आज तक वैज्ञानिकों के होश उड़ा रही है चट्टान चीरकर बने हज़ारों साल पुराने इस मंदिर की बनावट !

Tripoto
Photo of आज तक वैज्ञानिकों के होश उड़ा रही है चट्टान चीरकर बने हज़ारों साल पुराने इस मंदिर की बनावट ! by We The Wanderfuls

हमारे देश भारत में लोगों का आस्था और धर्म से जुड़ा रिश्ता हज़ारों सालों पुराना है और इसको समझने के लिए आपको ढेरों उदारहण हमारे अद्भुत देश में मिल जायेंगे। इन्हीं में से एक है यहाँ की लगभग हर गली में स्थित मंदिर जहाँ भक्त खुद को ईश्वर के करीब ले जाने के लिए जाया करते हैं। इन्हीं मंदिरों में से अनेकों मंदिर ऐसे भी हैं जो कुछ दशक नहीं बल्कि सैंकड़ों और यहाँ तक की हज़ारों सालों से भारत माता की इस पवित्र भूमि पर मौजूद हैं और ऐसे ही कुछ मंदिरों की वास्तुकला और उनसे जुड़ा इतिहास आज भी लोगों को सोचने पर मजबूर कर देता है।

आज इस लेख में हम जिस पौराणिक और अद्भुत मंदिर की बात कर रहे हैं उसकी बनावट तो आज तक बड़े-बड़े वैज्ञानिकों के भी होश उड़ा रही है। एक ही विशाल और बेहद कठोर पत्थर से बनी चट्टान को चीरकर बने इस मंदिर जैसी दूसरी सरंचना आज की आधुनिक तकनीकों के साथ आज भी बनाना लगभग नामुमकिन है और इसीलिए कई लोग इस मंदिर को बनाने में ईश्वरीय शक्ति के शामिल होने की बात करते हैं और कुछ तो इसे एलियन के द्वारा बनाया हुआ बताते हैं। तो चलिए बताते हैं आपको हमारे देश की इस अद्भुत विरासत के बारे में पूरी जानकारी...

कैलाश मंदिर, एलोरा

Photo of Kailasa Temple, Ellora by We The Wanderfuls

कैलाश मंदिर, एलोरा

जैसा कि हमने आपको बताया कि यह मंदिर एक विशाल चट्टान को चीरकर बना है। आपको बता दें कि इस मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी में किया बताया जाता है। ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार एलोरा के कैलाश मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्ण प्रथम के द्वारा करवाया गया था। महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर (औरंगाबाद) जिले में स्थित एलोरा गुफाओं में स्थित गुफा संख्या 16 में यह अद्भुत कैलाश मंदिर बना हुआ है जो कि करीब 300 फ़ीट लम्बा, 175 फ़ीट चौड़ा और करीब 100 फ़ीट ऊँचा है।

यह अनूठा मंदिर यूनेस्को द्वारा आधिकारिक तौर पर विश्व विरासत सूची में भी शामिल किया जा चूका है और एक समय में घने जंगलों में छिपा यह मंदिर आज भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है। इसकी बनावट के पीछे सबसे रहस्यमयी बातों में से एक यह है कि इसका निर्माण सिर्फ छेनी-हथौड़े से किया गया है और इतनी बड़ी चट्टान को काटकर सिर्फ मंदिर बनाना ही इसे खास नहीं बनता बल्कि यह अद्भुत कृति भारतीय वास्तु-शिल्पियों के कौशल का अद्भुत नमूना है। आपको बता दें कि मंदिर को आम मंदिरों से हटकर ऊपर से नीचे की ओर तराशा गया है और दो मंजिल में बनाए गए इस मंदिर को भीतर तथा बाहर दोनों ओर बेहद सुन्दर मूर्तियों से सजाया गया है। मंदिर में सामने की ओर एक खुले मंडप में नंदी महाराज विराजमान हैं और उसके दोनों ओर विशालकाय हाथी तथा स्तंभ बने हुए हैं। मंदिर में नीचे की दीवारों पर चारों ओर हाथियों की आकृति बनायीं गयी हैं मानों यह पूरा मंदिर उन्हीं हाथियों पर टिका हुआ है। इसके साथ ही मंदिर की दीवारों पर महाभारत और रामायण से जुड़े दृश्य भी बड़ी खूबसूरती से उकेरे गए हैं।

