द्वारकाधीश धाम और इसकी कहानी

Tripoto
9th Jun 2022
Photo of द्वारकाधीश धाम और इसकी कहानी by Roaming Mayank
Day 1

आइए जाने 2200-2500 वर्ष प्राचीन, भगवान कृष्ण को समर्पित सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक, चार धामों/चार मठों में से एक द्वारकाधीश मन्दिर / द्वारका मठ को और आखिर क्यों भगवान श्रीकृष्ण ने मथुरा छोड़ द्वारका को बनाया था अपना निवास स्थल ?

Photo of Dwarka by Roaming Mayank
Photo of Dwarka by Roaming Mayank

आखिर हैं कहां ये पवित्र स्थल ?

जामनगर, गुजरात के द्वारका शहर में गोमती नदी(लखनऊ वाली गोमती नदी से भिन्न) के किनारे स्थित है। यहां पर गोमती नदी अरब सागर में मिल जाती है। सदियों पुराने प्राचीन नगर द्वारका का उल्लेख महाभारत महाकाव्य में द्वारका साम्राज्य के रूप में मिलता है जो द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण की राजधानी थी तो आज कलयुग में भक्तों के लिए महातपतीर्थ है।

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हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार -

द्वारका श्रीकृष्ण द्वारा भूमि के एक टुकड़े पर बनाया गया था जिसे समुद्र से पुनः ऊपर लाकर प्राप्त किया गया था। एक बार दुर्वासा ऋषि द्वारका आए और श्रीकृष्ण तथा रुक्मणि के साथ उनके महल जाने के दौरान रास्ते में रुक्मणि को प्यास लगने पर श्रीकृष्ण द्वारा एक पौराणिक द्वार ज़मीन में खोला गया जिससे गंगा नदी की धारा अवतरित हुईं और दुर्वासा ऋषि ने क्रोधवश रुक्मणि को सदैव उसी स्थान पर बने रहने का श्राप दे दिया। आज मुख्य मंदिर के पास ही जिस जगह रुक्मणि मन्दिर बना है ये बिल्कुल वहीं स्थान है जहां उस समय रुक्मणि खड़ी थीं, जब उन्हें ये श्राप दिया गया।

श्रीकृष्ण क्यों मथुरा छोड़ द्वारका बसने आए ?

महाभारत, भगवतगीता, वायुपुराण, मत्स्यपुराण और विष्णुपुराण में उल्लेख मिलता है कि श्रीकृष्ण के नेतृत्व में मथुरा से द्वारका तक यदुवंशियों ने प्रवास किया। भगवान श्रीकृष्ण ने जब कंसवध किया, तो प्रतिशोध वश कंस के ससुर जरासंध ने मथुरा पर क्रमश: 17 बार आक्रमण किया पर हर बार हार गया । लेकिन श्रीकृष्ण की चिंता का कारण था - हर बार युद्ध में हो रहा, मथुरा(बृज) का बारंबार बड़ा नुकसान।

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इस कारण श्रीकृष्ण ने मथुरा छोड़ कर सुदूर क्षेत्र कुशस्थली जो तत्कालीन राज्य अनर्ता ( आज का गुजरात) का एक भाग था, को प्रवास के लिए चुना और सौराष्ट्र आए। अनर्ता राज्य यदुवंश के काकुदमिन रैवता ने स्थापित किया था। पर कुशस्थली का क्षेत्र छोटा होने के कारण उसका विस्तार किया गया और तत्पश्चात् कुशस्थली में समुद्र से निकले हिस्से को मिलाकर विस्तार हुआ और द्वारका बना। यही श्रीकृष्ण ने अपना निवास स्थान बनाया।

यहां कोई जादू नहीं बल्कि वैज्ञानिक समझ और समुद्रविज्ञान और की जानकारी होना है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जो वर्णन है वह लेखनी को आकर्षक और सैदैव स्मरण रहने वाली बनाए रखने के लिए किया गया शब्दों का शैली अनुसार चुनाव है, या कहा जय तो एक तरह का कोड है जिसे आपको डी कोड करना पड़ेगा। अर्थात् शाब्दिक अर्थ से आपको इसका व्यावहारिक व वैज्ञानिक अर्थ में समझना होगा।

Photo of द्वारकाधीश धाम और इसकी कहानी by Roaming Mayank
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कब, कैसे और किसने बनवाया ?

