दोस्तों ,जब भी हम किसी स्थान पर घूमने जाते हैं तो उस जगह की ऐतिहासिक एवं भौगोलिक जानकारी अगर हमे हो ,तो फिर वहा घूमना सोने पे सुहागा हो जाता हैं तो आज हम चलते हैं गुजरात के वेरावल नगर में स्थित ,12 ज्योतिर्लिंगों में से सबसे पहले ज्योतिलिंग की यात्रा पर।अरब सागर के किनारे स्थित इस मंदिर के बारे में लिखने को मेरे मन में तब भी आया था जब अभी कुछ महीनो पहले ,प्रधानमंत्री मोदी जी ने इस जगह को टूरिस्ट्स के लिए और अच्छा बनाने के लिए कुछ प्रोजेक्ट्स की शुरुवात करवाई।
आज के इस आर्टिकल में हम मंदिर को पर्यटक की दृष्टि से तो घूमेंगे ही लेकिन साथ ही साथ पलटेंगे इस मंदिर के इतिहास के ऐसे कुछ पन्ने ,जिन्हे कि यहाँ जाने वाले हर एक यात्री या यूँ कहो तो हर एक भारतीय को जरूर पढ़ना चाहिए।
एक ही क्षेत्र में हैं पर्यटकों के लिए आस्था एवं एडवेंचर से भरी कई जगहे -
सोमनाथ मंदिर ,गुजरात के जूनागढ़ से करीब 95 किमी ही दूर स्थित हैं। आपको सबसे पहले जूनागढ़ में ही घूमने को इतना मिल जायेगा कि लगेगा की दिन कम पड़ने वाले हैं। यहाँ बौद्ध गुफाये ,महबत मकबरा ,गिरनार हिल ,स्वामी नारायण मंदिर ,संग्रहालय आदि आप घूम सकते हैं। गिरनार पर तो लिखने के लिए ही एक अलग से आर्टिकल तैयार करना पड़े तो भी कम हैं। लेकिन अभी तो आगे समुद्री एडवेंचर भी आने बाकी हैं। अब जब आप सोमनाथ पहुंच के समुद्र के नज़ारे देखोगे तो अनंत फैले समुद्र और उसकी आगे पीछे आती लहरों की आवाज़ ,आपको वही बस जाने को बोलती हुई लगेगी। सोमनाथ अरब सागर के किनारे बसा हुआ ज्योतिर्लिंग हैं।यहाँ से वेरावल बंदरगाह भी काफी नजदीक हैं ,जहाँ कई बड़ी बड़ी व्यापारिक जहाज आप देख सकते हैं।मैंने पहली बार समुद्र यही देखा था ,शायद यही कही 2006 या 2007 में। उसके बाद सीधा फरवरी 2020 में मेरा यहाँ जाना हुआ। जिन्होंने मेरी पुस्तक 'चलो चले कैलाश ' पढ़ी हैं तो उन्हें याद होगा कि मैंने लिखा था कि कैलाश मानसरोवर यात्रियों के मिलन सम्मेलन भी आयोजित होते रहते हैं। ऐसा ही एक पुरे भारत के कैलाश मानसरोवर यात्रियों का 3 दिवसीय सम्मलेन यहाँ हुआ था ,जहाँ अनुराधा पोडवाल की लाइव भजन संध्या समुद्र के किनारे करवाई गयी ,तब मेरा इस जगह वापस जाना हुआ था।
मंदिर परिसर के बाहर चारो तरफ कई सारी दुकाने हैं। जहाँ से दूर से ही यह मंदिर साफ़ नजर आता हैं। बाजार के पास से ही शुरू होते इस मंदिर के परिसर को चारो ओर लोहे की ऊँची ऊँची झालिया लगी हैं ,और इन्ही के साथ एक जगह प्रवेश द्वार हैं ,जहाँ से अंदर आपको पूरा सिक्योरिटी के द्वारा चेक करके अंदर भेजा जाता हैं। मोबाइल अंदर नहीं ले जाने दिया जाता हैं। प्रवेश करते ही ,आप साफ़ सुथरे खुले परिसर में पहुंचते हैं ,जहाँ पुरे इस प्रांगण में कबूतर ही कबूतर दाना खाते हुए मिलते हैं। यही आपको सरदार पटेल की एक मूर्ति लगी हुई मिलती हैं।
