
यह जो पहला फोटो यहां हैं वह एक डस्टबिन का हैं। एवेरेस्ट बेस कैंप के पैदल ट्रेक के दौरान ट्रेकर्स को खुशी देने वाली कोई चीज होती हैं तो वो ही चीज हैं यह डस्टबिन।
तीखी लंबी चढ़ाई करने के बाद ट्रेकर्स को जैसे ही नीचे दूर से इस तरह के डस्टबिन का दीदार होता हैं वो ट्रैकर खुशी से फूला नहीं समाता😂। वो जैसे तैसे करके इस डस्टबिन तक जल्दी से जल्दी पहुंचना चाहता हैं और मन ही मन डस्टबिन इसे वहां स्थापित करने वाले को धन्यवाद देता है। स्पेशली 4000मीटर से ऊपर की चढ़ाई में,अगर एक तरफ रास्ता कुछ किलोमीटर कम भी हो रहा हो और दूसरी तरफ यह डस्टबिन दिखाई दे रहा हो तो ट्रेकर्स डस्टबिन के पास ही पहले जायेंगे।

असल में यह डस्टबिन तो एक सामान्य डस्टबिन हैं जिन्हे हर खतरनाक चढ़ाई के बीच बीच में बनाए गए हैं। इसमें टीन,ग्लास आदि जैसी चीजों के लिए अलग ब्लॉक हैं और कागज,पॉलिथीन जैसी चीजों के लिए अलग ब्लॉक हैं।इनके पीछे छोटा सा दरवाजा हैं ।डस्टबिन भरते ही इसे पीछे से खोल कर खाली कर लिया जाता हैं।नेपाल के एवरेस्ट वाले क्षेत्र में तो यह लगभग हर एक किलोमीटर पर बनाया गया हैं और सामान्यत: अधिकतर यात्री कचरा इनमें ही डालते हैं तो आपको इधर के रास्तों में ऐसे कचरे,पॉलिथीन, बोटल्स आदि कम ही पड़ी मिलेगी।अधिकतर रास्ता साफ ही मिलेगा।
अब इसको देख कर ट्रेकर्स को खुशी इसीलिए होती हैं कि जहां भी ऐसे डस्टबिन लगे होते हैं वहां ट्रेकर्स के बैठने और आराम करने के लिए भी चबूतरे बनाए होते हैं।इसीलिए यात्री इधर सामान्यत: रास्तों में कही भी रेस्ट करते हुए नही दिखेंगे।अधिकतर यात्री रेस्ट करने के लिए अगले डस्टबिन तक पहुंचने तक का टारगेट लेते हैं और वही आराम से इन चबूतरों पर बैठ कर कुछ देर आराम करते हैं।दूसरे फोटो में आप देख सकते हैं कि डस्टबिन के पास और सामने कितना स्पेस हैं ट्रेकर्स के आराम करने के लिए।किसी को कुछ खाना भी हो तो इन चबूतरों पर बैठ कर खाओ और फिर कचरे को इस डस्टबिन में फेक कर आगे बढ़ जाओ। इससे ट्रेकिंग के दौरान का अधिकतर कचरा डस्टबिन में ही डला हुआ मिलता हैं ना कि हर कही इधर उधर।

फोटो एवरेस्ट बेस कैंप यात्रा के दौरान अभी दिसंबर में लिया था।पहले फोटो में पीछे अमा डबलम पर्वत दिखाई दे रहा हैं।
-Rishabh Bharawa