उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। शुरू से ही ये जगह धार्मिक भावनाओं और पूजा पाठ में विश्वव रखने वालों के लिए महत्वपूर्ण रही है। उत्तराखंड तीर्थ यात्रियों को भी अपनी ओर आकर्षित करता है। उत्तराखंड में भगवान शिव को बहुत माना जाता है। यहाँ पर भगवान शिव के तमाम रूपों को स्थानीय देवताओं के रूप में पूजा जाता है। भगवान शिव को मानने वाले लोगों के लिए चार धाम यात्रा बेहद महत्वपूर्ण होती है। लेकिन उत्तराखंड के पंच केदार के बारे में भी जान लेना आवश्यक है। शानदार नजारों और शिव भक्ति में डूबे ये पाँच मंदिर देखने लायक हैं।
पंच केदार
पंच केदार गढ़वाली हिमालय में स्तिथ पाँच शिव मंदिरों का समूह है जिनका सीधा संबंध महाभारत के पाँचों पांडव से जुड़ा हुआ है। इन पाँचों मंदिरों की यात्रा इनकी ऊंचाई के हिसाब से की जाती है। सबसे पहले 11,755 फीट पर बना केदारनाथ की यात्रा की जाती है। उसके बाद 12,070 फीट पर बने तुंगनाथ मंदिर और 11,667 फीट पर रुद्रनाथ मंदिर जाया जाता है। इसके बाद 11,450 फीट पर मध्यमहेश्वर और आखिर में 7,200 फीट पर कल्पेश्वर मंदिर की यात्रा की जाती है। इन सभी में केदारनाथ मुख्य मंदिर है जो चार धाम यात्रा का हिस्सा भी है।
पंच केदार किंवदंती
पंच केदार के पीछे बड़ी रोचक कहानी है जिसको आपको जरूर जान लेना चाहिए। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद पाँचों पाण्डव भाई इन्हीं जगहों पर पश्चाताप करने आए थे। उन्होंने ऐसा ऋषि व्यास के कहने पर किया था। लेकिन क्योंकि भगवान शिव उन्हें क्षमा नहीं करना चाहते थे इसलिए उन्होंने वेश बदलकर नंदी का अवतार धारण कर लिया। बाद ने उन्होंने इसी कारण धरती में छुप जाने का प्रयत्न किया। लेकिन पाँचों पांडवों में से सबसे शक्तिशाली भीम नंदी की पूंछ पकड़कर उसको भूमि से बाहर निकलने की कोशिश करने लगा। इसी जद्दोजहत में नंदी पाँच टुकड़ों में टूट गया जो बाद में पाँच अलग-अलग जगहों पर प्रकट हुआ। ये पूरा प्रकरण गुप्त काशी में हुआ था जहाँ से इस जगह का नाम लिया गया है। बाद ने नंदी के सभी पाँच टुकड़े धरती पर प्रकट हुए लेकिन इस बार वो भगवान शिव स्वयं थे।
कौन से मंदिर हैं शामिल?
