हम किसी जगह पर घूमने क्यों जाते हैं? उस जगह की खूबसूरती को देखकर, कुछ फेमस चीज की वजह से या फिर हमें वो शहर देखना होता है। आजकल शहर को देखने कम ही लोग जाते हैं। लोग जाते हैं तो उस शहर की फेमस जगहों को देखने। हमारा पुष्कर का सफर पूरा हो चुका था और हम अजमेर आ चुके थे। अजमेर को मैंने अजमेर शरीफ की दरगाह और अढाई दिन के झोपड़े से ही जाना था। ये सब मैंने किताबों में पढ़ा था और जब मैं उस शहर में था तो मन किया कि किताबों में पढी इमारतों को हकीकत में देख लेते हैं। अफसोस इस शहर में होने के बावजूद हम इन दोनों को ही नहीं देख पाने वाले थे। शायद यही तो है घुमक्कड़ी। जैसा हम प्लान करते हैं, कई बार वैसा नहीं होता है। अजमेर की यात्रा हमारे लिए वैसा प्लान था।
हम लोग अजमेर बस स्टैंड पर खड़े थे। यहां से हममें से एक का सफर पूरा हो चुका था और अपनी नौकरी वाली जिदंगी में लौटने जा रही थी। कुछ देर बाद बस से वो कहीं दूर निकल गई। हम सब अजमेर घूमने वाले थे ये तो तय हो गया था लेकिन अजमेर के बाद कहां जाना है? ये अभी तक हम तय नहीं कर पाए थे। कुछ लोग कुंभलगढ़ जाना चाहते थे और कुछ जैसलमेर। मैं कुंभलगढ़ जाने के पक्ष में था लेकिन आखिरी में सबकी राय एक हुई और जगह पक्की हुई, जैसलमेर।
अब हम अजमेर देखने के लिए तैयार थे। हम पहले अजमेर शरीफ, अढ़ाई दिन का झोपड़ा या तारागढ़ फोर्ट जा सकते थे। तारागढ़ फोर्ट दूर था तो हमने सबसे पहले वहीं जाने का तय किया। तारागढ़ फोर्ट कोई बस तो नहीं जाती लेकिन जीप जाती है। तारागढ़ फोर्ट के लिए शेयरिंग जीप डिग्गी बाजार से मिलती है, हमें ये यहां के स्थानीय लोगों ने बताया। हमने डिग्गी बाजार के लिए टैक्सी ली। शहर को देखते हुए हम आगे बढ़ते जा रहे थे। अजमेर, राजस्थान के बाकी शहरों की तरह नहीं है। मुझे ये शहर, यहां के लोग उत्तर प्रदेश और हरियाणा की दिखाई दे रहा था। बीच में एक जगह फ्लाई ओवर का काम चल रहा था। जिससे रास्ते में जाम जैसी स्थिति हो गई थी। कुछ मिनटों की मशक्कत और ऑटो चालक की चालाकी ने हमें जाम से निकालकर डिग्गी बाजार पहुंचा दिया।
डिग्गी बाजार से तारागढ़ फोर्ट की दूरी लगभग 12 किमी. है। यहां कई जीपें लगी हुईं थी जो शेयरिंग में जा रहीं थीं। हमको तारागढ़ जाना था लेकिन उससे पहले हमें कुछ खाने की जरूरत थी। हमने सुबह से कुछ नहीं खाया था और भूख भी बहुत तेज लगी थी। वहीं पास में कुछ ठेले लगे थे, गर्म-गर्म पूड़ी निकल रही थीं। घूमते समय हम खाना खोजते तो हैं लेकिन उसके लिए बड़े-बड़े होटल और रेस्टोरेंट नहीं जाना पड़ता। ऐसे ही किसी गली-कूचे पर मिलने वाले पकवान ही हमारी भूख मिटाते हैं। गर्म-गर्म पूड़ी बन रहीं थी, हमने सबसे पहले उसे ही मंगवाया। थाली में गर्म-गर्म पूड़ी, साथ में आलू की सब्जी, चटनी और सलाद। गर्म-गर्म पूड़ी-सब्जी और वो भी पेड़ के नीचे। पूड़ी-सब्जी और दाल पकवान के बाद हम जाने के लिए तैयार थे।
तारागढ़ फोर्ट
