धोलावीरा....
भारत के गुजरात राज्य के कच्छ ज़िले की भचाउ तालुका में स्थित एक पुरातत्व स्थल है। इसका नाम यहाँ से एक किमी दक्षिण में स्थित ग्राम पर पड़ा है, जो राधनपुर से 165 किमी दूर स्थित है। धोलावीरा में सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेष और खण्डहर मिलते हैं और यह उस सभ्यता के सबसे बड़े ज्ञात नगरों में से एक था
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भौगोलिक रूप से यह कच्छ के रण पर विस्तारित कच्छ मरुभूमि वन्य अभयारण्य के भीतर खादिरबेट द्वीप पर स्थित है। यह नगर 47 हेक्टर (120 एकड़) के चतुर्भुजीय क्षेत्रफल पर फैला हुआ था। बस्ती से उत्तर में मनसर जलधारा और दक्षिण में मनहर जलधारा है, जो दोनों वर्ष के कुछ महीनों में ही बहती हैं। यहाँ पर आबादी लगभग 2650 ईसापूर्व में आरम्भ हुई और 2100 ई .पू .के बाद कम होने लगी।
कुछ काल इसमें कोई नहीं रहा लेकिन फिर 1450 ईपू से फिर यहाँ लोग बस गए। नए अनुसंधान से संकेत मिलें हैं कि यहाँ अनुमान से भी पहले, 3500 ईपू से लोग बसना आरम्भ हो गए थे और फिर लगातार 1800 ईपू तक आबादी बनी रही।धोलावीरा पांच हजार साल पहले विश्व के सबसे व्यस्त महानगर में गिना जाता था ।
विवरण.....
गुजरात में कच्छ जिले में स्थित है। उस जमाने में लगभग 50000 लोग यहाँ रहते थे। 4000 साल पहले इस महानगर के पतन की शुरुआत हुई। सन 1450 में वापस यहां मानव बसाहट शुरु हुई। पुरातत्त्व विभाग का यह एक अति महत्त्व का स्थान २३.५२ उत्तर अक्षांश और ७०.१३ पूर्व देशांतर पर स्थित है। यहाँ उत्तर से मनसर और दक्षिण से मनहर छोटी नदी से पानी जमा होता था। हड़प्पा संस्कृति के इस नगर की जानकारी 1960 में हुई और 1990 तक इसकी खुदाई चलती रही। हड़प्पा, मोहन जोदडो, गनेरीवाला, राखीगढ, धोलावीरा तथा लोथल ये छः पुराने महानगर पुरातन संस्कृति के नगर है। जिसमें धोलावीरा और लोथल भारत में स्थित है। इस जगह का खनन पुरातत्त्व विभाग के डॉ॰ आर. एस. बिस्त ने किया था। धोलावीरा का 100 हेक्टेयर क्षेत्र में विस्तार था। प्रांत अधिकारियों के लिये तथा सामान्य जन के लिये अलग-अलग विभाग थे, जिसमें प्रांत अधिकारियों का विभाग मजबूत पत्थर की सुरक्षित दीवार से बना था, जो आज भी दिखाई देता है। अन्य नगरों का निर्माण कच्ची पक्की ईंटों से हुआ है। धोलावीरा का निर्माण चौकोर एवं आयताकार पत्थरों से हुआ है, जो समीप स्थित खदानो से मिलता था। ऐसा लगता है कि धोलावीरा में सभी व्यापारी थे और यह व्यापार का मुख्य केन्द्र था। यह कुबेरपतियों का महानगर था। ऐसा लगता है कि सिन्धु नदी समुद्र से यहाँ मिलती थी। भूकंप के कारण सम्पूर्ण क्षेत्र ऊँचा-नीचा हो गया। आज के आधुनिक महानगरों जैसी पक्की गटर व्यवस्था पांच हजार साल पहले धोलावीरा में थी। पूरे नगर में धार्मिक स्थलों के कोई अवशेष नहीं पायें गए हैं। इस प्राचीन महानगर में पानी की जो व्यवस्था की गई थी वह अद्दभुत है। आज के समय में बारिस मुश्किल से होती है। बंजर जमीन के चारो ओर समुद्र का पानी फैला हुआ है। इस महानगर में अंतिम संस्कार की अलग-अलग व्यवस्थाएँ थी।
ऐतिहासिक साईन बोर्ड....
सुरक्षित किले के एक महाद्वार के ऊपर उस जमाने का साईन बोर्ड पाया गया है, जिस पर दस बड़े-बड़े अक्षरो में कुछ लिखा है, जो पांच हजार साल के बाद आज भी सुरक्षित है। वह महानगर का नाम है अथवा प्रान्त अधिकारियों का नाम, यह आज भी एक रहस्य है। ऐसा लगता है जैसे नगरजनो का स्वागत हो रहा हों? सिन्धु घाटी की लिपि आज भी एक अनसुलझी पहेली है। आप ही देखें सुंदर अक्षरों में क्या लिखा है।
कैसे पहुंचे....
हवाई जहाज से कच्छ के पुराने ऐतिहासिक पाटनगर भुज हवाई अड्डे पर उतर सकते हैं। जहां से ३०० किलोम़ीटर क़ी दूरी पर धोलावीरा स्थित है।
ट्रेन से अहमदाबाद वीरमगाम से आगे सामखियारी पर उतरें। वहां से १६० किलोम़ीटर क़ी दूरी पर धोलावीरा स्थित है।
सड़क मार्ग से अहमदाबाद या पालनपुर से रापर या भचाउ होकर धोलावीरा आ सकते हैं।
कृपया पानी की व्यवस्था अपने आप करें। धोलावीरा में शाकाहारी खाना ओर पेय जल मिलेगा। यहाँ सड़क मार्ग पक्की है। गरमी और धूप से बचने के लिए नवम्बर से मार्च के बीच में यात्रा करे तो सुविधा होगी।
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