तेज़पुर से काकडभिटटा
एवरेस्ट बेस कैम्प जिसके नाम के साथ ही एवरेस्ट जुड़ा हुआ हो उसकी चमक ही कुछ छटा ही निराली है। जितना आसान ये ट्रेक यू ट्यूब में नजर आता है दरसल ये उसके उल्टा है।
हाथी के दांत दिखाने के कुछ और खाने के कुछ और । नामचे से पहले से ही आपको हाई अल्टीटूयड में रहना है और वापस नामचे आने में आपको कम से कम 6 दिन लग जाएंगे तो अपना पहला ट्रेक EBC करने का कभी न सोचें वो बात और थी की इस बार मेरे साथ 2 ट्रेकर ऐसे थे जिनका ये जिन्दगी का पहला ट्रेक था।
जितने भी छोटे मोटे ट्रेकर होते हैं या फिर बड़े ट्रेकर सभी का सपना होता है, जिंदगी में कम से कम एक बार एवरेस्ट बेस कैम्प करने और कालापत्थर से एवरेस्ट को बिल्कुल अपने करीब से देखने का। सभी की तरह मेरा भी था और अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए 13 मार्च 2021 को मैं अपने घर से सुबह सुबह 3 बजे तरुण के साथ चल दिया।
प्लान तो काफी दिनों से था लेकिन कुछ फिक्स नहीं हो पा रहा था। इसलिए हमने ट्रेन में कोई रिजर्वेशन नहीं करा रखा था। सुबह 3.45 वाली डिब्रूगढ़ राजधानी में हम लोग बैठ गये और सोचा अगर TTE आयेगा तो उस से टिकट बनवा लेंगे लेकिन किस्मत NJP तक कोई टिकट चेक करने आया ही नहीं।
12 बजे हम लोग NJP पहुंच चुके थे। जैसे ही स्टेशन से बाहर निकले हमारे रूकसैक को देख कर लोग समझ गए की ये लोग नेपाल वाले ट्रेकर लग रहे हैं। कोई बोला चलो आपको नेपाल बॉर्डर छोड़ देते हैं सिर्फ 1000 रुपये लगेंगे कोई बोला 200 रुपये पर सीट लगेगा. मैं बोला भाई तेज़पुर से यहाँ तक तो फ्री में आ गए हैं अब यहां से भी कम पैसे में जायेगे। और हमने वो ही लिया हो हम हमेशा करते हैं।
स्टेशन से बाहर निकल के सिलीगुड़ी के लिए शेयर ऑटो लिया 20-20 रुपये मे और सिलीगुड़ी से पानी की टंकी वाली बस पकड़ ली सिर्फ 40-40 रुपये में भैया जब पैसे बचेंगे तब ही तो सस्ता ट्रेक हो पायेगा और अगले ट्रेक के लिए पैसे जमा होंगे फॅमिली भी तो पालनी है मुझे।
थोड़े देर में तनु भी बागडोगरा एयर पोर्ट पर लैंड कर चुकी थी। उसको गाइड कर दिया कैसे पानी की टंकी नेपाल बॉर्डर पर पहुंचना है। बहुत जल्द ही हम तीनों साथ थे अब बॉर्डर क्रॉस करना था।
जैसे ही पुल पार कर रहे थे तो एक नेपाली मिला बोला कहाँ जाना है तो मैंने बोला दाज्यू सल्लेरी जाना है। वो बोला ये कहाँ है मैंने बोला फाफलू एयर पोर्ट तब भी उसको कुछ समझ नहीं आया फिर काम आयी मेरी इतने दिनों की मेहनत जो मैंने इस ट्रेक को प्लान करने के लिए की थी. गूगल, गुरप्रीत और बहुत जगह से जानकारी इकट्ठा करी थी.
मैंने बोला ओखलडुंग्गा के लिए बस मिलेगी सोलुखम्बू वाली तो वो बोला हाँ हाँ एक बस है चलो में दिखाता हूँ। अब आपको ये बता दूँ सल्लेरी को कोई नहीं जानता अगर आपको सल्लेरी जाना है तो सोलु बोलना पड़ेगा ।भारत के सारे नेपाल बॉर्डर से ओखलडुंग्गा तक बस चलती है जो सोलु से 50 km पहले है और सोलु तक भी बस मिलने के 60 % चांस हैं।
हम उसके पीछे चल दिए फिर उसने पूछा कोरोना निगेटिव रिपोर्ट है क्या RT PCR वाली मैंने बोला वो तो नहीं है। तब वो बोला पुल क्रॉस करने के बाद पुलिस वाला मांगेगा उसको दिखानी पड़ेगी नहीं तो जाने नहीं देगा। मैंने कहा अब कैसे होगा तब वो बोला उसको पैसे देने होंगे मैंने बोला कितना वो बोला 500। वो बोला वहाँ पर मत देना आप। मैं उसको बोल दूँगा आप साइड में मुझे दे देना मैं उसको दे दूँगा।
जैसे ही हम पुलिस वाले के पास से निकल रहे थे तो मैंने देखा कोई भी तो उसके पास नहीं जा रहा है। सब सीधे ही निकल रहे हैं। लेकिन वो नेपाली हमको ज़बर्दस्ती उस पुलिस वाले के पास ले गया। पुलिस वाले ने हमसे पूछा कहाँ से आ रहे हो और कहां जा रहे हो और अपने रजिस्टर में एंट्री की।
