" घूमना इस दुनिया का सबसे सुंदर सच है। अगर कोई आपसे पूछे कि आप घूमने-फिरने क्यों जाते हैं, तो शायद आपका जवाब होगा कि आप भागदौड़ से ब्रेक लेने और खुश रहने के लिए ट्रिप पर जाना पसंद करते हैं।पर मेरा जवाब शायद आप से अलग होगा। घूमना मेरा जुनून हैं इससे मुझे सुकून मिलता है।किसी अनजान मगर नई जगह पर जाना यूहीं भटकना बहुतों को नागवार सा लगता होगा लेकिन जिन्हें इस दुनिया के बारे में अच्छा लगता हैं वो ऐसा घुम्म्मकरी से करते हैं और मैं ऐसा ही करता हूं।
नए साल का जश्न एक ऐसी चीज है जिसे लोग बेहतरीन तरीके से अनुभव करना चाहते हैं। यह वर्ष का वह समय है जब हम वर्तमान वर्ष को अलविदा कहते हैं और नए वर्ष का स्वागत करते हैं। असीमित मस्ती, पार्टियां और मस्ती हमारे रास्ते में आ रही है और पूरी दुनिया उत्सव और आनंद के रंग में सराबोर है जबकि हम बीते साल को अलविदा कह रहे हैं, तमाम अटकलों के बाद कि क्या हम कभी नए साल की सुबह देखेंगे या नहीं, मुझे लगता है कि यह नया साल एक उत्साही, गर्मजोशी और हार्दिक स्वागत का हकदार है। मुझे याद है मेरी दादी ने कहा था, "जिस तरह हम साल का पहला दिन बिताते हैं जो पूरे साल के लिए मूड सेट करता है"। इसी विचारधारा के साथ हम ने सोचा की किसी ऐसी जगह का प्लान करते हैं जहां हम कभी गए ना हो।फिर हम ने प्लान की गांधी सागर डैम के भ्रमण का।
हम ने सोचा की इस नए साल के अवसर पे हम बाइक से इस ट्रिप को अंजाम देंगे रास्ता थोडा मुश्किल था। क्योंकि तापमान 3°c था।पर हम भी मुसाफ़िर लोग थे जनाब ट्रैवल करने के लिए हमे कोई बाधा रोक नहीं सकती।हम ने अपनी बाइक उठाई और निकल पड़े गांधी सागर की ओर।200 किलोमीटर का सफ़र की शुरुवात हमारे कैंप से होती हैं। इस ट्रिप का रूट कुछ ऐसा है: बसई - सुवासरा - गरोठ - भानपुरा - गांधी सागर डैम
गांधी सागर डैम के बारे में
वैसे हम आपको बता दे गांधी सागर बांध और जलाशय के आसपास के विशाल जंगल को गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य के रूप में नामित किया गया है। इसे 1974 में अधिसूचित किया गया था और 1983 में इसे और बढ़ा दिया गया। जंगल तेंदुए, सुस्त भालू, हिरण और मृग की विभिन्न प्रजातियों, लकड़बग्घे, खरगोश और बंदरों का घर है।इस क्षेत्र में एक बड़ा बांध 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जिसे गांधी सागर के नाम से जाना जाता है।गांधीसागर बांध जिला मुख्यालय से 168 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। डैम का निर्माण चंबल नदी पर किया गया है। जिले में गांधी सागर बांध / पावर स्टेशन के निर्माण का आधारशिला प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा 7 मार्च, 1954 को रखी गई थी। बिजली स्टेशन में 1957 में काम शुरू किया गया था, जबकि बिजली उत्पादन और इसका वितरण नवंबर, 1960. गांधी सागर बांध और पावर स्टेशन के निर्माण पर कुल खर्च लगभग रु 18 करोड़ 40 लाख।गांधी सागर पावर स्टेशन 65 मीटर लंबा और 56 फीट चौड़ा है। पावर स्टेशन में 23 मेगा वाट क्षमता की पांच टरबाइन हैं, इस प्रकार कुल स्थापित क्षमता 115 मेगा वाट है।गांधी सागर पावर स्टेशन अब पूरे जिले में बिजली की आपूर्ति करता है। जिले में बिजली की जरूरतों को पूरा करने के अलावा, इस बिजली घर से बिजली मध्य प्रदेश और राजस्थान राज्य में दूर दूर तक सप्लाई की जाती है।यह स्थान सर्वकालिक पसंदीदा है क्योंकि इस स्थान पर वर्ष भर बहुत से लोग पहुंचते हैं। आप बांध का आनंद ले सकते हैं, आप कुछ क्षेत्रों में तैर सकते हैं और आसपास के हरे-भरे दृश्यों का आनंद भी ले सकते हैं। अगर आप टर्बाइन के बारे में जानना पसंद करते हैं तो यह बांध क्षेत्र आपके लिए सबसे अच्छी जगह है।
गांधी सागर में क्या करें?
