किसी शेर से पहली बार सामना होना ठीक वैसा ही होता है जैसा मौत छूने का होता है। दिल ज़ोरों से धड़कता है और तब तक धड़कता रहता है, जब तक अपने होने का एहसास दोबारा ज़हन में नहीं आता। मध्य प्रदेश की यात्रा पूरे हफ़्ते ऐसी ही मज़ेदार रही है। जंगलों में शेरों से सामना होते हुए ऊँचे ऊँचे झरनों तक जाना, जहाँ घने जंगल भी हैं और ऐतिहासिक विरासत भी। सात दिन मध्य प्रदेश की यात्रा की ऐसी प्लानिंग थी कि सब कुछ छू लिया मैंने। दिलचस्प खजुराहो भी और शांत ओरछा भी।
Tripoto टिप
शहरों का जाल बुनते हुए हाइवे हैं और पूरे प्रदेश को जोड़ती है रेलवे लाइन। मध्य प्रदेश के पास पाँच हवाई अड्डे (ग्वालियर, जबलपुर, खजुराहो, भोपाल और इंदौर) हैं जिसमें दो अंतरर्राष्ट्रीय (भोपाल और इंदौर) हैं। और अगर रोडट्रिप करना चाहते तो सड़कों पर सफ़र बेहतरीन होगा।
अगर ख़ुद से घूमना हो तो लगभग हर शहर तक जा सकते हैं, बस एक गाड़ी किराए पर ले लें। टैक्सी या गाड़ी पर ₹9/कि.मी. का खर्चा होगा, पेट्रोल का खर्चा अलग से होगा।
मध्य प्रदेश का सफर
गगनचुंबी क़िलों के वास्ता होता है ग्वालियर में, मध्य प्रदेश की शुरुआत यहाँ से बेहतर कहाँ होगी। जहाँ ग्वालियर का क़िला आकाश तक जाता है, वहीं जय विलास पैलेस सबसे समृद्ध शहर है। जैन मुनियों की मूर्तियाँ हैं जो शायद ही कहीं और देखी जाती हों। इसके साथ ही पुरातात्त्विक म्यूज़ियम भी यहाँ की विरासत की जानकारी बढ़ाने के लिए कम नहीं हैं।
देखने के लिए खास
1. दिन की शुरुआत ग्वालियर के क़िले से करते हैं। क़िलों के शहंशाह माना जाने वाला ये किला अपने उत्तम और राजसी रंग के लिए प्रसिद्ध है। किले में जाने के लिए 2 रास्ते हैं। पूर्व की तरह से एंट्री है। यहाँ से आपको ट्रेक करके किले पर पहुँचना होता है लेकिन यहाँ से मिलने वाला नज़ारा ट्रेक की मशक्कत पर भारी पड़ता है। दूसरी ओर पश्चिम में उरवाई गेट है जहाँ पर आप अपनी गाड़ी लेकर भी पहुँच सकते हैं। पहुँचने से पहले जैन मुनियों की मूर्तियों को देखना ना भूलें।
बच्चों का टिकट ₹40, वहीं बड़ों का टिकट की क़ीमत ₹75 की है। विदेशियों को इसके लिए ₹250 चुकाने होंगे। यह क़िला सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक खुला रहता है ।
2. इसके बाद आर्कियोलॉजिकल म्यूज़ियम देखने के लिए निकल सकते हैं। यह 15वीं सदी के बने गुजारी महल पैलेस में बनाया गया है। इस म्यूज़ियम में आपका स्वागत करते हैं दो सरदुलास, जो पुराणों के मुताबिक इंसानी शेर के जैस दिखते हैं। अन्दर आकर हिन्दू, जैन और बौद्ध संस्कृति की मूर्तियाँ देखने को मिलती हैं।
भारतीयों का टिकट ₹10 और विदेशियों का टिकट ₹100 का है। यह सोमवार को बन्द होता है और बाक़ी दिन सुबह 10 से शाम 5 बजे तक खुलता है।