मंदिर की दीवारों पर बनी सुन्दर मूर्तियों का एक उदारहण

Photo of आज तक वैज्ञानिकों के होश उड़ा रही है चट्टान चीरकर बने हज़ारों साल पुराने इस मंदिर की बनावट ! by We The Wanderfuls
Photo of आज तक वैज्ञानिकों के होश उड़ा रही है चट्टान चीरकर बने हज़ारों साल पुराने इस मंदिर की बनावट ! by We The Wanderfuls

मंदिर से जुड़ी कुछ अनसुलझी बातें

आपको बता दें कि एलोरा गुफाओं में स्थित यह अकल्‍पनीय-अद्वितीय मंदिर पूरी दूनिया में एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया सबसे विशाल व अखंड मंदिर है। ये बात अपने आप में इस अद्भुत मंदिर को सबसे खास बना देती है लेकिन इसके अलावा भी इस मंदिर के निर्माण से जुड़ी ऐसी कई चीजें हैं जो कि आज भी बड़े-बड़े वैज्ञानिकों और वास्तुकारों की समझ से परे है। बताया जाता है कि इस मंदिर के निर्माण में वास्तव में सिर्फ 18 वर्षों का समय लगा था। हालाँकि कुछ पुरातत्वविदों के अनुमान के अनुसार इस मंदिर को बनने में कम से कम 100-150 वर्ष लगे होंगे और वो भी तब जब एक साथ 7000 मजदूरों ने इस पर काम किया होगा। इसीलिए ऐसी भी मान्यताएं हैं कि भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर के निर्माण में दैवीय सहायता की भी संभावना है।

इतने विशाल मंदिर में सभी स्तम्भों और दीवारों पर अनेकों मूर्तियां बनायीं हुई हैं और ये सभी मूर्तियां एक ही चट्टान को काटकर बनायीं गयी हैं साथ ही इनमें से किसी भी प्रतिमा की बनावट में किसी तरह की कोई खामी नहीं मिलती। चट्टान को काटकर बनाये गए मंदिर में किसी तरह की लापरवाही की कोई गुंजाईश थी भी नहीं फिर भी इतनी कुशलता से इस संपूर्ण कार्य को किया जाना हर किसी को सोचने पर मजबूर कर देता है।

कैलाश मंदिर के बाहर सुन्दर बगीचा

Photo of आज तक वैज्ञानिकों के होश उड़ा रही है चट्टान चीरकर बने हज़ारों साल पुराने इस मंदिर की बनावट ! by We The Wanderfuls

आपको बता दें कि इस मंदिर के बाद कोई भी भारतीय राजवंश ऐसी अद्भुत सरंचना बनाने में सफल नहीं हो सका। यह ऐसी अद्भुत सरंचना है जिसे बनाना तो बेहद मुश्किल था ही साथ ही इसे नष्ट करना भी लगभग असंभव था। इसीलिए देश के अनेकों मंदिरों को विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा इतना नुकसान पहुँचाने से उलट इस एतिहासिक मंदिर को कोई भी कुछ खास क्षति नहीं पहुंचा पाया। इसके अलावा यह भी बताया जाता है कि अंग्रेजों ने भी गुफाओं पर शोधकार्य शुरू करवाया था लेकिन वहां हाई रेडियोएक्टिविटी की वजह से शोध बंद करना पड़ा। इसीलिए ऐसा समझा जाता है कि इस रेडियोएक्टिविटी का कारण वही भूमिअस्त्र और मंदिर के निर्माण में उपयोग किए गए अन्य उपकरण हैं जिन्हें मंदिर के नीचे दबा दिया गया होगा।

Photo of आज तक वैज्ञानिकों के होश उड़ा रही है चट्टान चीरकर बने हज़ारों साल पुराने इस मंदिर की बनावट ! by We The Wanderfuls

