दो बार अधूरी रही श्रीखंड कैलाश यात्रा का एक शानदार किस्सा

Tripoto
Photo of दो बार अधूरी रही श्रीखंड कैलाश यात्रा का एक शानदार किस्सा by Rishabh Bharawa
Photo of दो बार अधूरी रही श्रीखंड कैलाश यात्रा का एक शानदार किस्सा by Rishabh Bharawa
Photo of दो बार अधूरी रही श्रीखंड कैलाश यात्रा का एक शानदार किस्सा by Rishabh Bharawa

ये जो दो फोटोज आप देख रहे हैं इसमें से पहला फोटो जो हैं वो 2022 अगस्त का हैं।जब मैं अपने पूरे परिवार के साथ श्रीखंड यात्रा के लिए गया था। उस समय यात्रा तो शुरू हो नहीं पाई थी लेकिन हम फंस गए थे एक ऐसे रास्ते में जहां एक तरफ तो पहाड़,दूसरी तरफ खाई एवम रास्ते के आगे और पीछे दोनों तरफ भूस्खलन हो गया था और रास्ता खत्म हो गया था।एक भूस्खलन से तो हम केवल कुछ सेकंड के अंतराल से ही बचे क्योंकि हमारे टैक्सी वाले ने स्तिथि भाप कर गाड़ी रिवर्स में भगाना शुरू कर दिया था।लेकिन पीछे भी भूस्खलन हुआ पड़ा था।

तब जब कई घंटों तक उसी मार्ग में फंसे रहने के बाद जब लग गया कि अब रात भर यही गाड़ी में रहना पड़ेगा तथा डर भी था कि रात भर में कही हम जिस पहाड़ पर है वो ही ना गिर जाए। तब हमें आशा की किरण दिखी,एक पगडंडी से काफी नीचे की तरफ बसा हुआ एक छोटा सा गांव।जिसमें मुश्किल से 10 घर नजर आ रहे थे। मैं पैदल नीचे गया,जहां एक महिला अपने छोटे से बच्चे के साथ मिली।

उसने कहा कि "आप अपने परिवार के साथ पैदल उतर कर नीचे आ जाओ,हमारा एक घर खाली हैं,आप उसमें रह लीजिए"।

फिर हमने इस गांव में काफी अच्छा समय निकाला,नदी के किनारे गए,गांव के लोगों से बातचीत की, इनके रीति रिवाज जाने,सब्जियां तोड़ी,खेतों पर गए। लेकिन यह सब भी डर के माहौल में हो रहा था क्योंकि उपर वाला पहाड़ जहां हम फंसे थे वह कभी भी इस गांव पर गिर सकता था। लेकिन ऐसी अवस्था में फिर भी इन लोगों ने हमें इतना अच्छे से रखा कि जैसे हम अपने घर में ही हो। तब फिर अगले दिन बेमन से थोड़ा सा इमोशनल हुए हमने वह गांव छोड़ा , रिस्क लेकर दूसरे पहाड़ों पर रास्ता बनाकर।इसमें भी गांव वालों ने ही मदद की थी।यह कहानी जल्दी आपको विस्तृत रूप में एक पुस्तक में मिलेगी।

Photo of दो बार अधूरी रही श्रीखंड कैलाश यात्रा का एक शानदार किस्सा by Rishabh Bharawa

अब दूसरा फोटो हैं अभी जुलाई 2023 का ,जब मैं अपने मित्र के साथ फिर श्रीखंड यात्रा पर गया।इस बार कुछ अलग किस्से हुए, मैं फिर बाल बाल बचा और यात्रा अधूरी ही रही।यह कहानी किसी और पुस्तक में आयेगी जल्दी। मैं जब इस यात्रा पर आया तो मेरे घर से एक सलवार सूट उस महिला के लिए भिजवाया गया। मुझे पूरी यात्रा पर यह था कि मैं किसी भी तरह इसे पहुचाऊं और वापस उन लोगों से मिल आऊं। लेकिन हिमाचल में तब तबाही मच रही थी और मैं उस गांव जा ना पाया। मेरा मन काफी दुख रहा था कि जिन्होंने हमारे लिए निस्वार्थ काफी कुछ किया उनसे ना तो मिलने जा पा रहा हूं ना उनके लिए सामान भिजवा पा रहा हूं।हमें रामपुर शहर तक पहुंचना था तो हमने एक टैक्सी कर ली। बातों ही बातों में काफी देर बाद पता लगा कि जो गाड़ी ड्राइव कर रहे भाई थे, उस महिला के पड़ोसी ही थे।तब मैने उन्हे वह सलवार सूट दिया। तीन दिन बाद घर पर फोन आ गया कि उन्हें राजस्थानी सलवार सूट काफी पसंद आया और उन्होंने अपने सभी परिचित को वह ड्रेस बताई।

जो काम दिल से करना ही होता हैं वो किसी भी तरह पूरा हो ही जाता हैं,बशर्ते आप प्रयासरत रहे।

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