मायूसी के दिनों में पहाड़ों से दोस्ती कर ली इस मुसाफ़िर ने

Tripoto

देवमाली पर्वत, ओडिशा की सबसे उँची चोटी 

Photo of मायूसी के दिनों में पहाड़ों से दोस्ती कर ली इस मुसाफ़िर ने by Aastha Raj

यह कहानी मेरी नहीं है पर इस ट्रिप के हर अनुभव को मैंने महसूस किया था। कहानी मेरे दोस्त अकरम अंसारी की है जो उस वक़्त ओडिशा का जाजपुर जिले में रहता था और इस बात से बेहद दुखी था कि उसकी गर्लफ्रेंड ने उसे धोखा दिया है। आपको पढ़ने में और मुझे लिखने में आसानी हो, इसलिए मैं इसे अकरम के नज़रिए से लिख रही हुँ।

जब आपकी ज़िंदगी से अचानक कोई प्यार करने वाला, आपको छोड़कर चला जाता है, तो वो दुख आप शब्दों में बयान नहीं कर सकते। आप समझ नहीं पाते किआखिर हुआ क्या। मैं भी 5 साल पहले ऐसे ही एक उदासी और अकेलेपन के पड़ाव से गुज़रा जब मेरी गर्ल्फ्रेंड ने मुझसे ब्रेकअप कर लिया। 5 साल पुराने रिश्ते को ख़त्म करने के बाद मैं हर पल यही सोच रहा था कि मेरे पास पास जीने की वजह ही नहीं बची है। मैं हर दिन, गमुसुम सा होकर सुबह ऑफिस जाता और बिना किसी से कोई भी बात किए अपना काम ख़त्म करके वापस आ जाता। सच कहुँ तो मुझे किसी चीज़ का होश ही नहीं था।

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यह लगभग एक महीने तक चला। मेरे दोस्त लगातार मुझसे फोन पर बात कर रहे थे और मुझे समझाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन उस वक्त मुझे ना किसी की बात सुनाई दे रही थी और ना ही समझ आ रही थी।

फिर एक दिन मेरे मैनेजर ने मझे टोका कि ऐसा क्या हुआ जिसने मुझे इतना परेशान कर दिया है कि मैं काम भी नहीं कर पा रहा। जब मैंने मैनेजर को अपने ब्रेकअप की बात बताई तब उन्होंने मुझसे एक सवाल पूछा। सवाल था की गर्लफ्रेंड के बाद दूसरी कौन सी सबसे बड़ी चीज़ है जो मैं अपने जीवन में चाहता हूँ?

टूटे दिल से निकला खोया जुनून

मैंने उस वक़्त तो जवाब नहीं दिया पर पूरा दिन सोचने के बाद मैंने ये फैसला लिया की मैं अपने ट्रेकिंग के जुनून को जीना चाहता हूँ। मैं ये हमेशा सोचा करता था कि कभी हिमालय की चोटी पर चढ़ाई करुंगा और अब घड़ी आ गयी थी। मैं हिमालय की ट्रेकिंग के लिए जानकारी इकठ्ठा कर ही रहा था कि मेरे मैनेजर ने मुझे एक काम से फ़ोन किया। तब मैंने उन्हें बताया कि मैं हिमालय ट्रेकिंग पर जाने का प्लान बना रहा हुँ। मैनेजर ने मेरा मज़ाक उड़ाते हुए कहा की पहले मैं ओडिशा की सबसे ऊँची चोटी पर चढ़ाई तो कर लुँ उसके बाद हिमालय की सोचूँ।

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मुझे पहले तो ये बात चुभी लेकिन फिर यह बात सही लगी और मैंने फैसला किया कि मैं अगली रात ओडिशा की सबसे उँची चोटी देवमाली पर्वत की चढ़ाई के लिए जाजपुर से निकलूँगा।

अगले दिन मैं एक बैग लेकर करीब रात 12 बजे ट्रेन में बैठा और डेढ़ घंटे में दमनजोड़ी स्टेशन पहुँच गया। दमनजोड़ी से मुझे करीब 70 कि.मी. का रास्ता तय कर के कोरापुट गाँव तक पहुँचना था जहाँ से देवमाली पर्वत शुरू होता है।

मैंने स्टेशन से एक बस पकड़ी जो कोरापुट की ओर जा रही थी। लगभग 40 कि.मी. की बस यात्रा और इसके बाद आधा घंटा ऑटो में सफर करने के बाद मैं कोराटपुर गाँव पहुँचा। गाँव वालों से थोड़ी जानकारी हासिल करके मैंने ठाना कि मैं एक दिन में 1672 मी. ऊँचे देवमाली पहाड़ की चढ़ाई करूँगा और उसी शाम घर जाने की ट्रेन भी पकड़ूंगा।

