झाँसी एक लंबी यात्रा पूरी करने के बाद मैं उत्तराखंड पहुँचा। टनकपुर से आगे एक जगह है, सूखीढांग। वहाँ मैंने रात गुज़ारी और अगले दिन एक नई जगह पर जाने के लिए तैयार हो गया। सुबह जब बॉलकनी में आया तो तो चारों तरफ़ हरे-भरे पहाड़ देखकर दिल खुश हो गया। मन में यही चल रहा था कि अब तो हर रोज़ इससे भी सुंदर-सुंदर नज़ारों से रूबरू होना है। थोड़ी देर इन नज़ारों को देखने के बाद मैंने अपनी स्कूटी उठाई और निकल पड़ा, चंपावत।
टनकपुर से चंपावत 72 किमी. की दूरी पर है। मैं पहली बार पहाड़ों पर घुमावदार रास्ते पर स्कूटी चला रहा था तो आराम से गाड़ी चला रहा था। मुझे कही पहुँचने की जल्दी नहीं थी, बस इन शानदार रास्तों और सुंदर नज़ारों का मज़ा लेना था। रास्ते में सिन्याड़ी नाम की जगह पर मैंने ढाबे पर पराँठे का नाश्ता किया और निकल पड़ा चंपावत की तरफ़। रास्ते में कुछ जगहों पर व्यू प्वाइंट भी बने हुए हैं तो मैं एक जगह रूककर सुंदर नज़ारों का लुत्फ़ उठाया। मुझे चंपावत शहर में पहुँचने में 3 घंटे का समय लगा।
चंपावत
चंपावात उत्तराखंड के कुमाऊँ इलाक़े का एक बड़ा शहर है और जिला मुख्यालय भी है। 5 वर्ग किमी. में फैले चंपावत की समुद्र तल से ऊँचाई 1,615 मीटर है। पहले मेरा प्लान था कि मैं लोहाघाट में रूकूँगा और फिर दोनों जगहों को एक्सप्लोर किया। जब मैं चंपावत से बाहर निकल रहा था। तभी मेरे कैमरे को देखकर आगे जा रहे एक व्यक्ति ने मुझे रूकने का इशारा किया। पहले तो मुझे समझ नहीं आया कि रूकने को क्यों कह रहा है?
वो व्यक्ति मेरी हमउम्र का निकला और उसका नाम अभय है, वो चंपावत का ही रहने वाला है। हमने अपने घूमने के प्लान के बारे में बात की और फिर उसने चंपावत को साथ एक्सप्लोर करने का प्रस्ताव रखा। मैंने भी उसकी बात मान ली। कुछ देर बाद मैं उसके घर पर था और मुझे रहने की जगह भी उसके घर में मिल गई। कुछ देर वहाँ रूकने के बाद हम तीन लोग, मैं, अभय और उसका भाई चंपावत को एक्सप्लोर करने के लिए निकल पड़े।
हिंगलाज देवी मंदिर
चंपावत में सबसे पहले हम हिंगलाज देवी मंदिर की तरफ़ निकल पड़े। कुछ देर पक्की सड़क पर चलने के बाद ऊपर की तरफ़ कच्ची सड़क पर चल पड़े। ऐसे खड़ी चढ़ाई वाले रास्तों पर मेरी स्कूटी कम ही चली है लेकिन फिर भी कोई ज़्यादा दिक़्क़त नहीं आ रही थी। जंगलों से होकर जाने वाले रास्ते पर कई किमी. चलने के बाद हम मंदिर के गेट पर पहुँच गए। मंदिर के गेट से मंदिर तक पहुँचने के लिए कुछ सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। कुछ देर बाद हम मंदिर में पहुँच गए।
चंपावत के दक्षिण में घने बांज के जंगलों के बीच बसे इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि माँ भगवती यहाँ झूला झूलती थीं। झूले को हिंगोल कहा जाता है इस वजह से इस मंदिर का नाम हिंगला देवी मंदिर है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 7वीं सदी में चंद राजाओं द्वारा करवाया गया था और आज भी चंद वंश के पुरोहित ही इस मंदिर के पुजारी हैं।
हिंगलाज मंदिर परिसर में भैरव मंदिर भी है। इस मंदिर में बलि देना पूरी तरह से प्रतिबंधित है। इस मंदिर में एक पत्थरनुमा जैसी एक जगह है। कहा जाता है कि वहाँ कुबेर का ख़ज़ाना रखा हुआ है। पहले कभी एक व्यक्ति उस पत्थर के दरवाज़े से ख़ज़ाने के लिए अंदर गया और दरवाज़ा बंद हो गया। वो व्यक्ति उसी गुफा में समाँ गया। यह कितना सच है और कितना झूठ है, इसका तो कोई प्रमाण नहीं है। यहीं पर एक भारीभरकम चट्टान है, जिस पर चढ़कर हमने चंपावत का सबसे प्यारा नजारा देखा। रास्ते में लौटते समय एक जगह पर बुरांश का जूस भी पिया।
चाय के बाग़ान
चंपावत शहर से लगभग 6-7 किमी. की दूरी पर चाय के बाग़ान हैं। पहाड़ों में चाय के बाग़ानों को देखना एक अलग ही अनुभव है। मैंने इससे पहले कभी चाय के बाग़ान नहीं देखे थे तो काफ़ी उत्साहित था। कुछ देर गाड़ी चलाने के बाद हम चाय के बाग़ान पहुँच गए। चाय के पहली नज़र में तो चाय के बाग़ान का नजारा खूबसूरत लगा लेकिन लोहे की जाली लगी हुई थी तो हमें लगा कि ऐसे ही देखना पड़ा। कुछ देर वहाँ टहलने के बाद पता चला कि ऊपर की तरफ़ एक व्यू प्वाइंट भी है।
वहाँ से जो नजारा का चाय के बाग़ानों का दिखा, मज़ा ही आ गया। यहाँ आप चाय के बाग़ान को और क़रीब से देख पाएँगे। ये चाय के बाग़ान को सरकार स्थानीय लोगों को कुछ सालों के लिए खेती के लिए देते हैं। सरकार इसके लिए नीलामी करवाती है। चाय के बाग़ान को देखने को कोई टिकट नहीं है। यहाँ हम काफ़ी देर तक रहे और फिर वापस अभय के घर आ गए। अभय के घर पर स्थानीय खाना खाकर तो मज़ा ही आ गया। रात में हम ऐसी जगह पहुँचे, जहां से चंपावत का सुंदर नजारा देखने को मिला।
शायद अगर अभय मुझे ना मिलता तो मैं सीधा लोहाघाट चला जाता और चंपावत को ऐसे एक्सप्लोर नहीं कर पाता। कभी-कभी अजनबी और नए लोगों से मिलना अच्छा होता है। अभी तो मेरी कुमाऊँ यात्रा शुरू ही हुई है, अभी तो कई शहर और नई जगहें मेरे इंतज़ार में हैं।
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