अगस्त 2015
मैं, मम्मी और पापा ने बठिंडा से दिल्ली के लिए पंजाब मेल करवाई थी। दिल्ली से भुवनेश्वर के लिए राजधानी एक्सप्रेस। परन्तु पंजाब मेल लेट होने के कारण हम टैक्सी करवा कर दिल्ली आए, नही तो दिल्ली से राजधानी एक्सप्रेस छूट जानी थी।, इस से हमारा 10-12000 हज़ार का ज्यादा खर्चा आ गया था। पहले तो सोचा रहने देते है, फिर मन में आया ऐसे टूर रोज़ रोज़ नहीं बनते। अच्छा हुआ हमें दिल्ली से राजधानी एक्सप्रेस मिल गई और हम भुवनेश्व आ गए। वहा से बस लेकर पुरी आ गए।
*भारत मंदिरों की धरती है, सभी मंदिरो का अपना ही इतिहास है। अपने आप में विशेष यह मंदिर देवी-देवते को जरूर समर्पित होते है।!
* अब बात करते है सूर्य मंदिरो की। भारत में सूर्य मंदिर बहुत कम है। दो बहुत ही प्रसिद्ध सूर्य मंदिर है:-
1 उड़ीसा का कोणार्क मंदिर
2 गुजरात का मोढेरा मंदिर।
* आज हम बात करेंगे उड़ीसा में पुरी से 35 किलोमीटर दूर कोणार्क के सूर्य मंदिर की। मम्मी पापा के साथ हम पुरी से आटो करवा कर कोणार्क गए। मुझे याद है कैसे मंदिर में मेरी चप्पल टूट गई थी😔। गर्मी में नंगे पांव कैसे चली मुझे ही पता है, कोणार्क के बाजार तक नंगे पैर ही जाना पडा वहा से नयी चप्पल खरीदी जो मैने 2-3 साल खूब चलाई।
*13वी शताब्दी का यह मंदिर बहुत ही विशेष तथा world heritage site है। जानते है इसके बारे में:-
*कोणार्क सूर्य-मन्दिर का निर्माण लाल रंग के बलुआ पत्थरों तथा काले ग्रेनाइट के पत्थरों से हुआ है। इसे गंग वंश के राजा नृसिंहदेव द्वारा बनवाया गया था। यह मन्दिर, भारत के सबसे प्रसिद्ध स्थलों में से एक है।
*इस मन्दिर में सूर्य देव(अर्क) को रथ के रूप में विराजमान किया गया है तथा पत्थरों को उत्तम नक्काशी के साथ उकेरा गया है। सम्पूर्ण मन्दिर स्थल को बारह जोड़ी चक्रों के साथ सात घोड़ों से खींचते हुये निर्मित किया गया है, जिसमें सूर्य देव को विराजमान दिखाया गया है। परन्तु वर्तमान में सातों में से एक ही घोड़ा बचा हुआ है। मन्दिर के आधार को सुन्दरता प्रदान करते ये बारह चक्र साल के बारह महीनों को परिभाषित करते हैं तथा प्रत्येक चक्र आठ अरों से मिल कर बना है, जो अर दिन के आठ पहरों को दर्शाते हैं।
इस के बाद हम राम चांडी मंदिर भी गए।
धन्यवाद।





रात हम गुरुद्वारा आरती साहिब पुरी में रुके। इस पवित्र जगह पर ही गुरु नानक देव जी ने आरती लिखी थी जिस में बताया गया था की आरती कुदरत ही कर रही है जैसे गगन मतलब आसमान में तारे है वो दीपक का काम कर रहे , धूप मतलब अगरबती का काम जो हवा मलआनलो परबत से आती है वो कर रही है।
रागु धनासरी महला १ ॥
गगन मै थालु रवि चंदु दीपक बने तारिका मंडल जनक मोती ॥
धूपु मलआनलो पवणु चवरो करे सगल बनराइ फूलंत जोती ॥१॥
कैसी आरती होइ ॥
भव खंडना तेरी आरती ॥
अनहता सबद वाजंत भेरी ॥१॥ रहाउ ॥
सहस तव नैन नन नैन हहि तोहि कउ सहस मूरति नना एक तोही ॥
सहस पद बिमल नन एक पद गंध बिनु सहस तव गंध इव चलत मोही ॥२॥
सभ महि जोति जोति है सोइ ॥
तिस दै चानणि सभ महि चानणु होइ ॥
गुर साखी जोति परगटु होइ ॥
जो तिसु भावै सु आरती होइ ॥३॥
हरि चरण कवल मकरंद लोभित मनो अनदिनो मोहि आही पिआसा ॥
क्रिपा जलु देहि नानक सारिंग कउ होइ जा ते तेरै नाइ वासा ॥४॥३॥
नामु तेरो आरती मजनु मुरारे ॥
हरि के नाम बिनु झूठे सगल पासारे ॥१॥ रहाउ ॥
गुरुद्वारा साहिब में जो पाठी थे वो बहुत अच्छे थे, हम सब के लिए लंगर बनाया , हमें कमरा दिया, कमरा काफी अच्छा था। रात वहा पर रुकने के बाद सुबह हम जगन्नाथ पुरी मंदिर गए। वहा बहुत भीड़ थी। पुरी बीच पर गए। कुछ लोकल गुरुद्वारा साहिब भी गए। इस के बाद हम वापिस आ गए।



