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पहाड़ों में घूमते हुए पता नहीं चलता है कि कब समय बीत गया है। खूबसूरत जगहों पर जाने का ही रहस्य ही यह है। इन जगहों पर आकर हम दुनियादारी की चिंताएँ भूल जाते हैं। मैं पहाड़ों में अक्सर लंबी यात्रा करता हूँ। एक बार फिर से मैंने लंबी यात्रा की, दिल्ली से लेह तक की 20 दिन की यात्रा। लगातार 20 दिन घूमना कोई आसान काम नहीं है। मैंने इन 20 दिन कई सारी खूबसूरत जगहें देखीं और कई शानदार अनुभव मिले। आज आपको मैं दिल्ली से लेह की अपनी 20 दिन की यात्रा पर ले चलता हूं।
दिल्ली से लेह की यात्रा:
दिन 1: दिल्ली से धर्मशाला
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दिल्ली शहर मुझे अब ज़्यादा भाता नहीं है। इस शहर में अब मैं सिर्फ़ किसी जगह के लिए बस या ट्रेन पकड़ने के लिए आता हूँ। एक बार फिर से धर्मशाला जाने के लिए मैंने शाम में आईएसबीटी कश्मीरी गेट से बस पकड़ी। हिमसुता बस में मैं बुकिंग नहीं कर पाया था तो हिमधारा बस में बुकिंग की थी। हिमधारा बस में एक ही सुविधा थी कि एसी थी तो गर्मी नहीं लगेगी। कुछ घंटे में हम दिल्ली को पार कर गए। रात में एक जगह बस ढाबे पर भी रूकी। अंबाला और चंडीगढ़ को पार करने के बाद ऊना पहुँचे। ऊना हिमाचल में ही आता है। सुबह लगभग 6 बजे हम धर्मशाला पहुँच गए। धर्मशाला से मैक्लॉडगंज के लिए इलैक्ट्रिक बस जा रही थी तो हम वही बस पकड़कर मैक्लॉडगंज पहुँच गए।
दिन 2: मैक्लॉडगंज
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मैक्लॉडगंज पहुँचने के बाद हम रहने का ठिकाना खोजने के लिए निकल पड़े। पैदल चलते-चलते हम एक हॉस्टल में पहुँचे। वहाँ बजट में बात बन गई लेकिन कॉमन एरिया में हमें लंबा इंतज़ार करना पड़ा। उसके बाद मुझे एक हॉस्टल में डॉमेट्री मिली। नीचे वाला बेड मैंने ले लिया। मित्र 2.0 हॉस्टल साफ-सफाई और अन्य सुविधाओं में अच्छा था। शाम के समय हम पैदल-पैदल भागसू वाटरफॉल की तरफ़ निकल पड़े। रास्ते में प्राचीन भागसू मंदिर भी मिलता है। मंदिर को देखने के बाद हमने भागसू झरने को देखा।
दिन 3 और दिन 4
त्रिउंड ट्रेक
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धर्मशाला और मैकलॉडगंज आने वाले त्रिउंड ट्रेक करने ज़रूर जाते हैं। मैं भी इस ट्रेक को करना चाहता था। त्रिउंड पर कैंपिंग भी होती है तो हमने पहले कैंप बुक कर लिया जिसमें रात का डिनर और सुबह का ब्रेकफास्ट शामिल है। सुबह के 11 बजे हम हॉस्टल से त्रिउंड के लिए निकल पड़े। भागसू के रास्ते से धीरे-धीरे बढ़ता चला गया। उमस की वजह से पसीना काफ़ी आने लगा और वीकेंड की वजह से लोग भी काफ़ी थे। रास्ते में कई सारे मैगी प्वाइंट मिले। लगभग 4-5 घंटे के ट्रेक के बाद बम बेस कैंप पहुँच गए। बेस कैंप से हमने सूर्यास्त का बेहद सुंदर नजारा देखा। रात में खाना खाने के बाद अपने टेंट में चले गए।
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अगले दिन सुबह 5 बजे उठा और त्रिउंड पीक के लिए पैदल चल पड़ा। त्रिउंड पीक का रास्ता थोड़ा कठिन भी है और थकावट भी जल्दी हो रही थी। सूर्योदय से पहले में त्रिउंड पीक पर पहुँच गया। यहाँ मैं कुछ देर ठहरा और सूरज को निकलते हुए देखा। इसके बाद मैं वापस बेस कैंप आ गया। मैं मैक्लॉडगंज से इतने दूर था लेकिन फिर यहाँ पर नेटवर्क बढ़िया आ रहा था। बेस कैंप से सामान उठाकर वापस चल पड़े। 3-4 घंटे में हम मैक्लॉडगंज पहुँच गए और थकावट की वजह से पूरे दिन आराम किया।