फिर नेपाली उस से अपनी नेपाली भाषा में बोला इनके पास RT PCR टेस्ट रिपोर्ट नहीं है सिर्फ लड़की के पास है फिर पुलिस वाला Ok बोला जाओ। पुलिस वाले और नेपाली के लिए पैसों की कोई बात नहीं हुई फिर हम चल दिए थोड़ा आगे जा कर वो बोला देखा मैंने उस से बात कर के आप लोगों को वहाँ से निकाल दिया आप मुझे 500 रुपये दे दो पुलिस को देने के लिए तब मैंने बोला ओ चचा पहली बात तो कोई भी पुलिस वाले के पास नहीं जा रहा था आप ज़बर्दस्ती हमको ले गए और दूसरी बात मुझे नेपाली आती है आप दोनों के बीच पैसों वाली कोई बात नहीं हुई फिर अपन ने थोड़ा नेपाली भी उसको बोल कर दिखा दी फिर वो भी समझ गया की उसकी आज की मेहनत खराब हो चुकी है।
आप लोग भी अगर नेपाल जाओ तो किसी के चक्कर में मत आना।
लेकिन उसने एक काम अच्छा किया हमको सल्लेरी के लिए एक मात्र बस दिला दी। लेकिन पता चला बस अगले सुबह 4 बजे जाएगी फिर हम वहाँ ही रुक गए।
बस का टिकट 5000 रुपया नेपाली रुपया 3 लोगों का और आज रात का रहना और खाना 3 लोगों का 2000 रुपये नेपाली रुपया।
उसके बाद हमने 62000 रुपये को नेपाली रुपयों में एक्सचेंज कराया जो 1.6 के हिसाब से हमको 99200 नेपाली रुपया मिला। थोड़ा रेस्ट करने के बाद हम नेपाली सिम N CELL लेने गये और हमने 99 नेपाली रुपये में एक sim लिया जिसमें 20 रुपया टॉक टाईम और 200 mb डाटा मिला और 150 रुपये का एक रीचार्ज करा लिया 7 दिन के लिए 1 gb डाटा का।
शाम को खाना खा कर जल्दी सो गए. ध्यान रखने की बात एवरेस्ट बेस कैम्प ट्रेक में नामचे के ऊपर हर जगह न CELL का नेटवर्क आता है और रिचार्ज कार्ड भी मिलता है।
काकडभिटटा से सल्लेरी
सुबह सुबह 4 बजे बस में बैठ गये सोचा था शाम को 5 बजे तक सल्लेरी पहुच जाएंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
काकडभिटटा से मिरचये तक का रास्ता बहुत अच्छा था ।लेकिन उसके बाद रास्ता पहाड़ वाला था । रोड के नाम पर बस धूल ही धूल थी. रास्ता बहुत ही खराब था. जैसे ही पहाड़ का रास्ता शुरू हुआ पूरी बस हिलना शुरू हो गई।
अब बस बहुत ही हल्के चल रही थी. पूरे रास्ते में धूल ही धूल उड़ रही थी। ओखलडुंग्गा तक रोड की हालत बहुत ही खराब थी। ओखलडुंग्गा पहुंचते पहुचते बस का टायर पंचर हो गया। जिसको चेंज करने में बहुत समय लग गया. उस से आगे रोड पक्की थी लेकिन बहुत ही पतली थी. ये सफर भी हमारा किसी एडवेंचर्स से कम नहीं था। बस ड्राइवर ने पूरे रास्ते भर मस्त मस्त नेपाली गाने लगाये। लास्ट में लोलीपॉप लागेलु लगा कर हम लोगों को अपने देश में ही होने का एहसास कराया।
रात को 8 बज कर 40 मिनट में हम सल्लेरी पहुँच चुके थे। जहां हमारा दोस्त उमा काठमांडू से 2 घंटे पहले ही आ चुका था। उसने हम लोगों के लिए होटल रूम ले लिया था। रूम का किराया 500 NPR पर रूम। हर रूम में 2 बेड थे। खाने का 200 NPR पर हेड। Wi fi की सुविधा भी फ्री थी। हमने रात को ही बुप्सा के लिए 1700 NPR पर हेड गाड़ी की बात कर ली थी। फिर हम सो गये।
सल्लेरी से फाकडींग
आज के दिन की शुरुवात हुई 6 बज कर 30 मिनट पर एक और सफर से। आज का सफर था सल्लेरी से बुप्सा तक का। लगातार 3 दिनों से सफर कर के शरीर पूरा थक गया था और आज का रास्ता भी पूरा कच्चा था। सल्लेरी से बुप्सा केवल 60 km है लेकिन वहाँ तक जाने में 7 घंटे लगते हैं। कुछ समय बाद ही मन को हर्षित कर लेने वाले नजारे हमारे आँखों के सामने थे। एक छोटे से गाँव से MT दूध कुंड का बहुत ही आकर्षण नज़ारा दिखाई दे रहा था।
हिलते दुलते ऊंचे ऊँचे पहाड़ों के बीच से गाड़ी चल रही थी। होने की मैं भी एक पहाड़ी हूँ लेकिन ऐसे पहाड़ और उन पहाड़ों में बनी ऐसी रोड मैंने देखी नहीं थी पहले कभी। इस रोड पर केवल 4 wheel drive गाड़ी ही चलती है।
9 बजे हम कैगते पहुंचे वहाँ पर हमने नाश्ता किया। वहाँ भैस का मीट बन रहा था जो थूप्पा में डाला जा रहा था। हमने बोला 4 वेज नूडल्स लिए जिनका दाम हुआ 320 नेपाली रुपया। नाश्ता कर के हम चल दिए। अडेरी में पिछले साल एक पुल बन रहा था ये बात मुझे गुरप्रीत ने बतायी जिसकी वजह से सल्लेरी से गाड़ी वाला आपको दूध कोसी नदी के इस तरफ छोड़ देगा और नदी क्रॉस करने के बाद दूसरी तरह से आपको बुप्सा के लिए गाड़ी मिल जाएगी। लेकिन अब वो पुल बन चुका है और अब पूरी गाड़ी बुप्सा तक जाती है।
