क्या आप कभी घूमने के लिए बिहार जाना पसंद करेंगे ? आप ये सवाल चाहे जिससे पूछिए, मजाल है कि कोई हाँ कर दे।
क्या बिहार में कुछ देखने लायक ही नहीं है ? जिस राज्य की गर्भ से भारत को कई तरह के बेशकीमती खनिज मिलते हैं, क्या वहाँ कुछ अनोखा नहीं मिलेगा ?
हज़ारों साल पहले जिस राज्य को मगध साम्राज्य कहा जाता था, जहाँ प्राचीन भारतवर्ष का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय तक्षशिला स्थापित था, जहाँ की उपजाऊ मिट्टी में उगने वाले अनाज से हम जैसे भारतवासियों का पेट भरता है, क्या वहाँ देखने को कुछ भी नहीं ?
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ऐसी बात नहीं है। दरअसल बात ये है कि बिहार में तस्वीरें लेकर लोग इंस्टाग्राम पर अपने दोस्तों को नहीं दिखा सकते। भाव को समझिये, अगर आपके दोस्त यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया जैसे गोरे देशों में घूम रहे हैं तो उनके सामने आप बिहार के गेहुएँ रंग की बात कैसे करेंगे ?
बिलकुल कर सकते हैं, और गर्व से कर सकते हैं। जैसे मैं अभी करने वाला हूँ। मैं हाल ही में बिहार राज्य के धरनई गाँव घूमकर आया। आपको बता रहा हूँ कि ऐसे अनोखे और आधुनिक गाँव की बराबरी भारत के बड़े शहर भी नहीं कर सकते।
लोकप्रिय आध्यात्मिक पर्यटन स्थल बोधगया से सिर्फ 40 कि.मी. दूर बसा धरनई गाँव बेहद अनोखा है।
टैक्सी में बैठे जैसे-जैसे मैं इस गाँव के करीब पहुँचता गया, खेतों से आती पकी मकई की खुशबू मुझे मदहोश करती गयी। मदहोश कैसे ? कभी हरे-भरे खेत के पास से गुज़रे हैं ? तबियत खुश हो जाती है किसान की मेहनत देख कर। कभी अनुभव कीजियेगा।
फल्गु नदी के मीठे पानी से सिंचित खेतों से पास से होते हुए मेरी टैक्सी गाँव पर आकर रुक गयी। जैसे ही मैं टैक्सी से उतरा, गाँव के बच्चों ने मुझे घेर लिया।
"कहाँ से आये हो आप ?" दाँत निपोरते एक बच्चे ने पूछा।
मैनें बताया कि मैं दिल्ली से हूँ।
" सोलर एनर्जी देखने आए होंगे !" दूसरे बच्चे की समझदारी देखकर बड़ा अच्छा लगा।
दरअसल मैं धरनई में यहाँ के सोलर एनर्जी सिस्टम देखने ही आया था। ये भारत का एकमात्र ऐसा गाँव है जहाँ बिजली आपूर्ति पूरी तरह से सौर ऊर्जा से होती है। गाँव की पगडंडियों से गुज़रते हुए हम किनारे लगे सौर पैनल देखते हैं।
मगर धरनई में हमेशा से सौर ऊर्जा इस्तेमाल नहीं होती थी। 90 के दशक में यहाँ बिजली पहुँचाई जाती थी। मगर 21वीं सदी की शुरुआत में गाँव में लगा ट्रांसफॉर्मर फुँक गया और गाँव के लोगों को रात में रौशनी के लिए कोयले और केरोसीन पर निर्भर होना पड़ा।
सन 2014 में धरनई के वासियों को ग्रीनपीस इंडिया, बेसिक्स और सीड जैसे एनजीओ से मदद मिली और यहाँ सौर ऊर्जा ग्रिड लगवाया गया। इससे गाँव के 500 घरों, दुकानों, स्कूल, अस्पतालों को तो 60बिजली मिली ही, साथ ही यहाँ की सडकों पर भी स्ट्रीट लाइट से उजाला होने लगा। 2014 से ही गाँव वाले इस पूरे संयंत्र ग्रिड की देखरेख और रखरखाव कर रहे हैं।
यहाँ कई सरकारी अधिकारी आते हैं और निरिक्षण करते हैं। धरनई भारत के ईको-टूरिज्म का भी अहम केंद्र है। मैं यहाँ यही देखने आया था कि कैसे इतने बड़े गाँव की बिजली की ज़रूरतें सौर ऊर्जा से पूरी हो जाती हैं, और वो भी पर्यावरण की सुरक्षा करते हुए।
धरनई में घूमने के बाद मैं अपने अगले पड़ाव राजगीर की और निकल गया।
अगर आप कभी बोधगया घूमने जाए तो सिर्फ 40 कि.मी. दूर बसे इस धरनई गाँव की दर्शन ज़रूर कीजियेगा। देखिएगा कि किस तरह भारत का एक छोटा सा गाँव पर्यावरण की तालमेल बैठाकर अपनी बिजली की साड़ी ज़रूरतें सूरज की रौशनी से पूरी करता है और ईको टूरिज़म के क्षेत्र में जगमगा रहा है।
इसे अनोखे गाँवों के बारे में आप भी जानते हैं तो हमें कमेंट्स में बताएँ। आइये ऐसे बेहतरीन गाँवों के बारे में बात की जाए।
कैसा लगा आपको यह आर्टिकल, हमें कमेंट बॉक्स में बताएँ।
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