दिन 5: धर्मकोट
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मैक्लॉडगंज से लगभग 5-6 किमी. ऊपर की तरफ़ एक जगह है, धर्मकोट। मैक्लॉडगंज से टैक्सी से हम धर्मकोट पहुँचे। धर्मकोट में एक हॉस्टल में सामान रखने के बाद घूमने के लिए पैदल-पैदल निकल पड़े। पैदल चलते-चलते हम गल्लू देवी मंदिर पहुँचे। यहाँ से एक रास्ता झरने की तरफ़ जाता है और एक रास्ता त्रिउंड की तरफ़ जाता हैं। हम पैदल झरने की तरफ़ चल पड़े। रास्ते में मिले लोगों ने कहा कि 20 मिनट में पहुँच जाएँगे लेकिन 1 घंटे चलने के बाद भी हम झरने तक नहीं पहुँचे। समय की कमी और मौसम की वजह से हमें वापस लौटना पड़ा। इस झरने को ना देख पाने का मलाल हमेशा रहेगा।
दिन 6: धर्मशाला
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अगले दिन सुबह-सुबह पहले मैक्लॉडगंज पहुँचे और वहाँ से धर्मशाला निकल पड़े। धर्मशाला में एक होटल लिया और तैयार होने के बाद स्कूटी को रेंट पर ले लिया। सबसे पहले हम काँगड़ा म्यूज़ियम को देखने गए। उसके बाद कुनाल पथरी मंदिर गए, जहां पर लंगर में हमने धाम का स्वाद लिया। उसके बाद वॉर मेमोरियल और फिर धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम को देखने गए। मैंने स्टेडियम में कोई मैच तो नहीं देखा लेकिन इस खूबसूरत क्रिकेट ग्राउंड को ज़रूर देख लिया।
दिन 7: काँगड़ा
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हमने रात में ही अगले दिन के लिए स्कूटी को अपने पास रख लिया। सुबह-सुबह हम धर्मशाला से रॉक कट मसरूर मंदिर के लिए निकल पड़े। धर्मशाला से मसरूर रॉक कट मंदिर 40 किमी. की दूरी पर है। धर्मशाला से निकलने के बाद रास्ता एकदम संकरा शुरू हो जाता है। मैं स्कूटी से संकरी घाटियों से बढ़ा जा रहा था। लगभग दो घंटे के बाद हम इस प्राचीन मंदिर में पहुँचे। मंदिर काफ़ी शानदार, प्राचीन और विशाल है। मंदिर को कुछ देर देखने के बाद हम काँगड़ा के लिए निकल पड़े। काँगड़ा पहुँचने में भी हमें काफ़ी समय मिल गया। यहाँ पर हमने काँगड़ा क़िले को देखा। क़िले का काफ़ी हिस्सा भूकंप के दौरान टूट गया है।
दिन 8: कांगड़ा टॉय ट्रेन
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धर्मशाला से अगले दिन हम बस से बैजनाथ के लिए निकल पड़े। हमारा प्लान था कि हम एक दिन बिर बिलिंग में रूकेंगे। कुछ घंटों के बाद जब हम बैजनाथ पहुँचे तो पता चला कि बैजनाथ से जोगिंदरनगर के लिए टॉय ट्रेन भी चलती है। बैजनाथ से जोगिंदरनगर 20 किमी. की दूरी पर है लेकिन काँगड़ा टॉय ट्रेन के डेढ़ घंटे का समय लगता है। कुछ देर इंतज़ार के बाद हमने भी पहली बार इस काँगड़ा ट्रेन की यात्रा की। जोगिंदरनगर पहुँचने के बाद वहाँ से बस से मंडी के लिए निकल पड़े। शाम को मंडी पहुँच गए और रात मंडी में ही बिताई।
दिन 9: मंडी से नग्गर
