दुनिया में एक बेहद अनूठे और अद्भुत देश के तौर पर जाना जाने वाला हमारा देश भारत यहाँ के लोगों के मन में ईश्वर पर अटूट विश्वास के लिए भी एक खास पहचान रखता है और इसीलिए हमारे देश में मंदिरों की संख्या सैंकड़ो या हज़ारों में नहीं बल्कि लाखों में आती है। भक्तों को ईश्वर के करीब ले जाने ये पवित्र मंदिर यहाँ करीब हर गली में देखने को मिलते हैं। इन्हीं मंदिरों में से कुछ नए हैं वहीं अनेकों मंदिर का इतिहास सैंकड़ों और यहाँ तक की हज़ारों वर्ष पुराना है और इनसे जुड़ी पौराणिक कथाएं इनके खास महत्त्व को बताने के लिए काफी हैं।
पौराणिक मंदिरों की बात करें तो देश में स्थापित 12 ज्योतिर्लिंगों का अपना एक बेहद खास महत्त्व है। ऐसा बताया जाता है कि जहाँ-जहाँ भी ये 12 ज्योतिर्लिंग स्थित हैं वहां महादेव ज्योति के रूप में उत्पन्न हुए थे और इसी तरह से ये सभी स्वयंभू शिवलिंग उत्पन्न हुए। मान्यता है कि इन सभी ज्योतिर्लिंग के दर्शनों का अपना एक खास महत्त्व है और सभी 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शनों से भक्तों के सभी पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं और साथ ही उन्हें मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।
आज के हमारे इस लेख में हम आपको इन 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में बताने वाले हैं। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी पूरी जानकारी के लिए आप लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग
जैसा कि हमने बताया कि घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग हमारे देश के स्थित 12 बेहद पवित्र ज्योतिर्लिंगों में से एक है और हिन्दू धर्म की मान्यतानुसार इस ज्योतिर्लिंग को सभी ज्योतिर्लिंगों में से अंतिम यानी कि 12वें ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र राज्य के संभाजीनगर (औरंगाबाद) जिले में वेरुल गाँव में स्थित है। आपको बता दें कि विश्व प्रसिद्द एलोरा की गुफाएं इस ज्योतिर्लिंग से सिर्फ 500 मीटर की दुरी पर स्थित हैं जिस वजह से ज्योतिर्लिंग के दर्शनों के बाद आप इस विश्व प्रसिद्द और ऐतिहासिक पर्यटन स्थल की यात्रा भी कर सकते हैं। शहरों की भीड़-भाड़ और शोर शराबे से कोसों दूर यह ज्योतिर्लिंग प्राकृतिक खूबसूरती से भरी जगह स्थित है और यह बात भी इस ज्योतिर्लिंग को बेहद खास बनाती है। इस पवित्र ज्योतिर्लिंग को घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से भी जाना जाता है और यहाँ हर साल दूर-दूर से महादेव के लाखों भक्त आत्मिक शांति और अपने कष्ट दूर करने के लिए ज्योतिर्लिंग के दर्शनों के लिए यहाँ आते हैं। मान्यताओं के अनुसार सावन के महीने में यहाँ दर्शनों और पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है इसीलिए हर साल सावन माह में यहाँ हर रोज़ हज़ारों भक्त महादेव के दर्शनों के लिए आते हैं।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार देवगिरि पर्वत के पास सुधर्मा नाम का ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ रहता था। उसकी कोई संतान नहीं थी जिसका दोनों को बेहद दुःख था। संतान प्राप्ति की इच्छा से सुदेहा ने अपने पति का विवाह अपनी ही छोटी बहन घुष्मा से करवाने की जिद की और कुछ समय बाद अपने पति का विवाह अपनी बहन घुष्मा से करवा दिया जो कि भगवान शिव की परम भक्त थी। वह हर दिन 100 पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूरी आस्था से उनकी पूजा किया करती थी और फिर एक तालाब में उन्हें विसर्जित कर देती थी। महादेव की कृपा से कुछ समय के बाद उसने एक पुत्र को जन्म दिया जिससे घर में खुशियों का माहौल छा गया। लेकिन अपनी बहन घुष्मा की खुशियां सुदेहा से अधिक बर्दाश्त नहीं हुई और उसने घुष्मा के पुत्र की हत्या कर उसे उसी तालाब में फेंक दिया।
