कहानी भारत के एक अनोखे मंदिर की, जिसका भगवान शिव और रावण से जुड़ा है इतिहास

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भारत मंदिरों का देश है। हमारे देश में ऐसे कई प्राचीन मंदिर हैं, जिनका संबंध या तो किसी दूसरे युग से है या फिर उनका इतिहास हजारों साल पुराना है। आज हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका इतिहास रामायण काल से जुड़ा हुआ है, खासकर रावण से। यह मंदिर कर्नाटक में कन्नड़ जिले के भटकल तहसील में स्थित है, जो तीन ओर से अरब सागर से घिरा हुआ है। समुद्र तट पर स्थित होने के कारण इस मंदिर के आसपास का नजारा बेहद ही खूबसूरत लगता है।

दरअसल, हम बात कर रहे हैं मुरुदेश्वर मंदिर की, जो भगवान शिव को समर्पित है। 'मुरुदेश्वर' भगवान शिव का ही एक नाम है। इस मंदिर की सबसे खास बात ये है कि इसके परिसर में भगवान शिव की एक विशाल मूर्ति स्थापित है, जिसे दुनिया की दूसरी सबसे विशाल और ऊंची शिव प्रतिमा (मूर्ति) माना जाता है।

भगवान शिव के कहेनुसार रावण शिवलिंग को लेकर लंका की ओर जा रहा था, लेकिन बीच रास्ते में ही उसने शिवलिंग को धरती पर रख दिया, जिससे वो वहीं पर स्थापित हो गया। इससे रावण को क्रोध आ गया और उसने शिवलिंग को नष्ट करने का प्रयास किया।

भगवान शिव की इस विशाल मूर्ति की ऊंचाई करीब 123 फीट है। इसे इस तरीके से बनाया गया है कि दिनभर सूर्य की किरणें इसपर पड़ती रहती हैं, जिसकी वजह से मूर्ति हमेशा चमकती रहती है। इसे बनवाने में करीब दो साल का वक्त लगा था और करीब पांच करोड़ रुपये की लागत आई थी। इस खास मंदिर को देखने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी बड़ी संख्या में लोग आते हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, रावण जब अमरता का वरदान पाने के लिए भगवान शिव की तपस्या कर रहा था, तब शिवजी ने उसकी तपस्या से खुश होकर उसे एक शिवलिंग दिया, जिसे 'आत्मलिंग' कहा जाता है और कहा कि अगर तुम अमर होना चाहते हो तो इसे लंका ले जाकर स्थापित कर देना, लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि इसे जिस जगह पर रख दोगे, ये वहीं स्थापित हो जाएगा।

इसी क्रम में जिस वस्त्र से शिवलिंग ढंका हुआ था, वह म्रिदेश्वर के कन्दुका पर्वत पर जा गिरा। म्रिदेश्वर को ही अब मुरुदेश्वर के नाम से जाना जाता है। शिव पुराण में इस कथा का विस्तार से वर्णन मिलता है।

मुरुदेश्वर कैसे पहुंचें

मुरुदेश्वर कर्नाटक राज्य में स्थित है और गोकर्ण से सिर्फ 54 किमी दूर है। यह कर्नाटक और देश के बाकी हिस्सों से सड़क और रेल द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। मुरुदेश्वर कैसे पहुंचे:

हवाईजहाज से

मैंगलोर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा दक्षिण से लगभग 153 किमी दूर है। यह देश के सभी प्रमुख शहरों और विदेशों में कुछ गंतव्यों से जुड़ा हुआ है। मुरुदेश्वर पहुंचने के लिए हवाई अड्डे से टैक्सी उपलब्ध हैं।

ट्रेन से

मुरुदेश्वर रेलवे स्टेशन मैंगलोर और मुंबई से जुड़ा है। मैंगलोर प्रमुख रेलहेड है और यह भारत के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। मुरुदेश्वर रेलवे स्टेशन शहर से 2 किमी पूर्व में है और यहां बसों और ऑटो-रिक्शा द्वारा पहुंचा जा सकता है।

सड़क द्वारा

निजी और राज्य द्वारा संचालित बसें मुरुदेश्वर को मुंबई, कोच्चि और बेंगलुरु से जोड़ती हैं। NH17 पर स्थित है जो मुंबई को कोच्चि से जोड़ता है, नियमित बसें दोनों शहरों के बीच नियमित रूप से चलती हैं और मैंगलोर से गुजरती हैं। बेंगलुरु इस क्षेत्र के कई अन्य महत्वपूर्ण शहरों से जुड़ा हुआ है।

Photo of कहानी भारत के एक अनोखे मंदिर की, जिसका भगवान शिव और रावण से जुड़ा है इतिहास by Trupti Hemant Meher
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