हम्पता पास सोलो ट्रेक | Hampta Pass solo trek

Tripoto
Photo of हम्पता पास सोलो ट्रेक | Hampta Pass solo trek by Akshat Maneesh Sahu

पहला दिन

साल 2021 में कई जगहों पर घुमक्कड़ी की प्लानिंग थी लेकिन एन केन प्रकारेण उनमें से कई प्लान सक्सेज नहीं हो पाए लेकिन एक प्लान था जिसका इंतजार पिछले 4 सालों से था और वो पिछले साल यानि 2021 में पूरा हो गया। वो था हम्पता पास का सोलो ट्रेक और स्पीती वैली की सोलो घुमक्कड़ी। मैनें जहां भी पता किया, सभी ने कहा कि इस ट्रेक पर अकेले मत जाओ, कुछ हो गया तो दिक्कत हो जाएगी। पर मैनें भी ठान रखा था कि ये तो करके ही रहूंगा। हालांकि सारे जोखिमों को देखते हुए अपने स्तर पर जरूर दवाएं वगैरह भी लेकर चला था।

प्लान ये बना कि मनाली से ट्रेक करके हम्पता पास क्रॉस करके चंदरताल जाएंगे और फिर वहां से स्पीति। स्पीति में बाइक रेंट पर लेंगे और चार दिन में पूरी स्पीति कवर करके पांचवें दिन शिमला की साइड से दिल्ली आ जाएंगे। इसके पहले मैने खीरगंगा ट्रेक और तुंगनाथ विंटर ट्रेक जैसे कुछ ट्रेक्स सोलो कर रखे थे लेकिन ये पहली बार था जब अकेले तीन रातें पहाड़ों में अपना टेंट लगाकर बितानी थी, एक्साइटमेंट लाजमी था। ट्रेक करने के दौरान रहने, खाना बनाने, पहनने और ट्रेक करने संबंधी सारी चीजों की तैयारी हो गई और 30 अगस्त 2021 की रात को मैं दिल्ली से निकल पड़ा एक मच अवेटेड ट्रेक और ट्रिप पर।

हम्पता पास का ट्रेक जोबड़ा (जोबरा) से शुरु होता है जिसका रास्ता मनाली के ऊपरी भाग में स्थित सेठन गांव से होकर जाता है। रास्ता कुछ अच्छा नहीं है और जमकर चढ़ाई है। यहां तक पहुंचने के लिए मुझे मनाली से एक गाड़ी हायर करनी पड़ी जिसने 1500 रूपए लिए। यहां मुझे शाम के पहले-पहले पहुंच जाना था लेकिन मनाली वाली बस खराब हो गई थी। मैं मनाली ही 4-5 घंटे की देरी से पहुंचा था तो सेठन तक पहुंचते-पहुंचते ही रात हो गई। गाड़ी वाले ने सेठन के आगे जाने में असमर्थता जता दी क्योंकि रात में कुछ दिख नहीं रहा था और उसे भी आगे का रास्ता नहीं पता था। मैनें भी खिटखिट करने के बजाय एक घर के लॉन में बात करके टेंट लगाया और रात को उनके यहां ही खाना खाकर सो गया। खाने के लिए मैनें उन्हें 150 रूपए अदा किया था। उस घर के सामने सुबह का नजारा लाजवाब था।

सुबह जब उठा तो कुछ यूं था नजारा

Photo of हम्पता पास सोलो ट्रेक | Hampta Pass solo trek by Akshat Maneesh Sahu

सुबह जल्दी उठकर ब्रश वगैरह करके 6 बजे तक मैं निकल पड़ा ट्रेक के लिए। आज की मंजिल थी ज्वारा कैंप साइट। चलते हुए मालूम पड़ा कि जोबड़ा सेठन से 5 किमी है तो भइया हमको 5 किमी पैदल चलने के बाद ट्रेक शुरु करने वाला प्वाइंट मिला। ये ट्रेक शुरु होते ही घने जंगलों से गुजरता है। इतनी सुबह कोई भी उस रूट पर नहीं होता इसलिए उस घने जंगल में घनघोर सन्नाटा छाया था, मुझे खीरगंगा ट्रेक की याद आ गई जब मैं अकेले जंगल में लैंडस्लाइड के बीच से निकलकर नीचे पहुंचा था। इतने सन्नाटे में अकेले रहने पर थोड़ा डर भी लगता है, किसी जंगली जानवर का। वैसे मेरे साथ पांडूं भी था।

