भारत की वो जगहें जहाँ टूरिस्ट एंट्री पर लगाम लगाना है ज़रूरी!

Tripoto

अगर आप अपने आस-पास की ख़बर रखते हैं और न्यूज़ देखते हैं तो आपको यह मालूम होगा ही कि इन गर्मियों में भारत के लोकप्रिय हिल स्टेशंस ने कैसे ट्रैफिक की मार झेली है। शिमला, नैनीताल, ऋषिकेश और मनाली जैसे स्थान पर्यटकों और उनके वाहन से भरे पड़े हैं। कई लोग ट्रैफिक में 1 दिन से भी ज़्यादा देर तक फँसे रहे और उन्हें बिना छुट्टी का आनंद लिए ही घर लौटना पड़ा। यहाँ तो हमने सिर्फ़ इंसानों को हुई मुसीबत की बात की। हालाँकि इसका एक दूसरा पहलू भी है।

दूसरा पहलू है पर्यावरण से जुड़ा हुआ। इन स्थानों पर प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। जाने-अनजाने में लोग अपने पीछे प्लास्टिक थैलियों, टॉइलेट्री और आम तौर पर काम में आने वाली चीज़ों के रूप में अपने कार्बन फूटप्रिंट्स छोड़ जाते हैं। अपनी सुविधा को नज़र-अंदाज़ करते हुए प्लास्टिक का इस्तेमाल कम किया जा सकता है पर पूर्ण रूप से प्लास्टिक का उपयोग बंद करना मौजूदा स्थिति में बहुत मुश्किल है।

फिर इस स्थिति में ये कैसे सुनिश्चित किया जाए कि हमारे सुन्दर पर्यटन स्थलों की सुंदरता बचाई जा सके और उन्हें बरबाद होने से बचाया जा सके?

इसका एक तरीका है कि मशहूर पर्यटन स्थलों पर सैलानियों की संख्या पर पाबन्दी लगायी जाए ताकि वहाँ उतने ही पर्यटक आएँ जितनों को वो जगहें झेलने की क्षमता रखते हैं।

मेरी समझ में वो जगहें जहाँ पर्यटकों की संख्या पर तुरंत सीमा लगा देनी चाहिए, वो ये हैं:

३ इडियट्स फ़िल्म देखने के बाद से लद्दाख में हर वर्ष सैलानियों की संख्या बढ़ती जा रही है । इन पर्यटकों के साथ आया है कचरे का एक बड़ा ढ़ेर जिसे लेह शहर के प्रवेश पर देखा जा सकता है। भौगोलिक रूप से ऊँचाई पर स्थित जगहों पर कचरे से निपटना आसान नहीं है, और लेह में कोई रीसाइक्लिंग प्लांट तक नहीं है। इसलिए ज़रूरी है कि एक लद्दाख में गर्मी के मौसम में हर हफ़्ते एक पूर्व निर्धारित संख्या कि लोगों को ही प्रवेश दिया जाए। इसके अलावा निर्धाधित सीमा से ज़्यादा प्लास्टिक के इस्तेमाल पर ग्रीन टैक्स भी लागू कर देना चाहिए।

कई दशकों से भारतीयों के सबसे पसंदीदा हिल स्टेशन का रुतबा रखना वाला शिमला शहर अब जनसंख्या विस्फोट और पानी की कमी की समस्या से जूझ रहा है। यहाँ की उन्नीसवीं सदी की संकरी सड़कें इक्कीसवीं सदी में वीकेंड पर अपनी कार चला कर आने वाले सैकड़ों लोगों के लिए नहीं बनी थीं। समय आ गया है कि शिमला ग़ैर-हिमाचली गाड़ियों के प्रवेश पर उचित नियमों को लागू करे और पर्यटकों के शहर में प्रवेश के पहले होटलों की एडवांस बुकिंग का प्रावधान बनाए।

शिमला में ट्रैफिक । श्रेय:

