गोवा से 3 घंटे दूर गोवा कर्नाटक सीमा पर कुदरत का एक नायाब करिश्मा है जिसे दूधसागर फॉल्स या "चेन्नई एक्सप्रेस फॉल्स" के नाम से भी जाना जाता है | यहाँ गोवा और कर्नाटक दोनों जगहों से जाया जा सकता है | यहाँ का पानी दूध जैसा सफेद दिखता है और सुंदरता ऐसी कि शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता | ये उन लोगों के लिए है जो गोवा के उन्हीं घिसी पीटी जगहों पर जा कर ऊब चुके हैं और कुछ हटकर खोज रहे हैं |
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पिछले मॉनसून में खुशकिस्मती से मैं यहाँ घूमने गया | हम वास्को से ट्रेन में बैठ गये क्योंकि इस समय दूधसागर तक जाने वाली सड़क जाने लायक नहीं थी | यहाँ से एक ट्रेन 7 बजे चलती है और वही ट्रेन उसी दिन शाम 5 बजे कुलेम (दूधसागर का नज़दीकी स्टेशन) से चलकर वास्को वापिस आ जाती है | 2 घंटे बाद हम कुलेम उतर गए | वहाँ से हमने 12 कि.मी. लंबे ट्रेक पर चलना शुरू किया | एक गाइड लेना सही रहता है क्योंकि वे जंगल के रास्ते अच्छी तरह जानते हैं | आप चाहें तो दूधसागर स्टेशन पर उतर कर एक बाइक भी ले सकते हैं जिसका राइडर आपको दूधसागर फॉल्स के पास छोड़ कर आ जाएगा | वहाँ से आपकी यात्रा का सबसे रोमांचक पड़ाव शुरू होगा जिसमें आप कई बार नदी पार करेंगे और आपका आधा शरीर नदी में डूबा हुआ होगा| हमारी बात करें तो हमने रेलवे पटरियों के साहारे सहारे चलना शुरू करके जंगल का रास्ता पकड़ लिया था | रास्ता ऊबड़ खाबड़ था और बारिश की वजह से चलना और मुश्किल हो गया था |
लगभग 4 घंटे बाद हम झरने की तलहटी तक पहुँच गए | नैसर्गिक सुंदरता मेरे इतने करीब थी और मैं मंत्रमुग्ध-सा, इसे बस निहारे जा रहा था | एक दो घंटे रुकने के बाद हम वापस वापिस लौट चले क्योंकि हमें शाम की 5 बजे वाली ट्रेन पकड़नी थी | थकान की वजह से हमने एक बाइक वाले से हमें स्टेशन तक छोड़ने की प्रार्थना की | खूब मिन्नतें करने के बाद एक बाइक वाला हमें आधे रास्ते तक छोड़ने को तैयार हो गया | हम लपक कर बाइक पर बैठ गए, मगर पीछे बैठ कर बिताए वो 20 मिनट हमारी ज़िंदगी के सबसे डरावने पल थे | वो बाइक एक तरह से चला रहा था जैसे कोई रेस लगा रहा हो | बारिश के कारण सड़कों पर कीचड़ भरा था मगर उसे इस बात से कोई मतलब नहीं था | मैं पीछे बैठी हुई सकुशल पहुँचने की मन ही मन प्रार्थना कर रहा था | 2 मीटर चौड़े रास्ते के पास ही 100 फीट गहरी नदी थी | जब तक उसने मुझे उतार नहीं दिया तब तक मुझे चैन की साँस नहीं आई | हमने उसे पैसे दिए और फिर से उसी रेलवे पटरियों के सहारे चलने लगे | 2 घंटे लगातार चलने के हम पसीने से तरबतर कुलेम पहुँच गएऔर 5 बजे वाली ट्रेन पकड़ ली, मगर जाने का मान तो नहीं हो रहा था | मैं अपनी सीट पर आराम से बैठ गया और देखते ही देखते पता ही नहीं चला कि कब गोवा आ गया |
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यात्रा के लिए सलाह :
1. अपने साथ पानी की बोतल और खाने के लिए कुछ ज़रूर रखें |
2. अगर मॉनसून में जा रहे हैं तो अपने साथ एक रेनकोट रखना ना भूलें | वैसे भी मॉनसून में जाना ही सबसे बढ़िया अनुभव होगा |
3. अगर आप पहली बार जा रहे हैं तो अपने साथ एक गाइड ले लें |
4. अगर आप ट्रेन से एक ही दिन में जा कर वापस भी आना चाहते हैं तो समय का प्रबंध आपको अच्छे से करना होगा |
5. अपने साथ एक टॉर्च और फर्स्ट एड का डब्बा ज़रूर ले लें |
6. अपने दोस्तों और परिवार को अच्छे से बता कर जाएँ क्योंकि इस इलाक़े और आसपास में सिग्नल नहीं आता |
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