सेठन के आगे एक पांडू रोपा कैंपसाइट पड़ती है, वहां पर मेरा स्वागत एक कुत्ते ने किया था, इतनी तेज भौंक रहा था कि लगा जैसे अभी मेरे ऊपर टूट पड़ेगा। मैं हिम्मत करके चुपचाप धीरे-धीरे आगे बढ़ता रहा। फिर वो कुत्ता भी आगे बढ़ते हुए मेरे पैरों में सूंघने लगा, फिर इधर-उधर चाटने लगा, फिर वो मेरे ऊपर ही कूदने लगा, मैं चुप-चाप एक जगह खड़ा हो गया। फिर जैसे-तैसे उससे जान छुटी तो आगे बढ़ा लेकिन ये क्या? वो कुत्ता तो मेरे पीछे-पीछे हो लिया। थोड़ी देर डरने के बाद मैनें उससे डरना बंद कर दिया और वो मेरे आगे पीछे ऐसे चल रहा था जैसे वो मुझे सालों से जानता हो। जहां रूकूं वो रुक जाए और जिधर चलूं वो भी चल पड़े। अब वो मुझे पांडू रोपा पर मिला था तो मैने उसका नाम पांडू रख दिया।

झरने में कूदने को आतुर दिखता पांडू

Photo of हम्पता पास सोलो ट्रेक | Hampta Pass solo trek by Akshat Maneesh Sahu

तो पांडू के साथ चलते हुए घने जंगलों को पार करके मैं जोबड़ा कैंपसाइट पर पहुंचा। इसका एल्टीट्यूड है 9800 फीट। अब यहां से मुझे नदी को फॉलो करते हुए चलना था। जोबड़ा का व्यू काफी शानदार है। आप हम्पता पास ट्रेक गूगल पर टाइप करेंगे तो ज्यादातर आपको यहीं का व्यू दिखाई देगा। पूरी हरियाली में डूबी एक घाटी। अबतक धूप भी निकल चुकी थी, सारे गर्म कपड़े बैग के अंदर जा चुके थे और मौसम एकदम साफ, ब्राइट सनी डे।मैं इनता सुबह चला था कि कोई भी ट्रेकर मुझसे आगे नहीं गया था लेकिन जोबड़ी के बाद से इंडिया हाइक्स का एक ग्रुप मेरे पीछे से आ रहा था। इसके आगे पड़ता है चिका कैंपसाइट, जोकि 10400 फीट पर है। बहुत सारे लोग यहां भी रुकते हैं, वैसे मुझे यहां रुकना व्यर्थ लगता है लेकिन सबकी अपनी-अपनी व्यवस्थाएं है। चिका से और लोगों का भी साथ मिला तो 25-30 लोग हो गए उस रूट पर।

ये नदी तो नहीं है, इसे नाला कहते हैं लेकिन शहरों में नाला वो होता है जिसमें कचरा बहता है इसलिए मुझे इस निर्मल जलधारा को नाला कहना ठीक नहीं लग रहा तो मैं इसे नदी कहूंगा।

Photo of हम्पता पास सोलो ट्रेक | Hampta Pass solo trek by Akshat Maneesh Sahu

अब एडवेंचर से राब्ता कायम होने लगा था क्योंकि रास्ते संकरे और खाई के साथ वाले थे, कोई गिरे तो सीधा 50-60 फुट नीचे नदी में जाकर गिरे। यहां डिफिकल्टी लेवल का भी पता चलता है। लगातार चढ़ाई वाला रास्ता है और कहीं भी समतल नहीं मिलता। और आगे जाओ तो एक जल धारा मिलती है जिसकी प्रवाह तो माशाल्लाह काफी थी। वैसे पानी तो गांठ से थोड़ा ऊपर तक ही था प्रवाह देखकर मेरे कदम ठिठक गए। फिर दो लोगों का एक ग्रुप मिला तो हमने एक दूसरे का हाथ पकड़कर पार कर लिया। ये थोड़ा जोखिम वाला है तो आप कभी जाएं तो ध्यान से पार करिएगा।

ग्लेशियर से आने वाला वो पानी इतना ठंडा था कि मेरे पैर लाल पड़ गए थे। मैं तो पार हो गया लेकिन पांडू रह गया, अब मैं क्या करूं? मैं सोच ही रहा था कि पांडू ने छलांग लगा दी, मेरा दिल धक से हो गया, मुझे लगा अब तो गया पांडू। वो बिल्कुल बहने ही वाला था कि एक ट्रेकिंग ग्रुप के क्रू मेंबर जो अपना एक ग्रुप पार करवाने के लिए पानी में उतरे थे उन्होने पकड़ लिया, कैसे भी करके बाहर की तरफ पुश किया और पांडू इस पार आ गया।