गाड़ी से ही हमने दूसरे सहयात्रियों के साथ बुप्सा में 4 वेज लंच का ऑर्डर दे दिया। हम 2 बजे बुप्सा पहुच चुके थे। वहाँ हमने लंच किया जब पैसे पूछे तो दुकानदार बोली 1600 रुपये हो गया लेकिन हमको तो गाड़ी में लोगों ने बोला था 250 रुपया पर प्लेट। जब हमने साथ वाले यात्री से बोला तब उन्होंने दुकान वाली से बोलकर पैसे कम कराये. वो हमको बाहर से आया देख कर ज्यादा रुपया लेना चाहती थी लेकिन हमने उसको 1000 नेपाली रुपया ही दिया।
करीब 2 बज कर 20 मिनट पर हमने ट्रेक करना शुरू किया। जैसा की मैंने गूगल से पता किया था की बुप्सा से फाकडींग की दूरी 15 km है तो मैंने आईडीया लगाया की हम 8 बजे तक फाकडींग पहुंच जाएंगे।
हमारे साथ एक नेपाली दंपति भी थे जिनका होटल फाकडींग से कुछ आगे मंजो में था। उन्होंने हमको ऑफर दिया की हम उनके होटल में रुक जाए। वो हमसे रूम के रुपए नहीं लेंगे सिर्फ खाने के लेंगे। ये बात हमको अच्छी लगी हमने बोला पहले फाकडींग चलते हैं फिर विचार करेंगे।
ट्रेक सुंदर सुंदर गाँवों से होकर गुजर रहा था। हम लोग चले जा रहे थे। कुछ समय बाद धीरे धीरे थकान होना शुरू हो गई 3 दिन से सफर कर रहे थे और आज ट्रेक भी शुरू कर दिया था। अब अंधेरा भी हो गया था हम लोगों ने अपनी अपनी नाइट टॉर्च निकाल ली थी। तनु को बैग उठाने में थोड़ा दिक्कत आ रही थी और स्पीड भी कम हो रही थी तो उमा ने तनु का बैग भी अपने बैग के उप्पर रख लिया।
रास्ते में जिस किसी से भी पूछो फाकडींग के बारे में कोई बोलता है 5 घंटे लगेंगे कोई बोलता है 3 घंटे लगेंगे एक ने बताया 8 घटे लगेंगे। हम लोगों ने सोच लिया था आज कम से कम फाकडींग तक तो जरूर जाएंगे। साथ में चलने वाले जोड़े ने बोला आप आज फाकडींग में ही रुक जाना वहाँ पर उनके भाई का होटल है जहां वो खाने का ही चार्ज लेगा रहने का नहीं।
चलते चलते सब की हालत खराब हो गई थी और अब उमा से बैग भी नहीं उठाया जा रहा था फिर से तनु का बैग तनु को दे दिया।
रात को 11:30 पर हम लोग फाकडींग के पास आ गए तब हमने साथ वालों से पूछा कितने दूर है होटल। उन्होंने बोला बस 20 मिनट ।15 मिनट और चलने के बाद फिर पूछा और जबाव फिर वो ही मिला 20 मिनट ।
अब हम फाकडींग भी क्रॉस कर चुके थे फिर पूछा अब कितनी दूर है तब उसने थोड़ी दूर लाइट जलती हुई दिखाई और बताया वहाँ से 5 मिनट बस अब हमने उसको मना कर दिया चलने को समय रात के 12 से भी ज्यादा हो गया था। अब वो अदानी भड़क गया की मैंने आप लोगों के लिए खाना बनवा दिया है अब आपको चलना ही पड़ेगा। हमने भी बोला पिछले 1 घंटे से 20 मिनट बोल बोल कर इतना चला दिया है हम अब नहीं चलेंगे। हमने पास में ही 500-500 NPR के 2 रूम ले लिए और खाने का बिल्कुल भी मन नहीं था थोड़ा बिस्कुट और नमकीन खा कर सो गये । फाकडींग की दूरी जो नेट में 15 km दिखाता है वो मेरी घड़ी ने 24 km बतायी।
फाकडींग से नामचे बाजर
कल के ट्रेक से हम सब बहुत थक चुके थे. सुबह 8 बजे नीद खुली । फ्रेश हुए । Ebc में एक खास चीज देखने की मिली यहां आपको केवल टाईलेट मिलेगा बाथरूम नहीं वो शायदा इस लिए की यहां पर बहुत ठंडा होता है तो यहां कोई नहाता नहीं है।
सुबह 550 रुपये का एक नूडल खाया. खाना बहुत महंगा है नेपाल में रहना सस्ता है खाना बहुत ज्यादा महंगा. सुबह 11 बजे सब से पहले ट्रेक शुरू करने से पहले एक छोटी सी पूजा करी और चल दिए।
फाकडींग से कुछ उप्पर गए तो 2000 रुपये का एक नेपाल म्युनिसिपालिटी का परमिट बना। मंजो जाने पर सागर माथा नैशनल पार्क का परमिट बना जिसका 1500 रुपया नेपाली लगा। जैसे ही मंजो से पास बना कर निकले मौसम ने करवट बदली और थोड़ा बारिश शुरू हो गई। फिर थोड़ी देर में रुक गयी करीब 4 बजे जब हम नामचे बाजार पहुंचने वाले थे तो बर्फ बारी शुरू हो गई।
