हर घूमने वाले की हसरत होती है कि वो लद्दाख को अच्छे से एक्सप्लोर करे। मेरा भी मन था कि लद्दाख को अच्छे से घूमा जाए लेकिन सुना था कि लद्दाख महँगी जगह है। इस धारणा को तोड़ने के लिए भी लद्दाख जाना था। ज़्यादातर लोग लद्दाख को बाइक से या गाड़ी से एक्सप्लोर करते हैं। मैंने लद्दाख को बस से एक्सप्लोर करने का मन बनाया। इस दृढ़ निश्चय के साथ पहुँच गया लेह। आइए आज आपको मैं अपनी नज़र से लद्दाख की सैर कराता हूँ।
लेह
लेह लद्दाख की राजधानी है और लद्दाख का सबसे बड़ा शहर है। चीता चौक पर बजट में एक हॉस्टल मिल गया। लेह पहुँचने के बाद एक दिन तो मैंने आराम किया। उसके बाद अगले दिन लेह बस स्टैंड जाकर सभी जगहों की बस और टाइमिंग के बारे में पता किया। कुछ जगहों को छोड़कर लद्दाख की हर जगह के लिए बस चलती है, बस आपको दिन और समय का ध्यान रखना होता है।
अलची
अलची लद्दाख का एक छोटा और प्यारा गाँव है। लेह से अलची गाँव लगभग 70 किमी. की दूरी पर है। अलची के लिए लेह से हर रोज़ दो इलेक्ट्रिक बस चलती है। मैं सुबह 8:30 बजे वाली इलेक्ट्रिक बस पर सवार हो गया। गुरुद्वारा पत्थर साहिब, मैग्नेटिक हिल और संगम होते हुए बस अलची गाँव पहुँची। अलची गाँव में अलची किचन नाम का एक लद्दाखी रेस्टोरेंट है। लद्दाखी फ़ूड के लिए ये रेस्टोरेंट काफ़ी लोकप्रिय है। यहाँ पर हल्का-फुल्का खाने के बाद अलची मोनेस्ट्री गए। अलची मोनेस्ट्री लद्दाख की सबसे पुरानी मोनेस्ट्री में से एक है। इस मठ के अंदर कैमरा, मोबाइल और कोई भी सामान ले जाना मना है। मोनेस्ट्री के अंदर कई सारे मंदिर हैं जो बेहद शानदार हैं। ऐसे ही शाम तक अलची गाँव में घूमते रहे। जब बस आई तो अलची से लेह के लिए निकल पड़े।
नुब्रा वैली
अगले दिन मैं फिर से लेह बस स्टैंड पहुँच गया। यहाँ पर हुंडर जाने के लिए प्राइवेट बस थी लेकिन उसमें अब जगह नहीं बची थी और टिकट एक दिन पहले लेना पड़ता है। तो फिर JKSRTC की बस से सुमुर के लिए निकल पड़ा। सुमुर भी नुब्रा वैली में आता है लेकिन उसका रास्ता थोड़ा अलग है। सुबह 8 बजे बस लेह से निकल पड़ी। नॉर्थ पुल्लू, खारदुंग ला पास, साउथ पुल्लू, खारदोंग और टी मोड़ समेत कई जगहों को पार करते 5 घंटे बाद सुमुर गांव पहुँच गया।
सुमुर नुब्रा वैली का एक छोटा-सा गाँव है। यहाँ मुझे एक सस्ता-सा होटल मिल गया। इसके बाद आराम किया और फिर नहाकर सुमुर को एक्सप्लोर करने के लिए निकल पड़ा। पहले एक होटल पर पराँठा खाया और फिर टहलने लगा। टहलते-टहलते समस्तालिंग मोनेस्ट्री पहुँच गया। इस मोनेस्ट्री के बारे में कम लोगों को पता है लेकिन ये बेहद सुंदर मोनेस्ट्री है। इस मठ में तीन मंदिर हैं जिनको आप देख सकते हैं। इस मोनेस्ट्री में पुरूष रात में ठहर सकते हैं लेकिन महिलाओं का यहाँ ठहरना सख़्त मना है। ऐसे ही टहलते-टहलते रात हो गई। रात में एक रेस्टोरेंट पर खाना खाया और फिर अपने होटल में आ गए।
