' राजस्थान '- नाम सुनते ही आप सोचेंगे रेगिस्तान ,कम पानी ,ऊंट ,जैसलमेर आदि आदि। वैसे इनके अलावा यहाँ पर्वत ,नदिया ,झील ,झरने,हरियाली सब कुछ भी मिलेगा।पर कुछ और चीजे भी यहां पर है जो सामान्यतः आपके दिमाग मे अचानक से नहीं आएगी ,ये है -कुछ रहस्य्मयी जगह ,कुछ चमत्कारी जगह ,डरावने किले व दुर्ग इत्यादि।
राजस्थान मे डरावनी जगह का नाम सुनते ही आपके दिमाग मे आएगा -अलवर का भानगढ़ किला और या फिर जैसलमेर का कुलधरा गांव।आज हम बात करेंगे जैसलमेर के दो शापित गाँव 'कुलधरा'और 'खाभा' की ,जो कि अपने रहस्यों एवं डरावनी कहानियों की वजह से पर्यटकों को दूर दूर से यहाँ खिंच ले आते हैं।
रास्तो मे ड्राइविंग के दौरान क्या ध्यान रखे :जैसलमेर से 'सम सैंड ड्यून्स ' की ओर जाने वाले रास्ते के बीच ही एक रास्ता बायीं और मुड़ता हैं जहाँ एक छोटी सी दिशापट्टिका इस गांव के रास्ते की दिशा इंगित करती हुई दिख जाती हैं।अब यह रास्ता अधिकतर सूना ही मिलता हैं। डरावनी जगह के नाम से यहाँ काफी यात्री तो आते ही नहीं हैं। दूर दूर तक फैली सर्पिलाकार सड़क एकदम साफ़ दिखाई देने लग जाती हैं।अधिकतर जगह सड़क के तरफ सिर्फ रेत या झाडिया ही मिलती हैं। पुरे रास्ते कई सारी विशाल पवनचक्किया और रेतीले टीले ही आप देख सकते हैं कोई गाँव नहीं।क्योकि रेगिस्तानी इलाको मे दूर दूर तक कोई गाँव या आबादी क्षेत्र नहीं होते हैं।
खैर ,मारवाड़ के बाड़मेर ,जैसलमेर जैसे रेगिस्तानी इलाके मे लगभग सभी रोड पर ऐसा ही माहौल दिखता हैं। सड़क साड़ी पूर्णतया निर्जन होती हैं। आपकी गाडी ख़राब हो गयी ,या आपको चाय कॉफ़ी ,पानी पीना हो या रास्ता पूछने के लिए कोई मदद चाहिए तो कई किलोमीटर तक कोई इंसान या दुकान नहीं मिलती। इसीलिए इन इलाको मे रोड ट्रिप के दौरान आपके पास खाने -पीने के लिए पर्याप्त पानी ,कोल्ड ड्रिंक ,नमकीन -बिस्किट तो होने ही चाहिए ,साथ ही साथ गाडी मे खराबी के केस मे कुछ मैकेनिकल स्किल्स भी यहा होना जरुरी हैं। और अगर परिवार के साथ हो तो गाडी मे AC सही होना भी उतना ही जरुरी हैं।
हां ,रास्ते मे एक छोटा सा गांव जरूर आता हैं। जिसके गोल्डन बलुआ पत्थरो के मकान आपको ये याद दिलाते रहेंगे कि आप 'स्वर्ण नगरी जैसलमेर' के ही गावों मे घूम रहे हैं।सही सीजन मे यहाँ चने की खेती की जाती हैं।अगर आप इस रास्ते पर जायेंगे तो रास्ते मे ही बायीं ओर एक खूबसूरत सा पानी का छोटा तालाब आपको जरूर आकर्षित करेगा। जिसके पास जाकर आपको कुछ देर रुकने का मन जरूर करेगा। और हाँ ,कुलधरा तक का पूरा रास्ता एक रोलर कोस्टर की तरह लगेगा ,हर 200 - 300 मीटर बाद रोड ऊपर जाएगी ,फिर नीचे आएगी ,तो ड्राइविंग करने का मजा भी इस रोड पर कुछ अलग ही मिलेगा।
