स्वर्ण मंदिर से लेकर बाघा बार्डर तक, दो दिन में अमृतसर को कुछ इस तरह से घूमा

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Photo of स्वर्ण मंदिर से लेकर बाघा बार्डर तक, दो दिन में अमृतसर को कुछ इस तरह से घूमा by Rishabh Dev

अमृतसर भारत की उन चुनिंदा जगहों में से एक है, जहां घूमने वाले लोग भी आते हैं और श्रद्धालु भी बड़ी संख्या में आते हैं। अमृतसर पंजाब का दूसरा सबसे बड़ा शहर है और एक जिला मुख्यालय है। यहाँ घूमने के अलावा खाने-पीने के लिए बहुत कुछ है। सिखों के सबसे पवित्र शहर अमृतसर में मैंने 2 दिन बिताएँ। मैं दो दिन में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से लेकर अटारी-बाघा बॉर्डर तक गया। मैंने अमृतसर में दो दिन क्या किया? कहां रूका और क्या खाया? इसकी विस्तार में पूरी जानकारी दे देता हूँ।

दिन 1:

अमृतसर

मैंने सुबह-सुबह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से अमृतसर जाने वाली ट्रेन पकड़ी। दिल्ली से अमृतसर के लिए कई सारी ट्रेनें चलती हैं। हमारी ट्रेन पूरी एसी चेयर थी। हरियाणा से होते हुए ट्रेन पंजाब के क्षेत्र में प्रवेश कर गई। बाहर बारिश देखकर अच्छा लगा कि अब अमृतसर में गर्मी नहीं मिलेगी। जालंधर, लुधियाना और ब्यास होते हुए 2 बजे ट्रेन अमृतसर पहुँच गई। अमृतसर रेलवे स्टेशन से हमें स्वर्ण मंदिर की तरफ़ जाना था। रेलवे स्टेशन से स्वर्ण मंदिर के लिए बस जाती है, जिसमें कोई पैसा नहीं लगता है। थोड़ी देर में ही हम स्वर्ण मंदिर के पास पहुँच गए।

मैं दूसरी बार अमृतसर आया हूँ। इससे पहले 2016 में अमृतसर आया था। तब से लेकर अमृतसर में काफ़ी कुछ बदल गया है। उस समय स्वर्ण मंदिर के पास जो मूर्तियाँ और चौराहे बन रहे थे, वो अब सब बन चुके हैं। पहली झलक में अमृतसर मुझे कुछ ऐसा ही लगा। स्वर्ण मंदिर से लगभग 1 किमी. दूर हमारा हॉस्टल है। मैं उसी हॉस्टल की तरफ पैदल-पैदल चलता गया। गर्मी और धूप में चलते हुए काफ़ी देर बाद हम हॉस्टल पहुँचे। मुझे अपना बेड भी मिल गया। काफी देर आराम करने के बाद मैं चल पड़ा स्वर्ण मंदिर की तरफ़।

स्वर्ण मंदिर

अमृतसर आओ और स्वर्ण मंदिर ना देखो, ऐसा हो ही नहीं सकता और होना भी नहीं चाहिए। स्वर्ण मंदिर रात में बेहद खूबसूरत दिखाई देता है। रास्ते में मैंने एक जगह पर ठंडी-ठंडी लस्सी का ज़ायक़ा लिया। अमृतसर में अच्छी लस्सी बड़े होटलों में नहीं, इन गलियों में मिलती है। कुछ देर में स्वर्ण मंदिर पहुँच गया। सबसे पहले अपनी चप्पल और सामान को जमा किया। इसके बाद सिर ढँका और पहुँच गया मंदिर के अंदर। स्वर्ण मंदिर को पहली नज़र में देखा तो लगा कि 7 पहले का नजारा फिर से देख रहा हूँ। 7 साल पहले मंदिर जैसा था, वैसा ही देखने को मिला।

मैंने पैदल-पैदल पूरे मंदिर को एक्सप्लोर कर डाला। मंदिर में कुछ बदलाव तो दिखाई दे रहे थे। मंदिर परिसर में काफ़ी टहलने के बाद हरमिंदर साहिब के दर्शन करने के लिए लंबी लाइन में लग गया। लगभग 1 घंटे तक लाइन में लगे रहने के बाद दर्शन हो पाए। इसके बाद मैं लंगर खाने गया। लंगर प्रसाद खाने के बाद मैं वापस अमृतसर शहर की गलियों में टहलने लगा। जब लगा कि रात काफ़ी हो गई है तो अपने हॉस्टल वापस लौट आया।

दिन 2

अगले दिन सुबह उठते ही पता चला कि हॉस्टल वालों ने अपने दाम बढ़ा दिए हैं। मैंने एक दिन की ही बुकिंग की थी। काफ़ी सोच-विचार के बाद मैंने अपना सामान उठाया और चल पड़ा ठिकाने की खोज में। कई सारे होटल देखने के बाद एक होटल अपने बजट में मिल गया। तैयार होने के बाद मैं फिर से स्वर्ण मंदिर पहुँच गया। स्वर्ण मंदिर का माहौल ही बेहद शानदार है। यहाँ मैं कुछ देर बैठा और फिर बाहर निकल आया।