तुरतुक
अगले दिन सुबह 8 बजे हम सामान के साथ सुमुर की सड़क पर आ गए। हमने आज पहले डिस्किट जाने के प्लान बनाया। उसके लिए सबसे पहले हमें टी मोड़ पहुँचना था। काफ़ी देर इंतज़ार के बाद एक सामान वाली गाड़ी मिल गई। हम उस पर पीछे सवार हो गए। लद्दाख में ऐसी पिकअप पर यात्रा करने का अलग ही मज़ा है। पिकअप से कुछ ही देर में हम टी मोड़ पहुँच गए। पिकअप वाला भी डिस्किट जा रहा था तो हम भी उसमें सवार रहे। डिस्किट से कुछ दूर पहले एक जगह पर हमें उतरना पड़ा। फिर से हमने आने-जाने वाली गाड़ियों से लिफ़्ट माँगना शुरू कर दिया। जल्दी ही हमें सफलता मिली। एक बड़ी-सी गाड़ी हमारे लिए रूक गई। कारगिल के दो बंदे तुरतुक जा रहे थे तो हम भी तुरतुक जाने के लिए तैयार हो गए। लगभग 2-3 घंटे के बाद हम तुरतुक पहुँचे।
तुरतुक पहुँचकर सबसे पहले एक रेस्टोरेंट पर खाना खाया। उसके बाद उन्हीं लोगों के साथ थाँग गाँव के लिए निकल पड़ा। थाँग भारत का अंतिम गाँव है। तुरतुक से थाँग 6 किमी. की दूरी पर है। थाँग गाँव में भारत-पाक बार्डर को देखा। उसके बाद तुरतुक आकर बजट में एक होटल में ठहर गए। उसके बाद तो पूरे दिन आराम किया। अगले दिन तुरतुक की कई जगहों को एक्सप्लोर किया। कुल मिलाकर पूरे तुरतुक को अच्छे से घूमा। तुरतुक और थाँग समेत इस इलाक़े के 4 गाँव ऐसे हैं जो पहले पाकिस्तान में थे और 1971 के बाद अब भारत का हिस्सा है।
हुंडर
तुरतुक के लिए कोई बस नहीं चलती है। यहाँ आने-जाने के लिए शेयरिंग टैक्सी चलती हैं। अगले दिन ऐसी ही शेयरिंग टैक्सी से मैं डिस्किट के लिए निकल पड़ा। कुछ घटों की यात्रा के बाद मैं डिस्किट पहुँच गया। डिस्किट में शाक्यमुनि बुद्ध की विशाल मूर्ति है। मूर्ति के अंदर एक मंदिर है। इसके अलावा डिस्किट में एक मोनेस्ट्री भी है। डिस्किट मोनेस्ट्री नुब्रा वैली की सबसे बड़ी मोनेस्ट्री है। हम पैदल-पैदल मोनेस्ट्री तक पहुँचे। मोनेस्ट्री को घूमते हुए हमें समझ आया कि मोनेस्ट्री वाक़ई में बड़ी है। डिस्किट मोनेस्ट्री में कई सारे मंदिर हैं जिनको हमने देखा।
