रात को 12 बजे ट्रेन की टिकट कैंसल करके मैं बैग पैक कर रहा था। आहट सुन मम्मी ने पूछा इतनी रात को बैग पैक कर रहा? ट्रेन तो कल रात को है। मैंने कहा, मैने ट्रेन टिकट कैंसल कर दी है। तो जायेगा कैसे मम्मी ने थोड़ा तेज आवाज मैं पूछा। "बाइक से", धीमे आवाज में मैंने भी जवाब दिया। इतनी दूर बाइक से? कौन कौन जायेगा? मैंने कहा है एक लड़का और है- हम दो लोग जाएँगे।
मैं बैग पैक करने में लगा रहा और मम्मी ने भी नींद को गुडबाय बोल दिया।
कैसे जायेगा और बाइक से जाने की क्या जरूरत? टिकेट क्यों कैंसल किया? ऐसे ही और कितने सवाल जोर-जोर से कानों में सुनाई दे रहे थे लेकिन मैं भी अपनी तैयारी में जुटा रहा।
सुबह के 6 बज चुके थे। मैंने पैट्रोल और बाइक चेक की। सब ठीक था, बस अब इंतजार था दोस्त के आने का। "आ गया" मम्मी की आवाज सुनाई दी।
"सब रख लिया है न?" मैने दोस्त से पूछा।
हाँ! उसने धीमी आवाज़ में जवाब दिया। सुबह के 9 बजे हम लोग निकल चुके थे। आगे था मध्य प्रदेश के कटनी जिले से भोपाल तक का करीब 400 किलोमीटर लम्बा सफर।
लो सफर शुरू हो गया
करीब 15 मिनट मैं राजा कर्ण की नगरी बिलहरी पहुँच गए थे। भईया के ऑफिस के सामने पहुँचकर मैंने गाड़ी रोकी, चाय पी और हेलमेट खरीदा।
एक तो था मेरे पास एक और दोस्त के लिए 10 बजे बिलहरी से निकल चुके थे। रॉयल इनफील्ड क्लासिक 350 की आवाज कानों मैं मधुर गाने की तरह सुनाई दे रही थी। गाडी 115 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से सड़क पर दौड़ रही थी। कुछ समय बाद हम दमोह जिला के बांदकपुर में थे जो की भगवान शिव का बहुत ही पवित्र स्थान है। हम रुककर चाय पी रहे थे, तभी दोस्त ने पूछा- पर हम भोपाल क्यों जा रहे हैं?
"एक छोटा-सा इंटरव्यू है, मैंने कहा। दरअसल इंटरव्यू तो बहाना था। बाइक से जाने का शोक जो पूरा हो रहा था। दमोह , सागर, विदिशा, सांची से होते हुए तक का करीबन 4०० किलोमीटर का सफर हमने अगले 6 घंटों में पूरा कर लिया था। मैंने झट से अपने फ़ोन पर ओयो में होटल ढूँढा। 700 रूपए में ठीक-ठाक कमरा भी मिल गया। हमने कमरे में सामान रखा, मुँह-हाथ धोया और फ्रेश होकर भोपाल घूमने निकल पड़े। भोपाल का हबीबगंज स्टेशन जो की अब रानी कमलापति के नाम से जाना जाता है दिखने में एकदम एयरपोर्ट जैसा था। सच कहूँ तो शायद एयरपोर्ट से भी बेहतर ही लग रहा था। अंदर जाने में थोड़ी हिचकिचाहट ज़रूर हो रही थी पर क्या बाकमाल स्टेशन था। साफ़ सफाई ऐसी की मानो फर्श पर किसी ने शीशा रख दिया था। रात को 9 बज चुके थे। सुबह 9 बजे से इंटरव्यू है। मैंने कहा अब कमरे में चलकर आराम कर लिया जाए।
इतना बड़ा शहर है भोपाल। कौन से रस्ते से आये थे कुछ याद नहीं था। पर अब वापसी ज़रूरी थी। मैंने गूगल मैप में होटल की लोकेशन डाली। मैप लोकेशन देखकर मालूम चला हम होटल से १६ किलोमीटर दूर आ गए हैं। ज़ोर की भूख भी लगी थी पर समय की कमी के चलते हमने खाना पैक करवाने का सोचा। लेकिन भूख के आगे आजतक किसकी चली है। हमने बीच रस्ते में रूककर चाऊमीन और पास्ता खाया और फिर अपने होटल की और चल दिए।
अगली सुबह: इंटरव्यू और घर वापसी
सुबह के 7 बजे अचानक नीद खुली। पिछले दिन के सफर की थकान के चलते नींद से उठना भारी लग रहा था। जल्दी-जल्दी नहाकर मैंने दोस्त को आवाज लगाई, "उठ मुझे कॉलेज छोड़ दे फिर आकर सोते रहना।" "सुन 12 बजे चेकआउट करके यही आ जाना।" करीब 40 मिनट में मेरा इंटरव्यू हो गया। बाहर दोस्त का इंतजार कर रहा था। वो भी 11 बजे तक चेकाउट करके आ गया था। फिर घर की तरफ का सफर फिर शुरू हो गया। बीच रास्ते हमने सांची का स्तूप घूमने का प्लान बनाया। सुन्दर और गजब नक्काशी मनमोहक जगह देखकर दिल खुश हो गया।
हम साँची से दोपहर 1 बजे निकले थे और शाम को 6 बजे अपने घर पहुँच चुके थे। यह सिर्फ एक छोटा-सा बाइक ट्रिप मैंने खुदके अनुभव के लिया था। आने वाले समय में मैंने भारत के आखिरी गाँव माणा तक का सफर करना चाहता हूँ। हर लम्बे सफर की शुरुआत छोटे-छोटे रास्तों से होती है और ये रोड ट्रिप मेरे लिए उन्हीं में से थी।
मैं मध्य प्रदेश के कटनी जिले के छोटे से गाँव गुलवारा का पहला लड़का होंगा जिसने बाइक से 400 किलोमीटर का सफर तय किया है।
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