जैसे ही थोड़ा बर्फ रुकी तो हम चल दिए । थोड़ी देर में बर्फबारी जायदा होने लगी और हम तब तक नामचे पहुंच गए। अब हमने एक होटल देखा जिसका नाम था होटल इंटरनेशनल। वहाँ जब रूम का पता किया तब उसने बोला 500 रुपये 1 रूम का किराया लगेगा और खाने का अलग मेन्यू के हिसाब से। तब हमारे तरुण ने उस से नेपाली भाषा मे डील किया । तरुण को थोड़ा थोड़ा नेपाली आती थी। लेकिन पिछले 3 दिन में उसने अपनी नेपाली बहुत स्ट्रॉन्ग कर ली थी सब से बात कर कर के। तरुण ने उसको सेट कर दिया और वो फ्री में 2 रूम देने को तैयार हो गया। 1 थर्मस गर्म पानी भी जिसको वो 200 रुपये का बोल रहा था वो भी फ्री में देने को तैयार हो गया और wi fi भी।
आज का रास्ता बहुत ही खूबसूरत था रास्ता हमेशा नदी के किनारे चल रहा था आज बहुत सारे suspension bridge भी क्रॉस किए। आज 14 km का ट्रेक हुआ ।
नामचे से डींगबोचे
सुबह सुबह 4:30 पर उठ गए फ्रेस हो कर 6 बजे निकल गए। वैसे तो होटल वाले के 2200 रुपये होते थे लेकिन उसने हमसे 2000 रुपये ही लिए ।
सुबह सुबह नामचे बहुत ही खूबसूरत लग रहा था
नामचे से थोड़ा ऊपर आने पर अगले 2 घंटे तक रास्ता प्लेन है। कुछ दूर चलने पर एक रास्ता ebc के लिए चले जाता है और दूसरा रास्ता gokyo lake के लिए चला जाता है. जहां से gokyo lake 16 घंटे की walking distance पर है ।
सुबह मौसम साफ़ था और चारों ओर नजर घुमाने पर बहुत सारी पीक दिखाई दे रही थी जिसमें अमा डबलाम प्रमुख थी। पहले 2 घटे चलने पर कोई प्रॉब्लम नहीं हुई लेकिन उसके बाद का रास्ता बहुत चडाई वाला था जिसमें हम लोग बहुत धीरे धीरे चले। 12 बजे हम लोग टेंगबोचे पहुंच गये ।
टेंगबोचे बहुत ही खूबसूरत जगह है यहाँ से बहुत सुंदर हिमालया दिखाई देता है यहाँ पर एक मोनेस्ट्री भी है। 30 मिनट टेंगबोचे में अराम करने के बाद हम आगे की ओर बड़ गये। टेंगबोचे के बाद रास्ता 15 मिनट तक डाउन है और दोनों ओर बुरांश के पेड़ से सुशोभित है ।
एक suspension bridge क्रॉस करने के बाद फिर से चडाई शुरू हो जाती है। टेंगबोचे से 2 घटे बाद हम पहुंचे पंगबोचे। मैं और तरुण आगे थे। उमा और तनु हमसे थोड़ा पीछे थे। पंगबोचे से थोड़ा पहले 2 रास्ते अलग हो जाते हैं एक रास्ता पंगबोचे गाँव की ओर चला जाता है और दूसरा रास्ता पंगबोचे गोमपा की ओर चला जाता है। मैं और तरुण गाँव के रास्ते से गये हम आगे निकल गये जबकि उमा और तरुण ने गलती से गोमापा वाला रास्ता ले लिया। गाँव क्रॉस करने के बाद मैं और तरुण उन दोनों के लिए रुक गए। हम 1 घंटे तक रुके रहे लेकिन वो आए नहीं। तब मुझे लगा वो शायद रास्ता भटक गए फिर मुझे एक नेपाली दिखा मैंने उस से पूछा तो पता चला गोमपा वाला रास्ता आगे जा कर इस रास्ते पर ही मिलता है। हम 1 घटे वहाँ पर रुकने के बाद आगे चल आगे चल दिए थोड़ी देर में वो दोनों भी आ गए।
कुछ समय चलने के बाद सभी लोग थकने लगे थे और उमा के सर में दर्द भी हो रही थी । तनु पूरी थक गई थी उसका बैग भी अब मैंने ले लिया था। शाम को 7 बजे हम लोग डींगबोचे पहुँच गए। डींगबोचे में मैंने पहले ही माउंट हेरीटेज लांज में बात कर रखी थी 15 दिन पहले से ही फ्री स्टे के लिए। बस हमको आज का फ्री स्टे मिल गया और सिर्फ खाने के पैसे देने थे।
4 प्लेट ऐग राईस खाया और सब सो गये। आज हमारा 24 km हुआ ।
डींगबोचे से गोरखक्षेप
आज सुबह का मौसम भी बिल्कुल साफ़ था आज सुबह का मौसम भी बिल्कुल साफ़ था। डींगबोचे से बहुत सारे बर्फीले पहाड़ दिखाई दे रहे थे जिसमें से सब से प्रमुख था अमा डबलाम।
ब्रेकफास्ट में cornflakes खाये एक cornflakes की कीमत थी 450 NPR
हम लोगों ने 8 बजे डींगबोचे से चलना शुरू किया. उमा के सर में दर्द हो रहा था. जो की AMS के कारण हो रहा था। मैंने उमा को बोला तू यहाँ ही रुक जा 1 दिन अगर दर्द सही हुआ तो कल उप्पर को आ जाना वो नहीं माना।
