सिखों के सबसे पवित्र तीर्थ हेमकुंड साहिब के कपाट 20 मई को खुलेंगे। इस साल हेमकुंड की यात्रा कराने वाले प्रशासन ने फैसला किया है कि बच्चे और बुजुर्ग इस यात्रा में नहीं जाएंगे,जिसका कारण वहां पर हुआ भरी हिमपात है।आपको बता दें कि हेमकुंड साहिब 4,632 मीटर की ऊंचाई पर एक बर्फीली झील के किनारे सात पहाड़ों के बीच में स्थित है। इस बार यहां पिछले सालों के मुकाबले बहुत भारी बर्फबारी हुई है।जिससे की वहां आठ फीट तक बर्फ जमी हुई है। ऐसे में जिला प्रशासन ने निर्णय लिया है कि बच्चों और बुजुर्गों के साथ ही बीमार लोगों को इस यात्रा से दूर रखा जाएगा।
प्रशासन द्वारा यात्रा के लिए ये है इंतजाम
जिला प्रशासन ने बताया कि यात्रा के लिए बुनियादी सुविधाएं और ढांचा तैयार किया जा चुका है।बिजली, साफ पानी, शौचालय, कचरा प्रबंधन को लेकर प्रशासन बेहद सजग है।तीर्थ यात्रियों के लिए हेल्थ कैंप भी जगह-जगह तैयार किए गए हैं। सड़कों के किनारे सेल्टर बनकर तैयार हैं।एक अधिकारी ने बताया कि उन्होंने जल संस्थान को घांघरिया में वाटर एटीएम शुरू करने और भुंदर में मेडिकल रिलीफ पोस्ट और ऑप्शन शेड के पास वाटर एटीएम जारी करने का भी निर्देश दिया।
कब से लेकर कब तक चलती है यात्रा
मई से लेकर अक्टूबर तक हेमकुंड की यात्रा चलती है. यह बेहद कठिन रास्ते से होकर जाने के बाद मिलता है।हेमकुंड साहिब की तीर्थयात्रा एक चुनौतीपूर्ण यात्रा है क्योंकि इसमें कुछ कठिन ट्रेकिंग की आवश्यकता होती है।मुख्य गुरुद्वारा स्थल तक पहुँचने के लिए आगंतुकों को लगभग 13 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है।यह सभी धर्मों के लोगों के लिए खुला रहता है और कोई भी साइट पर जा सकता है।
हेमकुंड साहिब उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। हेमकुंड साहिब का गुरुद्वारा सिखों के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है और यह एक ऐसा गुरुद्वारा जो सबसे ऊंचाई पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि हेमकुंड साहिब वह स्थान है जहां गुरु गोबिंद सिंह ने ध्यान में वर्षों बिताए थे।इस जगह के बारे में गुरू गोविंद साहिब के दसवें ग्रंथ में मिलता है।हेमकुंड संस्कृत नाम है जो हेम यानी बर्फ और कुंड कटोरा से मिलकर बना है।यह बेहद दुर्गम तीर्थ है, यहां पर ऋषिकेश-बद्रीनाथ पर पड़ने वाले गोविंदघाट से केवल पैदल चढ़ाई कर ही पहुंचा जा सकता है।
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