इस जलधारा को पार करने के बाद थोड़ा समतल वाला रूट है, और थोड़ी ही देर बाद हम पहुच गए अपने आज की मंजिल ज्वारा कैंप साइट। बहुत ही शांत, प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण और हरियाली से भरी हुई कैंप साइट है ये। जिनके साथ मैनें वो जलधारा पार की थी, उनसे अबतक थोड़ी बहुत दोस्ती हो गई थी तो हम तीनों साथ ही ज्वारा कैंपसाइट पहुंचे। ज्वारा का एल्टीट्यूड है, 11194 फीट। सुबह से मैनें रास्ते में बस एक सेब खाया था, मुझे लगा था कि चिका में कुछ पराठे वगैरह मिल जाएंगे पर वहां ऐसा कोई ढाबा नहीं दिखा था। अब तक मैं करीब 11-12 किमी चल चुका था इसलिए भूख भी लग चुकी थी तो मैने वहां ब्रेड जैम और घर से अम्मा के हाथ की बनी गुझिया खाई। भूख शांत हुई तो 10-15 मिनट आराम करने के बाद हम तीनों अपना टेंट लगाने की जगह खोजने लगे। लेकिन ये क्या? अभी तो दोपहर के 12 ही बज रहे हैं…! तो क्या हम आज का आधा दिन यहीं रहेंगे? हम तीनों इसी सोच-विचार में थे कि इतने में इंडिया हाइक्स का लैगेज ठोने वाले एक खच्चर वाले भाई साहब की इंट्री हुई। हमने उनसे पूछा कि अगली कैंपसाइट कितनी दूर है? क्या हम अभी चलेंगे तो पहुच जाएंगे?

इस नदी के संग चलना है।

Photo of हम्पता पास सोलो ट्रेक | Hampta Pass solo trek by Akshat Maneesh Sahu

ज्वारा कैंपसाइट के चारों तरफ फैली हरियाली और फूलों की चादर

Photo of हम्पता पास सोलो ट्रेक | Hampta Pass solo trek by Akshat Maneesh Sahu

उस भाई ने सीधा कहा कि अगली कैंपसाइट 6 किमी दूर है, जाओगे तो 3-4 घंटे में पहुंच ही जाओगे लेकिन मेरी मानो तो आराम से यहीं बैठो (रुको) आज, कल जाना क्योंकि एक दिन में उतनी उंचाई पर जाना आप लोगों के लिए खतरे वाला काम है, बाकी मुझे जाना हो तो आराम से जा सकता हूँ। उन भाई साहब की बात में वजन था, 10,000 फीट के एल्टीट्यूड से ऊपर जाते ही वायुमंडल में ऑक्सीजन की कमी देखी जाती है, जिससे लोगों को सांस लेने में समस्या आ जाती है, कुछ लोगों को तो उल्टियां भी आती हैं तबियत बहुत खराब हो जाती है। मैनें भी इस ट्रेक पर एल्टीट्यूड सिकनेस के कई सारे केस सुन रखे थे। अभी हम 11000+ फीट पर खड़े थे और हमें लगभग 1500 फीट ऊपर जाना था जोकि काफी जोखिम भरा होने वाला था।

एक बार को हम मान गए टेंट पिच करने के लिए लेकिन फिर अचानक मूड बदला और हम सब निकल लिए अगली कैंपसाइट बालू का घेरा के लिए। आगे का रास्ता लगातार उंचाईयों को छूने जैसा है। हम लगातार एलीवेशन गेन कर रहे थे। मेरे साथ चल रहे दोनों लड़के मुझसे काफी आगे निकल गए क्योंकि वो मुझे तेज चल रहे थे। मेरे धीमे चलने का दो कारण था, पहला कि मुझे अपने यूट्यूब के लिए वीडियो भी बनाने थे और दूसरा कि उन दोनों ने आज का ट्रेक चिका से शुरु किया था जबकि मैं उनसे 8 किमी. पहले से ही चल रहा था। इस लिए मैं काफी हद तक थक गया था। धूप हमारे सिर पर लग रही थी, और यहां कोई पेड़ भी नहीं होता जहां छाए में आराम किया जा सके। इस बीच मुझे महसूस हुआ कि मुझे उल्टी आने के लक्षण लग रहे हैं, जो कि बिल्कुल ही बुरा संकेत था। मैं एक बार को ठिठक गया कि अगर एल्टीट्यूड सिकनेस हुई तो दिक्कत हो जाएगी और बीच रास्ते में मैं फस भी सकता हूँ। एैसे में मैं और पांडु हम दोनो ही एक जगह बैठ गए।मैने पानी पिया, मुंह पर रुमाल डाली और उधर ही लेट गया।