पांडवों को उनके गुनाहों की माफी देने के बाद भगवान शिव चार अन्य जगहों पर प्रकट हुए थे। भगवान शिव का कूबड़ केदारनाथ में प्रकट हुआ था जो 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। रुद्रनाथ में उनका चहरा प्रकट हुआ था जो प्राकृतिक रॉक कट मंदिर है। भगवान शिव की भुजाएँ तुंगनाथ में प्रकट हुई थीं। तुंगनाथ समुद्र तल से 12070 फीट की ऊंचाई पर स्थित है जिसके कारण ये देश का सबसे ऊंचा शिव मंदिर भी है। भगवान शिव का कंबध मध्यमहेश्वर में प्रकट हुआ था। भगवान शिव के केश कल्पेश्वर में प्रकट हुए थे जो रुद्रनाथ और हेलंग के बीच में पड़ता है। इन सभी मंदिरों के समूह को एक साथ पंच केदार कहा जाता है। जानने वाली बात ये भी है कि भगवान शिव का अभिन्न नंदी पशुपतिनाथ में दिखाई दिया था। ये पाँचों मंदिर हमेशा से साधु महात्मांओं के लिए तपस्या का महत्वपूर्ण स्थान रहे हैं जिसके कारण यहाँ विश्वभर से लोगों का आना जाना लगा रहता है।
पंच केदार यात्रा
पंच केदार के सभी मंदिरों की यात्रा करने में कुछ 15 से 16 दिनों का समय लगता है। क्योंकि ये सभी मंदिर किसी तय रास्ते या सड़क के जरिए नहीं जुड़े हैं इसलिए आपको सभी मंदिरों को देखने के लिए थोड़ी मेहनत करनी पड़ सकती है। हालांकि आपकी पूरी मेहनत गढ़वाल के खूबसूरत पहाड़ों और उनके नजारों को देखकर वसूल हो जाएगी। पंच केदार यात्रा पर जाने से पहले सबसे जरूरी है ये तय करना की आप क्यों इस यात्रा पर जाना चाहते हैं। ये कोई पिकनिक ट्रेक नहीं है इसलिए यदि आप मजे के लिए जाना चाहते हैं तो सलाह यही होगी कि ऐसा करने से बचें। आपकी पूरी यात्रा हिमालय की गोद से होकर गुजरेगी जो यकीनन आपको जिंदगीभर की यादें दे देगी।
पंच केदार केवल सड़क के रास्ते की जा सकती है। क्योंकि ये सभी मंदिर अलग-अलग दिशाओं में हैं इसलिए आपको कई बार अपने लिए हुए रास्ते में बदलाव करने होते हैं। ट्रेकिंग रूट्स में भी अलग अलग लेवल की मुश्किलें हैं। कहीं पर चलना बेहद आसान है तो कहीं पर खड़ी चढ़ाई भी है। रास्ते से उत्तराखंड के मशहूर पहाड़ों का नजारा भी दिखाई देता है। पंच केदार जाते हुए आप आसानी से नंदा देवी, त्रिशूल और चौखंबा पहाड़ों को देख सकते हैं। गढ़वाल में गंगा को पूजा जाता है और गंगा की सहायक नदियां ही पंच केदार की रोशनी में चार चाँद लगा देती हैं।
पंच केदार यात्रा ट्रेक कुल 170 किलोमीटर लंबी है जिसमें आपको पाँचों मंदिर जाना होता है। इस 170 किलोमीटर की दूरी में गौरीकुंड का रास्ता भी जुड़ा हुआ है। ये पूरा रास्ता आप तकरीबन 16 दिनों में पूरा कर सकते हैं।
पंच केदार ट्रेक
ट्रेक की शुरुआत गौरीकुंड से होती है जो हिमालय के विहिंगम नजारों से सजी हुई है। इस पूरी ट्रेक में शुरू से लेकर अंत तक आपको पहाड़ों के हसीन दृश्यों का खूब साथ मिलेगा। अगर आप ट्रेक करने का मन बना रहे हैं तब आप गर्मियों के तीन और बरसात के दो महीनों में सफर कर सकते हैं। ठंड के मौसम में आप कल्पेश्वर मंदिर जा सकते हैं। ऋषिकेश जाने वाली सड़क आपका पहला पड़ाव है जो आपको उत्तराखंड की वादियों में लेकर आएगी। ऋषिकेश आने के लिए आपको देश के सभी हिस्सों से अलग अलग साधन मिल जाएंगे। ऋषिकेश से आगे गौरीकुंड जाना होता है। पंच केदार के लिए आपको रुद्रप्रयाग केदारनाथ रोड पर बढ़ना होता है जो आपकी गौरीकुंड ले आएगी। ये आपकी ट्रेकिंग का शुरुआती प्वॉइंट है जो आपको केदारनाथ मंदिर लेकर आएगा। इस 14 किमी. लंबी ट्रेक में आप गौरीकुंड से केदारनाथ तक का सफर तय करेंगे।
