अपनी प्राचीन पुड़िया में बहुत सारे राज़ दबा रखे हैं हिंदुस्तान की धरती ने। इतने, कि जितने पूरी दुनिया में न मिलें, उससे ज़्यादा तो एक इलाक़े में निकल आएँ। ऐसी कलाएँ, जो बरसों छिपी रहीं, आज सामने आती हैं, तो हम सब भौचक्के होके देखने लगते हैं। आज हम आपको मिलाने जा रहे भारत की कुछ ऐसी ही जगहों से, जिनके बारे में आपको भले न मालूम हो, लेकिन अपनी कलाकृतियों के लिए दुनिया भर में उनका डंका बोलता है।
1. शिल्पग्राम
अरावली की पहाड़ियों के पीछे लगभग 70 एकड़ में फैला हुआ एक गाँव, जहाँ आपको भारत के हर प्रदेश की झोपड़ी मिल जाएगी। शिल्पग्राम, उदयपुर राजस्थान की ऐसी खान है, जहाँ का हथकरघा पूरे भारत में धड़ल्ले से बिकता है। हथकरघा बनाने वाले और उसका शौक़ रखने वाले यहाँ हर साल दिसम्बर महीने में होने वाले मेले में शिरकत करते हैं। इसके साथ संगीत, नाच गाने से भरा हुआ पूरा कार्यक्रम आपको ख़ूब पसंद आता है। ग्रामीण चीज़ों के शौक़ीन लोगों को और कलाप्रेमियों को इस जगह पर आकर ज़रूर घुमक्कड़ी करनी चाहिए।
कैसे पहुँचेः उदयपुर रेलवे स्टेशन से बस 3 किमी0 दूर है शिल्पग्राम। आपको यहाँ के लिए बस, ऑटो या फिर टैक्सी आराम से मिल जाएगी।
2. रघुराजपुर
कोई सुन्दर सी कलाकृति आपकी आँखों से बार-बार गुज़रे, तो यकीनन ध्यान तो उस तरफ़ जाता ही है। ठीक ऐसी ही हैं पाँचवी सदी की बनी उड़ीसा के रघुराजपुर में बनी ये कलाकृतियाँ। भगवान जगन्नाथ की पुरी में ये कलाकृतियाँ लगभग 120 घरों की रौनक हैं। पेड़ के पत्तों पर बनी ये कलाकृतियाँ बनाने में आसान और सहज हैं। चूँकि यह पत्ता वाली कला भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में भी इस्तेमाल की जाती है, इसलिए इसका धार्मिक महत्त्व और बढ़ जाता है। आप इसे छोटे पत्थर, मिट्टी की मूर्तियों, लकड़ी के खिलौनों में भी बना सकते हैं और सजा सकते हैं।
कैसे पहुँचेः रघुराजपुर पुरी से 14 किमी0 दूर है। पुरी से आप भुवनेश्वर रोड पकड़ें, और यहाँ से चंदनपुर बाज़ार चले जाएँ। यहाँ से दाईं ओर रघुराजपुर स्थित है। यह चंदनपुर से क़रीबन 1.5 किमी0 दूर है।
3. अंद्रेता
हम जानते हैं आपको हिमांचल से कितना प्यार है, हिमांचल के पहाड़, उसके बादल, झीलें, नहरें सब कुछ आपको ख़ूब पसन्द है। यहाँ के पालमपुर से कुछ कदम दूर है अंद्रेता गाँव। एक आयरिश लेखक नोरा रिचर्ड्स को इस जगह से प्यार हो गया। फिर वो यहीं के हो गए। उन्होंने अपने कई साथी कलाकारों जैसे थियेटर के लोग, पेंटर, मूर्तिकार, शिल्पकार और भी बहुत लोगों को यहाँ बुलाया। उनके कारण अंद्रेता गाँव कला का एक छोटा सा केन्द्र बन गया। यहाँ पर मिट्टी और क्राफ़्ट की ढेर सारी चीज़ें मिलती हैं। नोरा का मिट्टी का घर और सर शोभा सिंह की आर्ट गैलरी उनमें कुछ प्रसिद्ध नाम हैं। कला की बेहद नामचीन संस्था जैसे फ़ैब इंडिया ने भी इसे कला के केन्द्र की संज्ञा दी है।
कैसे पहुँचेः पालमपुर से 13 किमी0 दूर इस जगह पहुँचने के लिए आपको बस या प्राइवेट कैब मिल जाएगी।
4. विष्णुपुर
विष्णुपुर का नाम लोग यहाँ के मंदिरों के लिए जानते हैं। लेकिन यही विष्णुपुर ढेर सारे कलाकारों और मूर्तिकारों का घर भी है। चाहे बालुचारी साड़ी में चित्रों के माध्यम से कहानियाँ सँजोना हो, या फिर मिट्टी के बर्तनों में बाँकुरा घोड़ों की दास्तान, धातु की बनी मूर्तियों को आप अपने घर ले जा सकते हैं। टेराकोटा का काम को सबसे ज़्यादा नाम विष्णुपुर के कारण मिला है। छिनमस्ता रोड पर आपको यहाँ का सारा काम मिल जाएगा।