हमने अपना प्रयोग किया हुआ बहुत सा समान डींगबोचे होटल में ही छोड़ दिया। अब हमने सिर्फ 2 बड़े बैग बनाये और एक छोटा कैमरे का बैग । हम धीरे धीरे आगे चलने लगे। कुछ समय बाद दवाई लेने से उमा का सर दर्द भी अब ठीक हो गया था । आज बहुत ही सुंदर सुंदर नजारे हमेशा की तरह देखने को मिल रहे थे।
डींगबोचे से एक रास्ता आइलैंड पीक के लिए चाला जाता है. दूसरा रास्ता ebc के लिए । 2 बजे हम लोग लोबोचे पहुँच गये थे। लोबोचे से हमको जाना था गोरखक्षेप जो की 3 km था और 3 घंटा दिखा रहा था। आज हमने एक ग्लेशियर भी पार किया और उस ग्लेशियर के ठीक उप्पर से कुम्भु ग्लेशियर का रोमांचित कर देने वाला नज़ारा भी देखा । दूर से कुम्भु आइस फाल भी दिखाई दे रहा था। आज पहली बार एवरेस्ट के थोड़े से दर्शन भी हो गये।
5 बजे में और तरुण गोरखक्षेप पहुंच गए। जैसा की मुझे पहले ही गुरप्रीत ने बटाया था होटल हिमालया के बारे में हम वहाँ ही चले गए और आज भी हमको फ्री में रहने के लिए रूम मिल गए। थोड़ी ही देर में उमा और तनु भी पहुंच चुके थे । उमा की तबीयत एक बार फिर से खराब हो गई ।अब उसको उल्टियां भी होने लगी।
थोड़े देर बाद हमने मोमो और दाल भात जो की 800 NPR पर प्लेट था वो ऑर्डर किया और थोड़ा बहुत खा लिया उमा को दवाई दी और सब सो गये। आज हम लोग 16 km चले
गोरखक्षेप से EBC
आज वो दिन था जिसके लिए हम सबने बहुत दिनों से इंतजार किया था। आज हमको EBC जाना था । उमा की तबीयत खराब होने के कारण हमने निर्णय लिया की उमा आज यहाँ ही होटल में रेस्ट करेगा और अगर कल तबीयत सही हुई तो कल EBC जायेगा ।
हम तीन लोग 9 बजे EBC के लिए निकल गए । आज हम खाली हाथ थे हमारे पास सिर्फ एक छोटा बैग था जिसमें कैमरा वगैरा रखा था।
गोरखक्षेप से ले कर EBC तक एवरेस्ट हम लोगों को दिखाई देता रहा। एवरेस्ट बेस कैम्प पहुंच कर थोड़ा मस्ती की और बहुत सारी फोटो खिचाई और फिर वापस आ गए 1 बजे तक हम वापस होटल में आ गये।
हमारा plan था लंच कर के कालापत्थर जाने का लेकिन मौसम खराब हो गया और हमने आराम करना ही उचित समझा। लंच में 850 रुपये के दाल भात खाया। आज 9 km का ट्रेक हुआ ।
बर्फबारी में रास्ता भटके
उमा की तबीयत सही नहीं थी उसके फिर भी Ebc जाने की जिद पकड़ रखी थी । हमारे लाख समझने के बाद भी वो सुनने को तैयार नहीं हुआ और उसने पिछले शाम को घोड़े वाले से बात कर ली । घोड़ा वाला 12000 NPR मे जाने को तैयार था बहुत समझोता करने के बाद वो 5000 में तैयार हो गया ।
उमा सुबह 6 बजे घोड़े मे बैठ कर EBC चल दिया। हम लोगो को आज कालापत्थर जाना था जिसकी हाइट 5545 mtr थी । ब्रेकफास्ट कर के हम 3 लोग चल दिए कालापत्थर की ओर कालापत्थर की चडाई बहुत ही खतरनाक थी। वैसे तो आज मौसम साफ़ नहीं था तो कालापत्थर से एवरेस्ट की दिखने की उम्मीद बहुत कम थी। लेकिन अपना लक्ष केवल 5545 मीटर की ऊंचाई तक सफलतापूर्वक जाना था।
हम तीनों धीरे धीरे कालापत्थर की ऊंचाई पर चल रहे थे। आज सुबह से मेरा भी सर दर्द हो रहा था। चडाई बहुत ही फाडू थी। थोड़ा थोड़ा चलने के बाद हमको थोडे थोड़ा रेस्ट लेना पड़ रहा था। मैं और तरुण टॉप पर पहुंच गए थे। वहाँ से नज़ारा बहुत ही मनमोहक था। लेकिन वहाँ पर बहुत ही ठंडी ठंडी हवा चल रही थी। तनु समिट से करीब 50 mtr पहले ही रुक गयी थी क्यू की टॉप पर चट्टानें थी। जोर जोर से हवा चल रही हवा के कारण तनु के लिए चट्टानों पर चडना बेहद खतरनाक था। कुछ देर वहाँ पर फोटोग्राफी करने के बाद हम लोग नीचे आ गए जाने में हमको करीब 2.30 घटे लगे थे। जबकि वापसी में सिर्फ 30 मिनट लगे।
जब हम होटल पहुचे तब तक उमा भी EBC से वापस आ गया था। हम लोगो ने लंच किया और जल्दी से अपना समान पैक कर के बिल पे किया. यहाँ हमारा बिल 18000 NPR आया ये अब तक का सब से ज्यादा था।
अब हमने बचे हुए पैसों के 2 हिस्से किए क्यू की यहां से मुझे और तरुण को चोला पास के लिए जाना था। जबकि उमा और तनु को डींगबोचे की ओर जाना था। हम लोगो के पास 2 बैग थे एक मेरा और तरुण का दूसरा तनु और उमा का।
