ये खबर उन लोगों को काफ़ी पसंद आएगी जो देश में चल रही स्वदेशी और गायों के लिए चल रहे अभियानों में दिलचस्पी रखते हैं।
मगर शुरू करने से पहले एक मिनट इस सवाल का जवाब सोचिए-
आख़िर लोग घूमने क्यों जाते हैं ?
ये दार्शनिक सवाल नहीं है | इसके काफ़ी आसान जवाब हैं | जैसे नई जगहें देखने के लिए, शहर की बोरियत मिटाने, मंदिर-देवरे घूमने, मौज-मस्ती करने, और भी बहुत सारे कारण हैं, जिसके वजह से लोग हर साल लाखों की तादात में एक जगह से दूसरी जगह घूमते हैं |
मगर लोग भारत की स्वदेशी गायों की नस्लें देखने और इनसे जुड़ी दिलचस्प जानकारी लेने के लिए भी घूमना चाहेंगे, ऐसा भारत की केंद्र सरकार का मानना है |
फ़रवरी 2019 में केंद्र सरकार मंत्रालय ने 'राष्ट्रीय कामधेनु आयोग' बनाने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी थी | इस आयोग का काम भारत की स्वदेशी गायों की नस्ल को बचाने और बढ़ाने का है |
इसी आयोग ने हाल ही में पर्यटकों के लिए एक ख़ास 'काउ सर्किट' बनाने का प्लान किया है | इस सर्किट के लिए देश के वो राज्य चुने गए हैं जिनमें गायों की स्वदेशी नस्लें खूब पैदा होती है |
इन राज्यों में शामिल है :
हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटका, केरल, और गोवा
आयोग के अध्यक्ष वल्लभ कथिरिया ने सुझाया है कि 'काउ सर्किट' के अंतर्गत बनने वाले 'काउ सेंटर्स' कुछ ख़ास जगहों पर बनने चाहिए, जैसे सोमनाथ मंदिर, गुजरात का साबरमती आश्रम, साबरमती सेंट्रल जेल, पुणे का येरवाड़ा जेल, दिल्ली का तिहाड़, केरल के आयुर्वेदिक उपचार सेंटर और स्पा, और गोवा के जाने-माने पर्यटन स्थलों पर इन 'काउ सेंटर्स' को बनाया जाएगा | इन सेंटर्स पर आप ना सिर्फ़ स्वदेशी गायों की नस्लों के बारे में समझ पाएँगे, बल्कि गाय का घी, गाय का मूत्र और गाय के गोबर से बनी चीज़ें खरीद पाएँगे |
इन सेंटर्स को बनाने के लिए कई तरह के एनजीओ, निजी कंपनियाँ और धार्मिक समुदाय आगे आए हैं | सेंटर खोलने की लागत कुछ 2 करोड़ रुपये के लगभग है |
देश में बहती 'स्वदेशी' की आँधी में हिचकोले ख़ाता टूरिज़्म और क्या नए अजूबे सामने लाएगा, ये तो वक़्त के साथ ही पता चलेगा |