कैसे पहुँचेः कोलकाता में पनगढ़ से विष्णुपुर के लिए आपको बसें मिल जाएँगी। पनगढ़ से विष्णुपुर लगभग 46 किमी0 का रास्ता है, जिसे पूरा करने में लगभग डेढ़ घंटे का समय लगता है। आप इसके अलावा टैक्सी भी ले सकते हैं।
5. काँचीपुरम
पूरे भारत में साड़ी एक प्रमुख परिधान है, लेकिन साड़ियों की डिमांड सबसे ज़्यादा बनारस और काँचीपुरम की रहती है। एक विशेष सिल्क के कपड़े से बनी काँचीपुरम की साड़ी सिर्फ़ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। काँचीपुरम के लगभग 5000 परिवार पूरी दुनिया में यहाँ की साड़ियों को प्रसिद्ध किये हुए हैं। यह ऐसा काम है, जो ज़बान के साथ साथ पीढ़ी दर पीढ़ी पहुँचता गया है। आप यहाँ आकर कम क़ीमत में साड़ियाँ तो ले ही सकते हैं, इसके साथ आप साड़ियों के इतिहास को लेकर बढ़िया जानकारी यहाँ से बेहतर नहीं मिल पाएगी।
कैसे पहुँचेः चेन्नई से लगभग 67 किमी0 दूर काँचीपुरम के लिए आपको बस मिल जाएगी। इसके अलावा आप टैक्सी भी कर सकते हैं।
6. चोलमण्डल आर्टिस्ट विलेज
इस समुदाय को भारत का सबसे बड़ा कला का समुदाय माना जाता है। 1966 में बसा यह गाँवव लगभग दस एकड़ के इलाक़े में फैला हुआ है। क्लासिकल से लेकर समकालीन कलाओं का जो समावेश यहाँ पर मिलता है, वो आपको बहुत प्राचीन से लेकर इस समय की सारी झलकियाँ दिखाता चलता है। आप यहाँ पर सिर्फ़ कलाकृतियों तक ही नहीं ठहर सकते, यह आपको संगीत, लेखन और थिएटर तक ले चलता है।
कैसे पहुँचेः चेन्नई से 15 किमी0 दूर चोलमण्डल पहुँचने के लिए आपको बस और टैक्सी मिल जाएगी।
7. नया पिंगला
पश्चिम मिदनापुर ज़िले के पास एक ब्लॉक पड़ता है पिंगला। इसमें ही एक गाँव है, जिसका नाम है नया। नया नाम है तो कला और संगीत का नया माहौल भी। यहाँ के रहने वाले बंगाली चित्रकारों, जिन्हें पोतुआ कहा जाता है, ने मंगलकाव्य की कहानियों को अपनी कला की बदौलत कैनवस पर उतारने का काम किया है। उनके कारण इस जगह का काफ़ी नाम हुआ और यह जगह लोगों की आँखों के सामने आई।
पोतुआ ने अपना गीत तक लिखा है, जिसे वे पोतेर गान कहते हैं। 2004 से बंगाल नाटक के साथ काम करके उन्होंने अपनी इस कला को फिर से जीवित किया है। साल 2010 से उन्होंने पोत माया के नाम से अपना नया उत्सव शुरू किया, जिसमें हर साल नवम्बर के महीने में अपनी कला की प्रदर्शनी लगाते हैं। प्राकृतिक रंगों में अपनी जान फूँकने वाले इन कलाकारों के कारण नया पिंगला को जो नाम हासिल हुआ है, उसे देखने आपको एक बार यहाँ ज़रूर आना चाहिए।
कैसे पहुँचेः कोलकाता हवाई अड्डे से 120 किमी0 दूर नया पिंगला के लिए आपको टैक्सी आसानी से मिल जाएगी। वहीं बस के लिए आपको थोड़ी मेहनत करनी पड़ सकती है। इसके साथ ही नया पिंगला के सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन बालीचक है जो कि महज़ 10 किमी0 दूर है।
यहाँ पर आने वाले घुमक्कड़ों को न सिर्फ़ एक नई जगह पर घूमने का मौक़ा मिलता है, बल्कि बहुत सारी नई चीज़ें ख़रीदकर वो अपने परिवारों के लिए भी ले जाते हैं। भील, गमिट और वर्ली नाम वाले कला के समुदाय सपुत्र के गंधर्वपुर में आपके लिए कई प्रकार की कलात्मक चीज़ें, जैसे मिट्टी की चीज़ें, ज्वैलरी, बाँस के फूलदान, पेन स्टैण्ड, कीचेन ख़ूब बनाते हैं। अगर आपको गुजरात की सांस्कृतिक विरासत के बारे में जानना है, तो आप इस जगह से शुरुआत कर सकते हैं।
कैसे पहुँचेः वडोदरा हवाई अड्डे से गंधर्वपुर 310 किमी0 दूर है। आप वघाई रेलवे स्टेशन पर उतरकर यहाँ के लिए बस कर सकते हैं। थोड़ी जेब ढीली कर आप टैक्सी से भी पहुँच सकते हैं।
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