गंगा नदी के तट पर स्थित संगम प्रयागराज (इलाहाबाद) को देश की प्राचीन धार्मिक एवं आध्यात्मिक विरासत के बहुमूल्य रूप देखा जा सकता है। इस खूबसूरत शहर के बारे में यह भी कहा जाता है कि यह इतिहास से भी पुराना है।
संगम की नगरी प्रयागराज में हर त्योहार को अपनी अनूठी शैली के लिये जाना जाता है और यहां तक कि हमें यह भी कहना होगा कि त्यौहार इस जगह की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न अंग हैं। धार्मिक रूप से संगम तट पर अनेक शहर से श्रीधालु स्नान और पूजा पाठ्य करते है। और मां गंगा के किनारे विभिन्न घाट, और मां यमुना के घाटों पर श्रद्धा का बोलबाला रहता है। खूबसूरत *विशालकाय हनुमान मंदिर* अनेक देवी देवताओं के भव्य मंदिर पर शांति और सुकून चाहने वाले लोगों के लिए एक आदर्श स्थान बनाती हैं।
हमारे पुराणों साहित्यों के अनुसार *देव पर्व या देव दीपावली, सत्य असत्य की कहानी*का सूचक है जहां अंधकार का अंत और रोशनी की जीत का प्रतीक है देव दीपावली।
कहा जाता है कि *कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध*किया था. राक्षस से मुक्ति मिलने की खुशी मनाने देवी-देवता इस दिन काशी के गंगा घाट पर दिवाली मनाने उतरे थे. तब से इस त्योहार को मनाया जा रहा है।
इसलिए इस त्योहार को देव दीपावली कहा जाता है. इस दिन काशी और गंगा घाटों पर काफी रौनक रहती है और दीपदान किया जाता है।
*गुरु आचार्यों की ज़ुबानी*
ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, त्रिपुरासुर नाम के एक राक्षस ने धरती वासियों को परेशान कर रखा था और उससे त्रस्त होकर सभी देवतागण भगवान शिव के पास पहुंचे. भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था. उससे मुक्ति मिलने के बाद देवता भगवान शिव की नगरी काशी पहुंचे और वहां दीप प्रज्जवलित कर खुशी मनाई. तब से लेकर आज तक यह त्योहार मनाया जा रहा है.
इस बार देव दीपावली आज 7 नवंबर, सोमवार को मनाई जा रही है. इसे त्रिपुरोत्सव और त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन देवी-देवताओं की विधिवत पूजा करने से आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनकी कृपा बनी रहती है. इस दिन नदी में स्नान करने से सारी मनोकामना पूर्ण होती हैं।