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सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहां, ज़िंदगी ग़र रही तो ये जवानी कहां। मुझे अक्सर ऐसा लगता है कि ख़्वाजा मीर दर्द की ये पंक्ति मेरी लिए ही है। मेरे दिमाग़ में हर वक़्त घूमने का बुख़ार चढ़ा रहा था। हर किसी की तरह मुझे भी पहाड़ बहुत पसंद हैं। यहाँ आकर लगता है कि यहां से वापस न लौटा जाए लेकिन हर बार लौटना पड़ता है। उत्तराखंड मेरे दिल के काफ़ी क़रीब है। यहीं पर मैंने कुछ साल पढ़ाई, कुछ महीने नौकरी और सबसे ज़्यादा एक्सप्लोर भी इसे ही किया है। एक बार फिर से उत्तराखंड जाने का मन बन गया था।
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इस बार उत्तराखंड की किसी एक जगह को नहीं बल्कि कई जगहों को देखने का प्लान बन गया था। घूमने वाले थे, दो लोग और दोनों ही काम करने वाले। इसका उपाय यही निकाला गया है कि घूमते हुए काम किया जाए। काम के दौरान सिर्फ़ काम किया जाएगा और बाक़ी समय में जमकर घुमक्कड़ी की जाएगी। बस फिर ऐसे ही एक दिन सुबह-सुबह दिल्ली पहुँच गए और बिना देर किये कश्मीर गेट के बस अड्डे पर पहुँच गए। यहाँ हमने उत्तराखंड की बस पकड़ी और 7 घंटे बाद हम ऋषिकेश में थे।
दिन 1
ऋषिकेश
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ऋषिकेश बस स्टैंड पर उतरे तो हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। अब हमें एक सस्ता होटल लेना था। मुझे महँगे होटलों को लेना पैसे की बर्बादी लगती है। घूमने के दौरान आप कमरे में सिर्फ़ रात में सोने के लिए आते हैं तो फिर महँगा होटल क्यों लेना? हम ऑटो से लक्ष्मण झूला पहुँच गए। कुछ देर की खोजबीन के बाद हमारे में बजट में कमरा मिल गया। सामान रखकर और फ़्रेश होकर जैसे बाहर निकलने को तैयार हुए मूसलाधार बारिश शुरू हो गई। क़िस्मत अच्छी थी कि कुछ ही मिनटों में बारिश रूक गई। हम पैदल-पैदल लक्ष्मण झूला पहुँचे। उसे पार किया और फिर पैदल ही राम झूले की तरफ़ चलने लगे। वीकेंड की वजह से ऋषिकेश में काफ़ी भीड़ थी और मेरी छुट्टी भी थी। कुछ देर बाद हम गंगा किनारे जाकर बैठ गये। शाम के समय ऋषिकेश और भी खूबसूरत लगने लगता है। मैं ऋषिकेश कई बार आ चुका हूँ। हर बार इस शहर को और सुंदर पाता हूँ। अंधेरा होने पर पैदल ही पैदल होटल लौट आये और सुबह नई जगह पर जाने के लिए सुबह का इंतज़ार करने लगे।
दिन 2
देवप्रयाग
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ऋषिकेश के बाद हमारा अगला पड़ाव देवप्रयाग था। तुंगनाथ की यात्रा में बस से इस शहर को देखा था, तब से इस जगह पर आने का बड़ा मन था। सुबह-सुबह जल्दी उठे और देवप्रयाग वाली बस पर बैठ गये। क़रीब घंटे बाद बस ने हमें देवप्रयाग पहुँचा दिया। यहाँ हमें होटल तो नहीं लेकिन नदी किनारे एक गेस्ट हाउस मिल गया। मेरा काम शाम को शुरू होता है तो मेरे पास घूमने के लिए पूरा दिन था। सामान रखकर हम देवप्रयाग शहर को देखने के लिए निकल पड़े। सबसे पहले हम संगम तट पर गये। जहां हमने अलकनंदा और भागीरथी नदी का संगम देखा। पानी बेहद साफ और इतना ठंडा था कि पैर डाला तो रूह काँप गई। संगम तट को देखने के बाद रघुनाथ मंदिर को देखा। इसके बाद हम पैदल-पैदल देवप्रयाग की गलियों में चलने लगे। नदी किनारे बसा ये शहर वाक़ई में खूबसूरत है। मेरे अब तक घूमे गए पहाड़ी शहरों में देवप्रयाग सबसे सुंदर। देवप्रयाग शहर को पूरी तरह से देखने के बाद, हम कमरे में लौट आये। शाम होते ही मैं काम में जुट गया।
दिन 3
ऋषिकेश और देहरादून
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हम पहले टिहरी जाने वाले थे लेकिन किसी कारणवश टिहरी जाने का प्लान कैंसिल कर दिया और देहरादून जाने का तय हुआ। देवप्रयाग से हम शेयर्ड जीप से ऋषिकेश पहुँचे। मेरे दोस्त की दो घंटे की मीटिंग थी तो हम दो घंटे के लिए एक कैफ़े में बैठ गये। जब मीटिंग ख़त्म हुई तो दोपहर हो गई थी। अब हम या तो देहरादून जा सकते थे या फिर ऋषिकेश में ही रूक सकते थे। हमारे पास अभी कुछ समय था इसलिए हमने देहरादून जाना सही समझा। लगभग 2 घंटे बाद हम देहरादून के बस स्टैंड पर थे। बस स्टैंड के पास ही हमने एक बढ़िया होटल में रूक गये। थोड़ी देर बाद मेरा काम शुरू होने वाला था इसलिए फिर देहरादून में घूमना नहीं हो पाया।