3. दिन का अन्त ग्वालियर क़िले में लाइट शो के साथ करें। अपनी ऐतिहासिक विरासत के साथ कुछ पल गुज़ारने के लिए सबसे ज़रूरी है ये। यहाँ दो शो होते हैं, शाम 6:30 व 7:30 बजे हिन्दी में और 7:30 व 8:30 बजे अंग्रेज़ी में। एक शो की टिकट ₹75 की है।
अगला दिन गुज़रता है जय विलास पैलेस में और ओरछा में जाकर ख़त्म होता है।
देखने के लिए ख़ास
1. जय विलास पैलेस सन् 1874 में जयाजीराव ने बनवाया था। कुछ विशेष चीज़ें जैसे भरवां बाघ और कट-ग्लास फ़र्नीचर यहीं देखने को मिलती हैं। पैलेस और सिंधिया म्यूज़ियम काफ़ी नाम वाले हैं और देखने लायक भी। इसमें कुल 35 कमरे हैं जिसे क़िले के क़ैदियों ने बनाया था। दरबार हॉल की लंबाई 12.5 मीटर है। दो डाईनिंग हॉल हैं जिसमें चाँदी की ट्रेन से ब्रैंडी और सिगार मिलते हैं।
एंट्री फ़ीस ₹100, जबकि विदेशियों के लिए ₹600 है। गर्मियों में यह सुबह 10 से शाम 6 बजे तक खुलता है, वहीं गर्मियों में सुबह 10 से शाम 5:30 तक जा सकते हैं। सोमवार को यह बन्द रहता है।
2. यहाँ से 123 कि.मी. की दूरी पर बसा है ओरछा, जो जय विलास पैलेस देखने के तुरन्त बाद निकला जा सकता है। यहाँ पहुँचने में क़रीब 2 घंटे का समय लगेगा।
कहाँ रुकें- ताज उषा किरन पैलेस या नीमराना का देवबाग़ ठहरने की अच्छी जगहें हैं।
इतिहास और विरासत का खुला हुआ संगम है ओरछा। राजपूती विरासत के ऊपर जिस तरह से मुग़ल सल्तनत ने अपनी परतें चढ़ाकर अपना नाम करने की कोशिश की है, वो यहाँ बख़ूबी देखने मिलता है। यहाँ शानदार पैलेस, सुन्दर मंदिर और शाही सेनोटाफ़ यानी छत्रियाँ हैं। और ये सब एक दूसरे से महज़ 2-3 कि.मी. दूरी पर स्थित हैं। एक दिन में आप ओरछा की सभी महत्त्वपूर्ण जगहें घूम सकते हैं।
देखने के लिए खास
1. अपने दिन की शुरुआत ओरछा का क़िला घूमने से करें। यही अपने में तीन राजमहल घेरे है। पहला है राजा महल, जो अपने आप में बड़ा शाही पैलेस है। इसमें ईश्वर, सामाजिक और धार्मिक छवियाँ झलकती हैं। अगला है शीश महल, बाहर से आने वाले राजाओं का गेस्ट हाउस। अब इसे होटल में बदल दिया गया है। शीश महल के दोनों ही हिस्से नज़दीकी क़स्बे का दार्शनिक रंग देते हैं और भीतर का गेस्ट हाउस आलीशान रंगत से भरा होता है। इसके ठीक बगल में है जहाँगीर महल, जो कि जहाँगीर के लिए बनवाया गया था। और ऐसा नहीं कि जहाँगीर सालों के लिए यहाँ रुका था, बस एक रात रुकने के लिए ये बनवाया गया था। आज यहाँ ढेर सारे कमरे हैं जो अपने आप में ख़ूब आलीशान हैं।
प्रवेश शुल्क ₹10 है वहीं विदेशियों के लिए ₹100 है। सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक घूम सकते हैं। आप बस ओरछा क़िले की एक टिकट ले लें, उसमें ही सब जगह घूमने की एंट्री मिल जाएगी।
