6 अप्रैल 2021
साल भर की भाग दौड़ भरी जिन्दगी से आज में आजाद होने वाला था, यह सफर कुछ इस तरह था की मैं मुंबई से दिल्ली और वहा 2 दिन घूमने के बाद देहरादून ऊपर फिर और वहा से पूरा उत्तराखंड और हिमाचल घूम कर यहा से राजस्थान जाना था, पर कहते है न होता वही है जो किस्मत को मंजूर हों, जहां हरिद्वार मेरी सूचि में ही नहीं था अब में हरिद्वार पहुंच गया था रात्रि, 2 बजे जहां मुझे दिल्ली उतरना था और में निंद में सीधा यहाँ आ पहुंचा।
अब जब किस्मत खुद मुझे यहां ले आयी थी तो भला में कैसे यह न रुकता बस जल्दी से एक ठहरने की जगह देख कर जल्दी से तैयार हो गया और जब में बाहर गया....अब भी अगर में अपनी आंखे बंध करू तो मुझे उस पल का एहसास हो जायेगा, दूर से आती वो आवाजे, लोगो से भरे इस शहर, बाजारों में रंग बिरंगे फूलों की खुशबू और महाकुंभ का आभास मुझे कुछ ही पलों में हो गया और मैं कही खो सा गाया था इस पल मे ।
गंगा घाट की तरफ मेरा सफर कुछ इस तरह था !!!
"दूर रेडियो से आती उस गाने की आवाज के वह शब्द "मानो तो मां गंगा हूं ना मानो तो बहता पानी" सच में कुछ अलग बात थी यहां भीड़ भाड़ से दूर भागने वाला आज भीड़ में सुकून महसूस कर रहा था,
बाजार में वो रंग बिरंगे कपड़े, फूल, और वो खुशबू, किसी को भी कुछ ही पलों में देवभूमि हरिद्वार के प्यार में समाहित करने के लिए काफी थीं,
हर तरफ जहां इतना कुछ डर है महामारी का तो फिर यहां भी उसे उतने ही उच्चित तरीके से पालन करके सब कुछ संभाला जा रहा था, हर नुक्कड़ पर खड़े जवान और भरे बाज़ार और हरी ॐ के भजन कीर्तन करते मेरे पास चलते वो श्रद्धालु मंत्र मुक्त करने वाला माहोल था यहां,
घाट पहुंच कर जब अपने इन हाथो से मां गंगा को छुआ तो लगा जिन्दगी का आभास पहली बार हुआ है और यह सच भी था एक एक करके मुझे वो सारे पल याद आ रहे थे जब जानबूझ कर या गलती से किसी का बुरा किया था मैने और मां गंगा से अपने हर पाप के लिए क्षमा मांग कर उनका जल मैने अपने सर पर लगाया तो मानो ऐसा लगा आज काफी अरसे बाद मां की गोद में सोया कर उन्होंने प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरा हो,"
जिन्दगी का सबसे सुखमय पल मां गंगा के पास गुजारने के बाद मां मनसा देवी मंदिर की तरफ निकल गया और वहा का मेरा सफर कुछ ऐसा था,
"जहां अब तक कुछ दूर पैदल चलने पर थक जाता था आज मैने पूरा सफर पैदल तय किया, आधा सफर हुआ था मेरा और उसे कैसे भूल सकता हूं, हां रास्ते में बैठे उस एक छोटे से बचे को जिसने अपने आप को पूरी तरह भगवान शिव की पोशाक पहन कर मानो भगवान शिव की बचपन के प्रतिरूप में ढाले हुए था,
अब में मां मनसा देवी के उस पवन मंदिर में था, आंखे बंध करने अपनी हर मनोकामना के लिए मां से प्रार्थना की, और काफी भीड़ होने के बावजूद भी मेरा मन वहा बैठने को कर रहा था,
शायद पंडितजी मुझे देख कर समझ गए थे और उन्होंने मुझे अपने पास शरण दी और कुछ देर वहा बैठ गया और मन में मैने मां मनसा देवी से हर वह सवाल किया और जवाब ढूंढने लगा जिनके जवाब शायद हमे पता होना चाहिए, और शायद यही वह पल था जब में एक साधारण जीवन से अध्यात्मक जीवन की और बढ़ रहा था अब धीरे धीरे मेरा मन पूरी तरह संसार से दूर होकर भक्ति में लीन होने लगा और में बहुत खुशी भी महसूस कर रहा था क्यूं की अब मेरे इस सफर का पूर्णतया आरंभ हो चुका था,
पंडितजी ने मुझे मेरे पूजा के थाल में रखी उस चुनरी को देवी के मंदिर के पास वाले उस पेड़ पर बांधने को कहा हो कहा इसे बांध कर तुम जो मनोकामना करोगे अवश्य पूर्ण होगी,
आज के इस समय में इन सब मान्यताओं को मेरी उम्र के लोग इतनी तवज्जू नही देते पर शायद कल तक में उनमें से एक था अब तो हरिद्वार का रंग जो मेरे खून में घुल गया था, और बस वह चुनरी पेड़ की उस टहनी से बांधने लगा, और मां से प्रार्थना की और फिर में वहा से थोड़ी ही दूर पर एक पहाड़ की तरफ निकल गया"
और फिर हरिद्वार को अलविदा कह कर में निकल पड़ा मेरे अगले सफर पर !!!