घुमक्कड़ी का शौक कब से लगा यह तो नहीं पता, लेकिन जब भी मौका मिलता है कहीं न कहीं निकल जाता हूँ। यात्रायें मुझे बेहद हद तक शांत रखती हैं। जब मैं बहुत दिनों तक एक ही जगह रुक जाता हूं तो परेशानी मेरा चेहरा बयां कर देता है। यात्राएं बेहद कठिन लेकिन अद्भुत होती हैं। जो हमें जीवन के फेर से दूर रखती हैं, वे हमें उलझने नहीं देती हैं। यात्रा करके अक्सर मैं हल्का महसूस करता हूं। ऐसे ही सुकून की तलाश में मैं अकेले निकल पड़ा उत्तराखंड की वादियों में।
हरिद्वार और ऋषिकेश के शांत वातावरण से मैं पहले भी रूबरू हो चुका हूं। पर उस वक्त मैंने वहा के वादियों को जी भर के जिया नहीं था।मेरा मानना हैं कहीं जा के बस 1-2 दिन में आ जाना एक घुम्मकड़ की प्रवृति नहीं हैं। तो इस बार मैं ऋषिकेश की हर जगह को महसूस करने के इरादे से जा रहा था।
उत्तराखंड का फेमस तीर्थस्थान ऋषिकेश जो हिन्दू धर्म का एक पवित्र स्थल माना जाता है। इसे “गढ़वाल हिमालय का प्रवेश द्वार” भी कहा जाता है।ऋषिकेश की वादियों में जहाँ सुन्दर पहाड़ियों में खेलती गंगा की लहरें मन को मोह लेती हैं, जहाँ की वायु मन को शांत कर देती है, जहाँ गंगा स्वयं साक्षी बनती है वातावरण की पवित्रता का। ऐसे ऋषिकेश में सोलो ट्रिप में जाने के लिए काफ़ी उत्साहित था। क्योंकि ऋषिकेश से ट्रेकिंग ट्रेल्स आपको हरियाली, अविश्वसनीय घाटियों की ओर ले जाएंगी, जो अंतहीन लगती हैं, और ताज़ा झरने जहां आप एक ब्रेक ले सकते हैं। तो मैं भी निकल लिया ऋषिकेश के लिए।
मैंने अपनी यात्रा टैक्सी द्वारा शुरू की जो की मुझे हर की पौड़ी से कुछ दुरी पर स्थित बस स्टॉप के पास से मिल गयी,ये टैक्सी आपको ऋषिकेश के प्रसिद्ध लक्ष्मण झूला के निकट उतारेगी। इन टैक्सी द्वारा हरिद्वार से ऋषिकेश जाने का किराया 40-50 रुपये है। आप बस द्वारा जाना चाहे तो आपको बस स्टैंड जाना होगा। रेल द्वारा जाने पर पहाड़ियों के मनोरम दृश्य का आनंद उठा सकते है। ऋषिकेश पहुंच के मैंने सबसे पहले होटल बुक किया और फ्रेश हो के लक्ष्मण झूला की तरफ निकल लिया।पहले दिन मैंने बस दो चीज़ देखने का प्लान बनाया लक्ष्मण झूला और भूतनाथ मंदिर देखने का।
लक्ष्मण झूला असल में एक पुल है जिसकी लंबाई 450 फीट और नदी से लगभग 70 फीट की ऊंचाई पर है ।पुरातन कथनानुसार भगवान श्रीराम के अनुज लक्ष्मण ने इसी स्थान पर जूट की रस्सियों के सहारे नदी को पार किया था। स्वामी विशुदानंद की प्रेरणा से कलकत्ता के सेठ सूरजमल झुहानूबला ने यह पुल सन् 1889 में लोहे के मजबूत तारों से बनवाया, इससे पूर्व जूट की रस्सियों का ही पुल था एवं रस्सों के इस पुल पर लोगों को छींके में बिठाकर खींचा जाता था। लेकिन लोहे के तारों से बना यह पुल भी 1924 की बाढ़ में बह गया। इसके बाद मजबूत एवं आकर्षक पुल बनाया गया।
बताया जाता है कि लक्ष्मण जी की ओर से बनाया गया ये पुल पहले दूसरी तरह का दिखता था। इस पर चलने के लिए पट्टियां नहीं थी। बल्कि इसमें एक टोकरी लगाकर इसे दूसरे छोर पर पहुंचाया जाता था। मगर बाद में सेठ सूरजमल के निर्माण काल में इसे पैदल चलने योग्य बनाया गया था।
इस पुल से पहाड़ियों के बीच से आती हुई गंगा नदी का अति-मनोरम दृश्य देखने को मिलता है।नदी के किनारे मैंने काफ़ी वक्त बिताया यहां बहुत से लोग साधना में डूबे हुए थे जिसे देख के काफ़ी पॉजिटिविटी आ रही थीं।जिस शांति की तलाश में मैं यहां आया था वो मुझे मिला।
इसके बाद मैं भूतनाथ मंदिर के दर्शन के लिए निकल गया |