अगले दिन हमें नग्गर जाना था लेकिन मंडी से नग्गर के लिए कोई सीधी बस नहीं चलती है। लोगों से बात करने पर पता चला कि कुल्लू से नग्गर के लिए बस मिल जाएगी। मैंने मंडी से कुल्लू के लिए बस ले ली। मंडी से कुल्लू की दूरी लगभग 70 किमी. है। लगभग 2 घंटे की यात्रा के बाद हम कुल्लू पहुँच गए। कुल्लू का बस स्टैंड मनाली और शिमला से भी अच्छा। हिमाचल में ऐसे अच्छे बस स्टैंड कम ही हैं। कुल्लू से नग्गर 22 किमी. की दूरी पर है। कुल्लू से नग्गर होते हुए मनाली के लिए बस चलती है। उसी से हम नग्गर पहुँच गए। नग्गर में हमने एक हॉस्टल में ठहरने का ठिकाना भी खोज लिया।
दिन 10: नग्गर
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नग्गर मनाली से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित है लेकिन सुंदरता के हिसाब से काफ़ी बढ़िया जगह है। यहाँ पर कई प्राचीन मंदिर हैं। सुबह-सुबह नाश्ता करने के बाद हम नग्गर को देखने के लिए निकल पड़े। सबसे पहले हम प्राचीन गौरी शंकर मंदिर को देखने के लिए पहुँच। उसके बाद विष्णु मंदिर और त्रिपुरा सुंदरी मंदिर को भी देखा। नग्गर में एक पैलेस भी है जिसे हेरीटेज होटल में तब्दील कर दिया गया है लेकिन लोगों के घूमने के लिए खुला है। मैंने भी इस कैसल को देख लिया।
दिन 11: सजला वटरफॉल
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अगले दिन नग्गर पहुँचकर नाश्ता किया और फिर मनाली वाली बस का इंतज़ार किया। नग्गर से मनाली की तरफ़ एक जगह पड़ती है, सजला। नग्गर से सजला 10 किमी की दूरी पर है। यहाँ से एक छोटा-सा ट्रेक शुरू होता है जो सजला वाटरफॉल की तरफ़ जाता है। रास्ते में कई सारी दुकानें मिलीं लेकिन सुबह-सुबह सभी दुकानें बंद थी। सजला वाटरफॉल पहुँचे तो वहाँ हमारे अलावा कोई नहीं था। यहाँ मैंने नहाया भी और एक दुकान पर मोमो भी खाए। नदी किनारे बैठने का सुख ही अलग है
दिन 12: मनाली
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अगले दिन हम नग्गर से मनाली के लिए निकल पड़े। लगभग 1 घंटे बाद हम मनाली पहुँच गए। मनाली में हिडिंबा मंदिर के पास एक हॉस्टल में रूक गए। दिन भर पैदल चलते हुए हिडिंबा मंदिर, घटोत्कच मंदिर, म्यूज़ियम और मनु मंदिर को देखा। मनु मंदिर के पास एक दुकान पर सिड्डू भी खाया। उसके बाद तो दिन भर आराम किया। मनाली की भीड़ और गर्मी देखकर कहीं जाने का मन ही नहीं किया।
दिन 13: मनाली से सिस्सू
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अगले दिन सुबह-सुबह हम हॉस्टल से सामान उठाकर मनाली के HRTC बस स्टैंड पहुँच गए। यहाँ से हमें सिस्सू के लिए बस पकड़नी थी। काफ़ी देर इंतज़ार करने के बाद हमें केलांग जाने वाली बस मिल गई। जो बस केलांग जाएगी तो रास्ते में सिस्सू तो मिलेगा ही। मनाली से सिस्सू 40 किमी. की दूरी पर है। रास्ते में मुझे अटल टनल भी मिली। अटल टनल पार करते ही लाहौर व स्पीति जिला शुरू हो जाता है। अटल टनल के बाद एक पुल आता है। इस पुल को पार करने के बाद दायीं तरफ़ रास्ता काजा, लोसर और समदो की तरफ़ जाता है और बाईं तरफ़ का रास्ता केलांग और लेह के लिए जाता है।
दिन 14: सिस्सू
