शुक्रवार रात. ISBT कश्मीर गेट. जेब में 1000 रुपये.
बस टिकट, 313 रुपये का. डिनर में खायी मैगी में खर्च हुए 10 रुपये.
पहाड़ की घूमती हुई सड़कों में चलते हुए, पहाड़ के उस पार सुबह की वो सुनहरी रौशनी देखने के लिए बस इतने ही पैसे चाहिए.
पर सवाल ये है की आप आखिर १००० रुपये में क्या कर सकते हैं?
कम पैसों में सफर करने का मकसद बस इतना ही है की मुझे मेरी यात्राओं से औरों से कुछ अलग हासिल हो. हम सब ही औरों से अलग अनुभवों के भूखे हैं. सोचा जाए तो सीमित बजट में यात्रा करने का झुकाव इस देश के लोगों में कुछ ज्यादा ही है. इसलिए जिस देश में बहुत सारे लोग कम पैसों में सफर करते हों वहां रहने, खाने और यात्रा करने के सस्ते विकल्प भी आपको बहुत मिलेंगे.
क्यों करें सस्ते में सफर?
पैसे बचाना ही अकेला मकसद नहीं है. कम पैसो में यात्रा करने से कई बार मुझे इस देश के लोगों को काफी करीब से अनुभव करने का मौका मिला है.
कभी किसी छोटे से कसबे के किसी कोने में, जर-जर हालत में किसी गेस्ट हॉउस से अपेक्षा से ऊपर आपको दिल छु लेने वाले नज़ारे दिखे हैं?
कईं बार शब्दों की हज़ार त्रुटियों वाले एक मेनू में आपको लाजवाब खाना मिल जाता है.
पैसे खर्च करने से सफर के दौरान अच्छे अनुभव मिल ही जाएँ, इसकी आपको कोई गारंटी नहीं दे सकता. कई बार सबसे अच्छा खाना सबसे छोटे से रेस्टोरेंट में ही मिलता है. मेरा मानना है की अतिथि सत्कार को आप कभी भी पैसों में नहीं तोल सकते.
भारत देश के कईं ऐसे नामी पर्यटन स्थल हैं जहाँ लोग सालों साल जाते हैं और इन छोटे बजट होटल्स में रहते हैं. भारत में घूमने वाले पर्यटक छोटे-छोटे रेस्टोरेंट में खाने से भी नहीं कतराते. बल्कि उनको ऐसी छोटी टपरियों के खाने पर भरोसा होता है. सस्ते में सफर करने का सच में अलग ही मज़ा है. आप भी कभी अनुभव करके देखिये!
कैसे बीता Rs 500 में सफर का मेरा एक दिन?
काफी जल्द ही सुबह उस दिन मेरा दिन शुरू हो गया था और बस ने मुझे पठानकोट पर उतार दिया. धर्मशाला जाने वाली बस के लिए मुझे अभी भी एक घंटा इंतज़ार करना पड़ता. लोगों को पालमपुर जाती एक शेयर्ड टैक्सी में जाते देख मैं भी उसी में बैठ गयी. चालक के ठीक बाजू में सीट से नज़ारे इतने बढ़िया थे की मुझे वो सीट छोड़ने का मन ही नहीं किया.
"आप क्या सच में अकेले सफर कर रही हैं?" इस सवाल का जवाब देने मैं पीछे मुढ़ी. उस टैक्सी में तीन और औरतें थी जो के पालमपुर ही जा रही थी. हमने हिमाचल और काँगड़ा घाटी के बारे में बहुत बातें की और पता ही नहीं चला के कब गग्गल आ गया. अब मेरा टैक्सी से उतरने का समय आ चूका था. एक बार को मैंने सोचा भी के मैं पालमपुर तक ही इन औरतों के साथ चल दू पर मुझे लगा की अपने प्लान से शुरुवात में ही नहीं भटकना चाहिए. इस टैक्सी में सफर के लिए मेरे 40 रुपये खर्च हुए.
बहरहाल 1 बजे तक मैं मक्लिओडगंज पहुंच गयी. यहाँ आने के लिए मुझे बीच में दो बसों का सफर करना पड़ा और खर्च हुए Rs. 95. मक्लिओडगंज पहुंचते ही मैंने सीधे रास्ता लिया पाने पसंदीदा कैफ़े की ओर. मुझे वहां मिलने वाला टोफू थुप्पा बहुत पसंद है और पिछले कुछ हफ़्तों से इसको खाने इच्छा दिन पर दिन बढ़ रही थी.