कुलधरा से अभी करीब 15 किमी दूरी रहेगी कि एक अंधे घुमावदार मोड़ से सीधे आपके सामने एक महल सा नजारा देखने को मिलेगा। घूमती हुई सड़क किनारे बोर्ड पर लिखा हुआ मिलेगा - 'खाभा किला।'
खाभा किला :
खाभा किला 'खाभा गांव' का एक एक हॉन्टेड किला माना जाता हैं। इसकी बाहरी से आपको पता लग जायेगा कि इसको कुछ ही सालों पहले ही मरम्मत करवा कर सुधारा गया हैं।रेगिस्तान की वीरानियों के बीच अकेला सीना तान कर खड़े इस किले के बाहर बड़ी सी पार्किंग मे गाडी खड़ी कर टिकट आपको लेना होता हैं जो कि 20 रुपये प्रति व्यक्ति मिलता हैं। मुख्य द्वार के पास ही राजस्थानी वेशभूषा मे कोई कलाकार 'रावणहत्था (एक प्राचीन वाद्ययंत्र)' बजा कर पर्यटकों का स्वागत करता रहता हैं । सामान्यत: यहाँ का वातावरण एक दम सुनसान ही मिलता हैं।किसी कमजोर दिल वाले इंसान को अगर यहाँ का इतिहास बता कर अकेला छोड़ दे तो सोचो उसका क्या हाल होगा।
किले मे अंदर प्रवेश करते ही एक बड़े प्रांगण मे आप खुद को पाओगे। जिसके बीचो बीच पानी का एक बंद कुंड और चारो तरफ कुछ खंडहर सलिखे कमरे दिखेंगे। इन कमरों मे यहाँ के इतिहास और भौगोलिक जानकारिया देने के लिए कुछ तस्वीरें लगायी हुई हैं। इनके ऊपर एक मंजिला ईमारत और बनी हुई हैं हालाँकि ऊपर भी सुने खंडहर ही मिलते हैं। किले के चारो और बुर्ज बने हुए हैं कि जो शायद सुरक्षा कि दृष्टि से उस समय बनाये होंगे। ऊपर से किले के पीछे दिखाई देता है -एक त्यागा हुआ गांव ,'खाभा गाँव'। गांव से मेरा मतलब कई सारे टूटे फूटे प्राचीन मकानों की कई उजड़ी कॉलोनियों से हैं। ये मकान संख्या मे करीब 100-150 से ज्यादा हैं।इन्ही मकानो के बीच एक मंदिर भी आपको इस किले के शिखर से दिखाई देता हैं। यह गाँव पुरे तरिके से निर्जनता और अजीब सा सूनापन लिए अपने इतिहास को दर्शाता हैं।
खाभा गाँव का रहस्य :यहाँ के बारे मे बताया जाता है कि यह गांव पालीवाल ब्राह्मण समाज के लोगो का था ,जो कि करीब 200 साल पहले इस गांव को अचानक रातोरात छोड़ कर चले गए। तब से यह इलाका निर्जन होने की वजह से इसको भूतिया क्षेत्र समझा जाने लगा। यह गांव उस समय आस पास के सभी क्षेत्रों मे सबसे समृद्ध और व्यापारिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण रहा। गांव के लोगो के रातोरात अपने घरो को छोड़ कर जाने की कहानी कुलधरा की कहानी से जुडी है।
खाभा किले को घूमने मे केवल आधा घंटा पर्याप्त हैं। यहाँ से 15 किमी आगे ही अब अचानक आप पहुंचेंगे एक बड़े से गोल्डन दरवाजे के पास जिसके पास बड़े बड़े अक्षरों मे लिखा मिलेगा - 'कुलधरा-An archaeological site'.
