तिब्बत पृथ्वी पर सबसे सुंदर और अदूषित क्षेत्रों में से एक है। यह सुदूर क्षेत्र न केवल साहसिक प्रेमियों को आकर्षित करता है बल्कि उन यात्रियों को भी आकर्षित करता है जो अपने जीवन में अस्तित्व का गहरा अर्थ खोजने के उद्देश्य से निर्देशित होते हैं। पिछली शताब्दी तक रहस्य में डूबा और अत्यधिक दूरस्थ, तिब्बत अभी भी काफी हद तक अज्ञात और अनदेखा है और यह बात इस हिमालयी क्षेत्र को और अधिक दिलचस्प बनाती है, वह है इससे जुड़े विभिन्न मिथक और किंवदंतियाँ। इस तरह के एक मिथक ने कई लोगों की रुचि पकड़ी है, जिससे विभिन्न बहसें, जाँच-पड़ताल और किताबें सामने आई हैं। कुछ ऐसी चीजें या घटनाएं हैं जो क्या है? क्यों है? इन सभी सवालों पर आज भी प्रश्नचिन्ह बना हुआ है। हिमालय के वादियों की एक ऐसे ही रहस्य का जिक्र आज हम आपके सामने करने जा रहे हैं जिसके सामने विज्ञान ने भी घुटने टेक दिए हैं। हम यहां ज्ञानगंज मठ की बात कर रहे हैं। हिमालय में स्थित यह एक छोटी सी जगह है जिसे शांग्री-ला, शंभाला और सिद्धआश्रम के नाम से भी जाना जाता है। ज्ञानगंज मठ में केवल सिद्ध महात्माओं को स्थान मिलता है। इस जगह के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यहां रहने वाले हर किसी का भाग्य पहले से ही निश्चित होता है और यहां रहने वाला हर कोई अमर है। यहां किसी की मृत्यु नहीं होती है।
ज्ञानगंज के बारे में किवदंतियाँ-
आध्यात्मिक शक्ति के इस केंद्र में बुद्धिस्ट्स जाने का प्रयास करते हैं, लेकिन इसका रास्ता किसी को समझ में नहीं आता है। ज्ञानगंज में योगियों के अमर रहने की बात पर विज्ञान तर्क देते हुए यह कहता है कि एक निश्चित आयु के बाद जीव की मौत हो जाती है। अगर बॉडी में लगातार नए सेल्स बनते रहें और किसी तरह से ऑर्गन्स को लंबे समय तक स्वस्थ रख सके तो इंसान भी एक हजार साल से ज्यादा जी सकता है। न केवल साइंस बल्कि आयुर्वेद में भी कुछ ऐसा ही कहा गया है। ज्ञानगंज मठ में रहने वाले ऋषि, योग विद्या में पारंगत होते हैं और इसी के सहारे वे अपनी भावनाओं को कंट्रोल कर सकते हैं। इंसान ऐसा नहीं कर सकता है, इंसान का किसी भी चीज पर कोई कंट्रोल नहीं है और न ही मौत पर उसका कोई वश चलता है। लोगों का ऐसा मानना है कि यह जगह किसी खास धर्म से संबंधित नहीं है, यहां तक वही पहुंच पाएगा जो किसी तरह से खुद को यहां के लायक बना लेगा।
शम्भाला (बौद्ध धर्म के अनुसार) -
यदि हम बौद्ध धर्म की बात करें तो बुद्धिस्ट ऐसा मानते हैं कि भगवान बुद्ध ने अपने आखिरी दिनों में कालचक्र के बारे में ज्ञान प्राप्त कर लिया था। उन्होंने कई लोगों को इसके बारे में बताया भी था, इनमें से एक थे राजा सुचंद्र। राजा जब इस ज्ञान को प्राप्त कर वापस अपने राज्य में आए तभी से तिब्बत में उस स्थान को शंभाला कहा जाने लगा। शंभाला का मतलब है ‘खुशियों का स्रोत’। बौद्धों का मानना है कि शम्बाला दुनिया की गुप्त आध्यात्मिक शिक्षाओं की रक्षा करती है। इस पौराणिक भूमि तक पहुंचने के निर्देश कुछ पुराने बौद्ध धर्मग्रंथों में दिए गए हैं, हालांकि, निर्देश अस्पष्ट हैं। बौद्ध भी मानते हैं कि ज्ञानगंज मृत्यु के नियमों की अवहेलना करता है। इस अमर भूमि में किसी की मृत्यु नहीं होती और चेतना सदैव जीवित रहती है। इसे शम्भाला और शांगरी-ला के नाम से भी जाना जाता है।