डिस्किट मोनेस्ट्री से हम नीचे-नीचे पैदल जा रहे थे, तभी एक गाड़ी ने हमें हुंडर तक लिफ़्ट दे दी। डिस्किट से हुंडर 12 किमी. है। कुछ ही देर में हम हुंडर पहुँच गए। हुंडर में एक हॉस्टल में हमें ठहरने की जगह मिल गई। शाम के समय हम सैंड ड्यूंस गए। जहां हमें नुब्रा वैली के ऊंट और सीमेंट जैसी रेत देखी। नजारा वाक़ई में सुंदर था। यहाँ हम सूरज डूबने तक रहे। रात के समय हुंडर के आर्टिसयन मार्केट गए। जहां शाम के समय माहौल बेहद शानदार होता है। स्थानीय संगीत के साथ आप यहाँ की लोकल चीजों को ख़रीद सकते हैं और स्थानीय ज़ायक़ों का स्वाद भी ले सकते हैं। अगले दिन हम हुंडर से बस से लेह आ गए।
लामायुरू
लेह बस स्टैंड से हर रोज़ 3 बजे लामायुरू के लिए बस चलती है। इसके अलावा हर रोज़ सुबह 6 बजे पोलो ग्राउंड से कारगिल के लिए बस जाती है। हमने एक दिन पहले उसी बस में टिकट ले लिया। अगले दिन हम कारगिल वाली बस में सवार हो गए। बस गुरुद्वार पत्थर साहिब, मैग्नेटिक हिल और संगम होते हुए खालसी पहुँचे। जहां पर हमने एक पंजाबी ढाबे पर खाना खाया। कुछ ही देर में हम लामायुरू पहुँच गए। मोनेस्ट्री के पास में ही एक होटल में कमरा मिल गया।
होटल में थोड़ी देर आराम करने के बाद मोनेस्ट्री को देखने के लिए निकल पड़े। लामायुरू मोनेस्ट्री लद्दाख की सबसे पुरानी मोनेस्ट्री में से एक है। मोनेस्ट्री में कई सारे मंदिर हैं। मोनेस्ट्री के अंदर जाने का टिकट भी है। इसके अलावा मोनेस्ट्री के मुख्य मंदिर के अंदर फ़ोटो और वीडियो बनाना सख़्त मना है। मोनेस्ट्री से आपको पूरा गाँव लामायुरू गाँव दिखाई देता है। शाम के समय हमने लामायुरू गाँव को भी एक्सप्लोर किया। अगले दिन एक ट्रक से लिफ़्ट लेकर हम लामायुरू पहुँच गए।
पैंगोंग झील
लेह से पैगोंग के लिए हर बुधवार और रविवार को बस चलती है। हमने एक दिन पहले ही पैंगोंग जाने वाली बस की टिकट ले ली थी। अगले दिन सुबह 7 बजे बस अपने ठीक समय पर लेह से निकल पड़ी। रास्ते में कारू में बस नाश्ते के लिए रूकी। लेह से पैंगोंग के रास्ते में चांगला पास भी पड़ा। डुरबुक में हमारी बस लंच के लिए रूकी। लगभग 6-7 घंटे की यात्रा के बाद हम पांगमिक गाँव पहुँचे।
पैंगोंग लेक दुनिया की सबसे ऊँचाई पर स्थित सॉल्ट वाटर लेक है। 160 किमी. लंबी पैंगोंग लेक का एक तिहाई हिस्सा भारत में है और दो तिहाई भाग चीन में है। हम सबसे पहले पैंगोंग लेक के किनार गए और वहीं बैठे रहे। इसके बाद लेक के किनारे चलते-चलते रहे। शाम के समय लिफ़्ट लेक मान गाँव पहुँचे। यहाँ पैंगोंग लेक और पहाड़ का अलग ही नजारा दिखाई दे रहा था। वहाँ से लौटकर हमने पैंगोंग लेक के किनारे अपना टेंट लगाया। रात में एक होटल में खाना खाया और फिर तेज़ हवा के बीच सो गए। जिस बस से हम पैंगोंग आए थे, उसी बस से हम लेह पहुँच गए। तो इस तरह से मैंने लोकल ट्रांसपोर्ट से लद्दाख को एक्सप्लोर किया।
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