मैं दो किलोमीटर पैदल चल कर मक्लिओडगंज से धर्मकोट पहुंची. जब तक मेरे गेस्टहॉउस की तलाश ख़त्म हुई तब चक सूरज भी ऊपर चढ़ चूका था. यहाँ पर मुझे 150 रुपये प्रतिदिन में रहने के लिए एक कमरा मिला. बाथरूम और टॉयलेट औरों के साथ शेयर करने पड़े. मैंने जल्दी से नहाया और निकल पड़ी वोही करने जो मैं करने आयी थी. पहाड़ों की शान्ति में लीन हो मैं एक लम्बी चहलकदमी के लिए निकल गयी.
दिन का खाना भी बहुत सादा था. निकलने से पहले ही मैंने धर्मकोट के एक छोटे से कोने के ढाबे से 40 रुपये में दो पराठे पैक करा लिए थे. एक जगह अचानक ही रोड संकरी हो गयी और देखने से ये जगह रुकने लायक बिलकुल भी नहीं थी. तीन बजे तक मैं वहां पहुंच गयी जगह पर रास्ता ख़त्म होता था. पर इससे आगे एक पगडण्डी मुझे एक झरने तक ले गयी जहाँ मेरे सिवा कोई भी नहीं था.
शाम को धर्मकोट में एक कैफे में बैठ कर मैंने अदरक वाली चाय के स्वाद के साथ सुंदर सा सूर्यास्त का नज़ारा देखा. चाय थी 10 रुपये की. शाम 7 बजे ही रात के खाने का समय हो गया और मैंने 60 रुपये में मिलने वाला मिनेस्ट्रोन सूप और चावल खाये. खाने के ठीक बाद ही कैफे में बैठे कुछ लोगों ने गाना और बजाना शुरू कर दिया. रात इसी में कट गयी.
भीड़ भाड़ से दूर इस सुन्दर गांव में शांति भरा ये दिन बिताने में खर्च हुए बस 445 रुपये. जिसमे की मैंने भर पेट खाना खाया और होटल भी लिया.
कम पैसों में सफर करने से सच में जीवन की कुछ ऐसी खुशियों का एहसास होता है जिनको आम तौर पर महसूस नहीं करते. पहाड़ों के रास्तों में बस चलते रहना, अंजान लोगों से बातें करना और रुक कर अपने आस पास सबको अपनी दिनचर्या में मगन देखना. मेरे जैसे यात्रियों को इन छोटी छोटी खुशियों की ही तलाश होती है.
तो अगर आप मुझसे पूछें की 500 रुपये में सफर का एक दिन कैसे बिताएं? मेरा जवाब ये होगा.
कुछ बातें है जिनका की आपको ख़ास ख्याल रखना होगा जब आप सीमित बजट में सफर कर रहे हों.
रेल और बस का सफर
स्लीपर और दूसरी श्रेणी के डब्बों में और सरकारी बसों में सफर करने में कभी भी 500 रुपये से ज्यादा खर्च नहीं होते. हाँ ,आपको एयर कंडीशनिंग नहीं मिलेगी और सीट भी काफी बेआराम होगी पर आपको जानना चाहिए की इस देश के अधिकतम लोग ऐसे ही सफर करते हैं.
जिन जगहों में ट्रैन या बसें नहीं जाती उन जगहों पर हमेशा ही स्थानीय गाडी चालकों द्वारा टैक्सी सेवा उपलब्ध होती है. आम लोग इन्ही शेयर्ड टैक्सी के माध्यम से सफर करते हैं. इन शेयर्ड टैक्सी और जीप से बहुत सारे दूर दराज़ के इलाके हैं जहाँ तक लोग रोज़ सफर कर पाते हैं. प्राइवेट टैक्सी लेने में पैसे न गवाएं.
रात को सफर करें
रात को सफर करके आप का होटल का खर्चा भी बच जाता है. यात्रा की योजना बनाते समय ही देख लें की कहीं आप होटल में पैसे फ़िज़ूल खर्च न कर रहे हो.
जैसे की, सप्ताहांत में अगर आपकी घूमे की योजना बन रही है तो आप शुक्रवार शाम की बस लें जिससे पूरी रात सफर कर आप सुबह अपने गंतव्य में हों. अपने होटल के कमरे का चेक-इन डे शनिवार रखें और संडे को चेक आउट करें. अपने होटल के रिसेप्शन में अपना सामान रख कर आप दिन भर शहर घूम सकते हैं जब तक की आप की शाम की बस का समय न हो जाए. इस तरीके से आप केवल एक दिन का होटल का किराया खर्च करेंगे.
मेहेंगे शौक न पालें.
