विश्व में भारत ही ऐसा देश है जहां पूरे वर्ष पर्व एवं त्योहार मनाए जाते हैं। भारत में त्योहार अपने साथ उत्साह और खुशी की लहर लेकर आते हैं। जहां एक ओर कार्तिक के महीने में त्योहारों की लड़ी लगी रहती है। धनतेरस से त्योहारों का सिलसिला शुरू होता है, जिसमें दिवाली, भाई दूज, छठ पूजा और आखिर में कार्तिक पूर्णिमा। कार्तिक पूर्णिमा के बाद हिंदू कैलेंडर अनुसार त्योहारों का मौसम खत्म होने लगता हैं। इसी दिन वाराणसी में देव दीपावली मनायी जाती हैं। यह त्योहार दीपावली के ठीक 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा को मनाई जाती हैं। देव दीपावली पर्व को लेकर ऐसी मान्यता है कि, इस दिवाली को सिर्फ मनुष्य ही नहीं बल्कि देवतागण भी दीप जलाकर खुशी से मनाते हैं। और यह भी कहा जाता हैं कि इस दिन स्वयं देवता खुद वाराणसी आ कर यह त्योहार मनाते हैं।
क्यों मनाई जाती है देव दीपावली?
कथा के अनुसार, कार्तिक महीने की पूर्णिमा तिथि को भगवान शिव जी ने त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का वध किया था और फिर कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन के बाद से ही भगवान शिव को त्रिपुरारी नाम से भी जाना जाने लगा था। इस अवसर पर सभी देवताओं ने काशी में इकट्ठा हो कर दीपक जला कर इस दिन को मनाया था। कहा जाता है कि इस दिन शिव जी के साथ सभी देवी-देवता धरती पर आते हैं और दीप जलाकर खुशियां मनाते हैं, इसलिए काशी में हर साल कार्तिक पूर्णिमा तिथि पर देव दिवाली धूमधाम से मनाई जाती है।
इस साल इस तिथि को मनाई जाएगी देव दीपावली
देव दीपावली का पर्व कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता हैं। पर इस साल देव दीपावली को लेकर धर्म शास्त्रों के विद्वानों ने रविवार 26 नवंबर 2023 को देव दीपावली मनाए जाने का फैसला किया हैं। 26 नवंबर, 2023 रविवार के दिन शाम के समय यानि प्रदोश काल में 5:08 मिनट से 7:47 मिनट तक देव दीपावली मनाने का शुभ मुहूर्त हैं। अगर आप भी इस दिन बनारस जाने और इस भव्य आयोजन का हिस्सा बन रहें हैं तो इस दिन शाम के समय 11, 21, 51, 108 आटे के दिये बनाकर उनमें तेल डाले और किसी नदी के किनारे प्रज्जवलित करके अर्पित करना ना भूलें।
देव दीपावली पर दीपदान का हैं महत्व
जैसा कि हम सब जानते हैं कि भगवान शिव जी ने त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का वध किया था और इस बात का जश्न मानने पूरे देवता गढ़ काशी में इकट्ठा हो कर दीपक जला कर इस दिन को मनाया था। बस तभी से देव दीपावली के दिन दीपक जलाने की परंपरा हैं। धार्मिक शास्त्रों में देव दीपावली के दिन गंगा स्नान के बाद दीपदान करने का महत्व बताया गया है। माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान के बाद दीपदान करने से पूरे वर्ष शुभ फल मिलता है।
देव दीपावली रिकॉर्ड दीयों से बनारस होगा रोशन
देव दीपावली में बनारस के गंगा के सभी 84 घाटों के अलावा हर एक तालाब, कुंड और कुएं के किनारों को भी मिट्टी के दीयों से जगमगा दिया जाता है। इस साल 26 नवंबर देव दीपावली के मौके पर 13.5 लाख दीये जलाए जाएंगे, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड ही होगा। दीये के आलावा यहां रॉकेट और लेज़र शो से भी पूरा बनारस जगमगा उठता हैं। जिसे देखने के लिए काफ़ी टूरिस्ट अभी से बनारस पहुंच रहें हैं।
कैसे पहुँचे ?
फ्लाइट से - वाराणसी शहर के नजदीकी मुख्य एयरपोर्ट लाल बहादुर शास्त्री इंटरनेशनल एयरपोर्ट है, जो कि वाराणसी मुख्य शहर से मात्र 23 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। चूंकि यह एक इंटरनेशनल एयरपोर्ट है इस वजह से यहां के लिए भारत के तकरीबन सभी बड़े शहरों से फ्लाइट आसानी से मिल जाती है। लाल बहादुर शास्त्री इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर पहुंचने के उपरांत यहां पर चलने वाले स्थानीय परिवहन जैसे – टैक्सी, ओला, ई रिक्शा, ऑटो आदि की मदद से आप वाराणसी आसानी से पहुंच सकते हैं।
ट्रेन से -वाराणसी के नजदीकी और मुख्य रेलवे स्टेशन वाराणसी में ही स्थित वाराणसी जंक्शन है। वाराणसी जंक्शन भारत के प्रमुख रेलवे जंक्शन में से एक माना जाता है। यहां के लिए भारत के अलग-अलग बड़े शहरों से ट्रेन आसानी से मिल जाती है। वाराणसी जंक्शन पहुंचने के उपरांत आप यहां पर मिलने वाले स्थानीय परिवहन की मदद से वाराणसी के किसी भी क्षेत्र में आसानी से पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग से - वाराणसी भारत के सभी बड़े छोटे शहरों से सड़क मार्ग के द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है, जिस वजह से आपको भारत के किसी भी क्षेत्रों से वाराणसी सड़क मार्ग द्वारा पहुंचने में किसी तरह की कठिनाई नहीं होगी।
कहा जाता हैं कि ज़िंदगी में एक बार देव दीपावली जरूर देखना चाहिए और दीप दान करना चहिए। तो अगर आप भी इस भव्य आयोजन का हिस्सा बनना चाह रहे हैं तो फटाफट 26 को बनारस जाने का प्लान बना लीजिए।
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