दिल्ली का जंतर-मंतर एक ऐसा पर्यटन स्थल है जोकि अपनी खगोलीय महत्ता से ज्यादा वर्तमान में राजनैतिक कारणों से मशहूर है। कई धरना-प्रदर्शनों का केंद्र बनने वाली, दिल्ली के कनॉट प्लेस में स्थित ये खगोलीय वेधशाला भारत की वैज्ञानिक समृद्धि की मिसाल है। 1720 के दशक में देशभर के खगोलशास्त्रियों (एस्ट्रोनॉमर्स) में ग्रहों की दशा-दिशा को लेकर गम्भीर बहस छिड़ गई थी, जिसके समाधान के लिए सवाई जयसिंह द्वितीय ने दिल्ली के साथ-साथ जयपुर, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी में ऐसी कुल पाँच वेधशालाओं का निर्माण कराया था। दिल्ली का जंतर-मंतर उन सबमें सबसे पहले निर्मित होने वाली वेधशाला है।
'जंतर-मंतर' दिल्ली के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। इसमें कुल 13 यंत्र हैं, जिन्हें स्वयं राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने ही डिजाइन किया था। उनका स्वयं ही बचपन से खगोल विज्ञान में गहरा लगाव था और गहन अध्ययन से उन्होंने स्वयं को इस क्षेत्र का पारखी बना लिया था। अपने कार्यकाल में ही उन्होंने इस वेधशाला का निर्माण करवाया था जिसके निर्माण में लगभग 6 वर्षों का वक़्त लगा। कहना न होगा कि इस वेधशाला का निर्माण खगोल विद्या में एक बहुत बड़ी क्रांति थी और उनके इस प्रयास के चलते ही भारत ने खगोलशास्त्र में वह दर्जा हासिल कर लिया जोकि हमसे पहले और कोई न कर सका।
इस वेधशाला ने सदियों तक लोगों के मन में उठ रहे प्रश्नों को सुलझाया, ग्रहों की दशा-दिशा बतलाई। ये वर्तमान तक भी सटीक तरीके से कार्यरत था परन्तु शहर के विकास व आसपास बनती ऊँची इमारतों की वजह से अपनी सटीकता तो कोई, मगर इसके बावजूद इसकी महत्ता कभी कम न हो सकी। दिल्ली के केंद्र में स्थित ये वेधशाला अपनी खगोलीय वजह, या राजनैतिक मुद्दे के लिए ही सही, मगर हमेशा दिल्ली का केंद्र बनकर रही है। अगर अबतक यहाँ नहीं गए हैं, तो जाइये। देखिये कि आज के वैज्ञानिक युग में भी भी जब ग्रहों की सही गणना करने में इतनी मुश्क़िलातें आती हैं, सैकड़ों वर्षों पहले किस प्रकार एक राजा की उत्सुकता और पहल ने भारतीय खगोलशास्त्र में नवीन क्रांति की थी...
कैसे जाएँ?- निकटतम मेट्रो स्टेशन पटेल चौक है।
प्रवेश शुल्क:- ₹15/- प्रति व्यक्ति।
समय:- सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक।