जनवरी की सर्दी भी थी ,पर उस दिन मेरे अन्दर का सैलानी बोला कि ग्वालियर चलो , मन में तो आ रहा था पता नहीं क्या होगा वहां , जान पहचान वाले भी बोल रहे थे , कहीं और घूम लो , पर दिल ग्वालियर ही जा रहा था ,
करना क्या था दोनों ने अपना बैग उठाया और current reservations का फायदा उठाया , और निकल पड़े ।
ग्वालियर ट्रिप हमने बाइक पर एन्जॉय की क्युकी सिर्फ वीकेंड का ही समय था पर सच में उस शहर की गलियों और महलों के रास्तों पर घूमना भी अपने आप में अलग अनुभव था ,
जैन तीर्थ गोपाचल पर्वत पहुंचते ही हमारा परिचय वहीं के एक सज्जन से हुआ जिन्होंने हमें पर्वत के बारे में बताया , उनके मनुहार का तरीका दिल छू लेने वाला था ।
फिर हम पहुंचे गुरुद्वारा दाता बंदी छोड़ साहिब जी में , हम यहां कोई पिक्चर नहीं दे सकते क्युकी वहां के माहौल में हम खो गए थे सुकून से कड़ा प्रसाद और लंगर छका और कुछ देर बस बैठे रहे ।
फिर मसाला चाय की चुस्की ली जिसने हमें आगे और घूमने के लिए चार्ज कर दिया ।
ग्वालियर में आपकी किले के लिए अलग अलग बार टिकट लेने होते है , पर मान सिंह महल, सासबहू मंदिर ,तेली का मंदिर देखने के लिए इतना तो बनता है , पत्थरों में नक्काशी बोलती सी लगती है , तो कहीं महलों की भूल भुल्लया में खो जाते है , कहीं कहीं पर लगता है कि कुछ कमी सी है इनको सजों कर रखने में बस ये विरासत कहीं नष्ट ना हो ।
घूमते घूमते हमें शाम हो गई और हमारी ट्रेन का टाइम हो चला , दिल में जय विलास पैलेस , और तानसेन मजार का ख्वाब लिए चल दिए , पर ग्वालियर की गलियों में अभी बहुत कुछ है ,,जो अगली बार देखेगे ।।