2. ओरछा किला घूमने के ठीक बाद पहुँचें चतुर्भुज मंदिर, जिसकी मिनारें शहर के किसी भी कोने से दिख जाएँगी। यह भगवान राम के लिए बनवाया गया था लेकिन यह जिस उद्देश्य से बनवाया गया था, वो कभी पूरा नहीं हो पाया। इस मंदिर के गर्भगृह में जो मूर्ति रखी जानी चाहिए थी, वो राजा महल के परिसर में रख दी गई। इसलिए यह मंदिर गर्भगृह से रहित हो गया। आप इसे चढ़कर बेतवा नदी और ओरछा क़िले के दृश्यों का आनंद ले सकते हैं।
3. अगले पड़ाव पर हैं राजा राम मंदिर और लक्ष्मी नारायण मंदिर। मधुकर शाह नामक रानी के लिए एक क़िला बनवाया गया था जिसे बाद में मंदिर की शक्ल दी गई। इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान राम की एक मूर्ति को लोग हटा ही नहीं पाए। यह अकेली जगह है जहाँ राम की पूजा भगवान के रूप में नहीं अपितु राजा के रूप में स्थापित है। एक पहाड़ी के ऊपर बसा है राजा राम का यह मंदिर जिसका वास्तु भी जानने लायक है। इसका बाहरी भाग चौकोर वहीं भीतरी भाग तिकोना है।
राजा राम मंदिर सर्दियों में सुबह 9:00 से 12:30 तक और शाम को 7:00 से 10:30 तक, वहीं गर्मियों में सुबह 8:00 से 12:30 तक और शाम को 8:00 से 10:30 तक होता है। लक्ष्मी नारायण मंदिर सुबह 10:00 से शाम 5:00 बजे तक खुला रहता है।
4. देखने वाली चीज़ों में शाही छत्र हैं जिन्हें सेनोटाफ़ भी कहते हैं। किसी ज़माने में ये ऊँचे पदों वाले पदाधिकारियों के मक़बरे हुआ करते थे। ये सेनोटाफ़ अपने में ही ग़ुलाब के बग़ीचे समेटे हैं। इनकी छतों पर चढ़कर आप बेतवा नदी के मनमोहक दृश्य का आनंद ले सकते हैं। यह सुबह 10:00 से शाम 5:30 तक खुले रहते हैं।
5. इसके बाद अगर समय बच जाता है तो ओरछा क़िले में साउंड वाला लाइट शो भी देखा जा सकता है। इस शो में राजा रानियों की कहानी दिखाई जाती है।
इसकी क़ीमत भारतीयों के लिए ₹100 और विदेशियों के लिए ₹250 की है। मार्च से नवंबर तक अंग्रेज़ी शो 7:30 व हिन्दी वाला 8:45 बजे होता है। बाकी महीनों अंग्रेज़ी शो 6:30 व हिन्दी वाला 7:45 बजे होता है।
कहाँ ठहरेंः ओरछा पैलेस, कन्वेंशन सेंटर और बुन्देलखण्ड रिवरसाइड अच्छी जगहें हैं।
ओरछा से खजुराहो की कुल दूरी 180 कि.मी. की है जो लगभग 4 घंटे में पूरी होती है। अपनी कामुक मूर्तियों के कारण इसका नाम गाहे बगाहे लोगों के दिमाग पर चढ़ ही जाता है। विदेशियों और भारतीयों, दोनों के लिए ही यह जगह विशेष है। आज से लगभग हज़ार साल पहले बनी ये मूर्तियाँ यूनेस्को लिस्ट में भी अपना नाम संजोए हैं। लोग यहाँ आपको ध्यान करते, घूमते, रीसर्च करते दिख जाएँगे।
देखने के लिए खास