जिसके बारे में आगे एक रोचक बात भी अभी पढ़ने को मिलेगी। आगे एक और प्रवेश द्वार से अंदर जाते ही मंदिर की मुख्य ईमारत के एकदम सामने आप खुद को पाते हैं। इस ईमारत के चारो ओर बगीचा और उसमे पत्थरो का पथ बना हुआ मिलेगा। मंदिर के ऊपर भगवा ध्वज लहराता रहता हैं। अंदर प्रवेश कर आप उस चमत्कारी ज्योतिर्लिंग के दर्शन करते हैं जिसके बारे में माना जाता हैं कि यह ज्योतिर्लिंग हवा में तैरता था। बाहर निकल कर आप कुछ टूटे हुए मंदिरों के भाग भी देख पाएंगे। मंदिर के दायी ओर 12 ज्योतिलिंग की कहानिया पढ़ने को मिलती हैं। दायी ओर प्रसाद एवं दूरबीन से समुद्र दर्शन की सुविधा उपलब्ध हैं। मंदिर के पीछे की और अथाह समुन्द्र दिखाई देता हैं जिसमे कई बार जहाज तैरते हुए दिखते हैं। समुन्द्र देखने और पीछे वाली तरफ घूमने के लिए भी पत्थरो का एक पथ और कई कुर्सियां बनी हुई हैं, जिनपर बैठ कर आप समुंद्री लहरों की आवाज़ सुनते हुए शांति का अहसास पा सकते हैं। यही पीछे ही एक खुला स्टेडियम भी बना हैं ,जिसमे करीब 200 300 लोगो के बैठने की व्यवस्था भी हैं ,जिसमे सबसे ऊपर वाली सीट्स से ऊंचाई से समुद्र दर्शन किये जा सकते हैं। इसी स्टेडियम में बैठकर ,शाम को आप यहाँ का लाइट शो देख सकते हैं। जिसमे मंदिर की मुख्य ईमारत को स्क्रीन की तरह उपयोग में लेकर, उसपर यहाँ के इतिहास से जुडी छवियां एवं वीडियो दिखाए जाते हैं एवं अमिताभ की आवाज़ में यहाँ की कई जानकारियां दी जाती हैं।
मंदिर के बायीं ओर पत्थर के पथ के बीच समुद्र की ओर इशारा करते हुए एक बड़ा स्तम्भ भी बना हुआ हैं ,जो कि यहाँ का एक बड़ा अट्रैक्शन हैं ,जिस पर कुछ श्लोक भी लिखा हुआ हैं। उस श्लोक का मतलब समझाया हुआ हैं कि - इस दिशा में अगर आप सीधे सीधे समुद्र की ओर जाओगे ,तो दक्षिण ध्रुव तक कोई भी भूखंड बीच में नहीं आएगा। अर्थात पुरे रास्ते दक्षिण ध्रुव तक केवल समुद्र ही समुद्र मिलेगा। इसे बाण स्तम्भ कहते हैं। हालाँकि यह ज्यादा पुराना नहीं लगता हैं ,परन्तु यह स्तम्भ और श्लोक यहाँ पहले भी रहा होगा ,जिसे केवल नया बनवाया गया हैं। मतलब इस बात की जानकारी काफी प्राचीन समय से लोगो को थी।
दक्ष प्रजापति से जुडी हैं सोमनाथ के पहले मंदिर की कहानी -
ऋग्वेद में भी इस मंदिर का जिक्र बताया जाता हैं जो कि सबसे पुराना वेद हैं।माना जाता हैं यह मंदिर हर युग में बनता आया हैं। सबसे पहले इस मंदिर के बनने की कहानी कुछ इस प्रकार बताई जाती हैं कि - दक्ष प्रजापति की 27 बेटियों की शादी चंद्रदेव ( सोम का मतलब चंद्र होता हैं।) से हुई जिनमे से एक ,'रोहिणी' से चंद्रदेव बहुत स्नेह करते थे। तो बाकी 26 बहनो ने यह शिकायत दक्ष प्रजापति से की ,जिन्होंने चंद्र को क्षय रोग होने का श्राप दिया।चंद्र की शक्ति अब खत्म होने लग रही थी तो ब्रम्हा जी के कहने पर चंद्रदेव ने यहाँ शिव आराधना की और भगवान शिव ने यहाँ अवतरित होकर ,उनके श्राप का निदान किया।