करीब 12 बजे हम सब चल दिए एक एक बैग मैंने लिया और दूसरा तरुण ने क्युकी लोबोचे तक तो हमारा रास्ता एक ही था। मैं और तरुण जल्दी जल्दी चलने लगे। कुछ समय बाद ही बर्फबारी शुरू हो गई अब हम और जल्दी चलने लगे करीब 1 घंटे में ही तरण लोबोचे पहुँच चुका था। और थोड़ी देर में मैं भी। अब हम वहाँ पर उमा और तनु का इंतजार करने लगे।
दोनों बहुत ही धीरे चल रहे थे और हमारे पहुंचने के 2 घंटे बाद वो लोबोचे पहुंचे। अब उनका बैग उनको दे कर मैं और तरण जोगला के लिए चल दिए जहां आज हमको पहुचना था। बर्फ बारी लगातार हो ही रही थी. लोबोचे से थोड़ा नीचे पहुंच कर एक रास्ता डींगबोचे के लिए चाला जाता है और दूसरा चोला पास के लिए हमने चोला वाला रास्ता पकड़ लिया। थोड़ा देर तक तो रास्ता दिखता रहा लेकिन बर्फबारी के कारण ट्रेल गायब हो गई हम करीब 15 मिनट तक गलत रास्ते में भटक गए फिर हमने वापस जहां से 2 रास्ते जाते हैं वहाँ पर आने का निर्णय लिया. हम वापस आ रहे थे तो हम बिल्कुल घाटी में पहुंच गए।
घाटी पर आते ही हमको अपने दोनों और के पहाड़ो पर एक एक ट्रेल दिखाई दी लेफ्ट वाली ट्रेल डींगबोचे वाली थी और राइट वाली चोला वाली हमने घाटी से ही सीधे खड़ी चडाई चड़ कर चोला वाली ट्रेल पकड़ने की कोशिश की 2, 3 बार बर्फ के कारण पैर भी फिसला लेकिन हम सफल हो गए। अब हम ट्रेल पकड़ कर चलने लगे बर्फ रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। 30 मिनट तक तो हमको सही ट्रेल दिख रही थी और उसके बाद हर जगह इतनी बर्फ थी की ट्रेल दिखना ही बंद हो गई। हम सिर्फ अंदाज़े से चल रहे थे कुछ समय बाद सामने से 3 नेपाली सामने से आते दिखाई दिए तो हमारी जान में जान आयी उनसे पूछने पर पता चला की जोगला पहुँचने में अभी 1 घंटे 30 मिनट लगेगा ।
अब उनके पैरों के निशान को फोलो करते हुए हम आगे बड़ने लगे। 10 मिनट तक तो उनके पैरों के निशान दिखे लेकिन लगातार बर्फबारी से अब निशान दिखना भी बंद हो गए। अब हम सिर्फ अंदाज़े से ट्रेल को खोजने का प्रयत्न करने लगे। अब कुछ भी अंदाजा नहीं लग रहा था हम बस आगे बड़े जा रहे थे नीचे हमको चोला लेक दिलाई दे रही थी। हम बस खुद की ट्रेल बना कर आगे बड़ रहे थे। इस कोशिश में हम दोनों करीब दर्जनों बार गिरे लेकिन फिर भी हम आगे चलते रहे। डर इस बात का लग रहा था कहीं ज्यादा जोर से फिसलने से हम चोला लेक तक ही ना पहुच जाये। अब धीरे धीरे अंधेरा भी हो रहा था। पीछे आने का तो सवाल ही नहीं होता। हम ट्रेल बनाते हुए गिरते पढ़ते आगे बड़ रहे थे अब हम पूरी तरह से भटक गए थे अब थोड़ा सा डर लगना भी शुरू हो गया था। दोनों ने भगवान भोले को याद करना शुरू कर दिया।
बर्फ करीब 2 फिट तक पढ़ चुकी थी पैरों के अंदर भी अब बर्फ जा चुकी थी। बर्फ के कारण हमारी गति बहुत ही कम हो गई थी। अब हम धीरे धीरे चिल्लाते हुए और सिटी बजाते हुए आगे बड़ रहे थे। शायद कोई हमको सुन पाए ये सोच के। 30 मिनट तक ये ही सिलसिला चलता रहा अब अंधेरा होने ही वाला था। तब ही सामने से सिटी और चिल्लाने की आवाज आयी तब हमने और जोर से चिल्लाना शुर कर दिया। कुछ समय बाद हर्षित जो हमको 2 दिन पहले गोरखक्षेप में मिला था वो 2 लोकल शेरपा को ले कर हमारे पास पहुंच गया तब जा कर हमारी जान में जान आयी। वो 3 लोग मिल कर हमको जोगला लांज में ले कर गये आज भगवान ने हमारी जान बचा ली। आज 25 km चलना हुआ।
जोगला से गोक्यो लेक
जोगला से गोक्यो लेक
कल के दिन घटी घटना ने एक सबक दिया की किसी बिना रास्ते की जानकारी वाले ट्रेक को कभी बर्फबारी के दौरान नहीं करना चाहिए. कल जोगला पहुँच कर बहुत रीलेक्स मिला। लेकिन कल दिन से शुरू हुई बर्फबारी जो आधी रात तक चली हमारी चिंता बहुत ज्यादा बड़ा दी थी।