1. पश्चिमी सभ्यता के कई मंदिर यहाँ देखने को मिलते हैं, जिनको बहुत सावधानी से सहेजा गया है। भारतीयों के लिए इसकी टिकट ₹30 जबकि विदेशियों के लिए ₹500 की है। कोई समय नहीं है इसका, बस सुबह सूरज उगने से शाम को सूरज डूबने तक घूम सकते हैं।
2. यहाँ हर शाम को अमिताभ बच्चन की आवाज़ में लाइट एवं साउंड शो होता है। भारतीय बच्चों के लिए ₹100 व बड़ों के लिए ₹200 की टिकट है। वहीं विदेशी बच्चों के लिए ₹250 व बड़ों के लिए ₹400 की टिकट है। अंग्रेज़ी शो 6:30 व हिन्दी की 7:40 बजे होता है।
अपने दिन की शुरुआत बचे हुए कुछ मंदिर घूमकर बांधवगढ़ राष्ट्रीय पार्क में शाम गुज़ार सकते हैं।
1. आज के दिन पूर्वी और दक्षिणी हिस्से के मंदिर देखने का प्लान बनाएँ। जहाँ पूर्वी हिस्से में कई सारे जैन मुनियों के मंदिर आते हैं, वहीं दक्षिणी हिस्से में केवल दो मंदिर हैं। यहाँ कोई टिकट नहीं है और सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुले रहते हैं।
2. इन मंदिरों के अलावा जितना कुछ था, वो सब आप पहले ही देख चुके हैं। इसलिए यहाँ से बांधवगढ़ राष्ट्रीय पार्क का रुख़ कर लें।
कहाँ ठहरेंः रमादा खजुराहो या फिर रैडिसन जैज़ होटल, ठहरने के लिए ये कुछ नामी जगहें हैं।
खजुराहो से 230 कि.मी. दूर है बांधवगढ़ राष्ट्रीय पार्क, जहाँ पहुँचने में 5 से 6 घंटे लगेंगे। इसी को बाघों का घर कहा जाता है। यहाँ पर रॉयल बंगाल टाइगर की सबसे ज़्यादा आबादी है। यहाँ पर मैंने दिल दहलते हुए देखे हैं। शायद ही ज़िन्दगी को इतना क़रीब से देख पाता है कोई। वैसे सुरक्षा हो, तो कोई दिक्कत भी नहीं होती है।
चूँकि आप पिछले 6 घंटे खजुराहो से यहाँ तक ट्रैवल करते आ रहे हैं। इसलिए ठहरकर कुछ आराम कर लें। बांधवगढ़ राष्ट्रीय पार्क हरे जंगलों में पड़ता है।
अगला दिन बांधवगढ़ राष्ट्रीय पार्क में सफ़ारी करते हुए बिताएँ।
देखने के लिए खास
1. सुबह- सुबह जितना जल्दी हो सके, सफ़ारी पर निकल पड़ें। अप्रैल से जून के महीने में यह सुबह 5:30 पर निकलती है, फ़रवरी मार्च में 6:00 बजे जबकि अक्टूबर से फ़रवरी में 6:30 बजे सफ़ारी का सफ़र शुरू होता है। पार्क में आपको 37 अलग क़िस्म के स्तनपायी मिलते हैं, 250 क़िस्म के पक्षी जबकि 80 क़िस्म की बटरफ़्लाई भी होते हैं। बाघों की सबसे ज़्यादा आबादी पूरे भारत में यहीं पर होती है।
2. दोपहर के वक़्त दूसरी सफ़ारी पर निकल जाएँ और शाम के वक़्त रिसॉर्ट में ठहरकर आराम करें।
कहाँ ठहरेंः सायना टाइगर रिसॉर्ट बांधवगढ़ और टाइगर्स डेन रिसॉर्ट।
मध्य प्रदेश में जो कुछ देखना चाहिए, वो सब कुछ इस ट्रिप में पूरा हो जाता है। अगर आपको कोई ज़रूरी जानकारी चाहिए तो Tripoto फोरम पर पूछ सकते हैं। आपको यह आर्टिकल कैसा लगा, हमें कमेंट बॉक्स में बताएँ।
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