हमारे जीप में बैठते ही जीप चलने को तैयार थी। कुछ ही देर बाद हम अजमेर से निकलकर तारागढ़ के रास्ते पर थे। तारागढ़ फोर्ट अजमेर से काफी ऊंचाई पर स्थित है। रास्ता कुछ वैसा ही जैसे देहरादून से मसूरी तक का है। गाड़ी बार-बार चक्कर लगाए जा रही थी। लगभग 1 घंटे में हमें गाड़ी ने उतार दिया। जहां हम उतरे वहां कोई किला तो नजर नहीं आ रहा था। हमें सामने एक बोर्ड नजर आया। जिस पर लिखा था, ‘दरगाह हजरत मीसां आपका स्वागत करती है’। हम उसी दरगाह की ओर चल दिए। हम गलियों से होकर आगे बढ़ रहे थे। पहले हमें बहुत सारी दुकानें मिलीं, जहां फूल और चादर मिल रही थी। हमें कुछ नहीं लेना था इसलिए आगे बढ़ गए।
एक जगह हमने अपना सामान और जूते रखे। कुछ देर बाद हम उस दरगाह के अंदर थे। जैसे मंदिर में होता है यहां भी आपको कुछ लोग पकड़ने आएंगे, पैसे ऐंठना चाहेंगे। धर्म कोई भी हो लोग एक जैसे ही होते हैं। मंदिर में भी वही होता है और मस्जिद में भी। बहुत सारे लोग चादर चढ़़ाने जा रहे थे तो कुछ लोग वहीं बैठे थे। हममें से कुछ लोग वहीं बैठ गए और कुछ अंदर चले गए। हमें ले जाने के लिए एक शख्स आया तो हमने मना कर दिया। ये वैसा ही कुछ था जो कोलकाता के कालीघाट मंदिर में हुआ था। अंदर पहुंचा तो मजार थी जिसके आसपास कुछ लोग बैठे थे। मजार वाकई खूबसूरत थी, लग रहा था कि हीरे-जवाहरात से बना कुछ देख रहा हूं। इस खूबसूरत मजार को देखकर जल्दी ही मैं बाहर आ गया।
चलें, बहुत दूर
कुछ देर तक इस दरगाह में घूमने के बाद हम बाहर निकल आए। अब वापस जाना था लेकिन जिस रास्ते से आए थे, उससे नहीं जाना चाहते थे। हमें पैदल रास्ता मिल गया जो दरगाह के पीछे से थे। हम उसी तरफ बढ़े तो कुछ देर बाद हमें वो रास्ता मिल गया। हम अब नीचे की ओर उतरना था। रास्ते में कई दुकानें भी मिल रहीं थीं। उन्हीं में से एक से एक टेप रिकाॅर्डर में अजीब और वाहियात चीज बताई जा रही थी। जिसमें कहा जा रहा था कि अगर आपकी औलाद नहीं हो रही है तो यहां आएं। इस वाहियाद चीज को सुनते हुए हम आगे बढ़ गए। हमारे कुछ साथी फोटो खीेचने के चक्कर में काफी पीछे हो गए थे। हम उनके इंतजार के लिए एक जगह बैठ गए। हम जहां बैठे थे वहां से एक और रास्ता दिखाई दे रहा था।
ये रास्ता वहीं जा रहा था जहां ये सीढ़ियों वाला रास्ता पहुंच रहा था। इस रास्ते में पत्थर थे, जंगल था और पगडंडियां। मैं इस रास्ते की ओर बढ़ गया। कभी-कभी रास्ता छोड़कर पगडंडियों पर चलना चाहिए। पगडंडियां नये अनुभव देती हैं और गुंजाइश रहती है कुछ नया मिलने की। कुछ देर कंटीले और छोटे रास्ते पर चलने के बाद हम एक पहाड़ी पर पहुंच गए। यहां से बेहद खूबसूरत नजारा दिखाई दिया। आगे का रास्ता और कठिन था, अब हमें सीढ़ीनुमा पत्थरों से नीचे उतरना था। ये रास्ता कठिन था और मैं नहीं चाहता था कि बिना वजह किसी को कोई चोट आए। मगर मेरे सभी साथी इसी रास्ते से जाना चाहते थे। आखिरकार हमने उसी कठिन रास्ते से जाने का तय किया। हम आराम-आराम से धीरे बढ़ते गए। जब तक सभी साथी एक जगह नहीं पहुंचते थे, हम आगे नहीं बढ़ते थे। धीरे-धीरे संभल-संभलकर हम आखिरकार नीचे पहुंच गए।
फिर से चढ़ाई