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सिस्सू में हम एक होमस्टे में रूके। अगले दिन सुबह-सुबह हम झरने को देखने कि लिए निकल पड़े। सिस्सू वाटरफॉल को देखने के लिए हमने पैदल-पैदल नदी को पार किया और उसके बाद खड़ी चढ़ाई चढ़ी। सिस्सू में हर जगह से आपको ये झरने देखने को मिल जाएगा लेकिन इतने पास से इतना ऊँचा झरना देखना वाक़ई में एक शानदार अनुभव है। लौटते हुए हमने मानव निर्मित सिस्सू लेक को भी देखा।
दिन 15: केलांग
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सिस्सू से केलांग 30 किमी. की दूरी पर है। हम सुबह 6 बजे से सिस्सू में बस का इंतज़ार करने के लिए बैठ गए लेकिन बस 8 बजे आई। रास्ते में हमें ताडी नाम की एक जगह मिली। यहाँ पर चन्द्रा और भागा नदी का संगम होता है। लगभग 1 घंटे के बाद हम केलांग पहुँच गए। केलांग में बस स्टैंड के पास में ही एक होटल ले लिया। केलांग में वैसे तो हम किसी ख़ास जगह पर घूमने नहीं गए लेकिन केलांग का बाज़ार पूरा देख डाला।
दिन 16: केलांग से लेह
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केलांग से लेह 202 किमी. की दूरी पर है। हमने लेह जाने वाली बस के लिए एक दिन पहले ही टिकट ले लिया था। हमें सीट तो पीछे वाली मिली थी लेकिन कंडक्टर की कृपा से ड्राइवर के पीछे वाली सीट मिल गई। जिस्पा से आगे हमें एक जगह पर रूकना पड़ा क्योंकि रात से रास्ता बंद था। लगभग 2 घंटे बाद रास्ता खुला तो हमारी बस भी चल पड़ी। सूरज ताल पर बस फिर रूक गई। पांग तक का रास्ता बेहद संकरा और ख़राब है। कई बार हमारी बस रूकी। बस को लेह 5 बजे पहुँचना था लेकिन रात के 9 बजे पहुँची। इस पूरे रास्ते में 4 माउंटैन पास मिले, बारालाचा ला, नकी ला, लाचुंग ला और तांगलांग ला।
दिन 17 व 18: लेह
लेह समुद्र तल से 3,500 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। लेह पहुँचने के बाद हिमालयन बंकर हॉस्टल में ठहरने की जगह मिल गई। लेह में एक दिन तो मैंने पूरा आराम किया। लेह में प्रीपेड सिम नहीं चलती है इसलिए एक पोस्टपेड सिम ख़रीदी। उसके अगले दिन लेह का फ़ेमस बाज़ार और मोती बाज़ार को देखा।
दिन 19: मोनेस्ट्रीज
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लेह की आसपास की जगह को घूमने के लिए हमने एक स्कूटी रेंट पर ले ली। 800 रुपए में रेंट पर मिली स्कूटी से सबसे पहले हम शांति स्तूप गए। उसके बास लेह पैलेस को देखा। लेह से 15 किमी. दूर शे मोनेस्ट्री देखी। इसके बाद थिकसे और लेह लौटते समय स्टोक पैलेस भी देखा।
दिन 20 व 21: हेमिस फेस्टिवल
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लेह से 40 किमी. दूर एक जगह है, हेमिस। हेमिस की मोनेस्ट्री में हर साल दो दिन का फ़ेस्टिवल होता है। अगले दिन मैं इलेक्ट्रिक बस से कुर तक पहुँचा और वहाँ से हेमिस। हेमिस मोनेस्ट्री जब पहुँचा तो बहुत भीड़ थी, इस वजह से पहले दिन का फ़ेस्टिवल सही से नहीं देख पाया। अगले दिन सुबह 8 बजे हेमिस पहुँच गया। दूसरे दिन का फ़ेस्टिवल एकदम शानदार तरीक़े से देखा। फ़ेस्टिवल के बाद सिंधु और जांस्कर नदी का संगम देखने गए। अगले दिन लेह से दिल्ली की फ़्लाइट लेकर वापसी की यात्रा पूरी की। कुछ इस प्रकार दिल्ली से लेह की 21 दिन की यात्रा पूरी की।
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