Photo of शिमला, Himachal Pradesh, India by Kanj Saurav

मनाली दो तरह के सैलानियों से भरा रहता है – एक वो जो मनाली घूमने आए हों और दूसरे जो मनाली से आगे लद्दाख या स्पीति की ओर जा रहे हों। एक वैकल्पिक गढ़ बनाया जा सकता हैं जहाँ मनाली से आगे जाने वाले लोग रुक सकें ताकि मनाली को भीड़ की स्थिति से मुक्त किया जा सके। साथ ही मनाली के सारे एक्टिविटी-बेस्ड छुट्टियों को सरकार द्वारा पंजीकृत किया जाना चाहिए ताकि पर्यटकों के आवागमन पर नज़र रखी जा सके।

कुल्लू और मनाली के बीच ट्रैफिक \ श्रेय: हिल पोस्ट

Photo of मनाली, Himachal Pradesh, India by Kanj Saurav

एक ख़ूबसूरत शहर को शोर भरे बाजार में तब्दील होते देखना बहुत दुखदायी है। नैनीताल की ये समस्या अख़बारों में सुर्ख़ियाँ ना बटोर रही हो पर यह शहर वीकेंड पर आने वाले सैलानियों और उनकी गाड़ियों से भर गया है। अगर सैलानियों की संख्या पर पाबन्दी राखी जाए तो सभी इस शहर की खूबसूरती का ज़्यादा आनंद ले पाएँगे।

नैनीताल में ट्रैफिक । श्रेय: जागरण

Photo of नैनीताल, Uttarakhand, India by Kanj Saurav

भारत का एडवेंचर कैपिटल गर्मी के मौसम में युवा लोगों की भरी संख्या से जूझता है। सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में यहाँ कई प्रतिबन्ध लगाए हैं जिनसे सैलानियों की संख्या पर थोड़ा नियंत्रण हुआ है। पर आवश्यकता है कि गंगा नदी के आस-पास गाड़ियों की आवाजाही पर भी रोकथाम लगाई जाए।

गाड़ियों से भरा दार्जीलिंग । श्रेय: फेसबुक

Photo of दार्जिलिंग, West Bengal, India by Kanj Saurav

पूर्व भारत के सबसे लोकप्रिय हिल स्टेशन होने की वजह से दार्जिलिंग लाखों पर्यटकों का स्वागत करता है। पर इन्हीं पर्यटकों ने इस शहर को बुरी स्थिति में पहुँचा दिया है। यहाँ हर तरफ़ कचरा फैला है जिसने दार्जिलिंग की खूबसूरती छीन ली है। ये ज़रूरी है कि पर्यटकों के प्रवेश पर सीमा के अलावा यहाँ नए निर्माण पर भी निर्धारण तय किया जा सके ताकि इसके कोलोनियल शिल्पकला को संरक्षित किया जा सके।

जी हाँ, स्पीति इस वक़्त भीड़ या गंदगी से भरा नहीं है। पर पिछले कुछ वर्षों से लद्दाख जाने वाली जनता इस ओर रुख कर रही है और स्थिति को बदलने और बदतर होने में देर नहीं लगेगी। इससे पहले की देर हो जाए, सरकार को स्पीति में लोगों के आवाजाही की संख्या पर नियंत्रण कास देना चाहिए।

कुछ राज्य हैं जो अपनी धरोहर बचाए रखने के लिए तेज़ी से काम कर रहे हैं और उनके इन कदमों की तारीफ करना तो ज़रूरी है ही, साथ ही इनसे सीख लेना भी अहम है।

अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिज़ोरम – इन पूर्वोत्तर राज्यों में प्रवेश के लिए इनर लाइन परमिट का प्रावधान है । इसका कारण राजनैतिक होने के अलावा पर्यावरण से भी जुड़ा हुआ है।

लक्षद्वीप और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के कुछ संवेदनशील हिस्सों को अच्छी तरह से संरक्षित करने के लिए यहाँ पर पर्यटकों के आगमन पर निगरानी रखी जाती है।

किसी जगह जाने से पर्यटकों को रोक देना सुनने में कठोर लग सकता है, पर ऐसे कई वैकल्पिक स्थान हैं जहाँ इन लोकप्रिय स्थानों की बजाय जाया सकता है। इन स्थानों पर जाने से न सिर्फ़ दूसरी जगहों को पर्यटन के दबाव से राहत मिलेगी बल्कि नई जगहों को भी पर्यटन का फ़ायदा मिलेगा।

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