गणित में फेल हुआ तो माँ-बाप ने " चूहों के मंदिर" की यात्रा करा दी

Tripoto

मैं 11वीं कक्षा में गणित में फेल हो गया था | ऐसा अनर्थ 12वीं में ना हो जाए, इसलिए मेरे माँ-बाप ने मेरे लिए एक मन्नत माँगी | 12वीं कक्षा में गणित में पास होने की खुशी में मम्मी-पापा मुझे पिकनिक के लिए घुमाने ले गए| मुझे क्या पता था कि पिकनिक के बहाने मुझे एक ऐसे मंदिर ले जाया जा रहा है, जहाँ हज़ारों चूहे रहते हैं |

यूँ तो राजस्थान में क्या दिख जाए, कुछ पता नहीं | लेकिन बीकानेर जिले के देशनोक गाँव में एक मंदिर है, जहाँ लगभग 25000 चूहे रहते हैं, प्रसाद खाते हैं, दूध पीते हैं और कभी-कभी तो मंदिर में दर्शन करने आए श्रद्धालुओं के कपड़ों में भी घुस जाते हैं |

क्या इस मंदिर में सचमुच चूहों को पूजते हैं ?

देशनोक में मौजूद ये मंदिर माँ करणी को समर्पित है | माँ करणी को काली माता का अवतार माना जाता है |

इस मंदिर में लगभग 25 हज़ार चूहे रहते हैं | बाहर से देखने पर मंदिर बिल्कुल साधारण सा लगता है | चूहे भी नहीं दिखते | मगर अंदर जाते ही ऐसा कुछ दिखता है, कि एक बार को तो होश उड़ जाते हैं |

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बाहर से मंदिर का नज़ारा

सैकड़ों चूहे मंदिर में रखे बड़े-बड़े थाल में से एक साथ दूध पीते दिखते हैं।

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एक ही थाल से एक साथ दूध पीते चूहे

करणी माता को चढ़ाने के लिए आने वाला प्रसाद पहले चूहों को खिलाया जाता है, फिर चूहों का जूठा वही प्रसाद लोग बहुत श्रद्धा से खाते हैं |

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माता का प्रसाद खाते चूहे

मंदिर में ऐसी मान्यता भी है, कि अगर 25 हज़ार काले चूहों में अगर आपको एक सफेद चूहा दिख गया, तो आप काफ़ी भाग्यशाली हैं, और आपकी मन्नत ज़रूर पूरी होगी |

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हज़ारों में एक सफेद चूहा

चूहों वाला ये मंदिर कहाँ है ?

जयपुर से 370 कि.मी. दूर बीकानेर जिले के देशनोक गाँव में बने इस मंदिर तक आसानी से पहुँचा जा सकता है | गाँव तक जाने वाली पक्की सड़कों पर सरकारी और प्राइवेट बसें चलती हैं, और ज़्यादातर रास्ता नैशनल हाइवे 52 और 11 पर ही निबट जाता है |

क्या चूहों के इस मंदिर में कोई दर्शन करने भी जाता है ?

मंदिर की मान्यता इतनी है, कि सुबह चार बजे मंदिर खुलते ही श्रद्धालुओं की लाइनें अंदर आने लगती हैं |

साल में 2 बार यहाँ मेला भी लगता है | पहला मेला मार्च-अप्रैल के महीने में नवरात्रि के आस-पास लगता है | दूसरा मेला सितंबर-अक्टूबर के महीने में लगता है |

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दर्शन की आस में कतार में खड़े श्रद्धालु

इतने चूहे मंदिर में कहाँ से आए ?

चूहों को लेकर यहाँ के लोग काफ़ी अजीब कहानी बताते हैं | कहानी के हिसाब से करणी माता का बेटा लक्षमण गाँव के तालाब के पास खेल रहा था | खेल-खेल में पैर फिसला और लक्षमण तालाब में डूब कर मर गया | करणी माता अपने बेटे की ज़िंदगी वापिस माँगने यमराज तक पहुँच गई | यमराज एक बार ली हुई ज़िंदगी वापिस तो नहीं लौटा पाए, मगर ये वरदान ज़रूर दिया कि लक्षमण के अलावा करनी माता के सारे बच्चे मरने के बाद चूहे के रूप में उनके पास ही रहेंगे |

इस मंदिर को अमरीका के रियलिटी शो 'द अमेज़िंग रेस' में दिखाया गया था |

साल 2016 में बनी डॉक्युमेंटरी 'रैट्स' में भी इस मंदिर के चूहों की कहानी बताई हुई है |

क्या इतने चूहे होने से बीमारियाँ नहीं फैलती ?

इतने चूहे होने पर भी यहाँ चूहों से फैलने वाली कोई भी बीमारी का एक भी वाक़या सामने नहीं आया | हैरानी की बात तो ये है कि यहाँ काले चूहे रहते हैं, जो सबसे ज़्यादा बीमारियाँ फैलाने का काम करते हैं | मगर इतने काले चूहे होने के बावजूद इस गाँव में एक बार भी प्लेग या कोई और महामारी नहीं फैली |

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इतने चूहे हैं, अगर एक भी पैर में दबके मर गया तो ?

पहली बात तो ये हैं कि इस मंदिर में घुसने से पहले आपको काफ़ी बाहर की चप्पल-जूते उतारने पड़ेंगे | आप मंदिर के अंदर भी लोगों को बड़ा संभाल कर पाँवों को उठाकर नहीं, बल्कि घसीट कर चलते हुए देखेंगे |

ऐसा इसलिए क्योंकि, अगर आपके पाँव तले दबकर कोई चूहा मर गया, तो काफ़ी बड़ा अपशगुन होगा |

और अगर कोई चूहा आपके पाँव तले दबकर मर गया, तो पश्चयाताप के तौर पर आपको मरे हुए चूहे के आकार का ही चूहा चाँदी में बनवा कर मंदिर में चढ़ाना होगा |

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मंदिर में प्रसाद चढ़ा कर और अपने ऊपर उछलते-कूदते चूहों से बचकर मैं बाहर निकल गया |

मंदिर में चलते हुए मैंने काफ़ी ध्यान रखा था कि कोई चूहा पैर के नीचे आकर मर ना जाए, क्योंकि ऐसा हुआ तो मंदिर में चाँदी का चूहा चढ़ाना पड़ेगा | वैसे ही गणित में फेल होने की बात से माँ बाप निराश हैं, पैसे का भी नुकसान करवा दूँगा तो कहीं गुस्सा होकर मुझे ही मंदिर में ना चढ़ा आएँ |

क्या आप राजस्थान के ऐसे अनोखे गाँवों या मंदिरों के बारे में जानते हैं ? अगर हाँ, तो कमेंट्स में ज़रूर बताएँ |

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