लगभग 15 मिनट बाद कुछ ठीक महसूस हुआ तो उठकर फिर से चलना शुरु किया। हमारे दाहिने हाथ पर खाई में हमारे साथ चल रही थी वो नदी जो हमें जोबरा से मिलती है। अब चढ़ाव के साथ ही बीच-बीच में उतार भी आने लगा था और एक बार तो हम खाई में बह रही नदी के बिल्कुल बराबर से चल रहे थे। कुछ देर के लिए ही सही पर समतल रास्ता भी आया। ये ट्रेक दो पहाड़ों के बीच की घाटी से होकर गुजरता तो आपके दाहिने और बाएं दोने तरफ ऊंचे-ऊंचे पहाड़ होते हैं और बालू का घेरा पहुंचने से पहले ही सामने दिखने लगता है बर्फीला पहाड़ जिससे होते हुए अगले दिन का रास्ता गुजरने वाला है, फिलहाल आज तो हम नीचे ही कैंप करने वाले थे।

बादलों की आंख मिचोली के बीच सामने की चोटी के नजारे।

Photo of हम्पता पास सोलो ट्रेक | Hampta Pass solo trek by Akshat Maneesh Sahu

सुबह से अबतक कम से कम 5-6 चरवाहों का झुंड मिल चुका था। इन झुंडों में 100-150 भेड़-बकरियां होतीं और जब वो हमारे पास से गुजरतीं तो हम बस उन्हें देखते कि कितनी खुशी है उनके चेहरे पर हरा-भरा चारा मिलने की। कभी-कभी इन भेड़-बकरियों को एकदम खड़े ढलान वाले पहाड़ों पर पूरे झुंड के साथ बेफिक्र होकर घांस चरते देखता तो आश्चर्य करता कि इतनी तीखी ढलान पर वो टिकी कैसे हैं? ये चरवाहे महीनों तक एक घाटी से दूसरी घाटी का सफर अपने जानवरों को साथ लेकर करते हैं, एक ने बताया कि अब वो मंडी की तरफ अग्रसर हैं।

इतना सबकुछ होने के बावजूद भी मेरे लिए आश्चर्य की बात थी कि महज ढाई घंटे में मैं बालू का घेरा कैंपसाइट पर पहुंच चुका था। वो दो लड़के जो मेरे साथ थे, वो तो मुझसे भी पहले पहुंच चुके थे। वो मेरा ही इंतजार कर रहे थे। उन्होनें मैट बिछा रखी थी तो मैं धड़ाम से जाकर पसर गया। मुझे लगा आज की मेहतन खत्म हो गई लेकिन ये क्या? ये लोग तो और ऊपर जाने को बोल रहे हैं। दरअसल उस खच्चर वाले भाई ने हमें मंत्र दे दिया था कि बालू का घेरा की मेन कैंपसाइट पर रुकने के बजाए, थोड़ा और आगे चले जाना, वहां इंडिया हाइक्स का कैंप होगा, वहां रुकना। वो जगह थोड़ी शांत भी रहेगी और चूंकि अगला दिन बहुत कठिन होने वाला है इसलिए तुम आज जितना कवर किए रहोगे, उतना प्लस पॉइंट रहेगा।

सच पूछो तो मेरा आगे जाने का बिल्कुल भी मन नहीं था। थकान बहुत ज्यादा थी लेकिन उन दो साथियों के साथ के चक्कर में लगभग आधे घंटे सुस्ताने के बाद हम मैं फिर से निकल पड़ा अगली कैंपसाइट की ओर। कहने को तो वो लगभग डेढ़ से दो किमी है लेकिन लगातार चढ़ाई इतनी थी कि एक-एक कदम मुश्किल हो रहा था, लगभग 300-400 मीटर चलने के बाद वो दोनो लड़के फिर से आगे निकल गए और मैं आराम से बैठ-बैठ कर चलने लगा। इस बीच एक गाइड के साथ दो लड़कियां मिलीं जो बहुत धीमे चल रहीं थी। उनके पास मेरे जैसा भारी-भरकम कोई लैगेज भी नहीं था फिर भी वो मुझसे भी बहुत धीमे चल रहीं थीं। उसमें से एक तो लगभग रोने लगती थी। मैं उस गाइड के धैर्य और प्रोफेशनल व्यवहार की दाद दूंगा कि वो लगातार उनको मोटिवेट करते हुए आगे बढ़ रहा था। उनको देखकर मुझे इस बात की तसल्ली थी कि मैं रो नहीं रहा था।