ज्ञानगंज मठ कल्पना या रहस्य -
प्राचीन ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार ज्ञानगंज आठ पंखुड़ियों वाले कमल की संरचना जैसा दिखता है। यह बर्फ से ढके पहाड़ों से घिरा हुआ है। जीवन का वृक्ष जो स्वर्ग, पृथ्वी और अधोलोक को जोड़ता है, उसके केंद्र में खड़ा है। जिन लोगों ने ज्ञानगंज या शंभला को देखा है, उनके लिए यह झिलमिलाता शहर है। इसके रहने वाले अमर हैं जो दुनिया के भाग्य का मार्गदर्शन करने के लिए जिम्मेदार हैं।इस रहस्यमय राज्य के भीतर रहते हुए वे सभी धर्मों और विश्वासों की आध्यात्मिक शिक्षाओं की रक्षा और पोषण करते हैं।दूसरों के प्रति अपनी बुद्धिमत्ता का पालन करते हुए वे अच्छे के लिए मानव जाति की नियति को प्रभावित करने का काम करते हैं। तिब्बती बौद्धों का मानना है कि दुनिया में अराजकता की जब अति हो जाएगी तब इस विशेष भूमि के 25 वें शासक पृथ्वी को बेहतर युग के लिए मार्गदर्शन करते दिखाई देंगे।
मॉर्डन तकनीक और मैपिंग सिस्टम से भी खोजना मुश्किल-
आपको जानकर हैरानी होगी कि आजकल के मैपिंग सिस्टम का मदद लेकर भी इसे ढूंढ़ा नहीं जा सकता है। यहां तक कि सैटेलाइट में भी इसे नहीं देखा जा सकता है। कई लोग तो ये भी कहते हैं कि इस घाटी का संबंध सीधे दूसरे लोक से है।
कहते तो ये भी हैं कि चीन की सेना ने कई बार इस जगह को तलाशने की कोशिश की लेकिन वह नाकाम रहा। इस सिद्धाश्रम या मठ का जिक्र महाभारत, वाल्मिकी रामायण और वेदों में भी है। अंग्रेज लेख जेम्स हिल्टन ने भी अपने उपन्यास 'लास्ट होराइजन' में इस जगह का जिक्र किया है।
ज्ञानगंज की भौगोलिक स्थिति क्या है?
आधुनिक समय में ज्ञानगंज तिब्बत में कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील के निकट स्थित है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस जगह पर एक आश्रम है, जिसका निर्माण विश्वकर्मा जी ने की है। कहा जाता है कि सैकड़ों ऋषिगण हजारों वर्षों से ध्यान करते देखे जा सकते हैं। इस स्थान के बारे में सर्वप्रथम स्वामी विशुद्धानंद परमहंस ने लोगों को जानकारी दी थी। शांग्री-ला एक तिब्बती शब्द है. जो शैंग माउंटेन पास से मिलता जुलता है। इसलिए ऐसा लगता है कि यह जगह कुनलुन शैंग माउंटेन की घाटियों में कहीं स्थित है। शांग्रीला घाटी का अनुमानित एरिया 10 वर्ग किलोमीटर है। भारत की सीमा की तरफ से लंपियाधुरा पास शांग्री-ला घाटी तक पहुंचने का मार्ग है। यह कैलाश मानसरोवर जाने का प्राचीनतम लेकिन बेहद दुर्गम रास्ता है। 1962 भारत चीन युद्ध के बाद लंपियाधुरा का रास्ता लगभग बंद हो गया है। प्राचीन काल में कैलाश मानसरोवर जाने वाले साधु संत उत्तराखंड के धारचूला से होते हुए गूंजी, कुंटी और पार्वती ताल होते हुए कैलाश मानसरोवर जाने के लिए लगभग 18000 फुट की ऊंचाई चढ़कर लंपियाधुरा पास पहुंचते थे। यहां से 1500 फुट नीचे कैलाश मानसरोवर की जड़ में ही शांग्री-ला घाटी यानी ज्ञानगंज की अनुमानित स्थिति मानी जाती है। लेकिन चौथे आयाम में होने की वजह से यह आम लोगों की निगाहों से परे माना जाता है।
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