जेब में अगर कम पैसे हैं तो आपको सस्ते खाने की तलाश करनी होगा. सालों पुराने बहुत सारे ऐसे ढाबे होते हैं जहाँ ताज़ा और स्वच्छ खाना मिलता है. आप सड़क के किनारे मिलने वाले छोटे छोटे स्टाल्स से भी खाना खा सकते हैं. जरूरी नहीं है की अगर आप घूमने आये हैं तो आपको पैराग्लाइडिंग या हॉर्सरैडिंग जैसी गतिविधियां करनी ही हो. आप जंगलों में पैदल ही सैर पर भी निकल सकते हैं. यह भी अपने आप में अच्छा अनुभव हो सकता है. 150 रुपये की कॉफ़ी और 5 रुपये की चाय में भी ज्यादा फर्क नहीं होता है.
सफर का मज़ा धीरे धीरे ही आता है.
सफर के समय पता ही नहीं चलता की कब ट्रैन, बस और यातायात के माध्यमों में इतने पैसे खर्च हो गए. आप सफर में मज़ा तब आएगा जब आप एक जगह ठहर कर उस जगह का पूरी तरह से मज़ा लें. बार बार गाड़ियों का सफर कर आप थक ही जायेंगे और पैसे भी ज्यादा खर्च होंगे.
अगर आपको कोई अच्छा गेस्टहॉउस मिलता है तो वहां कुछ दिन बिताएं. अगर आप लम्बी अवधि के लिए रह रहे हैं तो आप डिस्काउंट के बारे में भी पूछ सकते हैं.
अगर आप कुछ महीनों के लिए सफर पर निकलें हैं तो निश्चित ही आपको एक जगह कम से कम 5 दिन के लिए रुकना चाहिए. इस तरीके से आप उस जगह को भी अच्छी तरह जान पाएंगे, आपका खर्चा भी कम होगा और आप वो जगहें भी देख पाएंगे जो अनदेखी हों. जेब में पैसे भी कुछ दिन और चल जायेंगे.
खाने की तरफ ख़ास ध्यान दें.
एक बार के खाने में 50 रुपये से ज्यादा खर्च करना नादानी है. पर आपको ख़ास ख्याल रखना होगा की खाना ताज़ा और पौष्टिक हो. बहुत सारे ऐसे यात्री भी हैं जो अपना खाना खुद बनाना पसंद करते हैं. इस लिए वो ज़रुरत के सारे सामान के साथ चलते हैं.
ढूढें सस्ते गेस्ट हॉउस
घर से निकलने से पहले अगर आप इंटरनेट में थोड़ी जांच पड़ताल कर लें तो आपको अपनी यात्रा के दौरान मिलने वाले होटल्स के बारे में ज्यादा अनुमान होगा. कई बार ऐसा होता है की बस से उतरते ही टैक्सी आपको शहर के किसी ऐसे कोने में छोड़ देती है जहाँ सभी होटल बहुत मेहेंगे होते हैं. ऐसे में किसी भी स्थानीय व्यक्सि से सस्ते गेस्ट हॉउस के बारे में पूछने में न झिझकें.
मेरे अनुभव से मुझे लगता है की रहने की जगह में दिन के 300 रुपये से ज्यादा खर्च नहीं करने चाहिए. अपने आस पास के लोगों से होटल के बारे में जानकारी लें. अगर आप यह कर सकते हैं तो टेंट ले कर साथ चलें और अगर अनुमति मिले तो आप किसी जगह टेंट भी लगा सकते हैं.
अगर आप कहीं यात्रा कर रहे हैं तो ये ज़रूरी है की आप वहां के लोगों के जैसे कुछ दिन बिताएं. यही तो अनुभव होते हैं जो सालों तक याद रहते हैं. हम अपने आस पास की सच्चाई से भागने के लिए नहीं बल्कि उनके और करीब आने के लिए इतनी लम्बी लम्बी यात्राएं करते हैं. सहर की भीड़, मोबाइल फ़ोन की परेशानी और इंटरनेट की कच-कच से दूर रहने के लिए ही हम उन गावों में सफर करते हैं जहाँ हम असल व्यक्तियों से मिलें और उन्हें जान सकें. हम में से बहुत सारे लोगों का किसी एक जगह से बहुत ही ज्यादा लगाव होता है. मुझ से पूछें तो उन दूर दाराज़ के गावों में जाने वाली सड़कों से मुझे उससे भी ज्यादा प्यार है.
हाँ, जानते हैं की सफर करने का शौक बहुत नसीब वालों को हासिल होता है. पर सच पूछें तो इसमें इतने पैसे नहीं लगते जितना लोग सोचते हैं.