दिन 4
लंढौर
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अगले दिन हमें पहाड़ों की रानी मसूरी जाना था इसलिए हम सुबह जल्दी उठ गए। मसूरी के लिए बस आईएसबीटी से नहीं मिलेगी। इसके लिए आपको रेलवे स्टेशन जाना पड़ेगा। रेलवे स्टेशन पर ही एक छोटा-सा बस स्टैंड है, वहाँ से मसूरी के लिए बसें जाती है। हम ऑटो से रेलवे स्टेशन पहुँचे तो मसूरी की एक बस निकल रही थी। हम जल्दी से उसमें बैठ गए। लगभग 1 घंटे के बाद हम मसूरी के लाइब्रेरी बस स्टैंड पर थे। हमें अपने बजट में होटल देखना था। कुछ लोग होटल दिलवाने के इंतज़ार में खड़े थे। पैसा पूछकर हम उनमें से एक साथ चले गए। होटल में सामान रखा और एक स्कूटी किराए पर ले ली। मसूरी से लंढौर 7 किमी. की दूरी पर है। कुछ देर बाद हम लंढौर की सड़कों पर थे। लंढौर में पहले हमने लाल टिब्बा देखा। उसके बाद लंढौर बेक हाउस और चार दुकान गए। जिसके बाद हम मसूरी लौट आए। हमारे पास अभी भी समय था इसलिए हमने जॉर्ज एवरेस्ट का छोटा-सा ट्रेक भी किया। मसूरी की सबसे ऊँची जगह से खूबसूरत नज़ारे दिखाई दे रहे थे। मसूरी वापस लौटने पर मैं काम पर बैठ गया।
दिन 5
मसूरी
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अगले दिन हम किसी नए शहर में जा सकते थे लेकिन अभी हमने मसूरी शहर को नहीं देखा था। मुझे नए शहरों में पैदल चलना अच्छा लगता है। अगले दिन हम देर से उठे और फिर मसूरी में पैदल-पैदल चलने लगे। हम बिना किसी मक़सद के मॉल रोड पर चले जा रहे था। सुबह-सुबह पराँठे का नाश्ता किया और फिर मैगी भी खाई। हमें मसूरी का लाइब्रेरी देखनी थी। लाइब्रेरी खुलने के बाद वहाँ पहुँचे तो पता चला कि लाइब्रेरी में सिर्फ़ वही लोग जा सकते हैं जिन्होंने मेम्बरशिप ली है। लाइब्रेरी की गैलरी भी काफ़ी खूबसूरत थी। हम कुछ देर वहीं बैठे रहे और मेरे दोस्त ने अपनी एक मीटिंग भी वहीं से कर ली। थोड़ी देर तक मसूरी में टहलने के बाद हम वापस होटल लौट आये। होटल के कमरे की बालकनी से दूर-दूर तक हरे-भरे पहाड़ों को देखना ही एक शानदार एहसास है। शाम को मैं फिर से अपनी ड्यूटी पर लग गया।
दिन 6
हरिद्वार
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हरिद्वार वो शहर है जहां मैंने 3 साल पढ़ाई की और कुछ-कुछ घूमा भी। हरिद्वार मुझे अपने घर जैसा ही लगता है। अगले दिन सुबह-सुबह मसूरी से देहरादून पहुँचे और फिर वहाँ से हरिद्वार। रेलवे स्टेशन के पास में ही हमने होटल ले लिया और फिर घूमने निकल पड़े। सबसे पहले हमने मनसा देवी मंदिर जाने का सोचा। उसके लिए काफ़ी ऊँचाई पर चढ़ाई करनी पड़ती है। वैसे तो रोपवे से भी जाया जा सकता था लेकिन हम पैदल ही गए। इसके बाद हम हरकी पैड़ी गए। इस समय हरकी पैड़ी में पानी नहीं था। हरिद्वार की गलियों में घूमते-घूमते शाम हो गई और शाम को गंगी आरती देखी। मेरे काम करने का समय हुआ तो मैं जल्दी होटल आया और काम पर बैठ गया।
दिन 7
हरिद्वार
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ये हमारी यात्रा का आख़िरी दिन था और हरिद्वार से ही वापस लौटने की ट्रेन थी। यात्रा से वापस लौटना सबसे मुश्किल होता है। अगले दिन मुझे जगहें तो देखनी थी। सबसे पहले मैं हरिद्वार के स्वामी विवेकानंद पार्क गया। ये वही जगह है जहां भगवान शिव की बहुत ऊँची मूर्ति स्थापित है। हरिद्वार जाने वाले हर व्यक्ति ने गंगा किनारे इस मूर्ति को ज़रूर देखा होगा। इस जगह को देखने के बाद अब मुझे सिग्नेचर ब्रिज देखना था। मैं पैदल ही पैदल उस जगह पर पहुँच गया। इस दिन मेरी छुट्टी थी तो काम तो नहीं करना था लेकिन ट्रेन जरूर थी। इसके बाद हम शांतिकुंज गए। यहाँ हमने हिमालय दिग्दर्शन, अखंड ज्योति के दर्शन और शांतिकुंज को अच्छे से देखा। यहाँ मैं अपने कुछ दोस्तों से भी मिला और फिर रेलवे स्टेशन आ गया। ट्रेन में बैठकर मैं अपने पिछले 7 दिन के बारे में ही सोच रहा था। मेरे दिमाग़ में आया कि काम करते हुए घूमना इतना भी मुश्किल नहीं है।
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