मैं बचपन से खेल-कूद में काफी एक्टिव था इसलिए मुझे खुद पर भरोसा था कि मैं यह कर सकता हूँ। वो पहाड़ की चोटी तब मुझे अपने मन को सुकून देने की सबसे बेहतरीन जगह लग रही थी। करीब 6 बजे मैंने चढ़ाई शुरू की। मैंने आधे रास्ते का सफ़र तय किया ही होगा की वहाँ का मौसम बदल गया। बादलों की गड़गड़ाहट शुरू हो गयी थी और कुछ ही देर में जोरदार बारिश होने लगी। इतना खराब मौसम देख कर हममें से कोई भी घबरा जाता पर मैंने ठान लिया था कि मैं तो पीछे हटने वालों में से नहीं हूँ। तब मुझे ये भी अहसास हुआ कि हम शायद किसी भी मुश्किल का सामना कर सकते हैं, ज़रूरत होती है तो बस थोड़ी हिम्म्त की।

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मैंने अपना फ़ोन बैग में रखा और आगे की चढ़ाई शुरू की। मैं पूरा भीग चूका था पर मैंने हिम्मत नहीं हारी।

करीब 70 प्रतिशत की चढ़ाई तक मैं कई बार रुका। जब भूख लगी तो मैंने पहाड़ पर लगे आम के पेड़ से आम तोड़कर खाया। इस चढ़ाई के बाद जो घाटी निकलती है वो नक्सल क्षेत्र है। वो इलाका सुनसान था, तेज़ बारिश हो रही थी और अब भी चढ़ाई बाकी थी। कुछ देर रुकने पर मुझे नक्सलियों के आस-पास होने का संदेह होने लगा इसलिए मैंने दोबारा चढ़ना शुरू कर दिया और कुछ देर की चढ़ाई के बाद बारिश में भीग कर, भूखे पेट मैं आखिर चोटी पर पहुँच चुका था।

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कुछ देर सुकून से बैठने के बाद मेरे अन्दर जोश भर चूका था। मैंने चढ़ाई पूरी कर ली थी, मेरे अन्दर एक ऊर्जा सी दौड़ रही थी जो कह रही थी कि आखिर मैंने कर दिखाया, पर मेरा सफर अभी अधूरा था। दोपहर का समय हो चूका था और 5 बजे मुझे दमनजोड़ी से जाजपुर के लिए ट्रेन भी पकड़नी थी। मेरे पास अब करीब 3-4 घंटे का समय था। मैंने तय किया कि मैं देवमाली की चोटी से दौड़ कर नीचे उतरूँगा। बारिश की वजह से मिट्टी गीली थी पर मैंने दौड़ना शुरू कर दिया। कई बार फिसला पर रुका नहीं। 1 घंटे में मैं देवमाली पर्वत की नीचे उतर चुका था। बारिश अब भी हो रही थी और मुझे फिर से दमनजोड़ी स्टेशन के लिए 70 कि.मी. रास्ता तय करना था।

गाँव वालों ने मुझे कहा कि अब वहाँ से ऑटो या बस मिलना मुश्किल है पर मुझे घर जाना था। मैंने वहाँ से भी दौड़ना शुरू किया और लगभग 5 कि.मी. दौड़ने के बाद मुझे एक ट्रक मिला जिसने मुझे लिफ्ट दी। अब मुझे लगा कि मैं समय पर पहुँच जाउँगा पर मुझे क्या पता था की अभी और रुकावटों से लड़ना है। 10 कि.मी. के बाद गाड़ी पंक्चर हो चकी थी। मुझे अभी भी रोड तक पहुँचना था जहाँ से कोई मुझे स्टेशन पहुँचा सके। मैंने फिर से दौड़ना शुरू किया और आगे मुझे एक ऑटो वाला मिला जो मुझे शॉर्टकट के रास्ते स्टेशन तक ले गया। मैं जैसे ही ट्रेन में बैठा ट्रेन ने सिग्नल दिया और चल पड़ी।

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एकल यात्रा ने दी नई ज़िंदगी

मेरे लिए ये ज़िन्दगी के सबसे रोमांचक अवसरों में से एक था, जब मैंने ख़ुशी, परेशानी, डर, भूख हर तरह की भावना को महसूस किया पर हार नहीं मानी। मैं अपने साथ एक नया अकरम ले कर लौट रहा था जो ब्रेकअप तो क्या अपनी ज़िन्दगी में आने वाली हर मुश्किल से लड़ने को तैयार था। और हाँ, मैं इस सफर के लिए अपनी गर्लफ्रेंड को भी थैंक्यू करना चाहुँगा। क्योंकि शायद अगर मेरा ब्रेकअप नहीं हुआ होता, तो मैं ना जाने कब तक अपने इस जुनून को टालता रहता और शायद ये भी कभी नहीं जान पाता कि मुझे एकल यात्रा करना कितना सुकून देता है।

अब मैं अपने अगले ट्रेक की तैयारी कर रहा हूँ, हाँ गर्लफ्रेंड की तलाश भी जारी है!

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