अभी तक मिले पुरातात्विक साक्ष्य द्वारकाधीश मंदिर को 5 वीं से दूसरी शताब्दी ई पू के बीच का यानी, लगभग 2200-2500 वर्ष पुराना बताते हैं। वहीं हिंदू मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि मूल मंदिर का निर्माण कृष्ण के तत्कालीन आवासीय महल हरिगृह के ऊपर ही उनके पड़पोते वज्रनाभ द्वारा करवाया गया था।

विध्वंश :

15वीं शताब्दी ई. के वर्ष 1472 ई में गुजरात के तत्कालीन शासक मेहमूद बेगरा ने इसे हज के लिए मक्का जाने वालों की समुद्री डाकुओं से सुरक्षा की आड़ में लूटा और ध्वस्त किया। उसने द्वारका को तो लूटा, साथ ही और भी कई हिंदू मन्दिरों को लूटा और तोड़ डाला। जीर्णोद्धार वर्तमान मंदिर जो चालुक्यन शैली में बना है, का निर्माण 15-16वीं शताब्दी में उसी प्राचीन मंदिर का विस्तार और जीर्णोद्धार करके बनाया गया है। राजा जगत सिंह राठौर ने इसका जीर्णोद्धार कराया था (जगत मन्दिर)।

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मंदिर :

चूनापत्थर से बने इस पश्चिममुखी प्राचीन मन्दिर में इस्तेमाल हुआ पत्थर आज भी अपने मूल रूप में बरकरार है। 72 स्तंभों और 5 मंजिला इमारत वाले मुख्य मंदिर श्रीद्वारकाधीश का शिखर करीब 78.3 मीटर ऊंचा है। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई 40 फीट है। मंदिर में एक गर्भगृह है कहा द्वारकाधीश की स्थापना है तथा एक अंतःकक्ष (अंतराला/antechamber) है।

वर्तमान मंदिर 27x21 मीटर का क्षेत्र कवर करता है, जिसमें पूर्व-पश्चिम की लंबाई 29 मीटर और उत्तर-दक्षिण की चौड़ाई 23 मीटर है। मंदिर की सबसे ऊँची चोटी 51.8 मीटर ऊँची है।

पत्थर के ब्लॉक पर शिलालेख के रूप में मिले साक्ष्य और जिस तरह से पत्थरों को सजाया गया है स्पष्ट है कि लकड़ी के लट्ठों का इस्तेमाल किया गया था। मंदिर की साइट पर पाए गए एंकर(जहाजों को रोकने के लिए समुद्र में डाला जाने वाला वजन) के निशानों के परीक्षण से पता चलता है कि यहां ऐतिहासिक समय में एक बंदरगाह था जो बाद में इस्तेमाल शायद नहीं हुआ। इस बंदरगाह का कुछ हिस्सा जो पानी के नीचे है, वह मध्यकालीन भारत के समय को दर्शाता है। इस समुद्री तटरेखा पर होने वाले तटीय क्षरण के कारण संभवतः इस बंदरगाह के विनाश का कारण है।

अलग अलग समय पर अलग अलग शासकों द्वारा मंदिर में कराए गए जटिल और कुशल कारीगरी पत्थरों पर नक्काशी के रूप में देखने को मिलती है। (मंदिर का विस्तार नहीं किया गया अपितु उतने में ही उसे और समृद्ध करने के प्रयास हुए)

Photo of Dwarkadhish Temple by Roaming Mayank
Photo of Dwarkadhish Temple by Roaming Mayank
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मंदिर में दो प्रवेश द्वार हैं। मुख्य प्रवेश द्वार (उत्तर प्रवेश द्वार) को "मोक्ष द्वार" कहा जाता है और यह प्रवेश द्वार मुख्य बाजार में ले जाता है। दक्षिण प्रवेश द्वार को "स्वर्ग द्वार" कहा जाता है। इस द्वार के बाहर 56 सीढ़ियाँ हैं जो गोमती नदी की ओर ले जाती हैं। मंदिर के ऊपर स्थित ध्वज सूर्य और चंद्रमा को दर्शाता है, जो कि इस बात का प्रतीक है कि जबतक पृथ्वी पर सूर्य और चंद्रमा मौजूद हैं तबतक कृष्ण का अस्तित्व रहेगा। पताका ध्वज दिन में 5 बार बदला जाता है, लेकिन प्रतीक हर बार एक ही रहता है। यह भारतीय उपमहाद्वीप में #विष्णु का 98वां दिव्यदेशम है (दिव्यप्रबंध नामक पुस्तक के अनुसार)।