पहले ही चोला पास मार्च में क्रॉस हो पायेगा या नहीं इस पर संशय था। अब तो लग रहा था वापस फिर से जहां से आये वहाँ वापस जाना पड़ेगा और gokyo lake जिसको देखना एक सपना था वो सपना ही रह जाएगा इस बार। रात को हर्षित से डिस्कस हुआ तो उसने बोला अभी भी बर्फबारी हो रही है अभी सो जाओ कल मॉर्निंग में ब्रेकफास्ट पर बात करते हैं।
मॉर्निंग 6 बजे मेरी नींद खुली तो खिड़की खोल कर देखा चोला पीक पर धूप खिली थी और नीचे चारो ओर बर्फ ही बर्फ बिखरी हुई थी. धूप खिलना हमारे लिए सुखद खबर थी. लेकिन बर्फबारी होना बहुत ही बेकार खबर थी चोला पास पर संशय अभी भी बरकार था।
नीमा शेरपा जिसकी लॉज में हम रुके हुए थे उस से पता किया तो वो बोला क्या आपके पास Crampton है मेरे और तरुण के पास मिला कर एक Crampton था जबकि हर्षित और उसकी विदेशी फ्रेंड के पास एक भी नहीं था। तरुण हर्षित और उसकी फ्रेंड ने नीमा से एक एक Crampton 1200 रुपये एक Crampton की कीमत पर ख्ररीद लिया. Crampton तो खरीद लिया था लेकिन अभी भी चोला पास क्रॉस करना बहुत ही मुश्किल था। पिछले दिन हुई भारी बर्फबारी से ट्रेकिंग ट्रेल पूरी तरह ठक चुकी थी और रास्ता हममें से किसी को पता नहीं था।
हमारी किस्मत अच्छी थी कुछ ही समय बाद 2 वहाँ के लोकल नेपाली आ पहुँचे जिनको आज ही चोला क्रॉस कर के gokyo जाना था. हम लोगो ने उनसे बात की और उन दोनों के ही साथ जाने का निर्णय लिया।
09:30 पर हम सब लोगों ने जोगला छोड़ दिया। दोनों नेपाली आगे आगे और हम सब पीछे पीछे। आज सर में बहुत दर्द था इतने दिनों से हाई अल्टीटूयड पर रह रहा था तो उस वजह से सर दर्द बना हुआ था।
तरुण भी बहुत दिनों से चलने के वजह से कुछ थक गया था। हमने एक नेपाली से बात कर ली वो हमारा समान थांगनाग तक 2000 रुपये में ले जाने की तैयार हो गया।
चोला पास जिसकी हाइट 5360 mtr है बहुत ही मुश्किल पास माना जाता है। शुरुवात से ही चडाई मिली धीरे धीरे हम लोग आगे बढ़ने लगे अब समय आ गया था अपने अपने Crampton पहनने का। सब लोगों ने अपने अपने Crampton लगा लिए लेकिन मेरे Crampton में कुछ प्रॉब्लम थी जिसकी वजह से में लगा नहीं पाया अब मुझे ग्लेशियर क्रॉस करना थोड़ा मुश्किल हो गया था।
चडाई इतनी खड़ी थी की हर 10 कदम के बाद अराम लेना पड रहा था। कुछ 1 घंटे की कठिन चडाई के बाद हम लोग अब ग्लेशियर पर पहुंच चुके थे अब असली परिक्षा शुरू थी। नीचे ग्लेशियर और ऊपर बना आइस फील्ड अब उसको पार करना था। सब के पास Crampton थे लेकिन मेरे पास नहीं। 2 लोग मेरे आगे चले और मैं उनको फोलो करता चला गया। 3 लोग मेरे पीछे थे। उस आइस फील्ड में चलने पर थोड़ा डर भी लग रहा था। अगर कहीं crevasses में पैर चला गया तो। करीब 45 मिनट उस आइस फील्ड पर चलने के बाद हम लोग चोला पास के ठीक नीचे थे। बस 20 mtr और चडाई थी और हम अब ठीक चोला पास के उप्पर थे।
वहाँ पर हम लोग 30 मिनट रुके कुछ अच्छी फोटो भी ली और आज मैं अंदर से बहुत खुश था। नेपाल आने से पहले मैंने कुछ घुमक्कड़ी ग्रुप में पूछा था की क्या मार्च में चोला पास क्रॉस किया जा सकता है तो सब ही ने बोला था नहीं it's impossible और तब ही से मुझे चुल्ल हो गई थी की अब तो इसको क्रॉस करना ही है।
और आज वो चुल्ल शांत हुई. अब हम चोला पास के दूसरी ओर उतरने लगे वहाँ पर बहुत ही ज्यादा ढलान थी इसलिए फिक्स्ड वायर थी जिससे उतरने में बहुत आसानी थी। एक ग्रुप हमको अपने opposite direction से चोला आते हुए दिखा उनको देख के लग रहा था इस दिशा से चोला क्रॉस करना शायद और मुश्किल है।
2 बजे तक हम लोगों ने चोला पूरी तरह क्रॉस कर लिया था। 3 बजे तक हम लोग थांगनाग में थे। तब हमने नेपाली से बोला 500 रुपये और ले लो और हमारा बैग gokyo तक ले चलो हम भी तुम्हारे साथ चलते हैं। वो मान गया। थांगनाग से gokyo का रास्ता 2 घण्टे का था। जिसमें से 1.30 घंटा दुनिया के सब से बड़े ग्लेशियर में से एक नोगोजुम्पा ग्लेशियर होकर जाना था। ग्लेशियर में लगातार अप डाउन चलते रहे और 5 बजे करीब हम 4. मैं 2 नेपाली और तरुण ठीक gokyo lake के उप्पर वाले पहाड़ पर आ चुके थे. हर्षित लोगों का प्लान आज थांगनाग में ही रुकने का था।