इस घटना से परिवार में दुखों का पहाड़ टूट पड़ा लेकिन शिव भक्त घुष्मा को अपनी भक्ति पर पूर्ण विश्वास था और वह हर दिन उसी तालाब में 100 शिवलिंगों की पूजा करती रही। एक दिन महादेव की कृपा से उसी तालाब से उसे अपना पुत्र आते दिखा। साथ ही भगवान शिव ने अपनी भक्त घुष्मा को दर्शन भी दिए और उसकी बहन को दंड देना चाहा लेकिन खुद घुष्मा ने ही भगवान से अपनी बहन सुदेहा को माफ़ करने की विनती की। इसके साथ ही उसने भगवान से लोक कल्याण के लिए हमेशा वहीं पर विराजमान होने की प्रार्थना की। भगवान ने घुष्मा की मनोकामना पूर्ण की और तभी से भगवान यहाँ घुश्मेश्वर (घृष्णेश्वर) ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा के लिए स्थापित हो गए।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शनों से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में दर्शनों से जुड़ी जानकारियों में सबसे पहले आपको बता दें कि मंदिर सुबह 5:30 बजे भक्तों के लिए खोल दिया जाता है और उसके बाद रात 9:30 बजे तक खुला रहता है। हालाँकि सावन के महीने में भक्तों की अत्यधिक भीड़ होने की वजह से मंदिर सुबह 3 बजे ही खोल दिया जाता है और रात्रि 11 बजे तक आप सावन के पवित्र महीने में यहाँ ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर सकते हैं। मुख्य त्रिकाल पूजा एवं आरती सुबह 6 बजे और शाम को 8 बजे की जाती है जिस समय आप मंदिर में दर्शनों का एक अलग अनुभव ले सकते हैं।
आपको बता दें कि आरती के समय के अलावा आप मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश कर सकते हैं और जल, पुष्प आदि शिवलिंग पर अर्पित भी कर सकते हैं।
दर्शनों से जुड़ी एक बेहद महत्वपूर्ण जानकारी यह है कि पुरुषों को गर्भगृह में जाने से पहले उनके ऊपरी वस्त्र जैसे शर्ट-टीशर्ट, बनियान के साथ बेल्ट भी बाहर ही उतारना होता है। इसके अलावा मंदिर में किसी भी तरह का मोबाइल, कैमरा या अन्य कोई इलेक्ट्रॉनिक आइटम ले जाने की अनुमति बिलकुल नहीं है। हालाँकि मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार के बहार आपको मोबाइल वगैरह रखने के लिए लाकर की सुविधा मिल जाती है।
गर्भगृह के एकदम सामने नंदी महाराज की विशाल मूर्ति स्थापित है जिनके दर्शन भी आप जरूर करें। इसके अलावा आप वहां पुजारी जी से बात करके खास पूजा और अनुष्ठान वगैरह भी कर सकते हैं।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचे?
जैसा कि हमने आपको बताया कि यह मंदिर संभाजीनगर (औरंगाबाद) के वेरुल गाँव में स्थित है। औरंगाबाद से करीब 32 किलोमीटर दूर स्थित घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का सफर सह्याद्रि पर्वतश्रृंखला के खूबसूरत नज़ारों से भरा है और इस सुन्दर सफर को पूरा करने के लिए आप औरंगाबाद से आसानी से बस या टैक्सी वगैरह लेकर यहाँ पहुँच सकते हैं।
औरंगाबाद पहुँचने के लिए आप हवाई, रेल या फिर सड़क मार्ग में से कुछ भी चुन सकते हैं। औरंगाबाद एयरपोर्ट (चिकलथाना एयरपोर्ट) भारत के बड़े शहरों जैसे दिल्ली-मुंबई से हवाई मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा रेल मार्ग से आने के लिए भी औरंगाबाद एक बड़ा जंक्शन है जिससे आपको यहाँ पहुँचने के लिए आपके शहर से आसानी से रेल की सुविधा मिल जाएगी। साथ ही सड़क मार्ग से भी आप मुंबई, पुणे, शिरडी जैसे शहरों से औरंगाबाद के लिए सीधी बस बुक कर सकते हैं और खुद के वाहन से यहाँ पहुंचना भी सड़क मार्ग से बेहद आसान है।
तो इसी के साथ घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी जितनी भी जानकारी हमारे पास थी हमने आपसे इस लेख के माध्यम से साझा करने की कोशिश की है। अगर आपको ये जानकारी अच्छी लगी तो कृपया इस आर्टिकल को लाइक जरूर करें और साथ ही ऐसी ही अन्य जानकारियों के लिए आप हमें फॉलो भी कर सकते हैं।
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