कोई अपने किसी खास प्रियजनों से प्रेरित होता है, तो कोई अपने चहेते स्टार से प्रभावित रहता है। वहीं कुछ प्रेरणा तो आसपास से ही मिल जाती है। पहाड़ की चोटी पर स्थित एक छोटा सा गाँव जो हाल ही में मेरे लिए यात्रा के लिहाज से प्रेरणादायी बन गया।
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मैं जिस गाँव की बात कर रहा हूँ वो ‘भारत का स्विटजरलैंड’ यानि हिमाचल प्रदेश के खजियार के बेहद करीब है। ये जगह और कोई नहीं बल्कि ‘मिस्टिक विलेज’ ही है! खजियार से करीब 2 कि.मी. आगे स्थित यह गाँव मेरे लिए प्रेरणादायक गंतव्य रहा है। इसका नाम ही इतना रहस्यमयी है कि मैं यहाँ के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए उत्सुक हो गया।
खट्टी-मीठी यात्रा
मेरे हिसाब से ‘मिस्टिक विलेज’ कोई डेस्टिनेशन ना होकर एक खट्टी-मीठी यात्रा का नाम है। मुझे चंबा से खजियार जाना था तो हमने यहाँ से दोपहर में यात्रा शुरू की। क्योंकि मेरा जन्म ही खजियार में हुआ था, तो मुझे बचपन के दिनों में खजियार की हरी-भरी घास के मैदानों में पिकनिक करने का मौका मिला था। तब मुझे यह पता नहीं था कि 8 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद मुझे फिर से यहाँ आने का मौका मिलेगा। मैंने अपने आप से सवाल करना शुरू किया कि इतने खूबसूरत गाँव से मैं अनजान कैसे रहा!
फिर मैंने कार से चंबा से खजियार तक की यात्रा डेढ़ घंटे में पूरी की। यहाँ यात्रा करने के लिए शेयरिंग कैब के अलावा लोकल बसें भी उपलब्ध हैं। खजियार और डलहौजी के आसपास के पर्यटन स्थलों को घूमने और मिस्टिक विलेज पहुँचने में हमने अपना एक सेकेंड भी जाया नहीं किया। वैसे तो हमने यहाँ जाने के लिए अच्छा मौसम यानी धूप वाला दिन चुना था लेकिन कुछ दिनों पहले वहाँ हुई ओलावृष्टि के कारण रास्ते हमारे लिए चुनौती से भर गए।
मैं तो ना ही ट्रेकर था और ना ही पर्वतारोही! यह यात्रा एक मज़ेदार अनुभव रही। चलते-चलते मैं तो रास्ते में ही बैठ जाया करता था। विश्वास कीजिए, बारिश की वजह से रास्ते में गिरे हुए पेड़ और बर्फ की वजह से जो परेशानी हुई थी उसने हमें बहुत ही परेशानी में डाल दिया था। हम कभी ऊपर चढ़ रहे थे, तो कभी नीचे उतर रहे थे। कभी पेड़ों पर चढ़ना और फिर कूद कर नीचे उतरना, बर्फ पर चलना और फिसलन वाली जगहों पर ध्यान से, धीरे-धीरे चलना ये सब कुछ इस यात्रा के दौरान हुआ। मुझे केयरटेकर द्वारा अनूप नाम का एक सहायक दिया हुआ था, जिसने मेरी बहुत सहायता की थी। और मैं निश्चित रूप से उसका आभारी हूँ। उसने ना केवल मुझे इन मुश्किलों को पार करने में सहायता की बल्कि उसने काफी समझाकर मेरे अंदर के डर को भी दूर किया।
गाँव की मनमोहक खूबसूरती
हम फिर 1 घंटे में खजियार से करीब 2 कि.मी. की दूरी पर स्थित भलोली गाँव होते हुए मिस्टिक गाँव पहुँचे। ये गाँव पहाड़ की चोटी पर 2100 मीटर की ऊँचाई पर बसा है। विलेज में पहुँचते ही वहाँ सूरज की चमकती धूप ने हमारा स्वागत किया। स्थानीय लोगों की आँखें और चेहरे पर मुस्कान थी और गाँव के केयरटेकर ने हमारा चाय की गरम प्याली के साथ स्वागत किया। इस रंगीन वातावरण में 'गरम चाय की प्याली' का क्या कहना!