Gokyo lake देख कर ऐसा लग रहा था मानो आज सही में स्वर्ग में मैंने कदम रख दिया हो. 5 % झील को छोड़ दिया जाए तो सारी की सारी बर्फ से ज़मी हुई थी। नीचे पहुंचे 500 रुपये में रूम लिया dining hall में लगी बुखारी से खुद को गर्म किया। वहाँ 2 काठमांडू से आए लोगों से बहुत देर तक बात की डिनर खाया और सो गये आज 19 km का ट्रेक हुआ ।
गोक्यो री से नामचे बाजर
आज सुबह उठ कर 6 बजे चल दिए gokyo Ri के लिए ri का मतलब होता है पहाड़ी और gokyo Ri gokyo lake के आस पास की सब से ऊंची पहाड़ी है।
रूम से देख कर लग रहा था पहाड़ी ज्यादा ऊंची नहीं है हम लोग 1 घंटे में चढ़ जाएंगे। 6 बजे चलना शुरू किया ।नीचे से थोड़ा ऊपर ही पहाड़ी की चोटी दिख रही थी। जैसे ही थोड़ा उप्पर गए तो वहाँ से पहले दिख रही चोटी के उप्पर एक और चोटी दिखने लगी। हम लोग धीरे धीरे ऊपर चडाई करते हुए ऊपर बढ़े कुछ और ऊपर जाने पर एक और चोटी दिखने लगी ये ही सिलसिला 5 बार चला अब जाकर पता चला की लोग gokyo Ri जाने में इतना समय क्यू लेते हैं।
एक तो बहुत लंबा ट्रेक अभी तक हो चुका था इसलिए हम बहुत थक भी गये थे फिर भी 9 बज कर 10 मिनट पर हम लोग पहाड़ की चोटी पर थे। 20 मिनट रुक कर वहाँ से नजारे लिए. वहाँ से 8000 मीटर से उप्पर की 4 चोटियां दिखाई दे रही थी. Cho yo, lotose, everest और makalu जब मैं mounteering कोर्स कर रहा था तो हमारी रोपस का नाम हुआ करता था cho yo rope, makalu rope, everest rope, lohtse rope तब सोचा नहीं था एक दिन सबको अपने आखों से देखूँगा और आज वो दिन था ।
10 बजे तक हम नीचे आ गये महंगा सा ब्रेकफास्ट कर के 1030 पर नीचे के लिए चल दिए। लोगों से पता किया तो उन्होंने बोला आज नामचे पहुंचना बहुत मुश्किल है आपका अगर सुबह जल्दी जाते तो पहुंच सकते थे. हमने बोला हम कोशिश करेंगे देखो कहाँ तक जा सकते हैं.
एक बार सोच रहे थे की रंजो पास भी चले जाये फिर हमारे 2 साथी आगे जा चुके थे। और 27 को एक की फ्लाइट भी थी दूसरा gokyo Ri और ranjo la का व्यू same to same था तो विचार त्याग दिया।
Gokyo से नीचे जाते हुए 2 और लेक मिली पहली लेक gokyo की तरह ही बर्फ से ज़मी हुई थी लेकिन दूसरी लेक पानी से भरी थी और थोड़ा छोटी थी.
नीचे आते रहे और जैसे जैसे नीचे आते रहे इतने दिनों से जो Hight alltidute में रहने के कारण जो समस्या बनी हुई थी सर दर्द जैसी वो सब खत्म होती चली गई।
Gokyo मे कल एक नेपाल आर्मी की टुकड़ी भी अभ्यास के लिए आयी थी। जो सुबह ही gokyo से निकल गई थी। वो लोग हमको 2 झील क्रॉस करने के बाद थोड़े नीचे बने पुल के पास मिले जहां उनकी ब्रीफिंग हो रही थी। हम लोग उनको क्रॉस कर गये। जब हम करीब 2 km आगे पहुंच गए तो नेपाल आर्मी पीछे से आ कर एक एक कर के हमको क्रॉस करने लगी. उनके पास एक एक INSAS राइफल पानी की बोतल पीठ में कम से कम 20 kg का पिट्ठू था वैसे एक बैग हम लोगों के पास भी था लेकिन 15 kg का।
जब हम machermo पहुंचे तो नेपाल आर्मी वहाँ पर रेस्ट ले रही थी और एकबार हम फिर नेपाल आर्मी से आगे हो गए लेकिन ये बहुत कम समय के लिए हुआ फिर से पीछे से नेपाल आर्मी ने आ कर हमको पीछे कर दिया। लेकिन डोले पहुंचने से कुछ पहले ही हम लोगों ने उनको पीछे कर के ऐसी रेस लगायी की फिर वो हमको कहीं दिखाई ही नहीं दिए।
शाम को 6 बजे तक बहुत अराम से नामचे बाजर पहुँच गये और पहले वाला ही होटल ले लिया अगले दिन बुप्सा के पास पहुँच कर एक होटल लिया रास्ते में तनु और उमा भी मिल गये थे।
उसके अगले दिन सल्लेरी पहुँच गये जहाँ से अगले दिन काठमांडू की बस पकड़ के पशुपति नाथ जी के दर्शन किए।इस तारीके से हम लोगों ने 15000 भारतीय रुपये पर व्यक्ती खर्चे में एवरेस्ट बेस कैम्प के साथ साथ चोला पास और गोक्यो लेक भी कर लिया।
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