माना जाता हैं फिर चंद्रदेव ने यहाँ पहला सोमनाथ मंदिर स्वर्ण से बनवाया।दूसरी बार यह मंदिर रावण ने चांदी से बनवाया ,तीसरा श्री कृष्णा (द्वारका यहाँ नजदीक ही हैं )ने चन्दन से बनवाया था। इसके बाद यह मंदिर कई बार बनवाया गया। इस पर कई बार मुस्लिम आक्रांताओं के आक्रमण और यहाँ नरसंहार भी हुए।लेकिन हर बार यह मंदिर वापस बनाया गया हैं।
कहानी सोमनाथ के वर्तमान मंदिर और इस से पहले बने सोमनाथ मंदिरों पर हमले की-
सोमनाथ मंदिर पर हमले की पहली कहानी एक यात्रा वृतांत (किताब उल हिन्द एवं तारीख उल हिन्द किताब )जो कि एक अरबी यात्री 'अलबरूनी ' ने लिखा था ,उस से शुरू होती हैं।इस से वर्तमान अफ़ग़ानिस्तान के ग़जनी इलाके के तुर्क आक्रांता एवं लूटेरे महमूद गजनवी को सोमनाथ की समृद्धि एवं हवा में तैरते (मैग्नेटिक फिल्ड की वजह से )शिवलिंग के बारे में पता चला। 1024 AD में अब वह इसे लूटने के लिए भारत पर अपना 16वा हमला करने को निकला,मतलब वो पहले भी भारत में 15 बार हमले कर चूका था। जिसमे कन्नौज पर आक्रमण एवं यह सोमनाथ पर आक्रमण सबसे भीषण था। करीब 30000 सैनिको की फौज लिए उसने भारत में प्रवेश किया तो कई जगह उसका रास्तों के छोटे बड़े राज्यों से सामना हुआ। परन्तु वो आगे बढ़ता गया,मंदिर के पास करीब 5000 राजपूत इसकी हिफाज़त के लिए ग़जनवी की सेना से भिड़े परन्तु ग़जनवी आखिरकार मंदिर में पहुंचने में सफल हुआ। उसने यहाँ से अपार सम्पति लूटी ,शिवलिंग को तहस नहस कर दिया और बहुत ही भीषण नरसंहार किया। कहा जाता हैं कि वो सोमनाथ के दरवाजे से इतना प्रभावित हुआ कि उन्हें भी अपने साथ ग़जनी ले गया और उन्हें अपनी क़ब्र पर लगवाने की इच्छा रखी हुई थी।हालाँकि 1842 में जब अंग्रेजो ने किसी हिन्दू मुस्लिम मुद्दे के तहत ग़जनी स्थित उसकी कब्र से दरवाजे उखाड़ कर वापस भारत लाये तो पता चला कि उसकी कब्र पर सोमनाथ मंदिर वाले दरवाजे नहीं लगे थे। ये कब्र वाले दरवाजे अभी भी आगरा के लाल किले में रखे हुए हैं।
लेकिन कुछ सालों बाद गुजरात के राजा भीमदेव एवं मालवा के राजा भोज ने इस मंदिर को पुनः बनवा दिया। अब 1297 में अलाउदीन खिलजी के सेनापति 'अफ़ज़ल ' का इस जगह आना हुआ तो उसने खिलजी को इस मंदिर के बारे में बताया। खिलजी ने इसपर आक्रमण कर इसे फिर ध्वंस्त कर दिया और नरसंहार किया। स्थानीय लोगो ने फिर इस मंदिर को वापस बनवा दिया। 100 साल के अंदर अंदर फिर ,गुजरात के राजा मुजफ्फरशाह ने यहा हमला कर ,मंदिर फिर बना। 1412 मे मुजफ्फरशाह के बेटे ने भी इस मंदिर को तुड़वा दिया। यह मंदिर जितनी बार आक्रांताओं द्वारा तोडा गया ,हमारी आस्थाओं ने इसे फिर से और ज्यादा मजबूती के साथ इसे फिर से खड़ा कर दिया। 1665 में औरंगजेब ने भी इसे तुड़वाया तो लोगों ने टूटे हुए मंदिर के खंडहर पर ही पूजा पाठ करना चालू कर दिया। औरंगजेब इस चीज से इतना चिढ़ा कि उसने खंडहर पर पूजा पाठ करते लोगो को भी मारने के लिए सेना भेज दी और नरसंहार करवा दिया। तो इस प्रकार यह मंदिर कई बार ऐसे हमले झेलता रहा और फिर खड़ा होता रहा।