केदारनाथ मंदिर में दर्शन करने के बाद अब आपको गुप्तकाशी और जागसू की ओर बढ़ना होगा। केदारनाथ से जागसू कुल 30 किमी. है। जागसू मध्यमहेश्वर मंदिर के लिए आपकी ट्रेक का शुरुआती प्वॉइंट है। मध्यमहेश्वर का रास्ता गौंधड़ से होकर गुजरता है। ये ट्रेक 24 किमी. लंबी है। इस ट्रेक में आपको चौखंबा, केदारनाथ और नीलकंठ पर्वतमाला के दृश्य भी दिखाई देंगे।
मध्यमहेश्वर से वापस आने और तुंगनाथ ट्रेक के लिए आप जागसू से चोपता के लिए वाया रोड जा सकते हैं जो 45 किमी. लंबा रास्ता है। चोपटा से तुंगनाथ मंदिर का ट्रेक केवल 4 किमी. लंबा है जिसको आप आसानी से पूरा कर सकते हैं। तुंगनाथ मंदिर में दर्शन करने के बाद आपका अगला पड़ाव रुद्रनाथ मंदिर है। रुद्रनाथ मंदिर आने के लिए आप मंडल की ओर जाने वाली सड़क पर आगे बढ़ सकते हैं। इस सड़क पर आपको कुछ 8 किमी. का सफर तय करना होता है। मंडल से रुद्रनाथ मंदिर जाने के लिए आपको 20 किलोमीटर लंबा ट्रेक करना होगा।
रुद्रनाथ मंदिर के बाद आपको मंडल वापस आना होगा। रुद्रनाथ के बाद कल्पेश्वर मंदिर जाने के लिए आपको मंडल से हेलांग की ओर बढ़ना होगा। हेलांग से कल्पेश्वर मंदिर के लिए 11 किलोमीटर का ट्रेक करना होता है। ये ट्रेक थोड़ा मुश्किल हो सकता है लेकिन पहाड़ों के आकर्षक नजारे आपको कोई थकान नहीं महसूस होने देंगे। कल्पेश्वर मंदिर पंच केदार यात्रा का आखिरी पड़ाव है। कल्पेश्वर मंदिर में माथा टेकने के बाद आप वापसी की तैयारी करना शुरू कर सकते हैं। वापस आने के लिए आप हेलांग से ऋषिकेश के लिए गाड़ी ले सकते हैं जो पीपलकोठी होकर गुजरती है। ये दूरी लगभग 233 किलोमीटर लंबी है।
कब जाएँ?
पंच केदार पर्यटकों के लिए साल के 6 महीने खुला रहता है। पंच केदार यात्रा के लिए अप्रैल से अक्टूबर के बीच खुलता है। यदि आप सबसे सही समय पंच केदार जाना चाहते हैं तो आपको मई, जून, सितंबर या अक्टूबर में से किसी समय आना चाहिए। सर्दियों के मौसम में ये जगह पूरी तरह से बर्फ की चादर के नीचे ढक जाती है जिसके कारण यात्रा करना नामुमकिन होता है। इस समय केदारनाथ की शिव प्रतिमा को उखीमठ में स्थापित कर दिया जाता है और 6 महीनों तक वहीं पूजा अर्चना की जाती है। इसी तरह से तुंगनाथ की मूर्ति को मुक्कुमठ, रुद्रनाथ को गोपेश्वर और मध्यमहेश्वर मंदिर के शिवलिंग को भी उखीमठ में शिफ्ट कर दिया जाता है। केवल कल्पेश्वर मंदिर ही है जिसकी यात्रा सालभर की जा सकती है। यदि आपको ट्रेकिंग का अनुभव है तो आप सर्दियों में भी यात्रा कर सकते हैं।
इन बातों का रखें ध्यान:
- पंच केदार की यात्रा करने का मन बना रहे हैं तो आप शारीरिक तौर पर फिट होने की जरूरत है। अगर आपको चलने फिरने में या सांस लेने में तकलीफ होती है तो आपको पांच केदार जाने से बचना चाहिए।
- जरूरत का सभी सामान हर समय साथ रखें। आप अपने साथ पॉवर बैंक, एनर्जी बार, आवश्यक दवाएँ, ऊनी कपड़े रख सकते हैं।
- पंच केदार साल के 6 महीने ही खुला रहता है। हालांकि यदि आप रुद्रनाथ जाना चाहते हैं तो आप साल के किसी भी समय जा सकते हैं।
- पंच केदार लंबी और थका देने वाली यात्रा है। इसलिए यदि आप पंच केदार अच्छे से घूमना चाहते हैं तो आपको सुबह जल्दी निकल जाना चाहिए।
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