बिर बिलिंग वैसे तो पैराग्लाइडिंग के रोमांच के लिए जाना जाता है लेकिन हम बिना पैराग्लाइडिंग के ही काफी रोमांच देख चुके थे। पहले भीगते हुए फिसलन वाले रास्ते से राजगुंधा पहुँचे। वहाँ पलाचक का ट्रेक किया और फिर लौटे भी खतरनाक रास्ते से। हमने सोचा अब बिर आ गए हैं तो घूमने में वैसा खतरा और कठिनाई वाले रास्ते पर नहीं जाना होगा लेकिन मैं एक बार फिर से गलत निकला। इस बार एक झरने ने मुझे रोमांच और खतरे में डाल दिया।
राजगुंधा वैली से लौटने के बाद हमने बिर में एक सस्ता सा होटल ले लिया। इस दिन तो हमने आराम करके दो दिन की पूरी थकावट मिटाया। हमने जो स्कूटी किराए पर ली थी वो हमारे पास अगले दिन 12 बजे तक थी। अगले दिन सुबह उठकर एक नई जगह पर जाने के लिए तैयार हो गए। हमारे पास स्कूटी थी तो मैंने सोचा क्यों ना इसका फायदा उठा जाए। हमने सबसे पहले बिर में झरने को देखने के बारे में सोचा। बिर के आसपास दो झरने हैं, गुनेहर और बोनगोड़ू वाटरफॉल।
गुनेहर
मैंने गूगल किया तो गुनेहर गाँव बिर से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर दिखाई दे रहा था। हमने स्कूटी उठाई और गुनेहर की तरफ चल पड़े। बिर की काफी गलियों को पार करने के बाद एक जगह आई जहाँ गुनेहर का बोर्ड लगा हुआ था। हमें लगा कि आगे गुनेहर गाँव है तो यहीं झरना होगा हालांकि गूगल कहीं और दिखाई दे रहा था। वहीं एक स्थानीय व्यक्ति से बात की तो पता चला की गुनेहर गाँव तो यहीं लेकिन झरना यहाँ नहीं है। उसके लिए आगे बिलिंग रोड की तरफ जाना पड़ेगा।
हम बिलिंग रोड की तरफ चल पड़े। कुछ किलोमीटर बाद एक जगह पर एक व्यक्ति बैठे थे। वो बिलिंग की तरफ जा रहे लोगों से 20 रुपए ग्रीन टैक्स के ले रहे थे। उन्होंने ही बताया कि आगे जाने पर दाहिने तरफ एक रास्ता नीचे की ओर जाएगा जो सीधा गुनेहर वाटरफॉल ले जाएगा। कुछ देर में हम उस रास्ते पर पहुँच गए जिसके बारे में पता किया था। उस रास्ते पर चलते हुए हम एक गाँव में पहुँच गए जिसका नाम बोनगोड़ू है। हमने एक घर के सामने अपनी गाड़ी को पार्क कर दिया।
पहला झरना
लोगों से बात की तो पता चला कि यहाँ एक नहीं बल्कि दो झरने हैं। एक तो गुनेहर वाटरफॉल है जिसको हम देखने आए थे और दूसरा बोनगोड़ू झरना है जिसको यहाँ हिडन वाटरफॉल भी कहा जाता है। लोगों ने ये भी कहा कि गुनेहर वाटरफॉल तो पास में ही है लेकिन दूसरे झरने को देखने के लिए आपको गाइड करना ही पड़ेगा। मैंने उनकी बात को नजरंदाज किया और गुनेहर झरने को देखने के लिए निकल पड़ा। गाँव से निकलते ही बायीं तरफ एक बड़ा-सा झरना है जो वाकई में बेहद शानदार है।
हम थोड़ा ऊपर चढ़कर गुनेहर झरने के पास गए। पानी काफी ऊँचाई से गिर रहा था और काफी तेज भी थी। ऐसी जगहों पर आकर मन को तसल्ली-सी मिलती है। हम यहाँ कुछ देर ठहरे और फिर बोनगोड़ू वाटरफॉल को देखने के लिए निकल पड़े। हमने सोचा कि गाइड नहीं करते हैं और अगर झरना मिल जाएगा तो देख लेंगे और नहीं मिलेगा तो वापस लौट आएंगे। यहाँ से पहाड़ का दृश्य भी बेहद सुंदर है। ऐसा लग रहा है कि किसी ने पहाड़ों पर हरी चादर बिछा दी हो। पहाड़ों के बीच से बहती नदी इस नजारो को और भी सुंदर बना रही थी।
कहाँ है झरना?