सोमनाथ हमले का बदला लेते हुए वीरगति प्राप्त हुए राजस्थान के लोकदेवता गोगादेव जी -
जब गजनवी सोमनाथ हमले के लिए रेगिस्तानी इलाके में प्रवेश हुआ तो वहा के शासक गोगाजी के पराक्रम की गाथाये उसने सुनी थी। गोगाजी भी उधर अपने आराध्य देव शिव की रक्षा के लिए गजनवी से भिड़ने को तैयार थे। लेकिन गजनवी ने उनके पराक्रम की वजह से 3 बार उनके पास दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया और हीरों के थाल उनके लिए भेजे। लेकिन गोगाजी ने उन थालो को फेक कर उसे युद्ध के लिए तैयार रहने का संदेश भिजवा दिया। लेकिन गजनवी इस युद्ध से बचने के लिए रास्ता बदल कर सोमनाथ की तरफ बढ़ गया।लेकिन गोगाजी ने आगे आने वाले राज्यों के राजाओं को सचेत कर दिया था। फिर भी सोमनाथ में लूट मचा जब वो वापस जाने को इसी रेगिस्तानी रास्ते से आया तो अब वो गोगाजी से मुकाबला करने की तैयारी में था। उधर गोगाजी ने भी पडोसी राज्यों के राजाओं को मदद के लिए आने का सन्देश भेज दिया था। गजनवी ने चालाकी दिखाई और निर्धारित दिन से कुछ दिन पहले ही अचानक गोगाजी के राज्य पहुंच हमला बोल दिया। गोगाजी के पास उस समय मात्र 1000 राजपूत सैनिक थे। कोई पडोसी मदद को ना पहुंच सके। करीब 80 वर्ष की उम्र के गोगाजी महाराज अपने 82 पुत्र,प्रपोत्र के साथ वीर गति प्राप्त हो गए। इसके बाद उनकी रानियों ने जोहर कर लिया। इनके 2 पुत्र जान बचाकर ,भेष बदल कर उसकी सेना मैं भी शामिल हुए। इन दोनों ने रेगिस्तान के भीषण गर्मी के इलाकों में उन्हें रास्ता भटक्वा दिया। जिस से गजनवी के कई हज़ारो सैनिक मारे गए ,लेकिन उनके साथ साथ ये दोनों भी उन इलाकों में खुद को बचा ना पाए।
जहाँ गोगाजी महाराज वीरगति प्राप्त हुए उसी के पास एक जगह पर उनका एक मंदिर बनवाया गया ,जिसे गोगामेड़ी तीर्थ बोला जाता हैं। उनके वंश के जो राजपूत सैनिक बाद में मुस्लिम धर्म अपना चुके थे ,वे भी इन्हे आज काफी मानते हैं ,वो इन्हे गोगापीर के नाम से पुकारते हैं। यह जगह राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के नोहर मैं स्थित हैं। यहाँ हिन्दू एवं मुस्लिम दोनों धर्म के लोग पूजा करते हैं एवं चढ़ावे में प्याज चढ़ाते हैं।
आज़ादी के बाद इस तरह राजनीतिक मुद्दों के बीच हुआ सोमनाथ मंदिर का निर्माण -
