता है कि नागराज अद्भुत मणि के साथ मंदिर में रहते हैं, मणि का तेज इतना अधिक होता है कि जो मनुष्य की आंखों की रोशनी को भी खत्म कर सकता है, इसलिए मंदिर में बिना काली पट्टी जाना वर्जित हैं।

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कब खुलते हैं मंदिर के कपाट?

लाटू देवता मंदिर के कपाट साल में बस एक बार ही खुलते हैं। यह कपाट वैसाख (अप्रैल-मई) की पूर्णिमा को श्रद्धालु खोल दिए जाते हैं कपाट खुलने के बाद श्रद्धालु दूर से ही देवता के दर्शन करते हैं।

कैसे पहुंचे?

हवाई जहाज से-नजदीकी हवाई अड्डा जौलीग्रांट है जो कि 221 किलोमीटर की दूरी पर है और वहां से आपको यहां के लिए बस या टैक्सी लेनी पड़ेगी। चमोली से लाटू देवता मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 10 घंटे लग जाएंगे आपको।

ट्रेन से-चमोली अगर आप ट्रेन के द्वारा जाना चाहते हैं तो आपको बता दें कि इसके आसपास में कोई रेलवे स्टेशन नहीं है। अगर निकटतम रेलवे स्टेशन की बात करें तो वह रेलवे स्टेशन ऋषिकेश में 202 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऋषिकेश पहुंचने के बाद आपको बस या टैक्सी आसानी से मिल जाएगी।

सड़क मार्ग से-अगर आप चमोली सड़क मार्ग से पहुंचना चाहते हैं तो आपको बता दें कि चमोली सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यहां पर आप आसानी से अपनी कार या टैक्सी लेकर जा सकते हैं।

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