इस मिस्टिक विलेज की खूबसूरती का अगर वर्णन किया जाए तो हमारे पास शब्द कम पड़ जाएँगे। यहाँ का नज़ारा बहुत ही लुभावना था। कभी आसमान का बदलता रंग, सरसों के खेत, पीर-पंजाल पर्वतमाला का सुंदर दृश्य, पूरी तरह से देहाती गाँव, मिट्टी के चुल्हे पर पकाए जा रहे व्यंजन की खूशबू, जगह-जगह गायों का घूम कर चारा खाना, खेतों की जुताई, महिलाओं का आपस में बातचीत करने का तरीका, पुराने लोगों के साथ गाँव के बारे में बातचीत आदि सब मिलाकर ये प्राचीन गांव किसी रहस्य से कम नहीं है। गाँव वालों के साथ बातचीत करने, तस्वीरों को क्लिक करने, घूमते हुए पहाड़ की चोटी तक जाना और ताजी हवा लेना, जो शहर में बिल्कुल भी नहीं मिलता। इन सभी चीजों में यानि वहाँ के खूबसूरत नज़ारों को देखने में मेरा दिन कैसे बीत गया यह पता ही नहीं चला।
होमस्टे - जैसे अपना ही गाँव हो
मिस्टिक विलेज वहाँ के लोगों की पैतृक विरासत है, जिसे हिमाचली संस्कृति व गाँव के सौंदर्य को नष्ट किए बगैर आजकल की आधुनिक तर्ज पर बनाया गया है। इसे यात्रियों की दैनिक ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए कम से कम कीमत पर उपलब्ध कराया गया है। यहाँ के कमरे काफी आरामदायक हैं और इन्हें स्थानीय संसाधनों से बहुत ही सरल तरीके से डिजाइन किया गया है। जैसे लकड़ी की कलाकृतियाँ, फ्रेम, जूट के पर्दे, मिट्टी के बर्तन, दीवार पर मिट्टी की पेस्टिंग आदि। इस होमस्टे ने स्थानीय लोगों को वैकल्पिक रोजगार दिया है।
कभी ना भूलाने वाले अनुभव
यहाँ की गर्म चाय का आनंद लेने के लिए सबसे बेस्ट समय है शाम 6 से 6:30 के बीच का। यह वक्त सूर्यास्त का होता और इस समय अगर आप बाहर नहीं निकलते हैं तो आप एक बेहतरीन नज़ारे को मिस कर देंगे। क्योंकि इस समय आप देख सकते हैं कि किस तरह आकाश मिनटों में नारंगी रंग का हो जाता है और सूरज धीरे-धीरे चोटियों के पीछे छिप जाता है। बाहर आने पर आप इस जादुई दृश्य को साक्षात कर सकते हैं। हालांकि इस सुनहरे दृश्य को कवर करने के लिए आप पहले से ही अपने फोन व कैमरे को तैयार रख सकते हैं।
हालांकि रात के वक्त यहाँ कुछ भी आकर्षक नहीं था। लेकिन इस दौरान यहाँ का आसमान ऐसा दिखता है मानों आकाश तारों की बिस्तर हो। और मेरा इस तरह तारों को देखने का लंबे समय से सपना था जो पूरा हो गया। अगर हम रात के भोजन की बात करें तो यह बहुत ही साधारण था, जिसे वहाँ मौजूद संसाधनों से ही बनाया गया था। मुझे भोजन में दाल, चावल, रोटी और मटर पनीर मिला था, जो बहुत स्वादिष्ट था। रात के वक्त मौसम बहुत सर्द थी और ठंड से बचने के लिए मैं ऊनी टोपी व दस्ताने के साथ चार परतों में ढका हुआ था। ठंड से बचने लिए सोने के दौरान वहाँ पर्याप्त मात्रा में कंबल दिए जाते हैं। मैंने तीन कंबल लिए था। हमने जो डोरमेट्री बुक की था उसमें 6 सिंगल बेड थे और यह हमारे बजट में था।
अब सुबह की शुरुआत तेज़ धूप के साथ हुई। इस धूप की वजह से आसपास का सब कुछ पीले रंग में बदल गया था। चूंकि मैं अपना टूथ-ब्रश चंबा में ही भूल गया थी तो दाँतों को साफ करने के लिए मैनें स्थानीय लकड़ी को दातून के रूप में इस्तेमाल किया। तभी मैंने पहली बार दातून का इस्तेमाल किया और यह कह सकता हूँ कि यह इतना भी बुरा नहीं है। इसके बाद नाश्ते में मिले वो आलू के पराठे भले ही मेरी दादी के हाथों की तरह ना हो लेकिन थे बड़ा टेस्टी!
वापसी के वक्त उस खूबसूरती को अलविदा कहना बहुत ही मुश्किल था जिसने मुझे मंत्रमुग्ध कर डाला था। हालांकि दिल को सुकून देने के लिए मेरे पास अनगिनत तस्वीरें थी। अब फिर से हम जब तक मिस्टिक विलेज नहीं जाते हैं तब तक के लिए मेरे पास वो तस्वीरें हैं जिसे मैंने क्लिक किया था। मेरी मानें तो डलहौजी, चंबा या खजियार घूमने के लिए बहुत ही बेस्ट विकल्प है। जब भी आप इन जगहों की यात्रा करें तो फिर ‘मिस्टिक विलेज’ जाना तो बिल्कुल भी मत भूलें!
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