1947 -48 में जूनागढ़ रियासत के नवाब चाहते थे कि यह क्षेत्र पाकिस्तान में मिल जाए। तब सरदार वल्लभ भाई पटेल की सूझबूझ से इसे भारत में ही रखा गया। फिर सरदार वल्लभ भाई पटेल ने यहाँ स्थित सोमनाथ मंदिर के पुनरुद्धार का प्रण लिया एवं इसकी जिम्मेदारी श्री K.M. मुंशी जी को दी। मंदिर का निर्माण कार्य चालू हुआ जिसमे सरकारी धन का इस्तेमाल बिलकुल नहीं हुआ क्योकि नेहरू जी नहीं चाहते थे कि भारत जैसे धर्म निरपेक्ष देश में किसी भी एक धर्म के काम में कोई राजनितिक योगदान हो। वल्लभ भाई पटेल का देहांत तो 1950 में ही हो गया था।1951 तक अब मंदिर बन चूका था एवं 11 मई 1951 को मंदिर को बड़े स्तर पर सभी के लिए खोलने की तैयारी के लिए प्रोग्राम किया गया जिसमे आने के लिए नेहरू जी ने साफ़ साफ़ मना कर दिया। डॉ.राजेंद्र प्रसाद ने यहाँ आने का आमंत्रण स्वीकार कर लिया। नेहरू जी ने उन्हें खत लिखकर उनके इस कार्यक्रम में शामिल होने को देश के लिए एक धर्मनिरपेक्षता के विरुद्ध गतिविधि बताया एवं उन्हें भी उस दिन मंदिर जाने से मना किया। लेकिन डॉ.राजेंद्र प्रसाद ने जी उनकी बात ठुकरा कर ना केवल वहा गए ,बल्कि काफी अच्छा भाषण भी दिया। तब से नेहरू जी की नाराजगी भी उनके लिए बढ़ गयी थी।
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वर्तमान का सोमनाथ मंदिर सरदार वल्लभ भाई पटेल ,K. M. मुंशी जी एवं डॉ.राजेंद्र प्रसाद के ही सहयोग से सीना ताने अरब सागर के किनारे खड़ा हैं। सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट ,मंदिर विकास के लिए काफी प्रोजेक्ट्स पर भी काम करता हैं। वर्तमान में सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट के चेयरमैन खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी हैं।
मंदिर के एवं इसके आसपास के क्षेत्र के निचे दबा हैं कोई रहस्य -
कुछ ही महीने पहले IIT गांधीनगर एवं पुरातत्व विभाग की इस जमींन पर अध्यन की एक 32 पेज की रिपोर्ट सामने आयी। जिसमे यह बताया गया कि मन्दिर परिसर की 4 जगहों के निचे कुछ इमारते एवं गुफाये स्थित हैं। GPR तकनीक के तहत उन्होंने पता लगाया हैं कि जमीन में 2 से 7 मीटर तक अंदर कुछ तीन मंजिला भवन बने हुए हैं। इन चार जगहों में मंदिर का मुख्य द्वार एवं सरदार पटेल की मूर्ति वाली जगह भी शामिल हैं। सरदार पटेल की मूर्ति के निचे कुछ गुफाये होने के बारे में बताया जा रहा हैं। इस रिपोर्ट पर आगे जांच करने के आदेश को अब हरी झंडी मिल गयी हैं ,जिसके अगले भाग में खुदाई करके इन चीजों का पता लगाया जायेगा।
खैर ,यह आर्टिकल काफी लम्बा हो चूका हैं। आशा हैं आपको पसंद आएगा।
कैसे पहुंचे : नजदीकी रेलवे स्टेशन -वेरावल स्टेशन ,नजदीकी एयरपोर्ट :दीव एयरपोर्ट। अहमदाबाद या जूनागढ़ से टैक्सी करके भी यहाँ आराम से पहुंच सकते हैं।
अन्य दर्शनीय स्थल : द्वारका ,नागेश्वर ज्योतिर्लिंग ,दीव ,जूनागढ़ ,गिरनार , गिर नेशनल पार्क।
धन्यवाद
-ऋषभ भरावा (लेखक ,पुस्तक :चलो चले कैलाश )
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