हिमाचल का एक ऐसा गाँव जहां साल के दो महीने जमीन पर सूरज की किरणें ही नहीं गिरती

Tripoto
6th May 2022
Photo of हिमाचल का एक ऐसा गाँव जहां साल के दो महीने जमीन पर सूरज की किरणें ही नहीं गिरती by Sachin walia
Day 1

बहुत से लोगों नें अक्सर हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों और नदियों की खूबसूरती को ही जाना है। यह खूबसूरती हमें हिमाचल में कुछ दिनों तक घुमने के लिए ही अच्छी लगती है और जो लोग कई सालों से हिमाचल में रहते आ रहे है उनके लिए सर्दियों में रहना कितना मुश्किल भरा रहता होगा। हम खास तौर पर जनवरी और फरवरी महीने की बात कर रहे हैं। जब हर तरफ आपको बर्फ ही बर्फ दिखेगी और ना कोई सरकारी तंत्र नजर आएगा। उस भक्त आपकी खुद की जिम्मेदारी होती है कि यहाँ चुनौतीपूर्ण ढंग से रहना कैसे है। यह सर्दियों के दो महीने यहाँ के लोगों पर पानी की दिक्कत बिजली आपूर्ति की दिक्कत और तो और खाने की दिक्कतों भरा पहाड़ टूटता है।

यांगला गाँव

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हिमाचल प्रदेश के लाहौल की चंद्राघाटी में एक गांव ऐसा भी है, जहां दो महीने तक सूर्य देवता के दर्शन ही नहीं होते। चंद्रा नदी के वामतट पर यांगला गांव में वैसे तो लगभग 45 परिवार हैं, लेकिन दो महीने तक धूप नसीब न होने से गांव के 75 फीसदी लोग कुल्लू-मनाली में रहने चले जाते हैं। गांव में रात का तापमान -20 डिग्री तक पहुंच जाता है।

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ज्यादा बर्फ गिरने की वजह से गांव के पानी के पाइप जम जाते हैं। जो लोग गांव में रह जाते हैं उन्हें जान जोखिम में डालकर चंद्रा नदी से पीठ पर उठाकर पानी ढोना पड़ता है। मवेशियों के लिए बर्फ पिघलाकर पानी का इंतजाम किया जाता है। जो बहुत ही पीड़ा दायक दृश्य होता होगा। कपड़े सुखाने के लिए आग का सहारा लिया जाता है। गोंधला के पूर्व प्रधान प्रेमलाल ने बताया कि नवंबर से फरवरी तक यांगला में सूरज की किरणें नहीं पहुंचतीं।

गोंधला गाँव

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इन दो महीनों में अत्यधिक ठंड और ग्रामीणों को धूप नसीब नहीं होने की सूरत में इस गांव में केवल दर्जन भर परिवार सर्दियों में रहते हैं। उन्होंने बताया कि यांगला नाले के ग्लेशियर के नीचे से पाइप बिछाकर विभाग ने पेयजल आपूर्ति की है। यदि सर्दियों में पाइप जम जाए तो चंद्रा नदी से पानी ले कर आना पड़ता है जो कि बहुत ही मुश्किलों भरा होता है। दिसंबर के अंत से फरवरी तक धूप नसीब नहीं होने से ग्रामीणों को कड़ाके की ठंड झेलनी पड़ती है।

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चंद्रभागा नदी के वाम तट पर स्थित यांगला सहित प्यूकर, ग्वाजंग, गौशाल, मूलिंग, शिप्टिंग और बरगुल के ग्रामीणों को भी धूप नसीब नहीं होती। इसके चलते साल के दो महीने लोग घरों में दुबके रहने के लिए मजबूर होते हैं।

उन दो महीनों को देख कर ऐसा लगता है, मानो कि कुदरत ने दो महीने सारे दुख यहाँ पर रहने वालों और सुख यहाँ घुमने निकले हुए लोगों को दे दिए हों।

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