अन्य महत्वूर्ण बिंदु - यह एक पुष्टिमार्ग मंदिर है, इसलिए यह वल्लभाचार्य और विठ्लेसनाथ द्वारा बनाए गए दिशानिर्देशों और अनुष्ठानों का पालन करता है। जनमानस द्वारा मनाए जाने वाले मुख्य त्योहार जैसे जन्माष्टमी या गोकुलाष्टमी यानी श्रीकृष्ण का जन्मदिन, वल्लभ (1473-1531 ई में) द्वारा ही शुरू किया गए थे।

Photo of द्वारकाधीश धाम और इसकी कहानी by Roaming Mayank
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कैसे बना चार धाम का हिस्सा ?

8वीं शताब्दी में हिंदू धर्मशास्त्री और दार्शनिक श्री आदिशंकराचार्य ने इस मंदिर का दौरा किया और तब से यह भारत में हिंदुओं द्वारा पवित्र माने जाने वाले चारधाम तीर्थ का हिस्सा बन गया। ओडिशा में पुरी, तमिलनाडु में रामेश्वरम व उत्तराखंड में बद्रीनाथ अन्य तीन धाम बने।

द्वारकाधीश के नजदीक अन्य महत्वूर्ण प्राचीन दर्शनीय स्थल :-

बेट द्वारका:

द्वारका से 30 किमी उत्तर में स्थित एक द्वीप है बेट द्वारका, जिसे शंखोद्धरा के नाम से भी जाना जाता है। ये वही द्वीप है जहां कृष्ण मथुरा छोड़ कर यदुवंशियों को सबसे पहले बेट द्वारका ( कुशस्थली) लाए थे। तत्पश्चात् द्वारका शहर का पुनर्निर्माण हुआ।

द्वीप के पूर्वीतट का तटवर्ती सर्वेक्षण में 500 मीटर तक फैली एक मलबे की दीवार (जो कई जगह क्षतिग्रस्त हो गई थी) का पता चला। दीवार के खंडों से मिले मिट्टी के बर्तनों की हर्मोलुमिनिसेन्स डेटिंग विधि से आयु निकली गई जो आज से करीबन 3,500 साल प्राचीन प्राप्त हुई। इससे पुष्टि हुई कि दीवार 16 वीं शताब्दी ई.पू.की है। न केवल द्वीप के दक्षिणी में बल्कि मध्य में भी समुद्र की ओर दीवारें हैं। यह दीवार लंबाई में 550 मी है। ख़ास बात की सबसे निचली (low tide) निम्न ज्वार में ही दिखाई देती है। यही बालापुर में भी आपको ऐसे ही और जलमग्न दीवारें दिखाई देती हैं।

(Dr SR RAO - From Dwarka to Kurukshetra : journal of Marine Archeological).

Photo of Bet Dwarka by Roaming Mayank
Photo of Bet Dwarka by Roaming Mayank
Photo of Bet Dwarka by Roaming Mayank
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प्रभास पाटन: भलका तीर्थ

इस स्थल पर ही जरा शिकारी ने भल्ल बाण द्वारा कृष्ण के पैर को भेदा था और श्रीकृष्ण ये रूप छोड़ स्वर्ग में विलीन हो गए। इसे ही वेरावल में स्थित भलका तीर्थ के रूप में जाना जाता है। यहां जरा शिकारी के साथ श्रीकृष्ण की एक मूर्ति भी है।

Photo of Prabhas Patan by Roaming Mayank

रुक्मणि देवी मन्दिर : केवल 2 किमी की दूरी पर रुक्मणि देवी का मंदिर है। ये वही स्थान haia कहा दुर्वासा ने इन्हे श्राप दिया था।

गुजरात टूरिज़्म द्वारा यहां स्कूबा डाइविंग भी करायी जाती है।

Photo of Rukmini Devi Mandir by Roaming Mayank

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