सभी लोग थक चुके थे। थोड़ी देर आराम किया और वहीं लगी दुकान पर नींबू-पानी पिया। वैसे तो अब हमें नीचे उतरना था लेकिन सबने दूसरी तरफ वाली पहाड़ी पर जाने का प्लान किया। हम एक घूमने वाले अच्छे-से शहर में ट्रेकिंग करने जा रहे थे। हमने सोचा भी नहीं था कि हम अजमेर में पहाड़ चढेंगे लेकिन अब चढ़ रहे थे। कुछ देर बाद हम थक कर एक जगह बैठे हुए थे। कभी-कभी लगता है शहर देखना आसान है और पहाड़ चढ़ना कठिन। मगर बाद में जब उस जगह पर पहुंचता हूं तो थकावट सुकून में बदल जाती है। ऐसे ही कई सफर ने मुझे सुकून दिया है। अजमेर की चढ़ाई वो ट्रेकिंग वाली चढ़ाई नहीं है। मगर हम जहां जा रहे थे, वहां न तो कोई रास्ता था और न ही कोई जाता है। इसलिए हमें थोड़ी परेशानी हो रही थी। ऐसे ही रास्ता बनाते हुए कुछ देर में हम अजमेर के सबसे ऊंची जगह पर थे।
खूबसूरत अजमेर
कुछ देर सब एक जगह बैठकर शहर को तांकते रहे। सबसे उंची जगह से शहर बहुत खूबसूरत लगता है। यहां से बड़ी-बड़ी इमारतें भी बौनी नजर आती हैं, सब कुछ छोटा नजर आता है। यहां से न तो उस शहर का शोर सुनाई देता है और न ही भीड़ नजर आती है। इन बड़े शहरों को दूर से देखना ही अच्छा लगता है। पास जाते हैं तो ये बड़े शहर अपना असली रूप दिखा देते हैं। यहां से हमें पूरा अजमेर, तारागढ़ फोर्ट, जंगल और पहाड़ नजर आ रहे थे। हमें वो झील भी दिखाई दे रही थी, जहां हमें जाना था। हम घंटों यहां बैठते रहे। कुछ देर हम साथ बैठे तो कुछ देर अकेले। मैं कभी शहर को देख रहा था तो कभी खुद के बारे में सोच रहा था।
काफी देर तक एक जगह पर बैठे-बैठै वक्त का पता ही नहीं चला। शाम होने को थी और हम अब भी मान रहे थे कि हमें अजमेर शरीफ जाना है। अब हमारे पास दो रास्ते थे। एक तो जिससे आए थे और दूसरा, बढ़ते हैं कहीं तो पहुंचेगे। हम बढ़ गए उस ओर जहां से हम नहीं आए थे। हम चलते जा रहे थे और दूर-दूर तक कोई नहीं दिखाई दे रहा था। रास्ते में चरती हुई बकरियां मिलीं और आगे बढ़े तो चरवाहे। उनके पास कुछ देर बैठे और बात की। उन्होंने बताया कि वे यहीं पास के एक गांव के हैं। उन्होंने ही हमें नीचे जाने का रास्ता बताया। उनके कहे रास्ते पर हम नीचे उतरने लगे।
चढ़ना कठिन या उतरना
चलते-चलते कुछ देर बाद हम जंगल में आ गए। हमें रास्ता तो मिल नहीं रहा था लेकिन कांटे जरूर बहुत मिल रहे थे। हम उनको ही पार करते हुए बढ़ रहे थे। एक जगह हमें रास्ता नहीं मिला तो सूखी नहर में उतर गए। सोचा ये तो हमें नीचे पहुंचाएगी। हमें चलते जा रहे थे लेकिन नीचे नहीं पहुंच पा रहे थे। ऐसे ही उतरते-उतरते हमने सूरज को डूबते हुए देखा। सूरज डूबा था लेकिन हम अभी भी चले जा रहे थे। कुछ देर बाद हम एक मजार के पास बैठे थे। हम नीचे आ चुके थे लेकिन चलना अभी खत्म नहीं होने वाला था। ऑटो के लिए हम अजमेर की गलियों में चलते जा रहे थे। गलियों में भीड़ तो बहुत मिल रही थी लेकिन ऑटो नहीं मिल रहा था। हम पूरी तरह से थक चुके थे, हमारे पैर जवाब दे रहे थे। हम चाहकर भी रूक सकते थे, हमें आगे बढ़ना ही था।
चलते-चलते हमें अढ़ाई दिन का झोपड़ा मिला और फिर अजमेर शरीफ। जिसको देखने लोग अजमेर आते हैं हमने वो सिर्फ दूर से देखा। बिना किसी गुरेज के हम आगे बढ़ गए। जब हमने जैसलमेर के लिए बस पकड़ी हम पूरी तरह से थक चुके थे। हम बस सोना चाहते थे और जैसलमेर का ये सफर हमारे लिए वही आराम बनने वाला था। अजमेर को अजमेर शरीफ के लिए जाना जाता है लेकिन मुझे याद रहेगा दाल पकवान के लिए। मुझे याद रहेगा उस जगह के लिए जहां से पूरा अजमेर दिखता है। कभी-कभी शहर को नए तरीके से देखना चाहिए और हमारा ये सफर यही कुछ बयां करता है।