कुलधरा-An archaeological site :
यहाँ इस गाँव मे प्रवेश की मुख्य ईमारत एक विशाल शाही तरीके का प्रवेश द्वार बना हुआ हैं जहाँ पर टिकट काउंटर भी लगा हुआ हैं। गाडी के लिए 50rs एवं प्रति व्यक्ति 20/- ये छोटा सा खर्चा अंदर जाने के लिए करना होता हैं। हां ,इसी प्रवेश के बाहर दायी ओर एक टीले के पीछे एक छोटी सा तालाब भी मौजूद हैं ,जिसके किनारे कुछ खूबसूरत छतरियां बनी हुई हैं।आप टिकट खरीदते समय खुद को इस तालाब के पास जाने से नहीं रोक पाएंगे। अंदर कुछ 500 मीटर ड्राइव करने के बाद आपको गाडी पार्किंग मे खड़ी करनी होती हैं।
गांव मे शुरू की कुछ इमारतों को पुरातत्व विभाग ने मरम्मत कर टूरिस्ट के लिए खोल दिया हैं। जिससे लोग ये देख सके कि उस समय किस प्रकार के निवास स्थान यहाँ बनते थे।आप पाएंगे कि हर मकान मे कई कमरे बने होते थे और लगभग सभी मकानों की बनावट एक सी होती थी। जैसलमेर महोत्सव के समय यहाँ काफी सारे कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं पर उन्हें भी सूर्यास्त से पहले खत्म कर यह इलाका अँधेरा होने से पहले ही खाली करवा दिया जाता हैं।
खाभा गांव की तरह यहाँ भी कई सेकड़ो घर टूटी फूटी अवस्था मे मौजूद हैं।यहाँ घूमने पर लगेगा जैसे की आप किसी कॉलोनी की गली मे घूम रहे हैं बस केवल फर्क यह कि ये मकान नहीं खंडहर की कॉलोनी लगेगी। कुछ गलियां घूम कर एक खंडहर मकान की छत पर से आप इस उजड़े गांव को देख सकते हैं। यहाँ पास मे ही एक शिव मंदिर भी यहाँ मौजूद हैं।
कुलधरा का इतिहास :यहा के बारे मे बताया जाता हैं कि करीब 200 साल पहले जैसलमेर दीवान 'सालम सिंह ' को कुलधरा गांव के मुखिया की बेटी पसंद आ गयी और उसने उसको जबरदस्ती पाने के लिए गांव के लोगो को काफी प्रताड़ित किया ,कई कर लगाए और अनेक अत्याचार किये। कुलधरा समेत पास के 84 गांव पालीवाल ब्राह्मणो का था। उन्हें सलाम सिंह जैसे इंसान को अपने गांव की बेटी से शादी करवाना अपनी आनबान के विरुद्ध लगा।तब एक दिन अत्याचार से परेशां होकर एक रात ये सारे 84 गांव के लोग रातो रात अपने घरो को ऐसे ही छोड़ कर चले गए। जाते जाते इन्ह ब्राह्मणो ने इस गांव को श्राप दिया कि यह हमेशा निर्जन रहेगा। तबसे आज तक खाभा और कुलधरा गांव आज तक निर्जन हैं। बचे हुए गांव तो कुछ सालों बाद फिर विकसित हो गए थे। घरो मे जमीन के निचे धन मिल सकता है यह सोच कर कई लोग यहाँ आकर खुदाई करने लगे। परन्तु अब यह जगह पुरातत्व विभाग के कण्ट्रोल मे हैं। यहाँ बताया गया कि कई लोगो ने यहाँ अजीब सी ताकते महसूस करते हैं ,अँधेरा होने पर सूनेपन मे विलाप ,चीत्कार इन सुनी गलियों और मकानों से महसूस की हैं इसीलिए सूर्यास्त के बाद अब यहाँ प्रवेश बंद हैं।
कैसे पहुंचे :जैसलमेर शहर से यह जगह 30 किमी दूर स्थित हैं जहाँ आने जाने के लिए कोई पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं मिलते हैं। आपको कैब या बाइक रेंट पर यहाँ आना होता हैं।
अगर आपको प्राचीन किले ,इमारते देखने का शौक हैं या कुछ हॉन्टेड प्लेस आपकी बकेट लिस्ट मे है तो आप यहाँ आकर आप पछतायेंगे बिलकुल नहीं।
-ऋषभ भरावा (लेखक ,पुस्तक -"चलो चले कैलाश ")
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