जालियाँवाला बाग

स्वर्ण मंदिर के पास में ही जालियांवाला बाग़ है। जालियाँवाला बाग़ 13 अप्रैल 1919 के हत्याकांड के लिए जाना जाता है। जालियांवाला बाग़ में घुसते हुए मुझे एहसास हो गया है कि यहाँ भी काफ़ी कुछ बदलाव आया गया है। जालियांवाला बाग़ में कई सारी गईं चीजें बन गई हैं। बाग़ में प्रदर्शनी को और आधुनिक कर दिया गया है। इसके अलावा एक थिएटर भी है, जिसमें जालियाँवाला बाग हत्याकांड के बारे में वीडियो के माध्यम से जानकारी दी जाती है। इसके अलावा आप यहाँ की दीवारों पर आज भी गोली के निशान देख सकते हैं।

जालियाँवाला बाग में स्मारक है जो शहीदों की याद में बनवाया गया है। इसके अलावा अमर ज्योति भी है जिसे आप देख सकते हैं। लगभग 1-2 घंटे मैंने जालियाँवाला बाग में बिताए। जालियाँवाला बाग वाक़ई में देखने लायक़ है और पुनर्निर्माण के बाद इस जगह की अहमियत और भी बढ़ गई है। अब ये जगह लोगों को इस काले अध्याय के बारे में अच्छे से जानकारी देती है। जालियाँवाला बाग़ को देखने के बाद मैंने एक होटल में अमृतसरी नान खाया। एक नान में मेरा पेट लबालब भर गया।

विभाजन संग्रहालय

स्वर्ण मंदिर के पास में ही रणजीत सिंह चौराहा है। इसी चौक के पास में ही विभाजन संग्रहालय है। अमृतसर का ये संग्रहालय दुनिया का पहला विभाजन संग्रहालय है जो बँटवारे में प्रभावित हुए आम लोगों की कहानी बताता है। विभाजन संग्रहालय के अंदर फ़ोटो और वीडियो बनाना सख़्त मना है। इस संग्रहालय में उस दौर की फ़ोटो, घटनाओं, समाचार पत्रों के माध्यम से उस दौर का ज़िक्र किया गया है। लोकप्रिय लोगों के अलावा आम लोगों के दर्द को भी इस संग्रहालय में बताया गया है।

विभाजन संग्रहालय की हर एक चीज उस समय की कहानी बयां करती है। यकीनन आप उन लोगों के पत्र पढ़कर दुखी हो जाएँगे कि लोगों ने उस समय किस प्रकार की कठिनाइयाँ झेली थीं। विभाजन संग्रहालय काफ़ी बड़ा है और अच्छे से जानकारीपरक बनाया गया है। अगर आप अमृतसर आते हैं तो मेरा सुझाव है कि आपको विभाजन संग्रहालय देखने ज़रूर जाना चाहिए। विभाजन संग्रहालय से बाहर निकलने के बाद अब हमें अटारी-बाघा बार्डर जाना था।

अटारी-बाघा बार्डर

अमृतसर से अटारी-बाघा बार्डर लगभग 30 किमी. की दूरी पर है। हर रोज़ भारत और पाकिस्तान के बार्डर पर दोनों देशों के सेना के द्वारा एक ही समय पर रिट्रीट सेरेमनी आयोजित की ज़ाती है। भारत के तरफ़ जिस जगह पर सेरेमनी होती है वो है अटारी और पाकिस्तान के तरफ़ वाली जगह बाघा है। रिट्रीट सेरेमनी देखने को कोई टिकट नहीं लगता है। आप अमृतसर से ऑटो बुक कर सकते हैं या शेयरिंग ऑटो से भी जा सकते हैं। पिछली बार मैं ऐसी ही एक ऑटो से गया था। पंजाब सरकार द्वारा एक हो हो बस चलाई गई है, जो 350 रुपए में आपको बाघा बार्डर ले जाती है और वापस भी लाती है।

मैंने इसी हो हो बस में बुकिंग कर ली। लगभग 3 बजे बस अपने समय पर चल पड़ी लेकिन हॉल गेट के पास बस के इंजन से धुआँ निकलने लगा। सभी लोग बस से बाहर निकल आए। लगभग आधे घंटे के बाद दूसरी बस आई और हमारी यात्रा फिर से शुरू हो गई। लगभग 1 घंटे की यात्रा के बाद हम अटारी-बाघा बार्डर पहुँच गया। थोड़ी देर में हम सेरेमनी वाली जगह पर पहुँच गए। सामने मुझे पाकिस्तान और पाकिस्तान के लोग दिखाई दे रहे थे। रिट्रीट सेरेमनी वाली पूरी जगह हज़ारों लोगों से खचाखच भरी हुई थी।

लगभग 1 घंटे की सेना की शानदार सेरेमनी देखी। दोनों देशों के गेट खुलते हुए देखे और एक-साथ दोनों देशों के झंडे भी उतरते हुए देखे। ये वाक़ई में एक शानदार अनुभव था। हम उसी हो हो बस से रात 8 बजे अमृतसर पहुँच गए। अमृतसर पहुँचने के बाद मैं केसर दा ढाबा गया। केसर दा ढाबा स्वर्ण मंदिर के पास में है। यहाँ मैंने दाल मखनी के साथ पराँठा खाया। यक़ीन मानिए इतनी अच्छी दाल मखनी मैंने कभी नहीं खाई। पेट भरकर खाना खाने के बाद टहलते-टहलते स्वर्ण मंदिर पहुँच गया। लगभग 1 घंटे तक मैं स्वर्ण मंदिर में ही रहा। इस तरह से स्वर्ण मंदिर से शुरू हुई अमृतसर की यात्रा स्वर्ण मंदिर पर जाकर ख़त्म हुई।

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