गांधी सागर पहुंचते ही हमने सबसे पहले वाटर स्पोर्ट्स एक्टिविटीज एरिया की तरफ़ रूख किया। वहां जा के हमे पता चला की काफी एक्टिविटीज वाली चीज़ वहां खराब थी, यहां तक की क्रूज़ भी मेनटेंस पर गई हुई थीं। फिर हमने स्पीड बोट को बुक किया और वहां के नजरों को अपने आखों में कैद किया।वैसे हम आपको बता दे वहां का नज़ारा काफी दिलकश था। स्पोर्ट्स एरिया में आपको कैफेटेरिया भी मिल जायेगा। स्पोर्ट्स एक्टिविटीज एरिया तक पहुंचने का रास्ता काफी दिलचस्प और मनोहर दृश्य वाला है। वहां पत्थरो को काट काट के रास्ता बनाया गया हैं जो की देखने में काफ़ी खूबसूरत लगता हैं।
डैम और स्पोर्ट्स एक्टिविटीज का आनन्द उठाने के बाद हमने वहां कुछ ऐसी और जगहों का सैर किया जिसने देखने के बाद हमारा दिन बन गया। एक अलग युग से कहानियों की खोज के आनंद से ज्यादा कुछ नहीं हो सकता है? एक समय, स्थान और सौंदर्य, जिसके बारे में आप बहुत कम जानते हैं। पत्थर पर उकेरी गई कहानियां जो आपको एक लंबे समय से चले आ रहे लोगों के बारे में बताती हैं, उनका जीवन और समय। मध्य प्रदेश राज्य भीमबेटका और पंचमढ़ी सहित कई ऐतिहासिक रत्नों का घर है, जिनमें कुछ सबसे भव्य शैल चित्र हैं। हालांकि एक और भी है, जो सामान्य दृष्टि से छिपा हुआ है और राज्य का सबसे अच्छा रखा गया रहस्य है।गांधी सागर अभयारण्य में स्थित चतुर्भुजनाथ नाला रॉक आर्ट शेल्टर को दुनिया की सबसे लंबी रॉक आर्ट गैलरी माना जाता है। ये बात हमें वहां जा के पता चली।एक छोटे से आधुनिक मंदिर, चतुर्भुजनाथ मंदिर के नाम पर, इस साइट की खोज 1977 में तीन स्कूली शिक्षकों, रमेश कुमार पंचोली, आबिद चौधरी और सतीश भटनागर ने की थी। शैलाश्रयों की देखभाल अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा की जाती है।चतुर्भुजनाथ नाला रॉक शेल्टर 12 अलग-अलग शैलियों और समय अवधियों में रॉक कला छवियों का भंडार है, जो ऊपरी पुरापाषाण काल (50,000 - 12,000 साल पहले) से शुरू होता है, और मेसोलिथिक काल (12,000 - 6,000 साल पहले) के माध्यम से जारी रहता है। एक सरलीकृत शैलियों के साथ अवधि (6,000-4,000 साल पहले) और यहां तक कि प्रारंभिक ऐतिहासिक काल।सदियों से बनाई गई ये पेंटिंग, क्षेत्र के तत्कालीन मूल निवासियों के दैनिक जीवन की झलक पेश करती हैं और समय के साथ यह कैसे आगे बढ़ी। यहां आने का हमें कोई इंट्री फीस नहीं देनी पड़ी बस आपको वाहन शुल्क देना होगा। सड़क से करीब 8km दूर हैं ये जगह,जो की एक जगल से होते हुए जाता हैं।
रॉक पेंटिंग एक्सप्लोर करने के बाद हमने देखा की शाम के 4:30 हो गए,कैंप दूर था इस वजह से हमने किला दिखने का प्लान कैंसल किया और सीधे पहुचे एक होटल जहां हमने एमपी फेमस दाल भापले और चूरमा का आनन्द लिया। फिर हमने अपनी अपनी बाइक उठाई और निकल पड़े कैंप की तरफ़। वन वे सड़क होने की वजह से रात को ठंड में ड्राइविंग करना बहुत ही मुश्किल हो रहा था। आगे जा के तापमान शून्य से भी कम हो गया था।कुछ दूर जाने के बाद हम एक दुर्घटना के शिकार हो गए। सड़क खराब होने की वजह एक कार की बेवकूफी की वजह से हमारा एक्सीडेंट हो गया। मुझे और मेरे मित्र को काफी चोट आई।जिस की वजह से हम कुछ देर वही आराम किया और फिर मैंने बाइक उठाई और अपने सफर को अंजाम दिया।
मेरा सुझाव
अगर आप गांधी सागर डैम देखने जा रहें तो कम से कम 2 दिन का ट्रिप प्लान करें। क्योंकि आपको वहां बहुत कुछ देखने को मिलेगा। इस ट्रिप के दौरान आप मिनी गोवा, हिंगलाज किला, टेंपल और हिंगलाज रिजॉर्ट ज़रूर घूमना चाहिए। हिंगलाज रिजॉर्ट में आपको रात्रि बिताना चहिए साथ ही साथ वहां होने वाले एक्टिविटीज का आनंद उठाना चाहिए।और हां खाने में दाल भापाले और चुरमा खाना बिल्कुल भी मत भूलना आप।
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