हेरिटेज टूरिज़्म के लिए घोषित ये जगहें झारखंड को देती है खास पहचान

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Photo of हेरिटेज टूरिज़्म के लिए घोषित ये जगहें झारखंड को देती है खास पहचान by Nikhil Vidyarthi

प्रकृति की सुंदरता और शानदार अतीत का अनुभव। पूर्वी भारत का झारखंड राज्य अपनी समृद्ध विरासत और प्राचीन आदिवासी संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। झारखंड का गौरवशाली इतिहास और सांस्कृतिक विविधता हर साल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। राज्य की समृद्ध विरासत राज्य में पाए जाने वाले विभिन्न मंदिरों, स्मारकों और किलों में नजर आता है। इस आर्टिकल में हेरिटेज टूरिज़्म के लिए घोषित झारखंड के विभिन्न जगहों के बारे में बताया जा रहा है।

धरोहर पर्यटन के लिए घोषित झारखंड के वे जगह जो राज्य को देती है खास पहचान

1. शैलेट्/ शैले हाउस, लातेहार

2. हजारीबाग के मेगालिथ

3. गुमला स्थित टांगीनाथ धाम

4. नवरतनगढ़ किला

5. पलामू किला

शैलेट्/ शैले हाउस, लातेहार (Chalet House)

दूरी: रांची से 164 किलोमीटर

लातेहार झारखंड का एक जिला है। जिसमें स्थित है एक हिल स्टेशन 'नेतरहाट' जो प्राकृतिक खूबसूरती से लबालब है। इसे 'छोटा नागपुर पठार की रानी' नाम से भी जाना जाता है। नेतरहाट में ही स्थित है शैलेट हाउस। यह लकड़ी से बनी एक ऐतिहासिक इमारत है। इसकी स्थापना बीसवीं सदी की शुरुआत में बिहार और उड़ीसा के तत्कालीन लेफ़्टिनेट गवर्नर सर एडवर्ड गेट, एल.जी. के शासनकाल में हुई थी। इसका उपयोग मूल रूप से ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा प्रमुख स्थानीय ग्राम प्रमुखों से मिलने के लिए ग्रीष्मकालीन पलायन के रूप में किया जाता था। इसका निर्माण देख कर किसी आधुनिक घर जैसा लगता है। इस लकड़ी के घर के चारों ओर एक पार्क है। शैले हाउस में ब्रिटिश काल की कई संरक्षित कलाकृतियाँ देखी जा सकती हैं।

हजारीबाग के मेगालिथ (Megaliths in Hazaribagh)

दूरी: रांची से 98 कि.मी.

फोटो स्रोत: झारखंड पर्यटन वेबसाइट

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हजारीबाग स्थित मैगालिथ (बड़े पर्वत) प्राचीनतम जीवित मानव निर्मित स्मारक हैं। जिसका नामकरण लैटिन भाषा के दो शब्दों मेगा और लिथ से हुआ है। इसके निर्माण के बारे में दो बातों की संभावना है, पहला कि यहाँ मृत्यु के बाद दफनाया जाता रहा हो या दूसरा कि स्मारक के रूप में इसका निर्माण हुआ होगा। भारत में पुरातत्ववेत्ता मानते हैं कि यहाँ के अधिकांश मेगालिथ लौह युग (1500 से 500 ईसा पूर्व) के हैं। हालांकि इनमें से कुछ को लौह युग से पहले (3000 ईसा पूर्व) का भी माना जाता है। सूर्य की गतिविधियों का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक इन मेगालिथ से प्रागैतिहासिक काल की वेधशालाओं के रूप में भी पुष्टि करते हैं।

प्रमुख मेगालिथ समूह

हजारीबाग का पंकरी बरवाडीह मेगालिथ स्थल झारखंड का प्रसिद्ध मेगालिथ समूह है। यह मेगालिथ 3000 ईसा पूर्व के हैं। इन विशाल पत्थरों का उपयोग खगोलीय उद्देश्यों के लिए किया जाता है। मेगालिथ को इस तरह से व्यवस्थित किया गया है कि दो सबसे प्रतिष्ठित मेगालिथ एक विषुव बिंदु के निर्माण के लिए संरेखण बनाते हैं।

गुमला स्थित टांगीनाथ धाम (Tanginath of Gumla)

दूरी: रांची से 168 कि.मी.

टांगीनाथ धाम गुमला जिला में लगभग 300 फीट ऊँची पहाड़ी चोटी पर स्थित है। जो लगभग 10,000 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। जो प्राचीन युग से लेकर मध्यकालीन युग तक के कई वास्तुशिल्प कार्यों को अपने आगोश में समेटे हुए है। यहाँ कई हिंदू देवता जैसे- विष्णु, सूर्य और माता लक्ष्मी आदि की मूर्तियाँ स्थापित हैं। इसके अलावा यहाँ भगवान शिव के सैकड़ों की संख्या में शिवलिंग भी है। इसे भगवान परशुराम का साधना स्थली भी माना जाता है।

इस धाम परिसर में ही एक फरसा गाड़ा हुआ दिखता है। यह फरसा भगवान परशुराम का है, परशुराम तप करते समय फरसे को यहाँ जमीन में गाड़ कर रखते थे। यहाँ सुदूर वन में स्थित है और महाशिवरात्रि के अवसर पर खूब भीड़ उमड़ पड़ती है। टांगीनाथ धाम गुमला जिला मुख्यालय से 50 किमी और डुमरी (प्रखंड) से 8 किमी दूर है। इस जगह का धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों रूप से महत्व है।

नवरतनगढ़ किला (Navratangarh Fort, Gumla)

दूरी: राजधानी रांची से 74 कि.मी.

नवरतनगढ़ किला झारखंड के गुमला जिले में सिसई प्रखंड में है। नवरतनगढ़ किले का निर्माण 17वीं शताब्दी में 1636 से 1639 के बीच राजा दुर्जन साल द्वारा किया गया था। यह महल एक पाँच मंजिला संरचना थी। जिसमें एक जल-द्वार और गढ़-खाई की व्यवस्था थी। इसमें एक अदालत, एक खजाना घर और भूमिगत कालकोठरी के साथ एक जेल कक्ष है।

नवरतनगढ़, नागवंशी राजवंश की राजधानियों में से एक थी। वर्ष 2009 में नवरत्नगढ़ को संरक्षण के लिए एक विरासत स्थल के रूप में नामित किया गया।

पलामू किला (Palamu fort)

दूरी: रांची से 170 कि.मी.

पलामू किले में दो किले हैं - पुराना किला और नया किला। इन किलों का निर्माण चेरो शासक मेदिनी रॉय और प्रताप रॉय द्वारा किया गया था। चूँकि इनका निर्माण भारत में मुगलों के शासन की शुरुआत के समय किया गया है, इसलिए इनका वास्तुकला इस्लामी है।

ये दो बड़े किले पलामू जिले के डाल्टनगंज के पास शेरशाह सूरी पथ पर औरंगाबाद के जंगलों में स्थित हैं। मूल किला मैदानी इलाके में और दूसरा पास के ही पहाड़ी पर स्थित है। यह किला चेरो राजवंश के राजाओं का माना जाता है। मैदानी इलाके में स्थित किले की तीन तरफ सुरक्षा थी और तीन मुख्य द्वार थे। नये किले का निर्माण राजा मेदिनी राय ने करवाया था। वास्तुकला इस्लामी शैली में है, जो दाउद खान की विजय को दर्शाती है।

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