Day 2: मैहर देवी के दर्शन
ट्रिप का ये मेरा दूसरा ब्लॉग हैं। पहले ब्लॉग में हमने आपको बताया था विध्याचल धाम के दर्शन के बारे में। तो चलिये अब हम आपको मैहर देवी के दर्शन का वर्णन बताते हैं।
"न मंज़िलों को न हम रहगुज़र को देखते हैं
अजब सफ़र है कि बस हम-सफ़र को देखते हैं "
ट्रेन के उस वाक्ये के बाद हम मैहर देवी पहुंचे सुबह सुबह।मध्यप्रदेश के सतना जिले में मैहर शहर में, 600 फुट की ऊंचाई पर त्रिकुटा पहाड़ी पर मां दुर्गा के शारदीय रूप श्रद्धेय देवी माँ शारदा का मंदिर है, जो मैहर देवी मंदिर के नाम से पूरे देश में प्रसिद्ध हैं।ये देश का इकलौता माँ शारदा देवी का मंदिर हैं।
यहां पहुंच के सबसे पहले हम होटल में जा के फ्रेश हुए और निकल लिए माता के दर्शन के लिए।
मैहर शब्द का का मतलब है मां का हार। मान्यता हैं कि यहां माता सति का हार गिरा था।हालांकि सतना का मैहर मंदिर में शक्ति पीठ नहीं है, फिर भी लोगों की आस्था इतनी अडिग है कि यहां सालोंभर माता के दर्शन के लिए भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है।
एक अन्य मान्यता हैं कि आल्हा की भक्ति और वीरता से प्रसन्न होकर मां शारदा ने उन्हें अमरता का वरदान दिया था।आल्हा और ऊदल दो भाई थे। ये बुन्देलखण्ड के महोबा के वीर योद्धा और कालिंजर के राजा परमार के सामंत थे।इन दोनों ने ही सबसे पहले जंगलों के बीच शारदा देवी के इस मंदिर को खोजा था। इसके बाद आल्हा ने इस मंदिर में 12 सालों तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था। स्थानीय लोगों के अनुसार रात 8 बजे मंदिर की आरती के बाद साफ-सफाई होती है।फिर मंदिर के सभी कपाट बंद कर दिए जाते हैं कपाट बंद करने के बावजूद इस को जब सुबह खोला जाता है तो मंदिर में मां की आरती और पूजा किए जाने के सबूत मिलते हैं।मान्यता है कि माता शारदा के दर्शन के लिए हर दिन सबसे पहले आल्हा और ऊदल ही आते हैं।
मैं और मेरे दोस्तों को यहां की मान्यताओं के बारे में तो पता था पर हम में से किसी को ये नहीं पता था कि माता के दर्शन के लिए हमें 1063 सीढ़ियां चढ़ना पड़ेगा।जैसे तैसे हम वहां तक पहुंचे पर अगर कोई सीढ़ियां नहीं चढ़ना चाहता तो वो रोपवे से भी जा सकता हैं।
दर्शन करने के बाद हमने वहां से प्रकृति के दृश्य का आनंद लिया। वहां से प्रकृति को देखना एक अलग ही अनुभव था मेरे लिए।आते वक्त हमने रोपवे लिया आने के लिए क्यों कि आते वक्त हम काफी थक गए थे। आते आते होटल हमें शाम को गई फिर हमने रात को ट्रेन लिया प्रयागराज के लिए। तो कुछ ऐसे अंत हुआ हमारे आध्यात्मिक यात्रा का।
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