कुछ और आगे जाने के बाद मेरे पास दो रास्ते थे, एक रास्ता वहां जा रहा था, जिसका पता उन खच्चर वाले भाई साहब ने बताया था और दूसरा एक दूसरी कैंपसाइट की तरफ जा रहा था जो पहले वाले की तुलना में काफी नजदीक था। मुझे जाना तो था पहले वाले रास्ते पर लेकिन शरीर जवाब दो चुकी थी। एक-एक कदम बढ़ाना भारी पड़ रहा था, इसलिए मैनें नजदीक वाली कैंप साइट चुनी। यहां कैलाश रथ नाम की एक नामी ट्रेक ऑर्गनाइजर कंपनी का कैंप था। वो जो दो लड़कियां जो रास्ते में मुझे मिली थी, उनके गाइड ने बताया था कि वो कैलाश रथ से हैं और उनका कैंप ऊपर ही है। उस कैंपसाइट पर पहुंचा तो पता चला कि वो दोनो लड़के जिनके साथ मैने काफी देर तक ट्रेक किया है, वो भी यहीं रुके हैं। नाम के हिसाब से देखें तो इसको भी बालू का घेरा ही कहते हैं। जब नीचे वाले बालू का घेरा कैंपसाइट से चला था तो लगा था कि ज्यादा से ज्यादा 1 घंटे में वो दूरी तय हो जाएगी लेकिन घड़ी देखा तो पता चला कि इतनी छोटी सी दूरी तय करने में लगभग तीन घंटे लगे। शाम के 5 बज रहे थे, सूरज भगवान तेजी से नीचे जा रहे थे। मैनें अपना टेंट लगाया और बाहर बैठ गया।

लोकेशन के हिसाब से ये कैंपसाइट नीचे वाली कैंपसाइट से काफी बेहतर है। पहली बात तो यहां नीचे की तरह कोई भीड़ नहीं थी, दूसरी बात, चूंकि ये थोड़ा ऊपर स्थित है तो यहां से पूरी घाटी दखती है। वो नीचे वाली कैंपसाइट भी दिखती है। थोड़ी दूर पर एक झरना भी है जो काफी ऊचाई से सीधे नीचे गिर रहा होता है। इसके अलावा ये बात भी ठीक थी कि आज जितना ज्यादा कवर हो चुका रहेगा, कल के लिए उतना ही बेहतर होगा। लेकिन मैं अपने अनुभव से एक बात जरूर कहना चाहूंगा कि जरूरी नहीं कि आप ऊपर जाएं, नीचे की कैंपसाइट भी काफी सुंदर है।

इस फोटो को जूम करेंगे तो आपको घाटी के नीचे कुछ लाल, पीले डॉट्स दिखेंगे, वो है असली वाला बालू का घेरा और वो लाल-पीले डॉट्स असल में वहां लगे टेंट्स हैं।

Photo of हम्पता पास सोलो ट्रेक | Hampta Pass solo trek by Akshat Maneesh Sahu

इससे पहले की रात हो जाए, कुछ एक दो फोटो मैं भी खिंचवा लेता हूं।

Photo of हम्पता पास सोलो ट्रेक | Hampta Pass solo trek by Akshat Maneesh Sahu

जैसे ही सूरज पहाड़ के पीछे गया, अंधेरा तेजी से पसरने लगा था लेकिन मौसम बहुत बढ़िया था। आसमान में बादलों का डेरा, चारों तरफ गगन चुंबी पर्वत और हरी-भरी घाटी में एक टेंट लगाकर रहने का यह पहला अनुभव था। एक बात और, वहां पर बादलों की स्पीड गजब थी, कभी चारों तरफ इतने घनी धुंध सी हो जाती की आगे कुछ दिखता ही नहीं और कभी तो पूरी घाटी साफ हो जाती और सामने दिखने वाली इंद्रासन जैसी चोटियों पर बादल मडराते हुए दिखते।

लगभग 1 घंटे बाद मुझे याद आया कि मुझे तो भूख लगी थी, इसलिए मैगी बनाई। आज का डिनर मैगी से ही था। मैने सोचा था कि रात को स्टार ट्रेल शूट करूगा लेकिन मुझे स्टार ट्रेल जैसा कुछ मिला नहीं। ऊपर से ठंड इतनी थी कि टेंट के बाहर एक मिनट रहना भी मुश्किल हो रहा था। कुछ इस तरह पहला दिन समाप्त हुआ, एक नई और सुबह लाने के लिए रात को मैं भी सो गया।

मिलते हैं अगले भाग में....

Further Reads