मथुरा-वृन्दावन के 40 दिवसीय होली के प्रोग्राम के बारे में तो आप जानते ही होंगे कि किस तरह वहां 40 दिन लम्बा होली महोत्सव चलता हैं जिसमे मथुरा ,बरसाना ,नंदगाव आदि जगहों पर अलग-अलग दिन अलग-अलग प्रकार की होली खेली जाती हैं।वहां मुख्य रूप से लट्ठमार होली ,छड़ी मार होली और लड्ड़ू होली प्रसिद्द हैं।आप अगर कभी इन उत्सवों में शामिल ना भी रहे हो ,तो भी आपने इनकी कुछ सामान्य जानकारीयां तो कई फिल्मों ,ब्लोग्स एवं वीडियोज के माध्यम से प्राप्त जरूर की होगी।पंचमी पर यह 40 दिवसीय आयोजन समाप्त हो जाता हैं।
राजस्थान में स्थित 'वस्त्रनगरी' भीलवाड़ा जिले में धुलंडी के दिन तो काफी कम लेकिन इसके करीब एक सप्ताह बाद सप्तमी पर होली खेली जाती हैं।जिले की कुछ तहसीलों में तेरस ,पंचमी पर भी होली खेली जाती हैं। यह वो ही भीलवाड़ा जिला हैं जो भारत में कोरोना आगमन पर मार्च 2020 में कोरोना विस्फोट के कारण पुरे देश ही नहीं बल्कि विदेशों के भी समाचारों में अपनी जगह बना चूका था।सप्तमी मतलब शीतला सप्तमी का त्यौहार यहाँ का मुख्य त्यौहार हैं।इस वर्ष यह त्यौहार 25 मार्च को मनाया गया। इस दिन पूरा शहर गुलाल के रंग से रंग बिरंगा हो जाता हैं।मंदिरों एवं रिसॉर्ट्स में होली खेलने के लिए भव्य आयोजन होते हैं। लेकिन यहाँ का एक रिवाज ऐसा हैं जिसके बारे में आपने शायद ही कभी सुना हो। तो जानते हैं क्या होता हैं इस दिन यहाँ ख़ास -
यहाँ निकाली जाती हैं जिन्दा युवक की शवयात्रा :
पढ़कर ये मत सोचना कि आपने गलत पढ़ा। आपने एकदम सही पढ़ा हैं ,सप्तमी के दिन जहाँ एक तरफ पूरा भीलवाड़ा शहर होली के रंग एक दूसरे को लगा रहा होता हैं वहीँ शहर के पुराने क्षेत्र मतलब पुराने भीलवाड़ा में होली खेलने के साथ साथ ही जिन्दा युवक की शवयात्रा निकालने की तैयारियां भी चल रही होती हैं।हर तरफ भारी पुलिस बल तैनात रहता हैं ,ड्रोन्स से क्षेत्र की निगरानी की जाती हैं। निश्चित समय एवं स्थल से सैकड़ों लोग गुलाल खेलते हुए ,एक जिन्दा युवक की अर्थी लेकर तय किये हुए रूट से बाजारों से निकलते हैं।इस अर्थी पर एक जिन्दा युवक को शव की तरह लिटाया जाता हैं एवं दाह संस्कार के लिए एक तय स्थान की ओर कंधा देकर ले जाया जाता हैं।
इस शवयात्रा में सैकड़ों आदमी हंसी ठिठोली करते ,मजाकिया विलाप करते, कुछ फब्तियां कसते कसते एवं गुलाल खेलते खेलते मुख्य बाजारों से गुजरते हैं। इन फब्तियां कसने के कारण इनमे महिलाओं का शामिल होना वर्जित होता हैं। पूरी शवयात्रा के साथ-साथ कई ढोल नगाड़े भी चलते रहते हैं। कई जगह शव बना युवक उतर कर भागने की कोशिश भी करता हैं पर उसे सब मिलकर पकड़कर फिर लेटा देते हैं।
फिर होता हैं मुर्दे का अंतिम संस्कार :