मंदिर की सरंचना

इस अद्भुत मंदिर के निर्माण के लिए इस चट्टान को पहले 'U' आकर में काटा गया बताया जाता है जिसमें हज़ारों टन पत्थर बाहर निकाला गया था। उसके बाद वे हटाए गए पत्थर कहाँ गए ये बात भी अभी तक एक पहेली ही बनी हुई है। इसके बाद मंदिर में तीन अलग-अलग मंडपों का निर्माण किया गया और इन तीनों मंडपों को आपस में जोड़ा भी गया। मुख्य मंदिर में प्रथम तल पर मंदिर के साथ विशाल शिवलिंग को भी चट्टान पर ही उकेरा गया है। मंदिर में वैसे आपको अँधेरा मिलता है लेकिन मुख्य मंडप जहाँ विशाल शिवलिंग स्थापित हैं वहां मंडप में ऊपर से छनकर आती हल्की-सी रौशनी भी बेहद अच्छे से देखी और महसूस की जा सकती है। इसके अलावा मुख्य मंदिर के सामने की ओर दूसरे मंडप में नंदी महाराज की मूर्ति स्थापित है। मुख्य मंदिर के दोनों ओर ध्वज स्तंभ के पीछे वाली बाहरी दीवार पर महाभारत और रामायण के दृश्यों की दो दिलचस्प पट्टिकाएँ हैं। एक पट्टिका में रामायण से जुड़े कई दृश्य दर्शाये गए हैं और दूसरी पट्टिका में महाभारत से जुड़े अनेक दृश्य दिखाए गए हैं।

यहाँ कैसे पहुंचे?

जैसा कि हमने आपको बताया कि यह मंदिर महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर (औरंगाबाद) जिले में स्थित एलोरा गुफाओं में है। औरंगाबाद से इसकी दुरी करीब 30 किलोमीटर है। औरंगाबाद से एलोरा तक का सफर सह्याद्रि पर्वतश्रृंखला के खूबसूरत नज़ारों से भरा है और इस सुन्दर सफर को पूरा करने के लिए आप औरंगाबाद से आसानी से बस या टैक्सी वगैरह लेकर यहाँ पहुँच सकते हैं।

छत्रपति संभाजीनगर पहुँचने के लिए आप हवाई, रेल या फिर सड़क मार्ग में से कुछ भी चुन सकते हैं। औरंगाबाद एयरपोर्ट (चिकलथाना एयरपोर्ट) भारत के बड़े शहरों जैसे दिल्ली-मुंबई से हवाई मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा आपको बता दें कि रेल मार्ग से आने के लिए भी छत्रपति संभाजीनगर एक बड़ा जंक्शन है जिससे आपको यहाँ पहुँचने के लिए आपके शहर से आसानी से रेल की सुविधा मिल जाएगी। साथ ही सड़क मार्ग से भी आप मुंबई, पुणे, शिरडी जैसे शहरों से औरंगाबाद के लिए सीधी बस बुक कर सकते हैं और खुद के वाहन से यहाँ पहुंचना भी सड़क मार्ग से बेहद आसान है।

कैलाश मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार

Photo of आज तक वैज्ञानिकों के होश उड़ा रही है चट्टान चीरकर बने हज़ारों साल पुराने इस मंदिर की बनावट ! by We The Wanderfuls
Photo of आज तक वैज्ञानिकों के होश उड़ा रही है चट्टान चीरकर बने हज़ारों साल पुराने इस मंदिर की बनावट ! by We The Wanderfuls

तो ऊपर बताई गयी जानकारी के अनुसार आप हमारे देश के इस सबसे अद्भुत चट्टान को काटकर बनाये गए मंदिर को देखने जा सकते हैं। इससे से जुड़ी जितनी भी जानकारी हमारे पास थी हमने आपसे इस लेख के माध्यम से साझा करने की कोशिश की है। अगर आपको ये जानकारी अच्छी लगी तो कृपया इस आर्टिकल को लाइक जरूर करें और साथ ही ऐसी ही अन्य जानकारियों के लिए आप हमें फॉलो भी कर सकते हैं।

अगर आप ऐसी ही कुछ और जानकारियों के बारे में जानना चाहते हैं तो आप हमारे यूट्यूब चैनल WE and IHANA पर या फिर हमारे इंस्टाग्राम अकाउंट @weandihana पर भी जा सकते हैं।

क्या आपने हाल में कोई की यात्रा की है? अपने अनुभव को शेयर करने के लिए यहाँ क्लिक करें

बांग्ला और गुजराती में सफ़रनामे पढ़ने और साझा करने के लिए Tripoto বাংলা और Tripoto ગુજરાતી फॉलो करें।

Further Reads