हम सीधे रास्ते पर चलते हुए एक जगह पहुँचे, जहाँ भूस्खलन से रास्ता टूट चुका था। वहाँ मिले लोगों ने बताया कि आपको यहाँ से घूमकर पहाड़ चढ़ना और फिर नीचे उतरना होगा। मैं बिना गाइड उस पहाड़ पर चढ़ने लगा। ये कोई रास्ता नहीं है लेकिन पुराना रास्ता टूट गया है तो लोग इसी से आते-जाते रहते हैं। कुछ देर बाद मैं सामान्य रास्ते पर लौट आया। एक जगह तो पत्थर पर झरने का नाम लिखा था। इससे मुझे अंदाजा हो गया कि मैं सही रास्ते पर हूं।
एक जगह से तो मुझे ऊँचाई से झरना दिखाई दे रहा था तो मुझे लगा कि अब तो झरने के पास पहुँच ही जाऊँगा। काफी चलने के बाद एक रास्ता नीचे की ओर जा रहा था। मैं उस रास्ते पर ही नीचे पानी तक पहुँच गया लेकिन झरना नहीं मिला। मैं थका-हारा पीछे की तरफ लौट आया। वहाँ मुझे एक रास्ता नीचे की ओर दिखाई दिया और उस पर निशान भी बना हुआ था। मुझे लगा कि अब तो झरना मिल जाएगा लेकिन नीचे पहुँचकर पानी मिला लेकिन झरना नहीं मिला। मुझे पानी की तेज आवाज तो आ रही थी लेकिन मुझे ये नहीं लगा कि इतने अंदर झरना होगा।
आखिर में गाइड
मुझे झरना नहीं मिल रहा था और मुझे काफी दुख रहा था। तब मुझे लगा कि गाइड कर ही लेना चाहिए था। मैं वापस लौटने के बारे में मन बना चुका था तभी मुझे याद आया कि कुछ लोगों के यहाँ पर घर हैं। वहाँ पर लोगों से पूछता हूं कि वाटरफॉल कहाँ है? काफी चलने के बाद वहाँ पहुँचा और एक घर के बाहर से आवाज लगाई तो एक बच्चा आया। उससे मैं झरने का रास्ता पूछा तो वो साथ चलने को तैयार हो गया। अब मैं एक स्थानीय बच्चे के साथ छुपे हुए झऱने को देखने के लिए निकल पड़ा।
मैं पहले तो काफी थक चुका था और वो बच्चा पहाड़ पर काफी तेज चल रहा था। मैं थक रहा था और वो आराम से कदम बढ़ाते जा रहा था। रास्ते में उसका का ही जान पहचान का एक व्यक्ति मिला। उसने ही बताया कि वो गाइड है। मैंने इस बार उसको हाथ से नहीं जाने दिया। अब मैं झरने को देखने के लिए दो लोगों के साथ जा रहा था। मैं अकेले दूसरी बार जिस तरह से नीचे उतरा था, ये लोग मुझे नीचे ले गए। अब मुझे पता चला कि मैं आया तो सही रास्ते पर था लेकिन असली कठिनाई तो पानी के अंदर चलना था।
हिडन वाटरफॉल
मैं पहला कदम जैसे ही पानी में रखा तो ऐसा लगा कि रूह और जिस्म दोनों अलग हो गए हों। पानी बहुत ही ज्यादा ठंडा है और अब मुझे काफी देर तक इसी पानी में चलना है। दो लोगों की मदद से पानी में चलता जा रहा थी। रास्ते में बड़ी-बड़ी चट्टानें मिलीं जिस पर अकेले चढ़ना नामुमकिन-सा है। उन दोनों लोगों की मदद से थोड़ी आसानी तो हो रही थी। एक जगह तो मैं फिसलकर गिर भी गया लेकिन ये सब तो घूमने में चलता ही रहता है। आखिर में मैं उस हिडन वाटरफॉल के पास पहुँच गया।
पानी इतनी ऊँचाई और तेजी से गिर रहा था कि हम 100 मीटर दूर खड़े थे और पानी की बौछारें हम तक पहुँच गईं थीं। हम उन बौछारों से भीग गए थे। यहाँ तक पहुँचना जरूर कठिन है लेकिन जब मैंने इस झरने को देखा तो लगा कि इस खूबसूरत वाटरफॉल को देखने के लिए तो इतनी कठिनाई तो बनती है। कहते हैं ना कि सबसे कठिन रास्तों के बाद ही सबसे सुंदर नजारों के दीदार होते हैं। बोनगोड़ू वाटरफॉल को देखने के बाद हम उसी रास्ते से गाँव तक पहुँचे। वहाँ से स्कूटी उठाई और बिर पहुँच गए। हमने समय से स्कूटी को वापस भी कर दिया और एक खूबसूरत सफर को भी तय कर लिया।
क्या आपने हिमाचल प्रदेश में बिर बिलिंग की यात्रा की है? अपने अनुभव को शेयर करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
बांग्ला और गुजराती में सफ़रनामे पढ़ने और साझा करने के लिए Tripoto বাংলা और Tripoto ગુજરાતી फॉलो करें।
रोज़ाना टेलीग्राम पर यात्रा की प्रेरणा के लिए यहाँ क्लिक करें।