करीब दो से तीन घंटे चल कर यह शवयात्रा पुराना भीलवाड़ा की ही एक निश्चित जगह पर आकर रूकती हैं और फिर होती हैं अंतिम संस्कार की तैयारियां। यह जगह मेरे निवास से मात्र 100-200 मीटर की दूरी पर ही एक चौराहे पर रखी जाती हैं।अंतिम संस्कार के समय मुर्दा कई बार उठकर भागने की कोशिश करता है ,लेकिन भीड़ उसकी कोशिश नाकाम कर देती हैं। यहाँ विलाप ,अश्लील फब्तियां एवं हंसी मजाक और भी तेज हो जाता हैं।
रंग और गुलाल से गुलाबी हुए कपड़ों में ही इन लोगों द्वारा एक तरफ आग जलाकर अर्थी को अग्नि देने की तैयारियां शुरू की जाती हैं और जैसे ही अर्थी को आग लगायी जाती हैं मुर्दा भाग खड़ा होता हैं और फिर एक पुतले के साथ प्रतीकात्मक दाह संस्कार पूरा किया जाता हैं।यह रिवाज यहाँ बरसों से चला आ रहा हैं। इस मुर्दे को होलिका के मंगेतर के रूप में देखा जाता हैं ,जो कि होलिका दहन वाले दिन ही जलकर खत्म हो गयी होती हैं।
नहीं जलते हैं घरों में चूल्हे ,खाया जाता हैं ठंडा खाना -
इस दिन किसी भी घर में गर्म खाना ना तो खाया जाता हैं ,ना बनाया जाता हैं।शीतला सप्तमी ,माता शीतला को समर्पित त्यौहार हैं और माना जाता हैं कि उन्हें ठंडे खाने का ही भोग लगता हैं। इसीलिए सप्तमी से पहले की रात को ही सप्तमी के खाने की तैयारियां कर ली जाती हैं। राजस्थान की प्रसिद्द केर-सांगरी की सब्जी ,मिठाइयां एवं यहाँ की सबसे प्रसिद्द चीज 'औलियाँ ' जैसी चीजे बना कर रात को ही रख ली जाती हैं। औलियाँ असल में दही ,चावल और डॉयफ्रुइट्स को मिक्स करके बनाया जाता हैं जो कि खट्टा -मीठा एवं तीखा ,दोनों स्वाद में बनाया जाता हैं।(फोटो में देखे ) यहां के लोग तोयूँ मानो औलियाँ खाने के लिए ही इस त्यौहार का इंतजार करते हैं। यह बहुत ही स्वादिस्ट व्यंजन होता हैं ,जो आने वाले 2 से 3 दिन तक घर आने वाले मेहमान को मुख्य रूप से परोसा जाता हैं।ठंडा खाना खाने का यह रिवाज तो पुरे राजस्थान समेत मध्य प्रदेश के भी कई हिस्सों में प्रचलित हैं।लेकिन राजस्थान में उस दिन होली केवल भीलवाड़ा में ही खेली जाती हैं। अन्य शहरों में कार्यरत यहाँ के लोग उन शहरों में धुलंडी पर होली खेल कर छुट्टी लेकर सप्तमी पर भी होली खेलने भीलवाड़ा आ जाते हैं।
तो अगर आप धुलंडी पर होली ना भी खेल पाए तो सप्तमी पर भीलवाड़ा में खेल सकते हैं। साथ ही साथ औलियाँ एवं केर सांगरी जैसे स्वादिष्ट व्यंजन और मुर्दे की शवयात्रा का आनंद भी उठा सकते हैं।
कैसे पहुंचे - भीलवाड़ा रेलवे स्टेशन यहाँ का नजदीकी रेलवे स्टेशन हैं।सड़क मार्ग से तो कई साधन आपको राजस्थान के हर शहर से मिल जाएंगे। नजदीकी हवाई अड्ड़ा 'उदयपुर इंटरनेशनल एयरपोर्ट ' हैं।
मुख्य पर्यटन स्थल : भीलवाड़ा शहर में तो प्रसिद्द पर्यटन स्थल ना के बराबर हैं। मानसून में आसपास के कुछ प्रसिद्ध झरनो जैसे मेनाल ,नीलिया महादेव ,भड़क्या महादेव जैसी जगहे घूम सकते हैं। लेकिन यहाँ से चित्तौड़गढ़ किला ,सावलियाँ जी मंदिर ,पुष्कर ,नाथद्वारा की दुरी काफी कम हैं जो आसानी से सुबह से शाम तक घूम कर वापस आया जा सकता हैं।
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-ऋषभ भरावा (पुस्तक -चलो चले कैलाश)